अंत समय में कितना धन चाहिये? शानशोकत और दिखावे के पीछे भागने वाले ये कमल मोरारका जी से सीखें !

लगभग दस वर्ष पहले कमल मोरारका जी के मुम्बई ऑफ़िस में उनसे सामान्य बात हो रही थी । उन्होंने पूछा, “ विनीत जी ये बताइए कि मरते समय एक आदमी को कितने पैसे की ज़रूरत होगी ?”

मैं सोचकर बोला ये तो इस पर निर्भर है कि कोई अपनी अंतिम यात्रा कैसी करवाना चाहता है।

वे बोले, “ तीन हज़ार रुपए की लकड़ियों में तो फुँक जाएँगे ना, तो फिर बाक़ी सारा धन समाज के काम आना चाहिये “ ।

वे सारा जीवन केवल सफ़ेद खादी के कुर्ते पजामे में रहे। उनका अंत भी ऐसा ही सादा हुआ । वे बिना तामझाम और दिखावे के चुपचाप चले गये। पर उन्होंने अपना जो धन समाज के काम में जीवन भर लगाया आज वही समाज देश के कोने-कोने में उन्हें श्रद्धा और प्रेम से याद कर रहा है।

कहते हैं कि किसी व्यक्ति की उपलब्धियों में उसकी पत्नी का बड़ा हाथ होता है। जब द्वारिकाधीश भगवान सुदामा को सब कुछ लुटा रहे थे तो रुक्मणी जी ने भगवान की बाँह पकड़ कर उनको रोका “ ऐसी तुमको का भई सम्पत्ति की अनचाह” । पर भाभी (भारती मोरारका ) ने उन्हें क़भी नहीं रोका कि तुम अपना धन क्यों लुटा रहे हो । वे उनकी रूचि के हर काम में हमेशा साथ खड़ी रहीं। वरना वे भी कह सकती थीं कि ये सब मत करो, मेरे जन्मदिन पर मुझे हवाई जहाज़ भेंट करो ।

तभी तो कहते हैं कि;

आया था इस जगत में
जग हंसा तू रोय ।
करनी ऐसी कर चलो,
तुम हँसो जग रोय ।।

विनीत नारायण


द ब्रज फ़ाउंडेशन
वृंदावन

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