6सूबे में अपनी अलग पहचान रखने वाला सारण संसदीय क्षेत्र आज भी अपनी पुरानी परंपरा पर कायम है. लोक नायक जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति की मशाल लेकर सारण (छपरा) संसदीय क्षेत्र में जिस चेहरे का आविर्भाव हुआ, वह चेहरा लगातार चार दशकों तक संपूर्ण बिहार को किसी न किसी रूप में दिशा देता रहा. छपरा संसदीय क्षेत्र का नाम सारण होने के पूर्व से ही इस पर राजद प्रमुख लालू प्रसाद का कब्जा है. सारण क्षेत्र को यह गौरव हासिल है कि वह राष्ट्रीय फलक पर अपना रुतबा एवं पहचान कायम करने वाले राजनेताओं को अवसर प्रदान करता रहा है. यहां से दो बार जीतकर भाजपा नेता राजीव प्रताप रूडी को केंद्रीय मंत्रिमंडल में न केवल जगह मिली, बल्कि संगठन में भी वह मुखर एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व बनकर उभरे. यूं तो सारण संसदीय क्षेत्र का मन-मिजाज बिहार के अन्य क्षेत्रों से कुछ खास अलग नहीं है, लेकिन इस बार का संसदीय चुनाव कई नए मानकों को जन्म देने के लिए उतावला दिख रहा है. इस क्षेत्र में जीत-हार हमेशा जातीय गोलबंदी पर होती रही है.
सारण संसदीय क्षेत्र में आम तौर पर भले ही विभिन्न पार्टियों के बीच में मुकाबले की बात हो रही है, लेकिन हकीकत यह है कि यहां दो मजबूत जातियां आमने-सामने लड़ रही हैं, जिन्हें विभिन्न जातियों एवं धर्म के लोगों का समर्थन हासिल है. पिछले चुनाव में जब सूबे में राजद के यादव प्रत्याशियों का सूपड़ा साफ़ हो गया था, तब सारण संसदीय क्षेत्र से केवल राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने जीत हासिल कर यादव प्रत्याशी के रूप में अकेले अपनी लाज बचाई थी. रेलमंत्री रहते हुए लालू प्रसाद ने ज़िले को तीन रेल कारखाने दिए, जिनमें दरियापुर का रेल पहिया कारखाने में उत्पादन भी प्रारंभ हो गया है. इसके अलावा छपरा जंक्शन को विश्‍वस्तरीय बनाने, गोरखपुर से बरौनी वाया छपरा होते हुए रेल विद्युतीकरण एवं छपरा-रेवाघाट रेल लाइन योजना का शिलान्यास आदि कार्य भी लालू प्रसाद की देन हैं. लोकसभा चुनाव की लड़ाई यहां कई महीने पूर्व से लड़ी जा रही है. राजद प्रमुख लालू प्रसाद के चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित होने के कारण उनकी पत्नी एवं राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी राजद के टिकट पर यहां से चुनाव लड़ रही हैं. भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व में शामिल कद्दावर नेता राजीव प्रताप रूडी एक बार फिर सारण से चुनाव मैदान में हैं. रूडी वर्ष 1996 एवं 1999 में भाजपा के टिकट पर सारण का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं, लेकिन वह राजद प्रमुख लालू प्रसाद को मात देने का गौरव कभी हासिल नहीं कर पाए. वर्ष 1996 में उन्होंने लालबाबू राय (राजद) को हराया और 1999 में हीरालाल राय (राजद) को.
आज जब पूरे देश का मिजाज बदला-बदला सा लग रहा है, तब भाजपा प्रत्याशी रूडी का मुकाबला राजद प्रमुख से न होकर उनकी पत्नी से होने वाला है. यहां दो मजबूत जातियों के बीच होने वाले मुकाबले को रोचक बनाने में बाकी जातियों की भी भूमिका अहम रही है. क्षेत्र में राजपूत और यादव जातियों के बीच सीधे मुकाबले को प्रभावशाली बनाने के लिए पहले जिस तरह से गोलबंदी होती थी, आज वैसा कुछ होता नहीं दिख रहा है. जदयू के प्रत्याशी सलीम परवेज विधान परिषद के उप-सभापति भी हैं. वर्ष 2009 के चुनाव में बसपा के टिकट पर लड़कर लगभग 8 प्रतिशत मत हासिल करते हुए वह 45 हज़ार वोट पाने में सफल रहे थे. इस बार वह जदयू के टिकट पर लड़कर चुनाव को त्रिकोणीय बनाने में जुटे हुए हैं. सलीम परवेज का राजनीतिक सफर राजद विरोध से प्रारंभ हुआ था, जो आज भी कायम है. राजद, भाजपा एवं जदयू का जनसंपर्क-प्रचार अभियान दिनोदिन गति पकड़ रहा है और इस बार की लड़ाई काफी दिलचस्प होती दिख रही है.
इस बार सारण संसदीय क्षेत्र में पहले की सभी गोलबंदी ध्वस्त होती दिख रही है. हमेशा दो मजबूत जातियों के सीधे मुकाबले में फंसे रहे सारण में पिछले दिनों किसी तीसरी शक्ति के उदय होने की भी चर्चा जोरों पर थी, लेकिन अभी तक ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. इसलिए मतों के बिखराव की आशंका दूर-दूर तक नज़र नहीं आती.जदयू का वोट बैंक किसे कहा जाए, वह तो सारण में महसूस तक नहीं हो रहा है. राजपूत और यादव मतदाताओं का रुझान साफ़ है, एक भाजपा के साथ है, तो दूसरा राजद के. अन्य जातियों के मतदाताओं ने फिलहाल चुप्पी साध रखी है, वे इन दोनों में किसी की ओर भी जा सकते हैं.


 
समाजवादी विचारधारा की कर्मस्थली
सारण संसदीय क्षेत्र समाजवादी विचारधारा की कर्मस्थली के रूप में जाना जाता है. इस क्षेत्र में पिछले तीन दशकों से अधिक समय से कांग्रेस जीत के क़रीब भी नहीं पहुंच पाई. अब तक हुए एक उपचुनाव सहित सभी आम चुनावों में ग़ैर कांग्रेस प्रत्याशी ही यहां अपनी जीत दर्ज कराते रहे हैं. इस संसदीय क्षेत्र से आज़ादी के बाद शुरू के दिनों में पांच बार कांग्रेस जीती, जबकि जनता पार्टी, जनता दल एवं राजद को तीन-तीन बार सफलता हासिल हुई. प्रगतिशील सोशलिस्ट पार्टी को एक बार और भाजपा को दो बार विजयश्री हाथ लगी. इस बार राजद के जिलाध्यक्ष बेलागुल मोबीन समेत पार्टी नेता प्रयास कर रहे हैं कि सीट पर उनका कब्जा बना रहे, जबकि भाजपा के जिलाध्यक्ष वेद प्रकाश के नेतृत्व में पार्टी नेता-कार्यकर्ता नरेंद्र मोदी लहर पर सवार होकर सीट पर अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं.
प्रथम लोकसभा चुनाव यानी 1952 में महेंद्र नाथ सिंह, 1957 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के आर सिंह ने विजयश्री हासिल कर समाजवादी राजनीति को गति प्रदन की. 1962 से 1971 तक लगातार तीन बार जीतकर कांग्रेस नेता रामशेखर सिंह ने हैट्रिक बनाई, लेकिन 1977 से आज तक कांग्रेस जीत को तरसती आ रही है. 1977 की जनता पार्टी की लहर में इस सीट से लालू प्रसाद विजयी हुए थे. 1980 में जनता पार्टी के प्रो. सत्यदेव सिंह एवं 1984 में जनता पार्टी के ही राम बहादुर सिंह ने जीत का परचम लहराया. 1989 में जनता दल की लहर में लालू प्रसाद, 1990 एवं 1991 में लालबाबू राय ने विजयश्री हासिल की. 1996 में पहली बार भाजपा प्रत्याशी के रूप में राजीव प्रताप रूडी जीत दर्ज करके अटल बिहारी वाजपेयी मंत्रिमंडल में शामिल हुए. इसके बाद 2004 एवं 2009 में लालू प्रसाद यादव ने भाजपा प्रत्याशी राजीव प्रताप रूडी को पराजित किया. राजद प्रमुख को चारा घोटाले में सजा हो जाने के कारण यह सीट समय से पहले रिक्त हो गई थी.
-चंद्र प्रकाश राज


 
संसदीय क्षेत्र पर एक नज़र
कुल मतदाता-25,60,457
पुरुष-13,76,774
महिला-11,83,634
अतिरिक्त- 49
-जनवरी के बाद बनाए गए नए मतदाताओं को छोड़कर दो लाख 56 हज़ार नए मतदाता.


 
 
 
 
 
 

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