साथियों बिहार में हमारा आने का सिलसिला पचास साल से अधिक समय से जारी है ! और उसमे भी भागलपुर के १९८९ के दंगे के बाद शायद ही कोई साल होगा जिसमें हम लोगों का जाने का सिलसिला नही चलता रहा हैं ! लेकिन पिछले दो सालों के अंतराल के बाद इस बार ११,१२,१३ दिसंबर को हम लोग, शांतिनिकेतन से ग्यारह तारीख को सुबह आठ बजे निकल कर भागलपुर दोपहर के खाने के समय पहुंचे थे ! शांतिनिकेतन से भागलपुर ढाई-तीन सौ किलोमीटर दूर है ! और पचहत्तर प्रतिशत का अंतर झारखंड के घने जंगलों से होते हुए जाता है ! इस कारण सड़क मार्ग से यात्रा करने का आनंद कुछ अलग ही है ! हालांकि हमारे भागलपुर दंगे के बाद की ज्यादा यात्राएं रेल मार्ग से ही हुई है ! यह दुसरा मौका है जब हम लोग सड़क मार्ग से भागलपुर के लिए गए हैं !


और बारह तारीख को भागलपुर के कलाकेंद्र में दोपहर के दो बजे के बाद श्याम तक वर्तमान देश – दुनिया की स्थिति पर विचार विमर्श करने के पहले मैं, मनिषा और मेघना सबौर के बगल के बाबुपुर-रजिंदीपूर, राजपूर, चंदेरी के दंगे के बाद टाटा समूह की तरफ से कीया गया पुनर्वास की क्या स्थिति है ? यह देखने के लिए भी विशेष रूप से गए थे ! अगर किसी भी जगह पर भय का माहौल बना रहे वहां पर आप कितने भी बेहतर मकान बना दिजीए लेकिन अगर महौल को पैसे खर्च कर के नहीं बना सकते ! उसकी जिती – जागती मिसाल टाटा समूह के द्वारा लाखों रुपये खर्च कर के बनाए गए पचास मकानों में सिर्फ चार परिवार रह रहे हैं ! बाकी सब के सब २४ अक्टूबर १९८९ के दंगे के बाद जो घर छोड़कर भागे है उन में से कोई भी व्यक्ति या परिवार वापस नहीं आया है ! क्योंकि जिस जगह पर पुलिस की मिलीभगत से पैसठ से भी ज्यादा लोगों को मार कर पोखर के अंदर फेका गया हो ! जिसमें लगभग हर परिवार के सदस्यों का समावेश हो ! किसी – किसी परिवार में तो सिर्फ एक बच्चा या बुढे मा-बाप ही जिंदा है तो भला कैसे उसी जगह पर वापस लौटेंगे ?

और यह भी गुजरात के दंगों के तेरह साल पहले की बात है ! अब आने वाले २७ फरवरी को गुजरात के दंगों को भी बीस साल पूरे हो रहे हैं और वर्तमान सत्ताधारी लोगों की एकमात्र करतूत अगर कोई हैं तो वह सिर्फ सांप्रदायिक ध्रुवीकरण ! और जिसकी शुरुआत २४ अक्टूबर १९८९ के भागलपुर दंगे से हुई है ! और हम लोगों का भागलपुर आने – जाने की वजह भी भागलपुर दंगे के बाद के शांति – सद्भावना के काम के लिए शुरूआत हुई है ! जिस समय मनिषा बीस – इक्कीस साल की विश्वभारती शांतिनिकेतन की अंग्रेजी भाषा में बी ए कर रही एक विद्यार्थीन थी ! हालांकि उसने अपने साथ और भी विद्यार्थियों को भागलपुर लाने की कोशिश की है लेकिन जो सातत्य उसका रहा है वह अन्य विद्यार्थियों का नहीं रहा ! वह सब अपने अपने व्यक्तिगत जीवन में उलझकर रह गए ! लेकिन मनिषा ने पहचाना की आने वाले समय में भारत की राजनीति का केंद्र बिंदु सिर्फ और सिर्फ सांप्रदायिकता के इर्द-गिर्द ही रहेगा और आज वर्तमान अपने सामने है ! और इसीलिए पिछले साल के बंगाल के चुनाव में उसने नो बीजेपी का कैपेंन मुख्य रूप से बीरभूम जिले में चलाया था ! और आज मेघना की उम्र मनिषा की भागलपुर दंगे के समय की उम्र के बराबर की है ! और उसने अपने पढ़ाई का विषय भी तुलनात्मक धर्म का अध्ययन ही लीया है ! वह भी विश्वभारती से !


पिछले तेरह दिसंबर के दिन भागलपुर से सुबह शांतिनिकेतन वापस आने के सफर में इस समय हम लोग जिसमें मनिषा बैनर्जी और उनकी बेटी मेघना के साथ भागलपुर डिवीजन के बांका जिले के मंदार नाम के टिले के परिसर में थे !
यह मंदार पर्वत के नाम से भी जाना जाता है ! भागलपुर दुमका के रास्ते में भागलपुर से ४५ किलोमीटर की दूरी पर है ! वैसे तो भागलपुर को पुराने समय में कर्ण का राज्य अंग प्रदेश भी कहा जाता है ! और दुसरा समय में विक्रमादित्य की विक्रम शिला भी ! 8 वी शताब्दी में पाल साम्राज्य के समय नालंदा और ओदांतपूरी आजके आंतिचक नाम के गांव के परिसर में स्थित है ! (783-820) के समय में भारत के सबसे बड़े ज्ञान के केंद्र के रूप में नालंदा, राजगीर, विक्रमशिला जैसे विश्वविख्यात केंद्रों का निर्माण हुआ था !


और सबसे महत्वपूर्ण बात गौतमबुद्ध और महावीर के ढाई हजार साल पहले इसी बिहार की भुमी (विहार) में रहकर गए !
मैं सत्तर के दशक से बिहार में आना – जाना कर रहा हूँ ! आज से दो ढाई हजार साल पहले इसी भुमी पर विश्व की सबसे बेहतरीन सभ्यता का अस्तित्व था ! ऐसी कौन सी चुक – भुल हो गई है ? जिस से वर्तमान स्थिति में बिहार आ गया है ?
जयप्रकाश नारायण बिहार आंदोलन के दौरान अक्सर संपूर्ण क्रांति के संबंध में बोलते हुए, सांस्कृतिक क्रांति पर विशेष जोर दिया करते थे ! आज उसे भी पचास साल पूरे होने जा रहे हैं !


लेकिन संपूर्ण क्रांति तो बहुत दूर की बात है ! जमीन का आवंटन भी ठीक ढंग से नहीं हुआ है ! और इसी कारण बीहार के लोगों को अपने पेट के लिए ! प्रवासी मजदूरों के शब्द को गत साल दो साल पहले से बार – बार सुन रहे हैं ! उनमें सबसे ज्यादा संख्या में बिहार के मजदूरों का समावेश है !
शायद ही कोई प्रदेश होगा जहाँ पर बिहारी मजदूरों का अस्तित्व नही होगा ! वहीं बात शिक्षा की ! जेएनयू से लेकर बीएचयू, जामिया या देश के कई महत्वपूर्ण शिक्षा संस्थानों में काफी बड़ी संख्या में बिहार के विद्यार्थियों को देखा जा सकता है ! जो बिहार कभी विश्व के सबसे बड़े ज्ञान के केंद्र के रूप में जाना जाता है ! इतिहास और पौराणिक कथाओं में बिहार के यह सभी जगहों पर जाने से मेरे मन में यह सब उधेडभुन चलते रहती है !


स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी संपूर्ण बिहार में एक भी ऐसी जगह नहीं है जहाँ पर ढंग का इलाज करने के लिए सुविधा हो ! ज्यादा तर लोग दिल्ली, मुंबई, बंगलोर, कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद और अन्य शहरों में जाकर अपना इलाज करवाते हैं !
हिंदु पौराणिक कथाओं में पर्वत के कई संदर्भ हैं ! जिन्हें मंदराचल पर्वत के नाम से भी जाना जाता है ! पुराणों और महाभारत से मिले संदर्भों के अनुसार इस पहाड़ी का उपयोग समुद्र मंथन के लिए अमृत निकाल ने के लिए किया गया था ! इस पहाड़ी से सटे एक तालाब है, जिस के बीचोंबीच भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी का मंदिर है !


भगवान शिव, कामधेनु, और वराह की कई दुर्लभ मुर्तियां जो 11-12 शताब्दी ईस्वी की मानी जाती है ! जो मंदार हील के आसपास बिखरी हुई पाई जाती है ! जो हमारे देश में इस तरह की सभी पुरातत्व परिसरों में बेवारस पडी हुई है ! उसी तरह यहां भी चारों तरफ बिखरी हुई दिखाई देती है !
नवंबर 2021 से यहां पर रोपवे शुरू किया है ! इस कारण बुजुर्ग और आपाहिज लोगों को मंदार हील के माथे पर जाने की सुविधा उपलब्ध होने के कारण शायद टुरिस्ट बड़ी संख्या में जा सकते हैं !
लेकिन तालाब का पानी हरा देखकर उसमें नहाना कहा तक उचित है ? यह सवाल मेरे मन में बार – बार आ रहा था ! उसी तरह खाने पीने की सुविधा का अभाव भी देखने में आया ! इस लिए हमें संपूर्ण परिसर में ढूंढने के बाद भी कोई ढंग का होटल नही मिलने के कारण ! भागलपुर दुमका मेन रोड पर आकर एक होटल में नास्ता के लिए जाना पडा !
हालांकि मंदार पहाड़ी की जगह काफी रमणीय है और प्राकृतिक दृश्य और रोपवे की ऊंचाई परसे, और सुंदरता नजर आती हैं ! साथ-साथ कुछ झलकियां दे रहे हैं !

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