उम्र के 13 साल के बच्चे या बच्ची की वैचारिक समझदारी क्या रहती होगी ? संत ज्ञानेश्वर के सोलह साल की उम्र का तत्वज्ञानी होने को लेकर उस विषय के अधिकारी मेरे अजीज दोस्त श्री द भी कुलकर्णी जी को मैंने इस विषयपर काफी छेडा है !

लेकिन आज नरेन्द्रनाथ भट्टाचार्य उर्फ मानवेंद्र नाथ राय (एम एन राय नाम ज्यादा विख्यात है !) यह तेरह साल का बालक आजसे 21 मार्च 1887 मे बंगाल के चौबीस परगना जिले में पैदा हुआ यानी आज से 134 साल पहले ! उन्नसवी शताब्दी के अंतिम पड़ाव में नरेंद्र का जन्म हुआ है!और तेरह साल पार करते हुए एक क्रांतिकारी के रूप मे आगे की जिंदगी को झोंक दिया !

बीसवीं शताब्दी के आरंभ में बंगाल में अनुशीलन समिति की गतिविधियों मे शामिल रहे हैं और उम्र के बीस साल पहले ही अपने गांव की राजनीतिक डकैती के जुर्म में पकड़े गये थे लेकिन सबुतोके अभावों के कारण छोड़ दिया किंतु दो साल के भीतर ही हौरा कांड में बीस महीनों की सजा सुनाई गई ! जेल से छुटकारा पाने के बाद बंगाल,संयुक्त प्रांत और पंजाब में क्रांतिकार्य के प्रचार-प्रसार के लिए विशेष रूप से समय दिया है और बीच-बीच में पकड़े जाने और छूटने का चुहा-बिल्ली की तरह सिलसिला जारी रहा!

उसके बाद प्रथमं विश्व युद्ध की शुरूआत हुई तो नरेन्द्र को जर्मनी से शस्र-सामुग्री लाने के लिए विशेष रूप से 1915 को जिम्मेदारी सौंपी गई थी और वह मार्टिन नाम से जावा के बॅटिवीया पोर्ट में जर्मन वकालत मे एप्रिल महिने में पहुंच कर जर्मन के कैंसर से दो जहाज भेजने की वार्ता के बाद वापस आये लेकिन किसी कारण वह सामुग्री नहीं पहुंच सकी तो अगस्त में आस्ट्रेलिया-जापान से होते हुए चीन में डॉ सन यत सेन को मिलने के लिए चीन चले गए !

लेकिन इसमें भी सफलता नहीं मिली तो वह इस निर्णय पर आये कि कुछ चंद लोगों की और वह भी विदेशी मदद से भारत की आजादी को अंजाम देना अव्यवहारीक है और भारत का बहुजन समाज के सामुदायिक प्रयास से ही संभव है इस नतीजेपर आ गये !लेकिन इस बिचमे उन्होंने जापान,चीन,जावा,सुमात्रा,डच ईस्ट इंडिज,जमैका,फिलीपीन्स इत्यादि देशोकी यात्रा करने के कारण साम्राज्यवादी शोषण के प्रत्यक्ष दर्शन करने और स्थानीय लोगों के उसके खिलाफ चल रहे विरोध करने के प्रयास अपनी आँखो से देखने के कारण उन्हें पता चला कि साम्राज्यवादी शोषण का स्वरूप लगभग एक जैसा ही है !

और इस कारण वह थक-हार के अमेरिका में अगली पढाई करने हेतु पहुँच गए ! और वही से उन्होंने अपने नरेंद्र भट्टाचार्य नामका त्याग करके मानवेंद्र नाथ राय यह नाम धारण किया जो 25 जनवरी 1954 यानी उनके मृत्यु तक कायम रहा !अमेरिका में ही उनका मार्क्सवाद से परिचय हुआ है !और बहुत ही जल्द प्रमुख मार्क्सवादी लोगों मे उनकी गणना होने लगी अमेरिका से लगा हुआ मेक्सिको में अमेरिकी और ब्रिटिश शोषण के खिलाफ मेक्सिकन किसान-मजदूर इकठ्ठे हो कर लडाई लड रहे थे ! तो एम एन राय ने मेक्सिको में कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की !

और यह बात रशिया के बाद दुनिया के किसी और देश में कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की दुसरे देश की बात है!और मेक्सिको के स्वतंत्रता संग्राम का यशस्वी नेतृत्त्व करने वाले (मेक्सिको के लेनिन !) के रूप में मशहूर हुए !
और यह बात लेनिन की नजर में आने के कारण उन्होंने एम एन राय को रशियामे आने के लिए विशेष रूप से आग्रह किया ! यह उनके जीवन का टर्निग पाइंट है ! मेक्सिकोसे रशिया जाने के रास्ते में स्पेन और जर्मनी इन दो देशों में गये तो स्पेन मे भी कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की ! और जर्मनी में भी काफी कम्युनिस्ट नेताओं से मिलने का मौका मिला है और 1919 के शुरूआती दिनों में वह रशियामे पहुंच कर वह लेनिन की नजर में आने के बाद उनके सहयोगियों मे उनकी गणना होने लगी ! और तीसरे कम्युनिस्ट इंटरनेशनल के संस्थापकों में सेएक है !

कम्युनिस्ट इंटरनेशनल के पहले पांच अधिवेशन के लिए विशेष रूप से सहभागी रहे हैं ! और कम्युनिस्ट इंटरनेशनल के कार्यकारी मंडल के सदस्य रहे हैं ! और रशियन कम्युनिस्ट पार्टी के पोलिटबूरो के सदस्योंमेंसे एक रहे हैं ! और और पूर्व के देशों के मुख्यतः भारत और एशियाई देशोको मार्गदर्शन करने की जिम्मेदारी का वहन किया है !चौबीस परगना के एक छोटे से गाँव में एक गरीब घर मे पैदा हुआ नरेंद्र भट्टाचार्य उम्र के पैतीस सालों से भी कम समय में यह कामयाबी हासिल करना किसी चमत्कार से कम नहीं है !

इसका मतलब एम एन राय की प्रतिभा और रशियन,जर्मन,स्पैनिश,अंग्रेजी फ्रेंच मतलब दुनिया कि पाँच प्रमुख भाषाओं में महारत हासिल कर विश्व पटल पर नेता के रूप में काम करने वाले लोगों मे मुझे तो भारत ही क्या विश्व में भी दूसरा नाम याद नहीं आ रहा ! और सबसे एतिहासिक बात भारत में भी कम्युनिस्ट पार्टी के स्थापना का काम करने वाले भी एम एन राय ही है ! ताश्कंद मे इंडिया हाउस नामके केद्र की स्थापना की है ! और भारत के लोगों को प्रशिक्षण दिया है ! और 1920 के समय मे !

उसके बाद उन्होंने बर्लिन में अपनी गतिविधियों को गति प्रदान करने के क्रम में चीन और भारत की कम्युनिस्ट पार्टी के स्थापना का काम करने की कोशिश की है और व्हॅनगार्ड और मासेस नामके दो अखबार अपने संपादकत्व मे शुरु किया है !1924 से 1928 के चार साल का दौर उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण दौर है !उसी तरह से कांग्रेस के लिए क्या कार्यक्रम होने चाहिए इसलिए भी उन्होंने प्रथम बार संविधान सभा की घोषणा की है !

1927 के शुरूआती दिनों में ही कम्युनिस्ट इंटरनेशनल के तरफसे उन्हें चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के सलाहकार के रूप में काम करने केलिए भेजा गया है !और 1926-27 का समय चीन के क्रांतिका परमोच्च क्षणों में से एक है !1925 मे चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साम्राज्यशाही खत्म करने की व्यूवहरचना मे कुछ-कुछ गलती के कारण 1926 मे एम एन राय की प्रतिभा और रशियन कम्युनिस्ट पार्टी के सलाह के कारण किसानों की क्रांति के लिए एतिहासिक दस्तावेज बनाने वाले एम एन राय की प्रतिभासे काफी कोशिश की लेकिन उनके जैसे ही बोरोडिन नाम के एक रशियन कम्युनिस्ट पार्टी के नेता को भी चीन में भेजा था और पैसे और कई महत्वपूर्ण निर्णय लेने की जिम्मेदारी बोरोडिन के उपर थी और उनके अडियल रुख के कारण आठ महीने एम एन राय की 20,000 किसान सेना को शस्रधारी करने के बावजूद उन्होंने कहा कि बोरोडिन के आत्मघाती निर्णय की वजह से चांग कै शेकने क्रांतिको कुचल डाला ! एम एन राय की माय एक्सप्रियंस इन चायना नाम के किताब मे विस्तार से लिखा है !

कम्युनिस्ट इंटरनेशनल के छठवी कांग्रेस ने 1928 मे अति जहाल निर्णय लिया और भारत के आजादी के आंदोलन मे नेतृत्वकारी कांग्रेस के लिए पूंजीवाद की समर्थक पार्टी कहकर उसके एवज में सही क्रांतिकारी पार्टी की स्थापना की घोषणा कर दी जिसका उन्होंने निर्वसाहतीकरण के सिद्धांत टाईटल से एक पेपर लिखकर भेजा क्योकिं उनके तबीयत खराब होने के कारण वह खुद उस समय उपस्थित नहीं रह सके और उनके अनुपस्थिति का फायदा उठाकर कुसेनिन और अन्य प्रतिनिधियों ने उन्हें साम्राज्यवादी देशों के दलाल तथा पथभ्रष्ट करार दिया ! और इस बात का उन्होंने विरोधी निबंध लिखने की वजह से कम्युनिस्ट इंटरनेशनल ने उन्हें निकाल बाहर किया है ! लेकिन एम एन राय की प्रतिभा और आत्मविश्वास की दाद देनी पड़ेगी उन्होंने अपने स्तर पर कम्युनिस्ट इंटरनेशनल के नेतृत्व करने वाले लोगों के साथ भी पंगा लिया है !

इस तरह के अंतराष्ट्रीय राजनीतिक क्षेत्र से पंद्रह साल के अंतराल के बाद डॉ महमूद नाम धारण कर के वापस भारत 1930 के दिसंबर महीने के अंतमे वापस आकर रातदिन मेहनत कर के अपने साथियों को क तैयार किया है और कराची कांग्रेस के लिए विशेष रूप से कोशिश करने लगे लेकिन अंग्रेज पुलिसने 21 जुलाई 1931 को उन्हें पकडा और बारह साल की सजा सुनाई गई थी ! लेकिन छह साल पहले ही वह 1936 में जेल से रिहा होने के बाद फैजपूर कांग्रेस मे शामिल हुए और उन्होंने उस कांग्रेस अधिवेशन में जो एकसेबढकर एक प्रस्ताव रखने के लिए विशेष रूप से उल्लेखनीय भुमिका निभाने के कारण वह सभी प्रतिनिधियों के ध्यान में आये !

और उन्होंने ऊसके बाद भारत में बौद्धिक जागरण के लिए विशेष रूप से लिखना और भाषणोके द्वारा तथा इंडिपेंडेंट इंडिया नामसे एक जबरदस्त साप्ताहिक पत्रिका की शुरूआत की और अपने विचारों से अवगत कराने के लिए विशेष रूप से उस पत्रिका में बहुत ही गंभीर रूप से अपने वैचारिक समझदारी और वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए विवेक वादी मानवता वाद जैसे नये दर्शन पर अपनी आगे की जिंदगी को खपाकर 25 जनवरी 1954 को 67 की उम्र में देहरादून मे अपने घर मे इस दुनिया को विदा करके चले गये हैं !

एम एन राय की प्रतिभा और विश्व स्तर पर नेता के रूप में काम करने वाले आदमी को भारत मे कुछ अनुयायी जरूर मिले! जिनमे से कुछ लोगों को मुझे मैत्रिका मौका मिला है विशेष रूप से बंगाल में रहने के कारण शिवनारायण राय,गौर किशोर घोष,अम्लान दत्त,बॅ वी एम तारकुंडे तथा महाराष्ट्र टाइम्स के संपादक गोविन्द तळवळकर,और लक्ष्मण शास्त्री जोशी जैसे विलक्षण प्रतिभा के धनी थे लेकिन पता नहीं क्यों इन सब महानुभावों के बावजूद एम एन राय की वैचारिक धारा खंडित हो गई है ! और आज की तारीख में शायद ही कोई उनके अनुयायी कहने वाले मिले ? और यह बात मैंने इन वरिष्ठ मित्रोंको भी बार बार कहीं थी !

मुझे व्यक्तिगत रूप से एम एन राय जी से मिलने का मौका नहीं मिला है ! क्योंकि मै वह इस दुनिया को विदा किये उस समय सिर्फ एक साल की उम्र का था ! लेकिन उनके विचारों से अवगत कराने के लिए विशेष रूप से बंगाल के मित्र और मराठी में शास्रीजी,कर्णिक,अभी शाह ने लिखा साहित्य का मै मुरीद हूँ ! आज एम एन राय जी की 67 वी पुण्यतिथि के अवसर पर मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !

डॉ सुरेश खैरनार

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