आज राष्ट्र सेवा दल को अपना प्राणवायू कहने वाले साने गुरूजीने देश और दुनिया की स्तिथि के कारण इकहत्तर साल पहले अपने आप को समाप्त कर लिया था ! कोरोनाके दरम्यान प्राण वायु की कमी की बात पहली बार देश में देख रहा हूँ ! बिल्कुल वह जिस राष्ट्र सेवा दल को अपना प्राणवायू समझते थे उसके भी प्राणवायू की स्तिथि गंभीर है ! और मै पचपन साल से भी ज्यादा समय के सैनिक और दो साल पहले के राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाते आज गुरूजी के इकहत्तरवी पुण्यतिथि के अवसर पर अपने मुक्त चिंतन के बहाने एक विनम्र निवेदन करता हूँ कि कम-से-कम हम लोग अपने आप को सचमुच साने गुरूजी के अनुयायियों मे से एक समझते हैं तो गुरुजी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी सेवा दल के प्राण वायु की कमी को दूर करना ! और उनकी प्रार्थना जिसे मै यू एन ओ की प्रार्थना बनाने की चाहत रखता हूँ ! जो हम गाते हुए थकते नहीं है ! लेकिन उसके अर्थ को सही मायने मे अगर अपने सभी के जीवन में संपूर्ण रूप से लागू करने की कसम खाने की विनम्रता पूर्वक दुबारा प्रार्थना करता हूँ कि सच्चा धर्म वही है जो दुनिया पर प्रेम अर्पण करो ! तो क्या हम आपसमे प्रेम अर्पण करने की शुरुआत कर के और फिर दुनिया कि बात करे ?

साने गुरूजी के सबसे बड़े आदर्श महात्मा गाँधी थे ! और 30 जनवरी 1948 के दिन उन्ही के बिरादरी के(महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण) घोर हिंदूत्व वादी लोगों ने षड्यंत्र करके हत्या के बाद साने गुरूजी के अति संवेदनशील स्वभाव के कारण उन्हें गाँधी के अनुपस्थिति के भीतर जीवन जीने की जिजीविषा कम हो गई थी ! और डेढ़ साल के भीतर देश और दुनिया की स्तिथि के कारण 11 जून 1950 के दिन अपने आप को समाप्त कर लिया है ! हम गुरूजी के इतने संवेदनशील नहीं है ! जो आज देश-दुनिया की स्तिथि बद से बदतर होती जा रही है तो भी उसे दूर करने की जगह आपसी लडाई में समय गवा रहे हैं ! और सच्चा धर्म वही है जो दुनिया को प्यार अर्पण करने की प्रार्थना गाने का कर्मकांड करते जा रहे हैं ! तो पुनःह दोहरा रहा हूँ कि राष्ट्र सेवा दल के प्राण वायु की कमी को दूर करना और उसकी तबियत कोरोनाके मरीज जैसे होने से बचाने के लिए हम सब संकल्प करें अन्यथा शारीरिक और मानसिक कोरोनाको लेकर शब्दछल माना जायेगा ! और हमारी विश्वसनीयता भी दावपर लग जायेगी !

मेरे जैसे सामान्य आदमी को वर्तमान देश-दुनिया के सवालों को हल करने के लिए जो मानव संसाधन तैयार करने चाहिए वह राष्ट्र सेवा दल के सिवा कोई और नजर नहीं आ रहा ! जिसके पांच तत्वों को मै भारत के संविधान की उद्घोषणा मानता हूँ ! और इसलिए मैंने 1976 मे आपातकाल में जेल में जाने के कारण इस्तीफा दिया था ! और चालीस साल बाद दोबारा राष्ट्र सेवा दल के लिए सक्रिय हो कर प्रमुख जिम्मेदारी का जिम्मा 9 एप्रिल 2017 से लिया था ! और मैंने अपनी क्षमता के अनुसार भारत के सभी क्षेत्रों में राष्ट्र सेवा दल के स्थापना हेतु दो साल के कुल सात सौ तीस और दो महीने ज्यादा मील गये थे तो लगभग आठ सौ दिनों में से दो सौ कम कर दे बिमारियों तथा घरेलू कामों के लिए तो गिनकर छह सौ दिन संगठन के लिए दिया हूँ ! और लगभग भारत के सभी क्षेत्रों में चार-पांच बार जाकर दस लाख से भी ज्यादा किलोमीटर की यात्रा हर तरह के वाहन से की है ! और लगभग भारत के सभी क्षेत्रों में राष्ट्र सेवा दल के खडे होने की संभावना-शक्यता देखां हूँ ! लेकिन नहीं उसके फाॅलो अप की किसी ने खोज खबर ली है और नहीं मेरी ! जैसा कोढी के मरीज जैसे मुझे एकदम अलग-थलग कर के रखने का क्या औचित्य है ? एक किसान अपने खेत में बुआई करने के पहले जिस तरह से खेत को तैयार करने के लिए हल चलाकर और अन्य मेहनत से साल-भर पहले तैयार करता है बिल्कुल मैंने मेरी तबीयत की परवाह किए बिना (उसी दरम्यान मुझे तीन स्टेंट मेरे हृदय में डालने पडे लेकिन यह बात आज प्रथम बार मै बता रहा हूँ !) और मै बीपी, शुगर और हृदय रोग अपने शरीर के भीतर रहते हुए और आपातकाल मे जेल के भीतर के जेल में रहने की वजह मुझे उम्र के पच्चीस साल के भीतर ही जींदगी भर के लिए पेट की बिमारी मिली हुई है ! जिस कारण मेरा लीवर डेमेज हो चुका है और एक किडनी भी !

तो भी मैंने कभी भी अपनी तबीयत का बहाना नहीं बनाया!और एक जुनून के तहत सेवा दल के प्रचार-प्रसार के लिए संपूर्ण देश का चार-पांचबार दौरा किया लेकिन हमारे ही वरिष्ठ साथी अपने आप को राष्ट्र सेवा दल को अपनी प्रायवेट प्रॉपर्टी समझने के कारण कुछ थोड़ा सा भी सुधार करने की बात सहना नहीं चाहते और कुछ चंद लोगों के हाथों में रखना चाहते हैं ! ताकि उनके ही प्रभाव मे सेवा दल रहे और यह बीमारी काफी पुरानी है ! जिसे ठीक किये बगैर राष्ट्र सेवा दल के प्राण वायु की कमी को दूर करना कठिन है ! इसलिए आप मुझे सभी लोग माफ करना क्योंकी साने गुरूजी के साहित्य का बचपन से ही अध्ययन करने के कारण और एस एम जोशी , नाना साहब गोरे , प्रोफेसर मधू दंडवते, प्रोफेसर सदानंद वर्दे , प्रधान मास्तर, यदुनाथ थत्ते, मृणाल गोरे, सुधाताई वर्दे , प्रमिला दंडवते, मेरी हमसफ़र मेधा पाटकर इत्यादि लोग मेरे जीवन मे आने के कारण मेरे जाती-धर्मनिरपेक्ष, समतामुलक, जनतांत्रिक, विज्ञानाभिमुख समाज बनाना यही मेरी जीवन भर की कोशिश रही है ! और इसलिए नहीं मैं किसी भी राजनीतिक दल,और नहीं एनजीओ कल्चर के फेर में पडा और शुद्ध सोशल एक्टीविस्ट रहा ! और अंतिम सांस तक रहूँगा यह मेरे जीवन का संकल्प है ! और राष्ट्र सेवा दल के लिए कोई साथ में आये तो अच्छा है लेकिन नहीं भी आया तो भी रवींद्रनाथटैगोर के एकला चलो रे गित के अनुसार और कोई बीच रास्ते में आडा आया तो उसे दूर करके मै अपने मंजिल की ओर बढने की कोशिश करूँगा यह संकल्प शुरुसेही रहा है !

और सबसे अंतिम और अत्यंत महत्वपूर्ण बात राष्ट्र सेवा दल को अगर कोई किसी राजनीतिक दल की इकाई बनाने की गलती की तो उसका पुरजोर विरोध करूँगा ! यह संकल्प एस एम जोशी के कारण लिया हूँ ! पुणे के अहिताग्नी राजवाडा में एस एम जोशी खुद सोशलिस्ट पार्टी के अध्यक्ष थे और उन्हिकी पार्टी के और जिनके जीवन की शुरुआत राष्ट्र सेवा दल के पूर्ण समय कार्यकर्ताके के रूप मे हुई है वह मधु लिमये राष्ट्र सेवा दल को सोशलिस्ट पार्टी के इकाई बनाने की कोशिश कर रहे थे ! और एस एम जोशी खुद सोशलिस्ट पार्टी के अध्यक्ष होने के बावजूद राष्ट्र सेवा दल कीसी भी पार्टी की इकाई नहीं रहेगा ! यह भुमिका लेकर मधु लिमये के प्रस्ताव का विरोध किया है ! और मै एस एम जोशी के इस भुमिका का बचपन से ही हिमायती रहा हूँ और आगे भी रहूँगा ! आज गुरूजी के इकहत्तरवी पुण्यतिथि के अवसर पर पहली बार अक्षरबद्ध कर रहा हूँ !

लेकिन आपसी कलह के कारण मुझे अगले दुसरा कार्यकाल छोडने के लिए मजबूर होना पड़ा था ! और मेरी जगह पर ही एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मशहूर शख्सियत का सर्वसम्मति से चयन हुआ ! लेकिन उनकी मुष्किल यह है कि वह राष्ट्र सेवा दल के बारे मे कुछ भी नही जाननेवाले नहीं होने के कारण (और हर तरह से नये ! राष्ट्र सेवा दल के संविधान के अनुसार कोई भी सदस्य तीन साल सक्रिय रहे बगैर किसी भी संविधानिक पदपर पदाधिकारी नहीं बन सकता ! लेकिन जिस तरह से राजनीतिक दल के सदस्य और पदाधिकारियों को भी सेवा दल के संविधानिक पदपर पदाधिकारी नहीं बन सकता है यह नियम होने के बावजूद उसकी अनदेखी कर के पदाधिकारि बने हैं ! वही बात सक्रीय सदस्य की वर्तमान अध्यक्ष के समय की गई है ! और उन्हें बनाने वाले लोगों की गलती है ना की उनकी ! ) उन्हें सेवा दल के नियम, कानून, परंपरा की कुछ भी जानकारी नहीं थी ! और इस कारण इन दो सालो के दरम्यान कोरोनाके संकट और उनके राष्ट्र सेवा दल के संबंध की अनुभवहीनता के कारण कुछ विवादित निर्णय लेने की वजह आज की स्तिथि बनी हुई है !
हालांकि मैंने समय-समय पर पूर्व अध्यक्ष के नाते और उन्होंने ही मुझे दस जून 2019 के दिन अपने होटल पुणे मे विशेष रूप से बुलाया था !

और उसी मुलाकात मे उन्होने कहा कि आप मुझे मार्गदर्शन करेंगे और कुछ गलत हुआ तो अवश्य बतायें ! और मैंने भी साफ शब्दों में कहा था कि आप मेरे अध्यक्ष के नाते और आजसे मै अपने आप को राष्ट्र सेवा दल के साधारण कार्यकर्ता हर संभव आपको राष्ट्र सेवा दल के विस्तार के लिए मदद करने के लिए तैयार हूँ अगर आप की इच्छा हो तो ! लेकिन नहीं उन्होंने मेरे किसी भी पत्र और फोन का जवाब दिया और सलाह मशविरा तो बहुत दूर की बात है ! सबसे अहम बात मैंने उन्हें लिखा है कि कृपया कोरोनाके लाॅकडाऊन के समय ऑनलाइन बैठकोमे संगठन के महत्वपूर्ण निर्णय मत लिजिए जबतक हम सभी साथियों को आमने-सामने बैठक के लिए मौका नहीं मिलता तबतक टाल दीजीए ! हाँ ऑनलाइन चर्चा या किसी भी अन्य विषयों पर वेबीनार अवश्य करें पर संगठन पर दूरगामी प्रभाव पडेगा ऐसे निर्णय मत लिजिए ! लेकिन उन्होंने मेरे किसी भी पत्र और फोन का जवाब नहीं दिया !

शायद उन्हें दूसरे गाँधी और साने गुरूजी भी कुछ लोग लिखित रूप में चुनाव के पहले प्रचारित कर चुके है ! तो दोनों नाम राष्ट्र सेवा दल के हर सैनिक के लिए आदरणीय होने के कारण हम सभी को बहुत ही अपेक्षा थी कि इतने बडे अध्यक्ष राष्ट्र सेवा दल के इतिहास में पहली बार एक विश्व स्तर की शख्सियत का नेतृत्व में राष्ट्र सेवा दल के लिए बहुत ही अच्छा मौका है ! ( और शायद उसी कारण उनकी अध्यक्ष बनने के पहले वह कब सेवा दल के सक्रिय सदस्य थे यह बात सभी ने अनदेखी की है ! मैंने भी !! ) उसके तफसील मे नही जाऊँगा क्योकि आज साने गुरूजी के इकहत्तरवी पुण्यतिथि के अवसर पर एक विनम्र निवेदन है कि सच्चा धर्म वही है जो दुनिया को प्यार अर्पण करने की प्रार्थना सही मायने मे पहले राष्ट्र सेवा दल के अंदर और फिर दुनिया कि बात करते हैं ! मेरी किसी की भी भावनाओं को ठेस नहीं पहुँचाने की इच्छा नहीं है लेकिन किसी को मेरे किसी वाक्य या मजमून से ठेस लगी हो तो मुझे माफ करना, क्योंकि मेरे जीवन पर प्रभाव डालने वाले साने गुरूजी के इकहत्तरवी पुण्यतिथि के अवसर पर मैं इस तरह की गलती कर नहीं सकता और यह मुक्त चिंतन आज सुबह ही मेरे मनमे आया जो मैंने आप सभी साथियों से शेयर कर रहा हूँ !

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