यह है लेस्ली फोस्टर ! आजसे भारत के मतदाताओं में और एक, मतदाता शामिल हो रहा है ! आज लेस्ली अठारह साल पूरे कर रहा है ! सबसे पहले मेरे तरुण दोस्त को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं !


लेकिन मैं यह पोस्ट सिर्फ उसे जन्मदिन की शुभकामनाएं देने के लिए नही लिख रहा हूँ ! आज दो करोड़ से अधिक ख्रिश्चन इस देश में रह रहे हैं, जिसमें मेरे अजिज दोस्त श्री. जे. एफ. रिबोरो जो भारतीय पुलिस सेवा के उन चंद जांबाज़ अफसरों में से एक है ! जिन्होंने अपने ड्यूटी के लिए जान की बाजी लगा दी है ! एक नहीं दो – दो बार ! एक बार खलिस्तानी आतंकवादी हमलों में पहली बार जालंधर के पुलिस मेस में ! जब वे पंजाब के डायरेक्टर जनरल अॉफ पुलिस थे ! और दुसरी बार रोमानिया के ऐंबेसेंडर रहते हुए ! और दोनों बार जखमी हुए हैं ! लेकिन बाल – बाल बच गए ! इस बारे मे मैने उन्हें पुछा था ” कि सरदारों को देखते हुए आपको कैसे लगता है ?” तो उन्होंने कहा “कि सुरेशभाई मै भारतीय पुलिस सेवा में उम्र के चालिस साल काम किया हूँ ! अगर मैं इस तरह किसी एक दो घटनाओं के उपर अपनी राय बनाया होता ! तो मुझे अनगिनत लोगों को अपने एनिमी के कैटगरी में डालना पड़ा होता ! वह मेरे ड्यूटी का हिस्सा था ! अब मैं वर्तमान में सामान्य नागरिक हूँ ! ”
कुछ दिनों पहले, उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस में “मै आजकल ख्रिश्चन होने के नाते अपने आप को असुरक्षित महसूस कर रहा हूँ” ! इस आशय का लेख लिखा है ! मेरे ख्याल से जे एफ रिबोरो जैसे अफसर को अगर असुरक्षितता महसूस होती है ! तो मुझे लगता है कि भारत के सभी अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों का यही प्रातिनिधिक उदाहरण है ! क्योंकि आये दिन उनके साथ हो रहीं हिंसक घटनाओं को देखते हुए ऐसा लगता है !
एक करोड़ से अधिक सिख धर्म के अनुयायी, और मुसलमानों की आबादी शायद तीस करोड़ के आसपास की है ! और बौद्ध तथा जैन, पारसी तथा कुछ जू भी भारत में सदियों से रहते हैं ! जिन्हें बेनेजू भी कहा जाता है ! तो मोटा-मोटी भारत के सभी अल्पसंख्यक समुदायों को मिलाकर एक चौथाई हिस्सा ! भारत की कुल जनसंख्या में, अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों का है !
और आजादी के पचहत्तर साल के समय में, हमारे देश की आबादी में से एक चौथाई हिस्सा असुरक्षित महसूस कर रहा है ! तो क्या यह हमारे देश की आजादी के पचहत्तर साल के सफर की बहुत बड़ी उपलब्धि है ?
मुझे तो लगता है “कि इस देश के एक भी आदमी या औरत को भी अगर हमारे देश में असुरक्षित महसूस होता है ! तो गंभीर बात है !” आजादी के मायने क्या है ? इस देश में रहने वाले हरेक व्यक्ति को हर तरह के शोषण, अन्याय, अत्याचार,असुरक्षितता, गैर-बराबरी, अभावों से मुक्ति !


आजकल हैप्पीनेस इंडेक्स की चर्चा चल रही हैं ! बीच में खबर थी कि, मध्य प्रदेश के शिवराज सिंह चौहान की सरकारने हैप्पीनेस मंत्री पद का निर्माण किया था ! बहुत ही अच्छी पहल है ! लेकिन सबसे पहले लोग दुखी क्यों है ? इस बारे में गौर से देखने की जरूरत है !
उदाहरण के लिए, एक संघठन जिसका संचालन नागपुर से ही होता है ! और वह संघठन, उम्र के पांच – दस साल के बच्चे को अपनी शाखाओं में, गत सौ साल से गीत, बौद्धिक, खेल – कुद के द्वारा ! अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ लगातार दुष्प्रचार करने के कारण ! जिसमें साफ शब्दों में कहा जाता है ! कि इस देश में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को बहुसंख्यक समुदाय की सदाशयता के उपर रहना होगा ! और आगे जाकर संघके सबसे लंबे समय तक प्रमुख रहे श्री. माधवराव सदाशिव गोलवलकर ने अपने किताबों में लिखा है कि अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को मताधिकार नही होना चाहिए ! और वह आज कुछ हद तक अमल में लाने की शुरुआत यानी अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को अपने दल के तरफसे उम्मीदवार बनाने के कितने उदाहरण है ? शायद गुजरात में एक भी नहीं ! और उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश और कुछ अन्य क्षेत्रों में दावे के साथ कहा जा रहा है ! कि” देखो हमनें एक भी अल्पसंख्यक को उम्मीदवार नही बनाया !” यह सिख उसके मातृ संघठन आर एस एस उन्हें सौ साल से लगातार दे रहा है ! और सबसे चिंता की बात है ! की यह सब कुछ हमारे देश के संविधान के खिलाफ है ! और उसके बावजूद यह सब देशभक्ति के नाम पर बदस्तूर जारी है !
उस प्रचार के कारण एक सामान्य नागरिक हो ! या देश के प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, राष्ट्रपती, राज्यपाल या प्रशासकीय कर्मचारी, न्यायपालिका के साथ जुड़े हुए लोग, मिडिया, या पेशेवर काम करने वाले लोगों के उपर ! इस तरह के प्रचार- प्रसार के कारण जो रेजिमेंटेंशन होता है ! वह क्या तटस्थता से अपनी जींदगी जी सकते हैं ? आज सबसे बडे न्यायालय के निर्णयों को ही देख सकते हैं ! हमारे देश के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री एन वी रमणाजीने हाल ही में एक कार्यक्रम में कहा है ! “कि वर्तमान समय में कांगारू न्यायालय जैसे हमारे मिडीया की भूमिका को लेकर काफी सक्त टिप्पणी करते हुए न्यायप्रणाली में होने वाले हस्तक्षेप के बारे में भी बोला है !” क्या वर्तमान समय में हमारे न्यायालय जो फैसले दे रहे हैं ! क्या वह भारत के संविधान के अनुसार दिए जा रहे हैं ? हमारा मिडिया कैसे एकतरफा तथाकथित चर्चा करते हैं ? वह एंकर कम और वर्तमान सत्ताधारी दल का प्रतिनिधि ज्यादा लगता है !

क्योंकि 1985-86 के बाद, आज पैतिस साल के बाद ! जिस तरह का धार्मिक ध्रुवीकरण हो चुका है ! क्या हम अपनी छाती पर हाथ रखकर कह सकते है ? कि हमारे मन में किसी भी व्यक्ति के लिए उसके जाती – संप्रदाय के कारण कोई भेदभाव नहीं है ? ओरिसा के कंधमाल जिला, मनोहरपुकुर में, कोढियों की सेवा करने वाले ! फादर ग्रॅहम स्टेन्स और उनके दोनों बच्चों की, जिपके अंदर ही जला कर मार डालने की घटना हो ! या गुजरात के डांग – अहवा के आदिवासियों के बच्चों के लिए, बोर्डिंग स्कूल चलाने वाले फादर या ननो के उपर किए गए हमले ! या छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, चंदिगढ, पठानकोट तथा राजधानी दिल्ली में चर्चों के उपर किए गए हमले ! किस बात के परिचायक है ?


1989 भागलपुर, 2002 गुजरात, 2013 मुझफ्फरनगर, मलियाना, मेरठ, मुंबई, या कमअधिक प्रमाण मे संपूर्ण भारत में जो दंगों की राजनीति प्रारंभ की गई है ! उसके असली सुत्रधार कौन लोग हैं ? क्लिन चिट यह शब्द अब घिसघिसकर बहुत अर्थहीन हो गया है ! क्योंकि दंगों के प्रत्यक्षदर्शियों के ! और उसके उपर दर्जनों लोगों ने जान की परवाह किए बिना जो मेहनत करते हुए रिपोर्ट लिखे हैं ! उन्होंने साफ-साफ लिखा है “कि राज्य सरकार की नाकामी की वजह से ! इतनी बड़ी संख्या में लोग मारे गए ! और करोड़ों रुपये की संपत्ति का नुकसान हुआ है !” और तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने खुद कहा है कि राजधर्म का पालन नहीं किया गया है !


हमारे देश के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री. नरेंद्र मोदीजी, प्रधानमंत्री बनने के पहले ! मैंने खुद अपनी आंखों से देखा है ! “इनके डिजिटल स्क्रीन के चुनाव के पोस्टरों पर 2013 जो राजधानी दिल्ली के हर बस स्टॉप के उपर प्रकाशमान थे ! और उसमे लिखा था ! “सबका साथ सबका विकास”! और किसी पर लिखा था” कि मुझे एक मौका दो” ! इस देश के लोगों ने आपकी इन घोषणाओ को देखकर आपको एक नहीं दो बार प्रधानमंत्री बनने का मौका दिया है !
लेकिन आप का “सबका साथ सबका विकास” का नारा सिर्फ नारा ही रहा ! क्योंकि आप प्रधानमंत्री बनने के बाद मुस्लिम समुदाय के कितने लोगों को ? मॉब लिंचिग (यह भारत में हिंदुत्ववादीयो के तरफसे नया अध्याय शुरू किया है ! ) जिसमें कही, गोमांस के संशय पर ही, सौ से अधिक लोगों को, जान से मारने का कारनामा ! कही रेल के डिब्बे में तो, कहीं रेल स्टेशन पर, तो कहीं बिच रास्ते में ! और कही – कही घरों में घुसकर ! लोगों ने मिलकर जान से मारने की करतुते की है ! (जो आजसे सौ साल पहले जर्मनी में हिटलर ने अपने एस एस नाम के हरावल दस्ते के द्वारा यहुदियो के साथ किया ! जिसे मॉब लिंचिग बोला जाता है ! ) जो भारत में पहली बार शुरू हुआ है !


मुझे एक सामान्य नागरिक के हैसियत से बार – बार लगता है कि ! “ज्यादातर मॉब लिंचिग की घटनाएं सरेआम लोगों सामने हुई है ! लेकिन एक भी घटना में अन्य राहगीरों के तरफसे हस्तक्षेप नहीं हुआ है ! यह ज्यादा चिंतनीय बात है !” क्योंकि मारने वाले (आप की भाषा में गाय के नाम पर गुंडों की गैंग ! ) अपना कुछ उदेश्य लेकर यह हरकत कर रहे हैं ! लेकिन राहगीर जो हमारे देश के सभ्य समाज का महत्वपूर्ण हिस्सा है ! वह इन घटनाओं को रोकने के लिए क्यों हस्तक्षेप नहीं कर रहे हैं ? क्या उन्हें डर लगता है ? कि कहीं हमारे उपर हमला हो सकता है ? या उनकी मुक संमती है ?
और अगर मुक संमती है ! तो फिर संपूर्ण देश की संवेदनशीलता के पतन का लक्षण है ! और इस तरह लोगों का मुकदर्शक बन जाना ! देश के समाजस्वास्थ के लिए चिंता का विषय है ! क्योंकि एकाध दो मनोरुग्ण या विकृति से बिमार लोग समझ में आता है ! लेकिन जब संपूर्ण समाज इस तरह का मुकदर्शक बन जाता है ! तो फिर आजादी भले पचहत्तर साल पूरे कर रही होंगी ! लेकिन मुझे तो आजादी खतरे में पड़ रही है ! ऐसा लगता है ! क्योंकि इस तरह से लोगों को मारने के बावजूद, लोगों की संवेदनशीलता को झकझोर देने वाली घटनाओं के बारे में समाज मुकदर्शक बना रहे ! यह बहुत ही चिंता का विषय है ! आजसे सौ साल पहले जर्मनी में यही स्थिति पैदा होने के कारण साठ लाख से अधिक यहुदीयो को मारने का इतिहास है !


मुझे याद है ! अस्सि के दशक में मै कलकत्तावासी था ! उस समय बस ट्रॅम में सफर करने के समय, अगर किसी सड़क छाप रोडरोमिओ ने किसी लड़की या महिला को छेडा ! तो उसे जिंदगी भर के लिए याद रहेगा ! इस तरह पिटाई अन्य प्रवासी करते थे ! लेकिन राजधानी दिल्ली में महिलाओं के साथ क्या – क्या नही होता है ? निर्भया एक मात्र उदाहरण पर्याप्त है ! मुख्य मुद्दा हमसफर लोग क्यों हस्तक्षेप नहीं कर सकते ? क्या सभी लोगों की संवेदनशीलता खत्म हो गई ? एक तरफ लोकलुभावन नारे देकर मतदाताओं को अपनी तरफ आकर्षित करने की कोशिश ! और दुसरी तरफ रेवडी बाटने की घोषणा करना ठीक नहीं है ! तो ” सबका साथ सबका विकास” कौनसी कैटेगरी में आता है ? यह तो रेवडी के कारखाने खोलना हो रहा है !


अभि कुछ दिनों पहले, आपकी बीजेपी के राष्ट्रीय सम्मेलन में, हैदराबाद में पसमांदा मुस्लिम समुदाय को स्नेह करने की बात को ही लीजिए ! भागलपुर से लेकर भिवंडी तक के दंगों कौन लोग मारे गए थे ? और गुजरात के भी ? और मुझफ्फरनगर ? सबके सब पसमांदा मुस्लिम ही थे ! स्नेह के जगह सुरक्षा चाहिए ! आज भारत के हर कोने में रहने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को असुरक्षित कर के रखने वाली छप्पन इंची छाती किसकी है ? शायद लोग मुर्ख है ! ऐसा आपको लगता है ! और आप जो भी कुछ बोल रहे, या बोले हो वह लोगों की याददाश्त से बाहर हो गया ?
आजसे दो हप्ते के बाद ! भारत की आजादी के पचहत्तर साल पूरे होने का जश्न मनाया जायेगा ! और मनाया जाना चाहिए ! लेकिन साथ – साथ भारत में रहने वाले हर भारतीय को सुरक्षित और सम्मान से जीने का माहौल भी बनाने का काम शुरू होने की आवश्यकता है ! आज इतिहास के क्रम में भारत में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को जितना असुरक्षित महसूस हो रहा है ! उतना आजादी के पचहत्तर साल में कभी नहीं हुआ है !

https://thewire.in/rights/watch-if-you-treat-minorities-as-second-class-citizens-the-country-cannot-go-forward

https://www.thequint.com/news/india/a-hindu-rashtra-is-no-less-than-a-saffron-pakistan-julio-ribeiro#read-more

डॉ सुरेश खैरनार 31 जुलै 2022, नागपुर

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