jharkhandबिजली की समस्या से जूझ रहे झारखंड के लोगों को मुख्यमंत्री रघुवर दास ने यह आश्‍वासन दिया था कि अब निर्बाध बिजली की आपूर्ति होगी. सत्ता संभालते ही उन्होंने मजीरो पावर कटफ की बात कही थी. उन्होंने सख्त लहजे में कहा था कि जहां बिजली कटेगी, वहां के अभियंता पर कार्रवाई होगी. पर झारखंड में जीरो पावर कट लोगों का सपना ही रह गया. राज्य में बिजली आपूर्ति की व्यवस्था लचर है. सुधार के लाख दावों के बावजूद बिजली का कटना जारी है. बीते सालों की तुलना में स्थिति में बहुत सुधार नहीं हुआ है.

राज्य का कोई भी हिस्सा ऐसा नहीं है, जहां 24 घंटे बिजली की आपूर्ति होती हो, आलम यह है कि राजधानी रांची में भी 20 से 22 घंटे ही बिजली मिल पाती है, वहीं राज्य के अन्य इलाकों में 15 से 17 घंटे ही बिजली मिल पाती है. पर झारखंड राज्य बिजली वितरण निगम के अधिकारियों का दावा है कि राज्य में निर्बाध विद्युत आपूर्ति की क्षमता है, पर ट्रांसफॉर्मर व तार की स्थिति ऐसी नहीं कि बिजली की फुल लोड आपूर्ति की जा सके. आंधी बारिश में भी तार टूट जाते हैं, लोकल फॉल्ट आ जाता है. इस कारण समय-समय पर बिजली कटती रहती है.

पर अगर सच्चाई पर गौर करें तो हकीकत कुछ और बयां करती है, दरअसल झारखंड में बिजली का उत्पादन ही नहीं है कि फुल लोड बिजली की आपूर्ति की जा सके. राज्य को 2100 मेगावाट बिजली की जरूरत है, पर वर्तमान में 1800 मेगावाट बिजली ही उपलब्ध हो पा रही है. जरूरत के अनुपात में आधे बिजली का ही उत्पादन राज्य में अभी हो पा रहा है. तेनुघाट विद्युत निगम पर ही राज्य सरकार निर्भर है, यहां से 380 मेगावाट बिजली का उत्पादन ही हो पाता है, पर इसपर लोड बढ़ने से इसका एक यूनिट हमेशा ठप हो जाता है. इस कारण पूरे राज्य के किसी भी भाग में जीरो पावर कट बिजली नहीं मिल पाती है.

दरअसल राज्य गठन के 16 साल बाद भी इस ओर कोई ठोस रोड मैप बनाकर काम नहीं किया गया है. रांची सहित अन्य कुछ शहरों में अंडरग्राउंड केबलिंग का काम शुरू हुआ, पर यह अभी तक नहीं हो सका. राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के तहत 17 हजार गांवों का विद्युतीकरण किया गया है, पर वहां बिजली कैसे मिले, इसकी कोई व्यवस्था नहीं की गई.

अब भी अगर गांवों में एक बार ट्रांसफॉर्मर खराब हुआ तो उसे बदलने में सालों लग जाते हैं, साथ ही राज्य का आधा भाग अति उग्रवाद प्रभावित रहने के कारण इन क्षेत्रों में तार चोरी की घटनाएं भी अधिक होती है. इस कारण अधिकतर ग्रामीण क्षेत्र अभी भी अंधेरे में ही डूबे रहते हैं. संथाल परगना का पूरा क्षेत्र अभी बिहार एवं कहलगांव के एनटीपीसी पावर प्लांट पर ही निर्भर है. यहां से बिजली खरीद कर सरकार इन क्षेत्रों में बिजली देती है. राज्य में बिजली का उत्पादन नहीं होने के कारण सरकार के भी हाथ बंधे हुए हैं.

राज्य में अभी 26 लाख से अधिक बिजली के उपभोक्ता हैं, 2010 तक मात्र 14 लाख ही बिजली उपभोक्ता थे. उपभोक्ताओं की संख्या में लगातार वृद्धि होने के कारण अब प्रतिमाह 917 करोड़ युनिट की खपत है. उपभोक्ताओं की पूर्ति के लिए झारखंड बिजली वितरण निगम 370 करोड़ रुपये की बिजली प्रतिमाह खरीदता है, बिजली बोर्ड का अपना स्थापना व्यय भी 35 करोड़ रुपये है. बोर्ड बिजली चोरी रोकने एवं भ्रष्टाचार पर काबू पाने में पूरी तरह विफल रहा है. इस कारण बिजली बोर्ड का घाटा कम होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है. मुख्यमंत्री रघुवर दास द्वारा बार-बार चेतावनी दिये जाने के बाद भी इसका कोई असर नहीं हो पा रहा है.

वैसे मुख्यमंत्री रघुवर दास ने राज्य के सभी गांवों में विद्युतीकरण कराने का लक्ष्य रखा है. मुख्यमंत्री ने यह घोषणा किया है कि दिसम्बर 2017 तक सभी घरों में विद्युत कनेक्शन मुहैया करा दिया जाएगा. मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को यह निर्देश दिया है कि हर हाल में इस लक्ष्य को पूरा किया जाए, अन्यथा काम में कोताही बरतने वाले को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा. मुख्यमंत्री के इस आदेश का असर भी देखने को मिल रहा है. बिजली निगम ने इसके लिए एक रोड मैप भी तैयार किया है. मुख्यमंत्री राज्य में बिजली उत्पादन बढ़ाने को लेकर भी गंभीर है.

अभी तेनुघाट विद्युत निगम पर ही राज्य सरकार निर्भर है, पर अब इसकी क्षमता बढ़ाने के उद्देश्य से इसका जीर्णोद्धार करने का फैसला लिया गया है, जबकि पतरातू थर्मल पावर को एनटीपीसी को दे दिया गया है. इस बिजली संयंत्र से एवं इसका विस्तार कर एनटीपीसी 4 हजार मेगावाट बिजली का उत्पादन करेगा. इस पर काम शुरू किया जा रहा है. कुछ निजी कंपनियों को भी विद्युत संयंत्र लगाने के लिए आमंत्रित किया गया है. इसमें अडानी समूह मुख्य है.

अडानी गोड्डा में 2200 मेगावाट बिजली का उत्पादन करेगा. अभी दो निजी कंपनियां इनलैण्ड पावर एवं आधुनिक पावर द्वारा बिजली उत्पादन किया जा रहा है. इन दोनों पावर प्लांट से 180 मेगावाट बिजली का उत्पादन हो रहा है. बिजली निगम के अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक आर.के. श्रीवास्तव ने दावा किया है कि सभी घरों में जल्द ही बिजली कनेक्शन पहुंचा दिया जाएगा. साथ ही फुल लोड बिजली देने का लक्ष्य रखा गया है. बिजली कंपनी में हो रहे घाटे को दूर करने के लिए ठोस नीति बनायी गई है. पर अब देखना है कि झारखंड के लोगों का यह सपना पूरा होता है या जीरो पावर कट मुंगेरी लाल का हसीन सपना ही बनकर रह जाएगा.

अगले साल हर घर में बिजली – मुख्यमंत्री

मुख्यमंत्री रघुवर दास ने राज्य के सभी गांवों में बिजली पहुंचाने को लेकर तल्ख रवैया अपनाया है, अपने मातहत अधिकारियों को यह निर्देश दिया है कि 2017 के अंत तक हर घर में बिजली पहुंच जाना चाहिए. इसके लिए राशि भी स्वीकृत कर दी गई है. वैसे अभी तक पूर्ण विद्युतीकरण नहीं होने पर पिछली सरकार को जिम्मेदार ठहराने से नहीं थकते हैं. उनका मानना है कि अगर आत्मविश्‍वास और दृढ़संकल्प के साथ कोई योजना शुरू की जाए, तो उसे हर हाल में पूरा किया जा सकता है. जिनके घर अभी तक अंधेरा था, उस घर में जल्द ही बिजली पहुंचेगी.

राज्य में जितनी बिजली की आवश्यकता है, उतना उत्पादन नहीं है, तो ऐसे में इतने घरों में डीवीसी एवं राज्य के विद्युत उत्पादन संयंत्र से उत्पादन बढ़ाकर इस कमी को दूर किया जाएगा. दिसम्बर, 2017 तक राज्य के सभी पंचायतों के घरों में बिजली कनेक्शन मुहैया करा दिया जाएगा, यह सरकार का वादा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी यह प्रबल इच्छा है कि हर घर में रोशनी हो. मुख्यमंत्री का मानना है कि नई ऊर्जा नीति के तहत निजी औद्योगिक घरानों द्वारा राज्य में बिजली उत्पादन संयंत्र लगाए जा रहे हैं, तेनुघाट विद्युत निगम को भी एनटीपीसी को दिया गया है, इस कारण राज्य में कुछ दिनों के बाद बिजली की कोई कमी नहीं रहेगी.

साथ ही बिजली का खपत कम करने के लिए एलईडी बल्बों का वितरण किया जा रहा है. इन बल्बों की कीमत तो कम रखी ही गई है, साथ ही गरीब एवं बीपीएल परिवारों के लिए किस्तों में दस रुपये प्रतिमाह की राशि पर मुहैया कराया जा रहा है, वैकल्पिक ऊर्जा के प्रति भी मुख्यमंत्री रघुवर दास कुछ ज्यादा ही गंभीर हैं, सरकारी भवनों को सौर ऊर्जा से विद्युत आपूर्ति सुनिश्‍चित करने को कहा गया है. खूंटी व्यवहार न्यायालय में सोलर लाइट के द्वारा ही विद्युत आपूर्ति की जा रही है. मुख्यमंत्री ने कहा कि पीपी मॉडल पर सोलर ऊर्जा प्लांट लगाने की कार्रवाई की जा रही है. कई औद्योगिक घरानों ने निवेश के प्रस्ताव दिए हैं. कुछ ही दिनों में झारखंड बिजली के मामले में पूरी तरह आत्मनिर्भर हो जाएगा.

68 फ़ीसदी ग्रामीण घरों तक नहीं पहुंची बिजली

राज्य के लगभग 68 प्रतिशत ग्रामीण घरों में बिजली नहीं है. सुदूरवर्ती आदिवासी बहुल गांवों के लोग तो बिजली का मतलब भी नहीं समझते. स्वयं केंद्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने राज्यसभा में यह स्वीकार किया था कि झारखंड राज्य में ग्रामीण घरों की कुल संख्या 46 लाख 85 हजार 965 है, जिसमें 15 लाख 14 हजार 50 घरों में ही बिजली पहुंचाई जा सकी है. झारखंड के ग्रामीण इलाकों में केंद्र सरकार की राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना एवं राज्य योजना के अंतर्गत राज्य के गांवों का विद्युतीकरण किया गया है.

सुदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्र, उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र एवं आदिम जनजाति बहुल क्षेत्रों में विद्युतीकरण का काम राज्य गठन के 16 वर्षों के बाद भी शुरू नहीं हो सका है, हालांकि मुख्यमंत्री रघुवर दास ने इन क्षेत्रों में बिजली बहाल करने के लिए एक रोडमैप तैयार किया है. झारखंड बिजली वितरण निगम का दावा है कि गांवों में बिजली पहुंचाने के लिए युद्धस्तर पर काम किया जा रहा है. पोल, तार एवं ट्रांसफॉर्मर लगाने का काम एक साथ शुरू किया गया है, पर कुछ परेशानियां भी निगम के सामने आ रही हैं. राज्य के 409 गांवों के आसपास कोई ट्रांसमिशन लाइन नहीं है. वैसे राज्य सरकार इन गांवों में सोलर लाइट के द्वारा विद्युतीकरण करने की योजना पर काम कर रही है. 

90 प्रतिशत आदिवासी घरों में बिजली नहीं – मरांडी

राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बाबुलाल मरांडी ने कहा रघुवर दास केवल भोली-भाली जनता को बड़े-बड़े वादे कर लुभाने की कोशिश में है, पर आगामी चुनाव में जनता ने भाजपा को सबक सिखाने का मन बना लिया है. अभी भी 90 प्रतिशत आदिवासी गांवों में बिजली का तार नहीं पहुंचा है, पहले तार और बिजली तो पहुंचाए, तब हर-हर घर में बिजली और जीरो पावर कट का दावा करे. मुख्यमंत्री लुभावनी घोषणा करना बंद करें और धरातल पर काम करना सीखें. उन्होंने कहा कि यह सरकार घोर आदिवासी और मूलवासी विरोधी हैं, इसलिए जनहित का कोई काम नहीं किया जा रहा है.

भाजपा अपने पार्टी के उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए भोले-भाले लोगों का जमीन अधिग्रहण करने में लगी हुई है. जब आदिवासी के पास जमीन और मकान ही नहीं रहेगा तो बिजली किसको देंगे. मुख्यमंत्री पहले विस्थापन और लोगों का पलायन तो रोके. उन्होंने कहा कि राज्य की 68 प्रतिशत आबादी अभी भी अंधेरे में रहने को विवश है. मुख्यमंत्री राज्य में व्याप्त भ्रष्टाचार पर काबू पाएं. बिजली बोर्ड तो भ्रष्टाचार का अड्डा है. वैकल्पिक ऊर्जा का स्रोत भी ढूंढना चाहिए, तभी राज्य के सभी घरों में बिजली पहुंचायी जा सकती है. 

घोषणाओं की सरकार – हेमंत सोरेन

विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता एवं राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि यह सरकार घोषणाओं की सरकार है. बड़ी-बड़ी घोषणाएं एवं वादे किए जाते हैं, पर अभी तक एक भी घोषणा जमीन पर नहीं उतर सकी है. रघुवर सरकार ने एक लाख लोगों को नौकरी देने का वादा किया था, पर किसी एक को भी नौकरी नहीं दी गई. इतना ही नहीं, जिन लोगों को पूर्ववर्ती सरकारों ने संविदा के आधार पर रखा, उन्हें भी निकालने की साजिश यह सरकार कर रही है.

सभी लोगों को बिजली देने के संबंध में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि रघुवर दास जब मुख्यमंत्री पद पर आसीन हुए तो उन्होंने राजधानी एवं राज्य के लोगों से जीरो पावर कट की बातें कही थी, पर सुदूर गांव की बात तो छोड़ दें, राजधानीवासियों को भी गर्मियों में आठ-आठ घंटे तक बिजली नहीं मिल पाई थी. मुख्यमंत्री किस आधार पर जीरो पावर कट की बात कह रहे हैं, यह समझ से परे है.

राज्य में बिजली की जरूरत जितनी है, उतना उत्पादन है नहीं. बिजली कंपनियों का बकाया राशि होने के कारण कंपनियां राज्य को बिजली देने में आना-कानी कर रही है, इसमें डीवीसी प्रमुख है. उन्होंने कहा कि पूर्ववर्ती सरकारों ने राज्य को बिजली उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के कई प्रयास किए, कुछ निजी कंपनियों को भी आमंत्रित किया गया, आए भी, पर भाजपा सरकार द्वारा उन्हें दी गई कोल ब्लॉक आवंटन को रद्द कर दिया, जिससे वे पीछे हट गए.

वहीं भाजपा अडानी समूह को फायदा पहुंचाने के लिए हर कदम उठा रही है. अडानी की शर्तों पर ही यह सरकार पावर प्लांट लगवा रही है. इस पावर प्लांट से राज्य सरकार को कुछ लाभ नहीं होने वाला है. वैकल्पिक ऊर्जा की चर्चा करते हुए श्री सोरेन ने कहा कि इसके प्रति राज्य सरकार गंभीर नहीं है. केवल सोलर संयंत्र के नाम पर लूट-खसोट मचा हुआ है.

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