दिल्ली में लोकायन और सी एस डी एस और शिमला में इंडियन इन्स्टीट्यूट ऑफ अडव्हांस स्टडीज जैसे संस्थान बनाने के लिए रजनी कोठारी और अशिश नंदी के साथ योगदान देने वाले और हमारे देश के महत्वपूर्ण सामाजिक वैज्ञानिकों में से एक और एस सी एस टी आयोग के अध्यक्ष रहे धिरू भाई सेठ आज हमारे बीच नहीं रहे ! मुझमे और उनमें बाप-बेटा के उम्र का फासला था ! लेकिन मुझे कभी भी अपने बडे होने का उन्होंने दंभ नहीं महसूस होने दिया हमेशा ही एक बराबरी के मित्र की तरह मुझसेव्यवहार करते थे ! हालांकी देश दुनिया के परिस्थिती के आकलन मे हमारे हमेशा ही मतभेद रहे ! लेकिन उन्होंने कभी भी बुरा नहीं माना ! दोबारा मीलनेपर पिछ्ली बात को भूलकर बहुत ही गर्मजोशी से मिलते थे !

एक समय एन ए पी एम की पर्याई विकासके उपर रामलीला मैदान में रैली की तैयारी के लिए मै दो हप्ता से ज्यादा समय दिल्ली मे था तो अचानक सबेरे-सबेरे अशिश नंदी का फोन आया कि आज तुम लोग जिस विषयको लेकर रामलीला मैदान में रैली की तैयारी कर रहे हो उसीपर पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर सी एस डी एस मे बोलनेवालेहै और धीरूभाई का आग्रह है कि सुरेश खैरनार को अवश्य बुलाओ तो आपको आना है ! और दोपहर का खाना भी चंद्रशेखरजीके साथ खाना है ! तो मैं चला गया और चंद्रशेखर विकासके अवधारणा के उपर और साधन सुचिता इन दोनों विषयों पर बहुत ही अच्छा बोले थे ! और उनके भाषण के बाद धिरू भाई अध्यक्ष के नाते बोले कि अब भोजन के अवकाश तक घंटे भर चंद्रशेखरजीके भाषण पर चर्चा होगी ! तो अनायास मेरा ही हाथ सबसे पहले उठा तो धिरू भाई ने तुरंत मुझे बोलने के लिए कहा तो सबसे पहले मैंने चंद्रशेखरजीके भाषण की भूरी भूरी प्रशंसा की ! और पूछा कि आप की व्यक्तिगत राजनीति का सफर देखकर साधन सुचिता का पालन आपने नही किया है ! क्योंकि मरते दम तक आपके चुनाव प्रचार के प्रभारी धनबाद के कोलमाफीया सुरजदेव सिंह रहे हैं और उनकी मृत्यू भी आपके चुनाव प्रचार के दौरान बलिया मे ही हुई है ! उसी तरह भागलपुर के एक महादेव सिंह नाम के डाॅन आपके भक्त थे ! और उनके घर पर आपकी विशाल फोटो ऊनके बैठक के कमरे में देखा तो मैंने कहा कि आप इतने मुसलमान मारे उतने मारनेकी बात कर रहे हो तो चंद्रशेखरजीके राजनीति मे सांप्रदायिकता का विरोध के लिए वह जाने जाते है और एक आप हो कि 24,अक्तूबर 1989 के भागलपुर के दंगे मे मैने पाचसौ मुसलमान मारे और मेरे साथ कलकत्ता आनंद बाजार प्रकाशन समूह के वरिष्ठ पत्रकार और लेखक गौर किशोर घोष भी थे तो उन्हें बंगला भाषा मे बार-बारबोले की मेरी बात को लिख लीजिए और संभव हो तो आनंद बाजार पत्रिका में प्रकाशित करने का कीजिए ! तो मैंने कहा कि आप अपने घर की दिवार पर इतनी भव्य तस्वीर जिनकी टांग कर बैठे हो वह तो हिंदू-मुस्लिमभेद नही मानते हैं तो महादेव बोले कि भाई की कुछ बातें नही मानते हैं लेकिन भाई आधी रात को भी फोन कर के कोई भी मांग करतेहैं तो मै पूरी करता हूँ !

तो चंद्रशेखरजी आपने साधन सुचिता पर इतना अच्छा कहा लेकिन आपके भक्त जो दोनों के दोनों नोन माफिया है और दोनों ने आपके पुस्तैनी गाँव बलिया से आकर एक ने धनबाद और दुसरे ने भागलपुर मे गैरकानूनी तरीके से अकूत संपत्ति इकट्ठा की है ! दोनों आपको चुनावमे दिलखोलकर मदद करते हैं तो साधन सुचिता का क्या ?
और आश्चर्य की बात है कि विकास की अवधारणा के मुद्दे पर उन्होंने पस्चिम के माडल की काफी आलोचना की थी ! तो मैंने कहा कि आप जब प्रधानमंत्री के पदपर आसीन थे और टिहरी बांध के खिलाफ चिपको आंदोलन जारी है ! और उधर पस्चिम भारत के गुजरात,मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के बीचों बीच विश्वका सबसे बडी परियोजना नर्मदा और उसके संबंधीत नदियो पर बनने जा रही है जिससे भारत का अबतक का सबसे बडा विस्थापन होने वाला है ! और कुल साडेतिन हजार बांध बनने की बात सुन रहे हैं ! और आपने अपने भाषण में पस्चिम के माडल की काफी आलोचना की है ! और यह तथाकथित बडे बांध की कल्पना शुध्द पस्चिम की नकल कर के बनाए जा रहे हैं तो ! आप भारत के सबसे बड़े पदपर आसीन थे लेकिन आपने इन दोनों परियोजनाएं के खिलाफ चल रहे आंदोलन के साथ बातचीत करने का कष्ट नही किया इसका क्या कारण है ?

तो मुझे जवाब देनेके लिए खडे होकर बोले कि हमारे संस्कृति में मरे हुए लोगों के बारे मे बुरा कहने की परंपरा नही है महादेव और सुरजदेव दोनों अब इस दुनिया मे नहीं है और टिहरी बांध के और नर्बदा बांध के बारे मे बोले कि मैं सुंदरलाल बहुगुणा और मेधा पाटकर का भक्त नही हूँ ! और तुरंत चल पडे ! तो मैंने अध्यक्ष धिरू भाई सेठ की माफी मांगते हुए कहा कि आप के मेहमान मेरे कारण नाराज होकर बगैर खाना खाये चले गये ! तो धिरू भाई ने गले लगाते हुए कहा कि आजकल दिल्ली मे तुम्हारे जैसे लोग नहीं है और अशिश नंदी को मैंने जानबूझकर तुम्हें बुलाने के लिए कहा था तो मेरा पर्पज साॅल्ह हो गया और मुझे हाथ पकड़कर खाने के लिए लेकर गये !

1985-86 के शाहबानो प्रकरण और उसके ही तर्ज पर लालकृष्ण आडवाणी ने शूरू किया राम मंदिर के लिए रथयात्रा के दौर में मेरे साथ उनकी चर्चा आज याद आ रही है हम दोनो सेक्युलर होने के बावजूद हमारे इन दोनों मुद्दों को देखने और समझने मे काफी बडा फर्क था ! और मुझे बादमे कभी फुर्सत में अशिश नंदी ने बताया कि आप के जमीनी सोच का धिरू भाई बहुत ही सम्मान करते हैं और मुझे और रजनी कोठारी को बताया करते हैं कि सुरेश खैरनार को हमारे टिममे शामिल करना चाहिए ! खैर मेरा टेंपरामेंट किसी प्रतिष्ठान या संस्था के लिए नहीं है इसका मुझे होश आया तबसे स्पष्टता है इसलिए मेरा सम्मान समझकर मैंने इस तरह के सूचना पर कभी भी गौर नही किया !
लेकिन जब भी कभी दिल्ली जाना हुआ तो अमूमन सी एस डी एस मे एक दिन मुख्यतः धिरू भाई और अशिश नंदी के साथ बातचीत करने का मतलब बौद्धिक फिस्ट !

अब दिल्ली जाऊँ तो किससे बात करूँ इस तरह के लोग हमारे बीच से एक-एक करके चले जा रहे हैं ! यह व्यक्तिगत रूप से मेरा तो नुकसान है ही पर हमारे देश का भी है ! धिरू भाई को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए यह मुक्त चिंतन रोकता हूँ !

Dr Suresh Khairnar

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