सुरेश खैरनार

गाँधी,जेपी और लोहिया की स्म्रतियों में ! आज जेपी की 118 वीं जयंती है ! तीन तिन दिन पहले ही उनकी पुण्य तिथि थी और कल डॉ लोहिया और इसी महीन के 2 तारीख को महात्मा गाँधी के जन्मदिन को 151 साल पूरे हो गए ! एक तरह से तीनों एक ही धारा या गोत्र के लोग थे !

        गाँधी जी के 1906 में दक्षिण अफ्रीका में इजाद किये हुए सत्याग्रह को सही मायने में उनके बाद अगर किसी  ने अपने-अपने तरीके से आगे बढाया है तो वह डॉ राम मनोहर लोहिया और उनके मृत्यु के पश्चात जयप्रकाश नारायण जी ने अपने बिहार आंदोलन के दौरान !

        आजादी के आंदोलन मे गाँधी जी के बाद अपनी जान जोखिम में डालकर लोहिया-जेपी ने जो भारत छोडो आंदोलन के समय जो योगदान दिया है वह उनके भी और भारत के भी आजादी के आंदोलन का सुवर्ण के अक्षरो से लिखा जाने वाला अध्याय है !

        मराठी भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार श्री पी एल देशपांडे जी की भाषा में ये लोग उस समय के राजनीति  मे हमारे दीलिप कुमार,राज कपूर थे !

        आजादी के बाद डॉ राम मनोहर लोहिया ने सत्याग्रह का विस्तार किया है और उसे सिविल नाफरनामी नाम देकर गोवा मुक्ति से लेकर,उर्वसियम,भाषा के सवाल पर,ज़मीन के सवाल पर और गरीबी,बेरोजगारी के सवालो पर सार्थक हस्तक्षेप करने के लिए कई बार आंदोलन किये और         स्वतंत्रता के बाद शायद सबसे ज्यादा बार जेल गये हैं !

 

उनकी 1967 के 12 अक्तूबर याने कल 53 वीं पुण्य तिथि हैं ! डॉ लोहिया के जाने के बाद इस देश में एक शून्यता का आलम छा गया था और उनके मृत्यु के 5-6 साल के बाद देश की महंगाई,बेरोजगारी,भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन लोग अपने अपने तरीके से बिखरे हुए ढंग से कर रहे थे लेकिन 1972 के गुजरात के मोरवी  इन्जीनियरिंग कॉलेज की मेस की एक थाली भोजन जो 1 रुपये में मिलता था वह सिर्फ चार आना बढाया गया था और सवा रुपया कर दिया था !

          उससे शुरु हुआ आंदोलन बढते बढते नवनिर्माण आंदोलन मे तब्दील हो गया था और उसने गुजरात की सरकार तक बदल डाली थी ! जिसका नाम जनता सरकार था और उसके प्रथम मुख्यमंत्री पद पर बाबूभाई पटेल आ गये थे और 1977 मे जो कई विरोधी दलों को मिलाकर पार्टी बनाई थी उसका नाम जनता पार्टी शायद गुजरात की जनता सरकार का ही अनुकरण किया गया था!
तो यह जयप्रकाश नारायण जी के उम्र के 70 साल की जीवन यात्रा के दौरान शुरु हुआ आंदोलनो का पर्व है ! जिसे जेपी ने बहुत ही हिचक के साथ इन सब आंदोलनो को मार्ग दर्शन किया है !
हालाकि उसके पहले 1971 के बँगला देश की निर्मिती के बाद उन्होने श्रीमती इंदिरा गाँधी जी को देश के विभिन्न सवालो पर लगातार पत्र लिख कर उनका ध्यान खीचने का प्रयास किया लेकिन पंडित जवाहरलाल नेहरू के अभिन्य मित्र जेपी जो प्रिय इंदु के सम्बोधन से श्रीमती इंदिरा गाँधी जी को लिखे हुए पात्रो को जवाब देना तो दूर उन्हे एक्नोलेज तक नहीं किया तब उनके पर्सनल स्टाफ के प्रमुख धर और उनके मातहत में काम कर रहे थे बिशन टंडन जी की कितबो के हवाले से यह लिख रहा हूँ !

           बाद मे जेपी के लिए देश मे पहले से ही चल रहे आंदोलनों को नेतृत्व देने का आग्रह उस समय के सभी विद्यार्थियो के नेता और सबसे बड़ी बात विरोधी पार्टियों के नेता (कॉंग्रेस और सी पी आई) छोडकर सभी का बार बार आग्रह और देश की बीगड़ती जा रही हालत के कारण जेपी तैयार हुये लेकिन कुछ शर्तो के साथ !

           सबसे पहली शर्त सभी राजनैतिक दल के लोग अपनी अपनी राजनैतिक दलों के जूते-चप्पल निकाल कर और यह आंदोलन निर्दलीय रहेगा और शांततता मय सत्याग्रह जो महात्मा गाँधी के बाद लोहिया और लोहिया के बाद जयप्रकाश नारायण जी ने अपने बिहार आंदोलन मे किया है !

           और उसके प्रमाण स्वरुप मराठी भाषा के नाट्य लेखक श्री विजय तेंदुलकर बिहार आंदोलन को कवर करने के लिए विषेश रूप से गये थे और उन्होंने कहा कि पटना के गाँधी मैदान मे लाखो की संख्या की सभा को जेपी सम्बोधन कर रहे थे तो बीच मे ही एक चिठ्ठी उनके हाथ में दी गई थी और वह पटना के पुलिस प्रमुख ने लिखा था कि इस सभा में आने वाले लोगों पर पटना के इंदिरा बिग्रेड नामक एक गुट बनाया गया था जो जेपी आंदोलन को विरोध करने के लिए था तो उन्होने अपने ऑफिस से इस सभा में आने वाले जुलूस पर गोलिया चला दी थी !

           और उसमे कुछ लोग घायल हो गए थे तो चिठ्ठी पढकर जेपि ने सभा खत्म करने के पहले सभा में सबसे पहले एक शपथ ग्रहण करने लगाया की हमला चाहे जैसा भी हो लेकिन हाथ हमारा नहीं उठेगा  ! और सभा का सत्र समाप्ती कि घोषणा करते हुए सभी को कहा कि सभी कही भी इधर-उधर नहीं जायेंगे चुपचाप अपने अपने घरों को वापस जायेंगे !

           उस समय के मुख्यमंत्री ने उस पुलिस अधिकारी को पुछा कि इतनी बड़ी घटना मुझे रिपोर्ट करने के बजाय आपने जेपी को क्यो चिठ्ठी भेजी? तो ऑफीसर ने जवाब दिया था कि गाँधी मैदान में लाखो लोग इकठ्ठा थे और वहा यह बात अफवा के तौर पर पहुँच गई होती तो पटना का क्या हुआ होता ?
और वह रोकना ना ही आपके बस का था और ना ही मेरे ! वह सिर्फ और सिर्फ जेपि के ही  बस का मामला था और इसीलिये मैंने आपको बताने के बजाय जेपी जी को बताया और अभी हम लोग जो बात कर रहे हैं शायद वह भी करने की स्तिथी मे नहीं रहे होते !

           और सम्पूर्ण जेपी आंदोलन मे कही भी कोई अनुचित घटना नहीं रही संपुर्ण आंदोलन शातंता मय संघर्ष का आंदोलन रहा है जिसका मै भी एक गवाह रहा हूँ ! महात्मा गाँधी जी के बाद सत्याग्रह का विस्तार लोहिया और बाद में जेपी ने किया है ! आज जेपी की 118वीं जयंती के अवसर पर और कल डॉ राम मनोहर लोहिया के 53 वे पुण्य तिथि पर विनम्र अभिवादन |

Adv from Sponsors