सोशल मीडिया का बाजा बज गया है । कल गुस्से से दिमाग फटा जा रहा था ।शाम को मित्रों के बीच गया । जबरदस्त सुनना पड़ा । मैं वर्धा में रहता हूं । यह गांव है जो धीरे-धीरे शहर बन रहा है ।पर अभी भी यहां कोई माल या मल्टीप्लेक्स नहीं है । तीन सिनेमाघर हैं जिन्हें टाकीज कहा जाता है । शोज को खेल कहते हैं । गांधी जी की वजह से चला आया था । सालों से यहीं हूं । सैंकड़ों लेक्चर दिये ।पिछले तीन चार सालों से लोगों को मैंने ‘सत्य हिंदी’ और ‘वायर’ जैसे डिजीटल चैनल की तरफ आकर्षित किया है । लेकिन कल सारा भांडा फूट गया । सबने खूब सुनाई । सर ,कहां का ‘सत्य हिंदी’ और कहां का ‘वायर’ । इससे तो अच्छा ndtv है । ‘सत्य हिंदी’ पर खूब बरसे साथी लोग । वही वही चेहरे । इधर बैठा लो या उधर ।ऊब होती है । ये महानगरों के पत्रकार । इन्हें तो बाल्टी भर भर कर चाय काफी पिलाते रहो । जैसे बिना पान खैनी के कई लोगों की उतरती नहीं वैसे ही ये भी हैं । चेहरे से भी बड़े बड़े मगों में जब तक चाय काफी मिल न जाए तब दिमाग का भूसा निकलता नहीं । कई तो बीजेपी का सूपड़ा साफ कर रहे थे । कई अपनी गर्दन फंसा रहे थे । एक वाजपेई हैं । पूरा नाम लेने की इच्छा नहीं होती । बेपेंदी के लोटे हैं । क्या क्या बोलते रहे इतने दिनों से और जैसे ही ‘एक्जिट पोल’ आये तो उसके साथ हो लिए ।और घोषणा कर दी कि अखिलेश हारे तो समझिए कि उनका कैरियर खतम । ऐसे कैरियर खतम होते हैं क्या ? न जाने क्या क्या हम पिछले तीन चार महीनों से सुनते रहे इन लोगों से । अब अपनी पत्रकारिता और अपने आकलनों पर ये लोग स्वयं मंथन करें ।
कुछ समय पहले मैंने लिखा था कि सोशल मीडिया गोदी मीडिया हो गया है । अभय कुमार दुबे को मेरा वह लिखा खूब पसंद आया था । उन्होंने मैसेज लिखा । दरअसल हम हमेशा अपने जैसी पसंद वालों के नजदीक रहना चाहते हैं । कुछ भी विपरीत से हम असहज हो जाते हैं । हमारे रिपोर्टर भी अपनी सोच और विचार वालों से ही ज्यादा बात करना चाहते हैं । हमें तटस्थ या विपरीत विचार वाला व्यक्ति पसंद ही नहीं आता । सारे पैनलिस्ट को हमेशा अखिलेश ‘एज’ पर नजर आये। क्यों भई । कुछ ‘अंडर करेंट’ भी तो हो सकता है । मैं इन्हीं लोगों पर विश्वास करता रहा । क्योंकि यहां पत्रकारिता नाम की कोई चीज नहीं है । कहीं कोई सुविधा नहीं ।यहां पत्रकार कहे जाने वाले लोग दलाल हैं । हालांकि मैंने अक्सर बीच बीच में शंका भी जताई ।और ये भी प्रश्न किये कि आपकी ‘रीच’ कितनी है । ‘सत्य हिंदी’ लोकप्रिय हो रहा है पर किनके बीच में। जिसे लाभार्थी वर्ग कहा जा रहा है वहां तक सोशल मीडिया की पहुंच है ? या जो फेसबुकिये हैं वे ही आपके दर्शक और श्रोता हैं ? दरअसल सच यही है । मैंने कई बार देश के बुद्धिजीवियों पर भी सवाल उठाए । यहां तक लिखा कि यदि हर्ष मंदर और उनके साथी ‘कारवां ए मोहब्बत’ बना कर जगह जगह देश भर में घूम सकते हैं तो इसी तरह की टीम बना कर गांव देहातों में राजनीतिक जागरण क्यों नहीं कर सकते । मैंने यहां तक भी लिखा कि योगेन्द्र यादव इस सब के लिए सबसे उपयुक्त व्यक्ति हैं । आज योगेन्द्र यादव कह रहे हैं कि हमें सड़क पर संघर्ष और समाज से संवाद करना है ।पहले क्यों नहीं किया । किसान आंदोलन से पहले भी आप कर सकते थे । आशुतोष ने हमेशा ही कहा कि हम आपकी बातों को गम्भीरता से लेते हैं तो यह क्यों नहीं सुनिश्चित किया कि आपकी बात सहज और सरल तरीके से गांव देहात के लोगों तक पहुंचे । डिबेट्स में आने वाले दो चार लोगों को छोड़ सब बकवास लगते हैं । एक अजय शुक्ला हैं जो पंजाब में आम आदमी पार्टी को सिरे से नकार रहे थे । एक वो 4 pm वाला है जो बीजेपी का सूपड़ा साफ कर रहा था और महीनों से एक ही बात कर रहा था कि हमारी टीम ने सौ गांवों का दौरा किया है ।हर बार एक ही बात ।सौ से निन्यानबे नहीं, न एक सौ एक । तो ऐसे में वह सूपड़ा साफ करवा रहा था भाई । संतोष भारतीय हमेशा एस पी सिंह की बात करते हैं। एस पी सिंह होते तो इस व्यक्ति को कहां बैठाते । संतोष भारतीय की बातों और उनके विवेचनों को पसंद करते हुए भी मेरा उनसे यह प्रश्न है । कल मैंने अपने मित्रों से यही बात है कहीं है कि अब आप स्वतंत्र हैं क्या देखें क्या न देखें । मैं भी कोई जिद नहीं करूंगा ।और मैं स्वयं वे कार्यक्रम हरगिज नहीं देखूंगा जिसमें तीन चुनिंदा पैनलिस्ट से अलग और लोग होंगे । जैसे कल मुकेश कुमार के शो में केवल तीन थे और तीनों चुनींदा – श्रवण गर्ग, कमर वहीद नकवी और आकार पटेल । बस इसी तरह के । विनोद अग्निहोत्री की भड़ भड़ और न समझ आने वाली बातें कौन सुने ।
परसों शाम को आशुतोष ने CSDS के संजय कुमार से बातचीत की । बेहतरीन ! सरल, सौम्य संजय का आकलन सुनना चाहिए । जिन्होंने नहीं सुना वे जरूर सुनें । एक तो उन्होंने बीजेपी की जीत का जो आंकड़ा दिया , एकदम सटीक । दूसरा बीजेपी क्यों जीतेगी यह उन्होंने विस्तार से बताया । उनकी बातों ने उसी शाम सुनिश्चित कर दिया कि बीजेपी जीत रही है और इन कारणों से जीत रही है । ‘एक्जिट पोल’ के आने के बाद तो इन पत्रकारों की बातें और इनके चेहरे देखने वाले हो रहे थे । एन के सिंह तो बार बार गलत होने पर माफी मांगने के अंदाज में आ रहे थे । श्रवण गर्ग ने उन्हें मीठी सी डांट पिलाई कि इसमें माफी मांगने की बात क्या है । गलत हुए तो गलत हुए । ये सब दिग्गज पत्रकार हैं पर व्यक्तित्व के हल्के ही लगते हैं । एक हैं ओंकारेश्वर पांडेय ।उनका तो कहना था कि CSDS को ICCR से फंडिंग होती है तो संजय कुमार तो दबाव में कहेंगे ही । निर्लज्जता है यह । संजय पर वाहियात आरोप है । और उनका ‘पोस्ट पोल’ सच हुआ है ऐसे में तो बिल्कुल ही वाहियात है । अब उर्मिलेश जी क्या करेंगे ।पहले उन्होंने कहा अखिलेश हारने के लिए लड़े रहे हैं फिर उन्होने अपनी बात पलट दी और अब ?
सच यह है कि हमारे पत्रकार अपने महानगरों को छोड़ नहीं सकते । ये स्टूडियो या घर की चौखट में पीछे बड़ी बड़ी किताबें दिखाते हुए ‘सुढ़क सुढ़क’ करने वाले पत्रकार हैं । एक शीतल जी , आरफा खानम और भाषा सिंह जैसे लोग थे जो जगह जगह की खाक छान रहे थे । शीतल जी का आकलन सबसे ज्यादा सटीक था । उन्होंने हमेशा बीजेपी आरएसएस की अंदरूनी हलचल की बात कही और बीजेपी के सशक्त होने की आशंका जताई ।पर कईयों ने उनकी बातों को गम्भीरता से नहीं लिया ।ये सब अखिलेश के पीछे की भीड़ से गद् गद् थे ।और बीजेपी के मंत्री संत्री को भगाना, लखीमपुर खीरी में सपा की बल्ले बल्ले देख रहे थे ।यही सब इनका आकलन था । इन्हें खयाल नहीं कि मुस्लिम विरोध हमारी नसों में घुस चुका है और यह पिछले पांच सौ सालों से है । क्या गारंटी है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाटों ने इसी बिना पर चुपचाप जाकर बीजेपी को वोट न दिया हो । कहने को वहां किसानों का एका कहा गया ।
संतोष भारतीय आजकल ‘भाष्य’ शब्द का बड़ा जिक्र करते हैं ।तो हमें भी उनका भाष्य बहुत पसंद आता है । अब इनका और दूसरे पत्रकारों का भाष्य क्या और कैसा रहेगा यह देखना है । कांग्रेस का क्या होगा यह सब मिलकर सोचें । क्या कांग्रेस को अपना अध्यक्ष आऊटसोर्स नहीं कर देना चाहिए । अगले पांच साल बड़े खौफनाक रहेंगे । खासतौर पर मुसलमानों के लिए । सड़क की लड़ाई आज से ही शुरू होनी चाहिए ।यह भी ख्याल रहे कि विपक्षी नेताओं का एका ‘भानमति का कुनबा’ न बन जाए । मोदी बहुत चालाक हैं । उन्होंने लोगों के दिमागों को ‘ब्रेनवाश’ कर दिया है । मोदी से लड़ना है तो पीछे के इतिहास और राजनीतिक कथाओं को भूलना होगा । बस सामने और आगे । मैं हर सोमवार को अपना ब्लाग लिखता हूं । पर यदि आज नहीं लिखता तो असहज रहता । उम्मीद करता हूं कि हमारे पत्रकार ने सिरे से सोचेंगे ।और अपने मित्रों और भाई-बंधुओं से समानांतर दूरी बना कर रखेंगे । आलोक जोशी की विद्वता का मैं कायल हूं पर वे कब मुस्कुराते हैं और अब सीरियस हो जाते हैं पता ही नहीं चलता । शक हो तो खुद ही देखिए । फिर मिलेंगे .…..!

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