इंसाफ मिले ही नहीं,मिलता हुआ दिखाई भी पड़े !

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वीरेंद्र सेंगर

ग्राउंड जीरो से विकल्प ऐसे ही निकलते हैं, जैसे सामाजिक कार्यकर्ता और वकील प्रशांत भूषण का उभार! मैं ये नहीं कहता कि वे विपक्ष के मजबूत राजनीतिक चेहरे बन सकते हैं! वैसे ऐसा कुछ हो जाए ,तो खराब भी क्या है? वे कम से वैकल्पिक राजनीति के धुरी तो बन ही सकते हैं।

सर्वोच्च न्यायालय पर सब की निगाहें हैं।वहां पर प्रशांत जी के खिलाफ चर्चित मामला जेएरे बहस है। मामला माननीय अदालत की अवमानना का है। अदालत ने उन्हें दोषी करार किया था।आज न्यायमूर्तियों को सजा सुनानी थी।अभियुक्त प्रशांत ने बहस के दौरान गुजारिश भी की,उन्होंने अदालत के बारे जो कहा था,उस पर.कायम हूं क्योंकि एक जिम्मेदार नागरिक की हैसियत से ये उनकी जिम्मेदारी थी।यदि वे ऐसा नहीं करते ,तो अपनी ड्यूटी में असफल होते। ऐसे में न खेद जताने का सवाल है, न माफी मांगने का।वे अदालत से न रहम मांगते हैंऔर न ही कोई कृपा।जो भी अदालत सजा दे,वे तैयार हैं।जब प्रशांत जी ने ये बापूगीरी दिखा दी, तो अदालत ने अभियुक्त श्री को पुनर्विचार के लिए बिन मांगे, दो दिन की मोहलत दे दी।सवाल ये है कि माननीय अदालत ने खुद के लिए मोहलत तो नहीं मांगी? एक जिम्मेदार नागरिक के नाते मैं भी मानीय सर्वोच्च न्यायालय को सैल्यूट करता हूं।मेरी भी इच्छा है कि लोकतंत्र के महत्वपूर्ण स्तंभ न्याय पालिका की गरिमा पहले के वर्षों की तरह हमेशा बरकरार रहे।यदि सर्वोच्च न्यायालय के प्रति आम आदमी का विश्वास जरा भी दरका, तो वह क्षण भारतीय लोकतंत्र के लिए सबसे दुखद होगा।

लोगों का अभी तक अटल विश्वास रहा है।ये कायम रहना ही चाहिए!लोगों को यह भी विश्वास रहे कि चुनी हुई सरकारें ,किसी राजनीतिक फायदे के लिए या निरंकुश होकर संविधान विरोधी फैसला कर दें,तो माननीय अदालत बगैर किसी लालच या खौफ के संविधान की रक्षा करे।ये भूमिका कुछ मौकों को छोड़कर अदालत निभाती भी रही है।इसलिए दुनिया भर में हमारी इस अदालत की बहुत उम्दा साख रही है।हूजूर!इस पर आंच नहीं आनी चाहिए। लेकिन हुजूर!इन दिनों सब ठीक ठाक नहीं हैं।वर्ना यह नाचीज पत्रकार ही नहीं, देश का एक बड़ा प्रबुद्ध नागरिक समाज, प्रशांत जी के मामले में इतना चिंतित नहीं होता।

सर्वोच्च न्यायालय में आपकी तरह न्याय मूर्ति रहे, कुछ पूर्व जज साहिबान, जिनमें करीब तीन सौ जाने माने लोग हैं,वे पत्र लिखकर चिंता जता चुके हैं।सब की आशंका यही कि कहीं कुछ न्याय मूर्ति सत्ता प्रतिष्ठान या किसी लालच के फेर में तो नहीं हैं ?कुछ महत्त्वपूर्ण मामलों में आ आए फैसलों से ही ऐसी धारणा बनायी जा रही है।मैं तो दुआ करता हूं कि ऐसी आशंकाएं निराधर साबित हों।लेकिन हुजूर! गांव में कहा जाता है कि बगैर धुंए के आग नहीं होती।हम तो ये भी नहीं मानते।हुजूर!इंसाफ ही काफी नहीं है, उंगली तो सीता माता की पवित्रता पर रामराज्य में एक धोबी रूपी आम नागरिक ने उठा दी थी।

राम जी ने उस पर अवमानना की तलवार नहीं चलाई थी। माना कि आप लोग इसी समाज से निकले हैं,किसी और टापू से नहीं आए। फिर भी आप सर्वोच्च पचं परमेश्वर हो,आपसे देश सर्वोच्च शुचिता की अपेक्षा करे,तो कोई अवमानना नहीं होनी चाहिए।हुजूर !आखिर में यही अर्ज है कि माई बाप !इस पर गौर कीजिए कि प्रशांत जी के मामले इतना प्रबुद्ध जन समर्थन किसके पक्ष में गोल बंद हुआ और क्यों? ये भी कि इस मामले में किसको अपना चेहरा साफ रख पाना एक चुनौती बन गया है? इंसाफ मिले ही नहीं,मिलता हुआ दिखाई भी पड़े!

जय हिदं!

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