अपने अतीत की स्मृतियों के सामाजिक और राजनीतिक समय में जब जब झांकता हूं, मुझे कभी याद नहीं पड़ता कि आज का द्वंद्व, घुटन और तनाव का माहौल कभी रहा हो । जीवन में हर व्यक्ति के भीतर आप एक तानाशाह देखेंगे। क्या स्त्री और क्या पुरुष ।ये तानाशाही आखिर होती क्या है ।मन के भीतर पनप रही ऐसी प्रवृत्तियां जो अपनेपन में जिद पैदा करती हैं ।और अपने जैसा माहौल बनाना या बनवाना चाहती हैं ।वह चाहे परिवार का हो, परिवेश का हो, समाज का हो या देश का हो । तानाशाह हर जगह मौजूद है । परिवार के मुखिया से देश के लोकतांत्रिक कहे जाने वाले मुखिया तक । हर जगह ।हम इसके आदि हैं ।न जिद गलत है और न महत्वाकांक्षा ,अगर सही सोच, सही मंतव्य, सही इरादों और सही दिशा में ले जाती हो । मैं इंदिरा गांधी की सोच ,समझ और इरादों को खतरनाक नहीं मानता था ।जेपी का आंदोलन उनकी तानाशाह प्रवृतियों के खिलाफ तो नहीं ही था । कुंठाएं व्यक्ति को रसातल की ओर खींचती हैं ।हम कह नहीं सकते कि यदि जेपी का आंदोलन न हुआ होता तो इंदिरा गांधी की राजनीति का स्वरूप क्या होता । लेकिन आज की राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों में जो घुटन, दर्द, पीड़ा, रंजिश , वैमनस्य और नफरत से उत्पन्न तनाव का माहौल है वह एक कुंठित व्यक्ति की खामख्वाह पाली हुई खतरनाक जिद है । कोई गुरेज नहीं इस बात से कि सात आठ सालों में जो देखा गया उसमें लोकतंत्र ही ‘जोकर’ जैसा स्वरूप धर बैठा है ।यह अनायास नहीं हुआ है । दिमाग में घुसी खुराफातों और जरूरत से ज्यादा महत्वाकांक्षाओं के दु: स्वप्नों का साक्षात परिणाम है । सबसे खतरनाक वह होता है जब राजा के सब मंत्री और सलाहकार उससे खौफ खाने लगते हैं ।तब समझिए राजा की उम्र तक समाज और देश की गत क्या होगी । आज हम ऐसे ही तनावभरे माहौल के गवाह या साक्षी बन रहे हैं । इस तनाव में द्वंद्व है । नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व को न केवल हमारा समाज और दुनिया देख रही है बल्कि प्रधानमंत्री की कुर्सी भी भौंचक होकर हतप्रभ है । प्रधानमंत्री और एक व्यक्ति का छिछलापन जब एक होने के लिए प्रयासरत हो तब संवैधानिक संकट के बादल आच्छादित होने स्वाभाविक हैं । तानाशाह तो एक हद में गांधी भी थे । इंदिरा भी थीं । अरविंद केजरीवाल भी हैं । लेकिन मोदी की तानाशाही स्वयंस्फूर्त है , जिसमें समाज का ताना-बाना छिन्न भिन्न करने के खतरनाक तत्व गुंथे हुए हैं । इसलिए मोदी और उनकी सत्ता का आज और अभी अंत होना अवश्यंभावी है ,जो स्वाभाविक तौर से फिलहाल तो इतनी आसानी से दिखता नहीं । तनाव का सबसे अहम कारण यही है ।
रामायण में सीता हरण का प्रसंग बेहद रोचक लेकिन खतरनाक है । एक दुष्टात्मा साधु के वेश में ।इसके आगे हमें कुछ कहने की जरूरत है क्या । मोदी ने हर क्षण लोकतंत्र की दुहाई दी है । लेकिन उनका यही ‘लोकतंत्र’ देश को इस कदर छील रहा है जहां से खतरनाक तरीकों से सत्य के आगे झूठ सरपट दौड़ता दिख रहा है ।
इसमें क्या शक है कि हम देर से जागे ।यही नहीं हमारे बीच के कुछ लोग तो मतिभ्रम पाल बैठे थे और मोदी को 2014 में जिता तक आते थे । एक हिस्सा वह था जो किसी भी हालत में मोदी को नहीं चाहता था । मनमोहन सिंह ने तो मोदी के लिए ‘डिजास्टर’ जैसा शब्द उनके आने से पहले पत्रकारों के बीच कहा था । लेकिन एक हमारे पत्रकार शरद प्रधान हैं जो पहली बार मोदी से ऐसे प्रभावित हुए कि उन्हें जिताने के लिए वोट तक दे आये ।कैसी दूरदृष्टि है , एक पत्रकार की ? आज चारों तरफ कोलाहल है । मेन स्ट्रीम मीडिया बनाम सोशल मीडिया चल रहा है । सोशल मीडिया में भी इतने चैनल या वेबसाईट्स हैं कि क्या देखें और क्या न देखें । लेकिन हमारे मित्र लोग जो चाहते हैं हम तो भाई उसी पर लिखते हैं ।
कल रविवार को ‘लाउड इंडिया टीवी’ में अभय दुबे शो काफी पसंद किया गया । कार्यक्रम की शुरुआत में संतोष भारतीय जी ने अभय जी की तारीफ वाला प्रसंग उठाया ।यह तो नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने सफाई दी । कहना भी नहीं चाहिए उनकी विद्वता के अपने मायने हैं लेकिन जितने वे गम्भीर दिखे मैंने उतने ही हल्के ढंग से यह प्रसंग छेड़ा था ।अभय जी को कौन नहीं जानता ।उनकी तारीफ तो यों ही हर महफिल में होती है ।उनकी गम्भीरता का मैं ही नहीं, की लोग सानी हैं । एक पत्रकार मित्र से ‘सी वोटर’ के सर्वे की प्रमाणिकता पर बात हो रही थी । मैंने अभय जी का नाम लिया तो वे शांत हो गये । वे मित्र ‘सी वोटर’ के विरोधी हैं । कहने का तात्पर्य यह कि अभय जी तो किसी तारीफ के मोहताज हैं ही नहीं ।पर हां, अभय जी संतोष जी के कार्यक्रम में आयें या किसी और के । दोनों में फर्क है । संतोष जी तो यों ही बहुत सरल, सौम्य, शांत ,गम्भीर और हौले हौले मद्धम स्वर से बात रखने वाले व्यक्ति हैं। वे स्वयं तारीफ के काबिल हैं ।पर मैंने एक दूसरे संदर्भ में कहा था कि जब आप किसी सीधे और शर्मीले स्वभाव के व्यक्ति की तारीफ करें तो उससे सज्जन व्यक्ति का चेहरा और शर्मिला हो जाता है , मुद्राएं देखने वाली है होती हैं । बहरहाल ।
लोग पूछते हैं आप ‘सत्य हिन्दी’ पर इतना क्यों लिखते हैं ।उन मित्रों के लिए बता दूं कल ही मुझे सत्य हिंदी के मुकेश भाई ने एक ग्राफ भेजा है जिसमें ‘सत्य हिन्दी’ ऊंचाई में नंबर दो पर है । पहले नंबर पर अजीत अंजुम हैं । दरअसल मित्रों ‘सत्य हिन्दी’ ने इन दिनों जबरदस्त तरीके से अपनी पहचान और जगह बनाई और बढ़ाई है । मुकेश कुमार ने तो लगभग झंडे ही गाड़ दिए हैं ।उनकी राम पुनियानी के साथ इतिहास की सीरीज, उनकी डिबेट्स, और यह नया कार्यक्रम ‘ताना-बाना’ । जब शुरू में वे ‘सुनिए सच’ प्रस्तुत करते थे तो उनकी एकतरफा या ‘प्रज्युडिस’ टिप्पणियों और हाथ हिलाने के अंदाज से मैं आहत होता था । मैंने वह देखना छोड़ दिया था । लेकिन बाद के दिनों में जो परिवर्तन देखने में आया ।उसे तो मैं कहूंगा , अद्भुत है ।आज तो वे ‘प्रधान’ समान हैं । उनका ताना-बाना भी बेहतरीन कार्यक्रम साबित हो रहा है ।कल के कार्यक्रम में नारीवाद पर डिबेट और अपूर्वानंद की समीक्षा सुनने वाली है जो राजेश जोशी के कविता संग्रह ‘उल्लंघन’ पर की गई थी । बेबाक ।
आशुतोष यदि अपनी एंकरिंग में जल्दबाजी या हाबड़ ताबड़ न करें तो क्या ही बेहतर हो ।वे शीर्ष के व्यक्ति हैं ।ऐसा व्यक्ति तो मिसाल होना चाहिए ।नीलू व्यास के टापिक बहुत हल्के होते हैं ।पर बहस कभी कभी अच्छी हो जाती है ।शीतल पी सिंह को संतोष भारतीय की तरह अपना एपीसोड शुरू करना चाहिए । मुकेश कुमार ने आकार पटेल का इंटरव्यू बहुत अच्छा लिया । दूसरी ओर विजय त्रिवेदी का शो भी बड़ा मस्त रहा ।
NDTV के दिग्गज स्तंभ कमाल खान पिछले दिनों हमारे बीच से उठ गए ।उन पर आलोक जोशी और आरफा खानम शेरवानी का कार्यक्रम देखने सुनने लायक था । अब तो ‘वायर’ आरफा का पर्याय हो गया लगता है।
पुण्य प्रसून वाजपेई को तो आप सुन रहे हैं न ? बस सुनते रहिए जितना सुन सकते हैं ।उनके बारे में हमें जो आभास था ,वहीं हुआ । आलोक जोशी ने सवाल जवाब के कार्यक्रम में बताया कि उनसे एक दो बार संपर्क किया, नहीं आते तो छोड़ दिया । क्यों नहीं आते और क्यों नहीं आयेंगे इस पर तो हम लिख ही चुके हैं ।पर लगे हाथ मुकेश कुमार और आशुतोष से एक ही गुजारिश कि पैनलिस्ट जितने कम रखें उतना ‘कसा’ हुआ कार्यक्रम होगा ।नीलांजन मुखोपाध्याय की किताब ‌Demolition and verdict पर चर्चा बेहद रोचक रही । लिखना तो बहुत है मित्रों । भाषा सिंह के वीडियो पर भी बात करनी थी ।पर आज इतना ही ।

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