पश्चिमी चंपारण के लौरिया में राजीव गांधी आए थे. क्षेत्र के विधायक विश्वमोहन शर्मा ने मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र के मना करने के बावजूद जिले में दस्युओं के आतंक से त्रस्त जनता के दुखों को पुरजोर तरीके से अपने भाषण में परोसा. नतीजा यह हुआ कि यहां डकैतों के सफाए के लिए ब्लैक पैंथर अभियान चलाया गया. शिवमूर्ति राय, ज्योति कुमार, रणधीर वर्मा जैसे एक दर्जन अधिकारियों के नेतृत्व में पुलिस बल डकैतों पर कहर ढाने लगे. चम्पारण रेंज में पुलिस की एक अलग डीआईजी यूनिट बैठी. इसकी कमान रामचन्द्र खां ने संभाली. मुठभेड़ के दौरान कई कुख्यात रूदल यादव, अलाउद्दीन मियां, राम जतन नूमिया, व्यास, रब्ब मियां, पत्थर सिंह चौहान आदि ढेर हो गए. दस्युओं में पहली बार भय व दहशत का माहौल देखा गया. सरकार ने जिले में 22 सक्रिय दस्यु गिरोहों की सूची जारी की. पुलिस की आक्रामक कार्रवाई को देख कर कई दस्यु सीधे जेल जाकर अपने को सुरक्षित महसूस किए. वहीं दस्यु सतन यादव ने आत्मसमर्पण करने में अपनी भलाई समझी.

1990 में बिहार में सत्ता बदलने के साथ ही यहां की स्थिति में भी परिवर्तन आया. अभियान कुंद होने लगा. दस्युओं की समानांतर सरकार जिले में ‘चलने लगी. 2005 में राज्य में सरकार बदलने का असर जिले में जबर्दस्त दिखा. यहां तेज तर्रार पुलिस अधिकारियों को पदस्थापित किया गया. रत्न संजय, एमआर नायक, आरके मल्लिक, विकास वैभव, वीएस मीना, केएस अनुपम बगैर किसी राजनीतिक या अन्य तरह के प्रभाव में आए बगैर अपराधियों पर सीधे निशाना साधते रहे. हाल यह हुआ कि कुख्यात वंशी यादव, लालू यादव, पृथ्वी यादव, लक्षण चौधरी, डोमा, हरि यादव आदि ढेर हो गए. वंशी यादव के भाई वीरझन यादव ने भी पुलिस के समक्ष सरेंडर किया. पुलिस की घेराबंदी इस तरह बढ़ी कि जिले में सामानांतर सरकार चलाने वाले 50 हजार का ईनामी डकैत भागड़ यादव भी दियारा में भागते-भागते बेदम हो गया. अपने को असुरक्षित महसूस कर एसपी केएस अनुपम से संवाद साधा और उदयपुर के घने जंगल में अपने सहयोगी सोखा यादव, लखी बीन आदि के साथ आत्मसमर्पण कर दिया. 5 मई 2008 को आत्मसमर्पण के दौरान बड़ा मंच बनाया गया. हजारों-हजार ग्रामीण इस डकैत को देखने के लिए उमड़ पड़े. मंच पर भागड़ ने पहुंचते ही हाथ जोड़कर लोगों का अभिवादन किया. भागड़ जिंदाबाद के नारे और तालियों की गड़गड़ाहट से सभा स्थल गूंज उठा. भागड़ यादव ने अपने संबोधन में कहा कि पिछले तीन दशक में उससे जो भी गलती हुई होगी, उसे माफ करेंगे. अब मेरे पूरे परिवार की सुरक्षा की जिम्मेवारी एसपी पर है. लेकिन जेल जाकर फिर से परिवार के साथ जीवन बसर करने की उसकी तमन्ना पूरी नहीं हो सकी. बेतिया मंडकारा में ही उसे वर्ष 2009 में हार्ट अटैक हुआ. उसे एमजेके अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उसने अंतिम सांस लिया. अब उसकी सम्पति को लेकर उसके भाई-भतीजे और पुत्र आदि के बीच जंग छिड़ चुका है. इसके अग्रज पूर्व विधायक सतन यादव की असमय मौत हो गई. हालांकि उसकी पतोहू रेणु देवी जिला परिषद उपाध्यक्ष की कुर्सी पर विराजमान है. लेकिन आपसी पारिवारिक कलह का क्या अंजाम होगा, यह देखना अभी बाकी है.

-विकास बिहारी सिंह-

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