चुनाव की सरगर्मियां तेज हैं । गहमागहमी है । मूड चुनाव का चारों तरफ है और सबसे ज्यादा मतवाला मन बीजेपी की पतली हालत देख कर उन्मुक्त है । ऐसे में इस बात पर चर्चा करना कितना प्रासंगिक है कि मोदी राहुल गांधी से डरते हैं या नहीं डरते । काफी समय से यह प्रश्न हवा में तैर रहा है और कांग्रेसी इसी बात से खुश हो हो कर तमाम तरह की दलीलें दे रहे हैं ।यह मान लेना असत्य नहीं कि जिस तरह मोदी भक्तों को अंधभक्त कहा जाता है उसी तरह राहुल भक्तों को भी अंधभक्त कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए । सत्य यह है कि मोदी राहुल गांधी से कतई नहीं डरते हैं । राहुल गांधी की पप्पू वाली छवि गढ़ कर बीजेपी ने एक प्रयोग किया था । सोचना इस पर चाहिए कि आखिर ‘पप्पू’ शब्द ही क्यों गढ़ा गया । और पप्पू राहुल गांधी पर चस्पा करके बीजेपी कितनी सफल हुई । हमारा मानना है कि बीजेपी इसमें सौ फीसदी सफल हुई है । इस धारणा के पीछे राहुल गांधी का व्यक्तित्व है । जो लगभग शून्य है । उसमें किसी प्रकार का कोई आकर्षण नहीं । चांदी की चम्मच लेकर पैदा होना, भारत देश से पूरी तरह अनभिज्ञ होना, राजनीति का ककहरा तक नहीं जान पाना , राजनीति की न भाषा ,न मुहावरों का ज्ञान होना , न हिंदी का धाराप्रवाह सही उच्चारण , मां को राजनीति (प्रधानमंत्री पद ) से दूर रखना और उम्र होने पर डगमगाते आत्मविश्वास से हां और न के बीच पार्ट टाइम पालिटिक्स से दस्तक देना । इन सब कारणों के चलते किसी जोकर से ज्यादा व्यक्तित्व नहीं बन पाया । पहली बार गांधी परिवार का कोई शख्स जो अपनी परंपरागत सीट से ही डर कर भाग उठा हो और फिर उसने उस सीट को ही गंवा दिया हो (शायद हमेशा के लिए) । यह राहुल गांधी का सर्वप्रथम परिचय है । ऐसे किसी भी शख्स से मोदी भला क्यों डरेंगे ।पर सच्चाई यह है कि मोदी डरते हैं । वे राहुल गांधी से नहीं डरते वे वोटरों के चरित्र से डरते हैं ।वे जानते हैं कि कांग्रेस क्या है ।वे जानते हैं कि जरा सी असावधानी बीजेपी से क्षण भर में सब कुछ छीन लेगी ।और तब उनका दोबारा सत्ता में आना लगभग ना मुमकिन हो जाएगा । उस जगह को भरने वाली फिलहाल कोई पार्टी इस समय देश में है तो सिर्फ कांग्रेस है आज की तारीख में ।और देश भर में फैले कांग्रेसी अंधभक्त पल भर में राहुल गांधी का राज्याभिषेक कर देंगे । मोदी का यह संताप है ।यही मोदी का डर है । कांग्रेस में परिवारवाद की जड़ता किसी को यह सोचने का अवसर नहीं देती कि नेता कितना परिपक्व है ।वह अनुभवहीन और राजनीति के नौसीखिया राजीव गांधी को भी अकूत समर्थन देकर प्रधानमंत्री बना देती है । मोदी जानते हैं बीजेपी इतना होने पर भी पूरे देश में कटी छंटी होगी पर कांग्रेस आज भी समूचे देश में आच्छादित है । निर्विवाद रूप से । लेकिन जैसे जैसे मोदी का जादू फिसल रहा है , एक शून्य का आभास भी हो रहा है । कांग्रेस देश में आच्छादित होने के बावजूद नेतृत्व के मुहाने से लड़खड़ाई हुई है ।पूरा देश देख रहा है कि कांग्रेस की कमान तीन अनुभवहीन लोगों के हाथ में है । सौभाग्य से लेकिन देश के दुर्भाग्य से ये तीनों एक ही परिवार हैं ।मां ,बेटा – बेटी । कांग्रेस मौजूदा समय में क्षत विक्षत है ।न नेता है ,न विचारधारा । कांग्रेस के मर्मज्ञ कहें जाने वाले या तो गुजर चुके हैं या किन्हीं कोनों में पड़े हुए हैं । कांग्रेस की मलाई चाटे लोग कांग्रेस में होते हुए भी नेतृत्व से नाराज़ परेशान हैं ।देश देख रहा है, विपक्ष देख रहा है, प्रबुद्ध जन देख रहे हैं ।पूरा दृश्य महाभारत की चौसर जैसा है । यूपी में योगी की सत्ता तो चली जाएगी ।तब 2024 में देश का जो सीन बनेगा उसमें बीजेपी का पूरे देश में विकल्प चाहिए होगा । कांग्रेस की गिरती हुई छवि उसे मटियामेट कर रही है ।अगर आज कांग्रेस को क्षेत्रीय दल की उपमा दी थी जाए तो गलत क्या होगा । कोई भी नेता अपनी सूझबूझ, अनुभव, दूरदर्शिता और सुलझे हुए सलाहकारों की बदौलत नेता होता है। राहुल गांधी इन सबके आलोक में वाकई ‘पप्पू’ है ।तो कांग्रेस को कौन हाईजैक करेगा ।किसी को तो आगे बढ़ना होगा । गांधी जी की कांग्रेस और आज की कांग्रेस ! कुछ न ही सोचा जाए तो अच्छा है । ऐसे कांग्रेसी जिनकी आंखों पर पट्टी बंधी हुई है, राहुल गांधी को परिपक्व नेता मानते हैं । उन पर क्या लिखा जाए । ऐसे ही लोग राहुल गांधी को बिना सोचे समझे प्रधानमंत्री पद पर देखने के ख्वाहिशमंद हैं । इसीलिए मोदी डरते हैं ।आप चाहें तो कहिए राहुल गांधी से डरते हैं या कांग्रेस के दोबारा फैल जाने से ।पर यह तो तय है कि कांग्रेस के प्रति बीजेपी आईटी सेल ने देश में इतना जहर घोल दिया है कि सत्ता कभी कांग्रेस के हाथों आ भी जाए तो वह उसके लिए कांटों भरे सिंहासन पर बैठने जैसा होगा । अब देश की जनता सोचे उसे क्या करना है ।और विपक्ष सोचे ।
इन दिनों खूब लंबा लिखा जा रहा है । इसलिए इस बार सोशल मीडिया पर ज्यादा नहीं एक कार्यक्रम का हवाला जरूर देना चाहता हूं ।दो दिन पहले ‘लाउड इंडिया टीवी’ पर संतोष भारतीय एक चर्चा लेकर आए । जिसमें तीन मेहमान थे ।श्रवण गर्ग, एन के सिंह और राजेश बादल ।इस चर्चा के कई मायने हैं । खासतौर पर श्रवण गर्ग ने जो कुछ कहा । श्रवण गर्ग की तारीफ में संतोष जी ने कहा कि आपका विश्लेषण अन्य लोगों से अलग हटकर होता है । बात सही है । इसलिए जरूरी है कि श्रवण गर्ग को सुना जाए ।वे क्या कहते हैं । उन्होंने सोशल मीडिया पर हो रहीं तमाम बहसों को एक प्रकार से बेईमानी सिद्ध कर दिया ।उनका मानना है कि सोशल मीडिया की सारी बहसें या चर्चाएं एक खास (मोदी विरोधी) माइंड सेट को लेकर की जाती हैं । फिर उसमें जो पैनलिस्ट होते हैं वे एक दूसरे को ही काटने में लगे रहते हैं । जाहिर है इस बहस में भी ऐसा ही हुआ । श्रवण जी का मानना था कि पूरे यूपी चुनाव में पहले चरण से अंतिम चरण तक मोदी विरोधी लहर है ।एन के सिंह का मानना था कोई लहर नहीं है ।इसी तरह राजेश बादल ने कांग्रेस को महान पार्टी बताया तो श्रवण जी ने उसे काट दिया ।उनका मानना था कि कांग्रेस का जहाज डूब रहा है ।पर कांग्रेसी ऐसे हैं कि पास में बहते लकड़ी के लठ्ठ (अखिलेश यादव) पर जाकर खुद को नहीं बचाना चाहते ।वे डूबते जहाज से ही संतुष्ट हैं ।उसी पर बैठ कर उसे बचाना चाहते हैं ।यह समय है जब सबको मिल कर बीजेपी का मुकाबला करना है । श्रवण जी का मानना है कि इन बहसों का अब कोई अर्थ नहीं है जिनमें तीन चार लोगों को बुला कर खुद को यह संतुष्ट कर लिया जाता है ।मेरा भी मानना ऐसा ही है । श्रवण गर्ग को अलग से सुना जाना चाहिए ।एन के सिंह शायद इसीलिए बहस से भाग गये । संतोष जी का कहना था कि शायद उन्हें किसी दूसरे कार्यक्रम में जाना होगा ।इसी तरह श्रवण जी ने कहा आप यूपी पर ही बहस क्यों कर रहे हैं बाकी जगह भी तो चुनाव हो रहे हैं ।उनका आशय साफ था कि जिसे शायद संतोष जी समझ नहीं पाये ।उनका आशय इस बात से था कि केवल यूपी के चुनाव ही खासतौर पर मोदी की सत्ता को सही ढंग से परिभाषित करने वाले हो रहे हैं । इसलिए सबसे जरूरी बहस यूपी पर ही होनी है इस समय । श्रवण जी के साथ एक समस्या है वे अपनी बात कहने में बहुत समय लेते हैं । बिल्कुल वैसे ही जैसे अटल बिहारी वाजपेई का एक वक्तव्य रिकार्ड करने में कितनी बाईट जाती थीं । बहरहाल, मेरी गुजारिश है संतोष जी से कि श्रवण गर्ग से एकल संवाद करें जैसे अभय दुबे, अखिलेंद्र प्रताप सिंह या सोमपाल शास्त्री जैसों से करते हैं । श्रवण जी समूचे परिदृश्य का आकलन करते हैं । इसीलिए उन्होंने ‘लहर’ की बात कही । वे 2024 के साथ साथ पूरे देश का बनता बिगड़ता हाल हवाल बताना चाहते हैं । इसलिए उन्हें सुना जाना चाहिए ।
जिन फालतू बहसों की ओर श्रवण जी ने इशारा किया वे बहसें नीलू व्यास की देखी जा सकती हैं । जिनमें वे खुद एक ही पार्टी हो जाती हैं । इसीलिए बीजेपी के नरेन्द्र तनेजा यह कहते हुए बहस से अलग हो गए कि यह बहस तो ‘थ्री इज़ टू वन’ है । यह नीलू का हल्का संचालन है, अधकचरा । पहले भी मैंने सोशल मीडिया के इस एकतरफा झुकाव की निस्सारता की बात लिखी थी ।आज फिर श्रवण जी के बहाने । बाकी तो कई कार्यक्रम हैं जिन पर लिखना चाहता था लेकिन आज इतना ही ।

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