अहिंसक आंदोलन में किसानों की बलि क्रूर है

लगभग डेढ़ महीने से चल रहे किसान आंदोलन में अब तक चालीस से अधिक कृषक अपनी जानें गँवा चुके हैं । बरसात और तेज़ सर्दी जैसी विषम परिस्थितियों में चल रहा यह आंदोलन संसार के अपने किस्म के अनूठे ज़मीनी आंदोलनों में शुमार हो गया है ।आठ दौर की बातचीत के बाद भी स्थिति जस की तस है ।लगता है कि सरकार ने इस मामले में अन्नदाताओं को शारीरिक और मानसिक रूप से थका देने तथा लंबे समय तक विरोध प्रदर्शन को खींचने की रणनीति अपनाई है।हो सकता है कि इस नीति में वह कामयाब भी रहे,मगर इस तरह मिलने वाली वाली जीत में भी उसकी पराजय छिपी है ।आंदोलनकारी किसानों से सरकार की चर्चा का कोई नतीज़ा कैसे निकलता ? परिणाम तो उस बातचीत से निकलता है ,जिसमें देने वाला पक्ष वास्तव में समाधान चाहता हो।इस मामले में हुकूमते हिंद ने ऐसा एक भी संकेत नहीं दिया कि वह हल चाहती है और किसानों को वाकई कुछ देना चाहती है ।अलबत्ता यह उपकार उसने किसानों पर अवश्य किया कि बातचीत के दरवाज़े खोले रखे।यही क्या कम है।वह अनेक दौर की बातचीत नहीं भी करती तो बेचारे अन्नदाता क्या कर लेते ।सत्ता की कोशिश तो आमतौर पर आंदोलनकारियों को थका देने की रहती है।फिर किसान कौन से अपवाद हैं ।

दरअसल आंदोलन के दूरगामी परिणाम सरकार में बैठे नुमाइंदे नहीं देख पा रहे हैं।इसका मानसिक असर प्रदेशों के किसानों पर में भी दिखाई देने लगा है।दूरस्थ अंचलों के किसान भी व्यवस्था के रवैए से हताश और कुंठित होने लगे हैं।दिसंबर महीने में ही सर्वाधिक पिछड़े इलाक़ों में से एक बुंदेलखंड के चार किसानों ने आत्महत्याएँ कर लीं।सभी किसान अपने पवित्र काम के प्रति समाज और व्यवस्था की असंवेदनशीलता से क्षुब्ध थे। उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश में बँटे बुंदेलखंड क्षेत्र में बीते तीन महीनों में छह किसान अपने प्राण दे चुके हैं।अफ़सोस की बात है कि इन मार्मिक कथाओं के बारे में समाज के माथे पर भी कोई शिकन नहीं है।जान देने वालों में दमोह के दो, पन्ना का एक और छतरपुर ज़िले का एक किसान था।छतरपुर ज़िले में मातगवां के मुनेंद्र लोधी की दर्दनाक़ दास्तान तो सिहरन पैदा करती है।फाँसी लगाने से पहले उसने मृत्युपूर्व बयान लिखा।उसने लिखा कि खेती तथा आमदनी के अन्य स्रोत ठप्प हो जाने के कारण वह 88000 रूपए का बिजली बिल नहीं भर पाया था।इसलिए अफसरों ने कुर्की कर ली।आटा चक्की व मोटर साइकल ज़ब्त कर ली और गाँव वालों के सामने अपमानित किया।फाँसी से पहले उसने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा।उसने इसमें लिखा कि बड़े बड़े कारोबारी घोटाले करते हैं।सरकार उनका कुछ बिगाड़ नहीं पाती।पर एक ग़रीब पर थोड़ा सा भी क़र्ज़ हो तो कुर्की कर ली जाती है।मेरी चक्की और मोटर साइकल ज़ब्त कर ली।उसका दुःख नहीं है।मगर जिस तरह गाँव वालों के सामने बेइज्जत किया गया ,वह असहनीय है।मैंने जब चक्की का कनेक्शन लिया था तो सिक्योरिटी के 35000 रूपए जमा किए थे,लेकिन बिजली विभाग ने सिर्फ़ 5000 रूपए की रसीद दी। बिजली का बिल नहीं भर पाने की मजबूरी भी उसने लिखी – उसकी एक भैंस करंट लगने से मर गई,तीन भैंस चोरी चली गईं ,इस साल खरीफ़ फसल ख़राब हो गई।इसी बीच कोरोना के कारण लॉकडाउन लग गया।कोई काम नहीं मिला न ही चक्की चली। इस कारण बिल नहीं भर सके।मुनेंद्र ने लिखा कि मरने के बाद मेरे शरीर का एक एक अंग शासन के सुपुर्द कर दिया जाए,जिन्हें बेचकर वह बकाया रक़म वसूल कर ले।दिल दहलाने वाली इस घटना का सबसे दर्दनाक़ पहलू यह है कि मृतक किसान का पिता बिजली महकमें का ही सेवानिवृत कर्मचारी है और उसने भी अधिकारियों को पत्र लिखा था कि उसकी पेंशन से बिजली बिल की बक़ाया राशि वसूल कर ली जाए ,लेकिन उस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया।किसी भी ज़िम्मेदार लोकतंत्र के माथे पर यह बदनुमा दाग़ नहीं तो और क्या है ?

विडंबना यह है कि भारतीय अन्नदाताओं की समग्र तस्वीर से हुक़ूमत भी बेख़बर नहीं है।नेशनल क्राइम ब्यूरो की रिपोर्ट बताती है कि 2019 में प्रतिदिन 28 किसानों और 89 खेतिहर या दिहाड़ी श्रमिकों ने आत्महत्या की है।आत्महत्या के आँकड़ों में शीर्ष पर पंजाब और हरियाणा के किसान नहीं आते। इसके बाद भी अगर इन राज्यों से किसान आंदोलन मुखर हुआ है तो सीधा अर्थ यही है कि खेती के सरोकारों को लेकर समूचे मुल्क़ के किसान एक मंच पर खड़े हैं।उन्हें सियासी चश्में से बाँट कर देखने से सरकार का भला हो जाए,लेकिन देश का भला नहीं होने वाला है।अंततः सरकार को किसान की बात सुननी ही पड़ेगी।महात्मा गाँधी ने ग्राम स्वराज में 1933 में लिखा था,” अगर मेरा बस चले तो हमारा गवर्नर जनरल किसान हो,हमारा प्रधानमंत्री किसान हो,सब कोई किसान होगा।क्योंकि यहाँ का राजा किसान है। मुझे बचपन में कविता पढ़ाई गई थी- हे किसान ! तू बादशाह है। किसान ज़मीन से अन्न पैदा न करे तो हम खाएंगे क्या ?हिंदुस्तान का सच्चा राजा तो वही है। लेकिन आज हम उसे ग़ुलाम बनाकर बैठे हैं।आज किसान क्या करे ? एम ए पास करे ? बीए पास करे ? ऐसा उसने किया तो किसान मिट जाएगा।बाद में वह कुदाली नहीं चलाएगा।जो आदमी अपनी ज़मीन से अन्न पैदा करता है और खाता है ,वह यदि जनरल बने,मंत्री बने तो हिन्दुस्तान की शक़्ल बदल जाएगी।आज जो सड़ांध फैली हुई है ,वह मिट जाएगी “।

राजेश बादल

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