प्रधानसेवक बंगाल के चुनाव में आतंकवाद का कार्ड खेल रहे हैं ! गोधरा के बाद गुजरात का दंगे से अपने राजनीतिक करिअर बनाने वाले से कोई दुसरी अपेक्षा करना भी गलत है ! 2019 के पुलवामा की घटना की जाँच अभी तक क्यों नहीं कि ? और देवेन्द्र सिंग को दो आतंकवादीयोको अपने गाडी में ले जाने के बाद हिरासत में तो लिया लेकिन फिर छोड़ क्यों दिया? क्या इन सब सवालों के जवाब देने का कष्ट करेंगे ? और मै कुछ और सवाल इस बहाने प्रधानसेवक को ही पूछने जा रहा हूँ !

(1) सवाल नंबर एक विश्व की सबसे ज्यादा सुरक्षा बलों की तैनाती कश्मीर में है! ऐसे एरिया में 350 किलो ग्राम आर डी एक्स रखकर कोई वाहन कैसे प्रवास कर सकता है ? और यह गाडी बगैर किसी रोकटोक से हाईवे तक कैसे पहुँच गई वह भी श्रीनगर से सिर्फ बीस किलोमीटर की दूरी पर ? और इसके लिए किसी को भी जिम्मेदार नहीं ठहराया कि जिनके जिम्मे सडक सुरक्षा (आर आर यूनिट) उस एरिया के ऑफीसर इंचार्ज कौन थे?और जहाँ से होकर यह गाडी गुजरी है वहाके किसी भी एक का नाम उजागर क्यो नही हुआ ? और किसी एक को भी इस बात का जिम्मेदार क्यो नही माना गया ?

(2) नंबर दो कश्मीर में भारी बर्फबारी के कारण चार फरवरी से एक भी कानवाय नहीं निकल पाने के कारण काफी बडी संख्यामे जवान अटक गये थे! और इसकारण सीआरपीएफ के अफसर ने हवाई मार्ग से जवानो को ले जाने के लिए पत्र लिखा है ! उसके बावजूद उस पत्र को क्या जवाब दिया गया है और क्यों उन्हें हवाई मार्ग से लाने के बजाय रोडमार्ग से लाया गया है तो उसमें भी अंतिम विनती बख्तरबंद गाडिया दो करके की थी उसके बावजूद जवानो को बसो से भेजने का निर्णय किसका है ?

नंबर 3 और उसमें भी खास बात 14 फरवरी 2019 की सुबह चार बजे 78 गाडीयोका जथ्थे पर 2500 जवान राष्ट्रीय महामार्ग नंबर 44 से भेजने का निर्णय किसका है और जथ्थे मे से एक पांच नंबर की बस में कोई भी सुरक्षा इंतजाम नहीं है यह बात आतंकवादीयोको कैसे मालूम थी और वह जानकारी देने वाले कौन है ?

 

नंबर 4 गरीब किसानों के बच्चे अपने आप को जान जोखिम में डाल कर सेना मे भर्ती क्या इसतरह की बेमौत के लिए हुए है ? आप दूसरों को सेना का अपमान करने का आरोप करते रहते हो और अभी भी पुरूलिया की जनसभा में आपने ममता बनर्जी पर वही आरोप लगाया है ! तो मै आरोप कर रहा हूँ कि इन चालिस जवानोको मौत के मुँह में डालनेवाले संबंधीत लोगों को आज दो सालसे ज्यादा समय हो रहा है अभितक सत्य बाहर क्यों नहीं आया है ? उल्टा फ्रंटलाईनपत्रिका के 14 फरवरी 2021 के अंक में प्रकाशित आनंदो भक्त नाम के पत्रकार के इनवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म की दाद देनी पड़ेगी उन्होंने पुलवामा टेरर अटॅक हॅप्पनड डिस्पाइट टू सक्सेसिव्ह अक्शनेबल इंटेलिजेंस इनपुट टाइटल से जो तथ्य सामने लाये हैं उनको देखने के बाद मेरे मन मे शक आ रहा है कि भारत के रक्षा की जिम्मेदारी सह्माल्ने के लिए तैनात किया गया कश्मीर के जवानोकीलाशो पर 2019 का चुनाव जितने की आपकी मौत के सौदागर वाली इमेज को पुलवामा घटना को लेकर और उसमें कुछ आपके चहेते मिडियाने काफी बडा रोल अदा किया है और इसीलिए मै पुलवामा घटना के एक महीने से भी ज्यादा समय पहले ही जब खुफिया जानकारी भविष्य में कश्मीर मे क्या होने की संभावना है यह बात आतंकवादी योको संघटन जैश-ए-मोहम्मद के क्विसास मिशन के बारे मे 2जनवरी और फरवरी 13 तक 2019 यानी लगभग चालीस दिन पहले ही जिस मुदास्सिर अहमद खान ने 14 फरवरी 2019 को आतंकी हमला किया तो यह जो कोताही बरती गई इसके लिए कौन जिम्मेदार है और आज दो सालसे ज्यादा समय हो रहा है और वह भी भारत के रक्षा से संबंधित मामलों को लेकर जिसमें चालीस जवानोको मौत के मुँह में डालने वाले और उसी घटना को चुनावी मुद्दा बनाकर जो खेल 2019 के लोकसभा चुनाव में और आपके हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी इतना कोल्डब्लडेड खेल खेलकर आप अपने चुनावी राजनीति खेलने का रिकार्ड नया नहीं है 2002 साल के फरवरी की 27 तारीख को गोधरा साबरमती एक्सप्रेस की एस 6 बोगी के आगमे जले हुए 59 लाशो की अहमदाबाद के सडकों पर खुले ट्रकोपर घुमाकर उसके बाद दुसरे ही दिन के गुजरात के दंगे को अंजाम देकर अपने राजनीतिक करिअर बनाने वाले से कोई दुसरी अपेक्षा करना भी गलत है !

लेकिन इस तरह समय-समय पर आम लोगों के जान के साथ खिलवाड़ करने वाले और देश की संपत्ति को औने-पावने दामौ मे बेचकर बैंक,विमा,रेल,रक्षा जैसे महत्वपूर्ण विभाग विदेशी पूंजीपतियो को बेचना कौन सा राष्ट्रवाद है और इन्हीं राष्ट्र विरोधी गतिविधियों के खिलाफ किसान-मजदूर के और विद्यार्थी,दलित हो या आदिवासी या अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों द्वारा किया जाने वाला विरोध करने वाले राष्ट्र-द्रोही ! और यह बात आजसे नब्बे साल पहले के जर्मनी मे हिटलर नाम के तानाशाह ने भी की थी जिसका हूबहू अनुकरण आप कर रहे हो इसलिए पुलवामा घटना को लेकर गैरजिम्मेदार बयान पुरूलिया की जनसभा में देकर आपने मुझे पुनःह आपके राजनीतिक करिअर के बारे मे दोबारा लिखने के लिए मजबूर कर दिया है !

2019 के लोकसभा चुनाव में आपने इन चालिस जवानो की लाशो पर पूरा चुनाव जीता है और अभी भी उसी मुद्दे को भुनाने की कोशिश कर रहे हो क्योंकी आप की राजनीतिक हैसियत बनाने के लिए आपको शुरूआत से ही यह आदत है जिस गोध्राकांड को भी लेकर आपने अपने मुख्यमंत्री पद का कर्तव्य नहीं करते हुए सिर्फ अपनी राजनीतिक हिंदू हृदय सम्राट की छवि बनाने के लिए इस्तेमाल किया है इस बात का इतिहास होकर सिर्फ उन्नीस साल हो रहे हैं और पुलवामा घटना को लेकर भी आप वही बात दोहरा रहे हैं इसलिए पुलवामा घटना को लेकर मुझे आपको कुछ सवाल पूछने पडे हैं !
और पाँच वी बात जेके पुलिस घटना के बाद दोपहर तीन बजकर दस मिनट में स्टेटमेंट दिया है कि हम प्राथमिक जाँच करने पस्चात यकीन के साथ कह नहीं सकते कि आई एडी से भरी हुई कारने टक्कर मारी या वह जगह पर ही खडी थी !
इसलिए मुझे मजबूरन यह पोस्ट लिखनी पड रही है ! क्योंकी आतंकवाद और दंगे की राजनीति के कारण ही उन्हें भारत के सर्वोच्च पद पर पहुचने के लिए काम आये हैं !

मुझे रह रहकर हैरानी होती है कि देश,देशभक्ति,देशद्रोह इत्यादि शब्दों का सबसे ज्यादा इस्तेमाल भी यही लोग कर रहे हैं और बाबरी मस्जिद-राम मंदिर के तथाकथित आंदोलन के समय ही स्वतंत्र भारत में आतंकवाद का खेल खेलना शुरू कर दिया गया है और इसमेंसे मै मैंने खुद जाँच करने के कारण कुछ घटनाओं का अपना अनुभव के आधार पर भारत में ज्यादातर आतंकवादी घटनाओं मे घटना के बाद कुछ ही क्षणों में विभिन्न मुस्लिम संघटन या कुछ व्यक्तियोके नाम हमारी जाँच एजेंसियों और पुलिस द्वारा किया जाने वाला खुलासा और प्रत्यक्ष घटना की निस्पक्ष जाँच के बाद के तथ्यों को देखने से पता चलता है कि घटना के बाद जाँच एजेंसियों और पुलिस द्वारा किया जाने वालाखुलासा और उसके बाद का असली तथ्य उजागर होने के बाद भी शुरूमे किया जाने वाला खुलासेसे लोगों के जेहन मे बात पैठ जाती है वह बाद के जाँच के बाद भले तथ्य पहले से अलग निकला तो भी पहली बार किये गये झूठ तथ्य फिर वह नांदेड 6 अप्रैल 2006 उसके बाद नागपुर संघ मुख्यालय पर तथाकथित फिदाइन हमला और मालेगाँव विस्फोट की दोनों घटनाओं जिनकी जाँच शहीद हेमंत करकरे जी ने करने के बावजूद उस घटना की आरोपी प्रज्ञा सिंह ठाकुर जेल के बजाय भारत की संसद में संसद सदस्य के रूप मे बैठती है इससे ज्यादा और क्या सबूत चाहिए ?

 

और कमअधिक प्रमाण मे संपूर्ण भारत में वर्तमान समय में चल रही राजनीति मे कईयों महत्वपूर्ण पदोपर बैठे हुए लोगों को उन पदोतक जाने का रास्ता भी आतंकवाद की राजनीति ही है और यह प्रधानसेवक से लेकर गृह मंत्रालय जैसे महत्वपूर्ण पदपर बैठे हुए व्यक्ति और कुछ प्रमुख राज्यों के मुख्यमंत्री और कई संविधानिक पदोपर बैठे हुए लोगों को देखकर लगता है कि प्रधानसेवक हमारे देश के आतंकी घटनाओं को लेकर कितने गंभीर है !
हाँ चुनाव में भुनाने के लिए जरूर उसे इस्तेमाल करते रहते हैं या उसे एक चुनावी मुद्दा छोडकर कोई अहमियत नहीं है !
और जबतक आतंकवाद का खेल खेलना जारी रहेगा तबतक आतंकवाद बदस्तूर जारी रहेगा
और यह बात मैंने अपने हर आतंकवाद की घटना की जाँच रिपोर्ट्स मे आखिरी पैराग्राफ़ में लिखी है !

Source : Aajtak / FrontLine

Dr. Suresh Khairnar

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