ताज़ा खबर : अमरीका में सीआईए के प्रमुख ने कहा है कि मोदी ने रूस के पुतिन से बात कर परमाणु हमले को टाला । इस खबर पर गौर कीजिए और सोचिए कि इस खबर का असर कहां और कैसे होगा।
इन दिनों पूरा हफ्ता जितनी ऊब पैदा करता है उतना ही रविवार सुकून देता है । एनडीटीवी से रवीश कुमार के जाने से तो वैसे भी हफ्ते में कोई आकर्षण नहीं बचा । इसलिए रविवार का इंतजार रहता है । अभय कुमार दुबे जब ‘लाउड इंडिया टीवी’ पर अपने विश्लेषण के लिए आते हैं तो हमें तो विषय की उत्कंठा रहती है लेकिन कुछेक लोग अभय जी को पसंद भी नहीं करते । मैं जानता हूं और शायद सही जानता हूं कि वे क्यों पसंद नहीं करते । हाल फिलहाल के दो प्रमुख कारण हैं एक तो यह कि अभय जी आम आदमी पार्टी के प्रशंसक रहे हैं मूल में। एक मोहतरमा तो उन्हें ‘आप’ का प्रवक्ता तक कहती हैं । दूसरा वे कांग्रेस की समय समय पर आलोचना करते रहे हैं बावजूद इसके कि उन्होंने कांग्रेस की यात्रा को हर बार बेहद सकारात्मक दृष्टि से देखा परखा है ।और तीसरा कुछ राजनीतिक चिंतक या विश्लेषकों के लिए वे वैसे ही हों जैसे ‘उसकी कमीज मेरी कमीज से ज्यादा सफेद क्यूं’ ! कुछ मुझ पर इस लेख के बाद यह भी ताना मारेंगे कि आप नाहक ही अभय दुबे को आसमान पर चढ़ा रहे हैं । तब हम संतोष भारतीय से पूछेंगे कि यह कितना सही है बताएं । क्योंकि संतोष भारतीय तो हमसे कहीं ज्यादा , बल्कि उन्हें देश का सर्वाधिक लोकप्रिय राजनीतिक चिंतक और विश्लेषक बताते हैं । मुझसे कई बार दो एक लोगों ने लगातार इस बात को लेकर नाक भौं सिकोड़ी है इसलिए यह सब लिखा । बहरहाल, हर रविवार को हमें अगर अभय दुबे शो और सिनेमा संवाद और रात को ताना बाना कार्यक्रम पसंद आते हैं तो इससे किसी को क्या परेशानी होनी चाहिए । मैंने कहा कि पूरा हफ्ता ऊब भरी चर्चाओं का रहता है । रविवार को ताजगी का अहसास होता है । एक राजनीति दूसरा सिनेमा और तीसरा साहित्य । तीन अलग अलग क्षेत्र, अलग अलग रस ।
बहरहाल, अब ‘आप’ का पटाक्षेप हो गया है और चर्चा में कांग्रेस की यात्रा और विपक्षी एकता राजनीति के ताजा मुद्दे हैं । विपक्षी एकता पर अभय दुबे का स्पष्ट मानना है कि यह एकता न कभी हुई है (77 को छोड़ कर) और न कभी आगे होगी। इसको भूल जाया जाए तो ही अच्छा । उन्होंने इस सबका अच्छा और तार्किक विश्लेषण प्रदेशवार क्षत्रपों के आधार पर किया । मोदी की सत्ता आखिर कैसे टिकी हुई है इसका भी उन्होंने उम्दा विश्लेषण किया । मोदी की सत्ता और कांग्रेस के राज में अर्थव्यवस्था और गरीबों की स्थिति के संदर्भ में अभय जी कुछ ज्यादा फर्क नहीं देखते । वे कहते हैं कि जन धन खाते तो कांग्रेस की देन है मोदी सरकार ने तो इसे सिर्फ लागू किया । मजदूरों और खेतिहर मजदूरों के संदर्भ में भी जो दृष्टिकोण मोदी सरकार का है ठीक वही कांग्रेस का भी रहा है । और उन्होंने तो यहां तक जोर देकर कहा कि अगर राहुल गांधी सत्ता में आते हैं तो वे भी यही करेंगे । इस पर मुझे अखिलेंद्र प्रताप सिंह की बात याद आती है कि हमारे यहां की सारी नीतियां वर्ल्ड बैंक और डब्लूटीओ आदि के इशारे पर बनती रही हैं और आज भी बन रही हैं । कांग्रेस और बीजेपी दोनों मध्यमार्गी पार्टियां हैं इस नजर से अभय दुबे की बात सही लगती है । मजदूरों की स्थिति पर ‘लाउड इंडिया टीवी’ में ही फौजिया अर्शी ने भी अच्छा दर्शन पेश किया और सवाल और चिंताएं व्यक्त कहीं । फौजिया अर्शी लाउड टीवी में वरिष्ठ पद पर कार्यरत हैं। अच्छा इसलिए लगा कि मजदूरों पर जबसे वामपंथी दल अप्रासंगिक हुए हैं तब से बात होनी ही लगभग बंद हो गयी है ।
इन दिनों देश का माहौल फिर जहरीला कर दिया गया है । बहाना है एक फिल्म जिसे रिलीज होने में अभी एक महीना बाकी है । लेकिन शाहरुख खान और टुकड़े टुकड़े गैंग वाली दीपिका पादुकोण जो हैं । बहाना है कि एक गाने में दीपिका ने भगवा रंग का कपड़ा (बिकनी जैसा) पहना और उस रंग को बेशर्म कहा । सच में जब दिमागों में गोबर भर जाए तो फिर क्या होगा । मोदी ने एक बार मुस्लिम टोपी पहनने से मना कर दिया बस समझिए कि उसी दिन से वातावरण में आग लग गई । फिर तो जब तब । इस पर पिछले हफ्ते खूब चर्चाएं की गयीं। कल इसी पर ‘सिनेमा संवाद’ कार्यक्रम भी था । अजय ब्रह्मात्मज, जवरीमल पारेख और संजीव कुमार को सुनना मजेदार रहा। अजय ब्रह्मात्मज कहते हैं कि एक ‘अंडरग्राउंड पाठक ‘ भी इन दिनों तैयार हो रहा है । फिल्मी दुनिया को देख कर लगता है पहला मुकाबला मोदी सत्ता से फिल्म की ओर से ही होगा । हमेशा सुरक्षित जीवन जीने वाले अमिताभ बच्चन ने भी मुखर होकर इस बार बेशक कोलकाता में ही सही लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी पर मुंह खोला है । कार्यक्रम में जवरीमल पारेख की एक बात समझ नहीं आयी कि ‘ए वेडनसडे ‘ फिल्म में मुसलमानों को कहां टारगेट किया गया है । ‘काकरोच’ जैसा कोई शब्द है तो वह आतंकवादियों के लिए है । मैं तो फिल्म को एक साधारण व्यक्ति की आये दिन की परेशानियों से तंग आकर मजबूरी में उठाये गये कुछ अप्रत्याशित कदम की नजर से नसीरूद्दीन शाह और अनुपम खेर की बेहतरीन अदाकारी के लिए देखता हूं । बहरहाल, संजीव कुमार ने सही कहा गाने में रंग का जिक्र खालिस रंग के अर्थ में नहीं ‘रंग -ढंग’ के अर्थ में है । जिसे ये हिन्दू हिंदू चिल्लाने वाले मूर्ख कभी समझ ही नहीं सकते ।
राहुल गांधी इन दिनों प्रैस कांफ्रेंस करके मुखर हो रहे हैं । पर क्या वे बदले हैं । बदले हैं तो कितने और किस अंदाज में । लेकिन इन दिनों उनके खासमखास जयराम रमेश ने जो वक्तव्य एक इंटरव्यू में दिया उसके क्या मायने हैं आप खुद समझिए कि कांग्रेस दो सौ सीटों पर लड़ ही नहीं सकती । यह कहना ही भारी भूल होगी । यह सोचिए भी मत । वे विपक्षी एकता के संदर्भ में बोल रहे थे । एक राष्ट्रीय पार्टी के महत्वपूर्ण व्यक्ति की यह टिप्पणी क्या संकेत देती है आप स्वयं समझिए । हमारी नजर में तो कोई अपरिपक्व सोच का व्यक्ति ही ऐसी बात कह सकता है ।
मुझे किसी भी व्यक्ति को पढ़ना खूब अच्छा लगता है । समझिए कि यह मेरी खूबी है इसलिए मैं अपने सामने आने वाले हर व्यक्ति के हाव भाव को बहुत अच्छी तरह से पढ़ता और उसे टटोलता हूं । यूट्यूब के पर्दे की चर्चाओं में भी व्यक्तियों की बातों के अलावा उनके हाव भाव को देखना खूब भाता है इससे बहुत से अनुमान लगते हैं । नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के बोलते चेहरे बहुत कुछ बताते हैं । इसी से आलोक जोशी की मुस्कुराहट भी पकड़ में आती है और जब तक वह पकड़ में आती है तब तक वह आराम से गायब भी हो जाती है । चेहरों को पढ़ना अच्छा लगता है । मजा भी आता है और यह चलता रहेगा । और इसी से आलोचना और समीक्षाएं भी चलती रहेंगी । रवीश कुमार को मैंने इसी नजर से पहले उनके दाएं बाएं हिलने डुलने पर कुछ कहा था । उनसे कभी कभी चैट हुआ करती थी । अब तो क्या ही होगी । अजीत अंजुम ने रवीश कुमार से लंबी और बेहद रोचक बातचीत की है । उसे जरूर देखिए । कुछ लोग कहते हैं कि रवीश ने इस्तीफा देकर जल्दबाजी की मैं समझता हूं कि उनके विवेक ने सही समय पर सही फैसला किया । जल्दबाजी कैसी । बहुत सही किया । उनके वीडियो का इंतजार रहेगा । वे बोलें और आजाद बोलें ।