बीते 16 जून को देश भर के 100 से ज्यादा छोटे-बड़े किसान संगठनों ने स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू कराने, कर्जमाफी और फसलों के सही मूल्य जैसे मुद्दों को लेकर एक साझा आंदोलन का फैसला किया. दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में आयोजित एक बैठक में सभी संगठनों ने एकमत से एक समन्वय समिति गठित की, जिसका नाम रखा गया अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति. इसी के बैनर तले 6 जुलाई को मंदसौर से किसान मुक्ति यात्रा आंरभ हुई. हालांकि यात्रा की शुरुआत में ही पिपलियामंडी जाने के क्रम में इससे जुड़े तमाम किसान नेताओं को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया.
गौरतलब है कि 1 से 10 जून तक मध्य प्रदेश में हुए किसान आंदोलन के दौरान पिपलियामंडी में ही 6 जून को पुलिस की गोलीबारी में पांच और लाठीचार्ज में एक किसान की मौत हुई थी. हिरासत में लिए गए नेताओं में भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के संयोजक वी.एम. सिंह, हनन मोल्ला, सुभाषिणी अली, स्वराज इंडिया के प्रमुख योगेंद्र यादव, नर्मदा आंदोलन की मेधा पाटकर, स्वाभिमानी श्वेतकारी, संगठन के प्रतिनिधि सांसद राजू शेट्टी सहित कई नेता शामिल थे.
मेधा पाटकर ने पुलिस और प्रशासन की मनमानी पर सवाल उठाया और कहा कि वे शांतिपूर्वक घटनास्थल पर पहुंचकर शहीद किसानों को श्रद्धांजलि देना चाहते थे, मगर पुलिस ने बीच में ही रोक दिया. लेकिन पुलिस अधीक्षक मनोज सिंह का कहना था कि इस यात्रा से शांति भंग होने की आशंका थी, इसलिए इसमें शामिल 450 लोगों को गिरफ्तार किया गया. हालांकि बाद में उन्हें दलोदा मंडी ले जाकर छोड़ दिया गया, जहां से फिर ये यात्रा आगे बढ़ी.
इस यात्रा में किसान नेताओं से लेकर आम किसान और महिलाएं भी शामिल हैं. इन सभी के कंधे पर प्रतीकात्मक हल है, जिसमें एक ओर मिट्टी का कमंडल लटका हुआ है. किसानों के हाथ में हरे रंग का झंडा भी है. यात्रा में शामिल लोग उन छह किसानों की तस्वीरें भी साथ ले जा रहे हैं, जो मंदसौर में पुलिस कार्रवाई के दौरान मारे गए थे. ये यात्रा 18 जुलाई को दिल्ली के जंतर-मंतर पर पहुंचेगी.
10 जुलाई को महाराष्ट्र के नासिक पहुंची इस यात्रा की पहली जनसभा छंदवाड़ा के पिपलगांव में हुई. गौर करने वाली बात ये है कि जब ये जनसभा हो रही थी उस समय रात के 10 बज रहे थे. उस समय भी जनसभा में किसानों और स्थानीय लोगों की भारी मौजूदगी बता रही थी कि अब वे अपने हितों को लेकर कितने जागरूक हैं. उस जनसभा में बड़ी संख्या में ऐसे अनाथ बच्चों ने हिस्सा लिया जिनके पिता किसान थे और कर्ज की वजह से आत्महत्या करने को मजबूर हो गए. उल्लेखनीय है कि किसान यात्रा हर दिन एक नेता को समर्पित की जा रही है.
9 जुलाई का दिन किसान नेता शरद जोशी को, 10 जुलाई का दिन किसान नेता प्रोफेसर महंत देवारू ननजुन्दा स्वामी को, 11 जुलाई का दिन बिरसा मुंडा और सरदार पटेल को और 12 जुलाई का दिन किशन पटनायक को समर्पित किया गया. 12 जुलाई को ये यात्रा गुजरात के मेहसाणा पहुंची. यहां सभा को संबोधित करते हुए अखिल भारतीय किसान संघर्ष समिति के संयोजक वीएम सिंह ने कहा कि जब तक हम अलग-अलग लड़ते रहेंगे तब तक सरकारें हमारा दमन करती रहेंगी.
ये इत्तेफाक ही था कि 12 जुलाई को जब किसान मुक्ति यात्रा गुजरात के मेहसाणा पहुंची उसी समय दलितों की आजादी कूच यहां से रवाना हुई. हालांकि इस यात्रा को प्रशासन ने अनुमति नहीं दी थी, लेकिन फिर भी इससे जुड़े नेताओं ने यात्रा जारी रखी. गौरतलब है कि ऊना में दलितों पर हुए हमले की बरसी के रूप में इस आंदोलन का आयोजन किया गया है. 12 जुलाई को मेहसाणा से शुरू हुई इस आजादी कूच को 18 जुलाई को बनासकांटा पहुंचना है. मेहसाणा में आजादी कूच के शुरू होते ही पुलिस ने इससे जुड़े नेताओं जिग्नेश मेवानी, जेएनयू के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार, पाटीदार नेता रेशमा पटेल और कई आइसा-आरवाईए नेताओं को हिरासत में ले लिया. हालांकि बाद में इन सभी को जमानत पर छोड़ दिया गया.
इस मौके पर जिग्नेश मेवानी का कहना था कि ‘गुजरात की दलित विरोधी सरकार हर कीमत पर आज़ादी कूच को रोकना चाहती है, लेकिन हम हर कीमत पर आगे बढ़ना चाहते हैं. जंग छिड़ चुकी है, जनता भिड़ चुकी है.’ दलितों और किसानों के इस संगम को योगेंद्र यादव ने एक सपना सच होने जैसा बताया. उन्होंने कहा, ‘व्यक्तिगत रूप से ये मेरे अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण क्षण है, जब दलित और किसान एक साथ एक मंच पर हैं. मेरे वैचारिक व राजनीतिक गुरु किशन पटनायक का सपना था, इस देश की जो दो बड़ी ऊर्जा है दलितों और किसानों को एक होते देखना. आज उनका सपना साकार होता दिखाई दे रहा है.
आज हमें कर्नाटक को याद करना चाहिए, जब प्रोफेसर नंजुद्दास्वामी, डी आर नागराज, देवानूर महादेव ने इन दोनों धाराओं को जोड़ने का प्रयास किया. संगठन के रूप में भी कर्नाटक में दलित संघर्ष समिति और कर्णाटक राज्य रैयत संघ एक साथ आए थे. शरद जोशी व अम्बेडकर भी एक साथ आये थे.’ वहीं, डॉक्टर सुनीलम का कहना था कि ‘ऊना मार्च ने देश के दलितों में एक नई ऊर्जा का संचार किया था और अब किसान मुक्ति यात्रा और आज़ादी कूच की एकजुटता से देश पर थोपे जा रहे मोदानी मॉडल के ख़िला़फ संघर्ष करने वालों की नई एकता देश के स्तर पर दिखलाई पड़ेगी.’
नीति आयोग पर भी दी थी किसानों ने दस्तक
देश भर के लगभग 65 संगठनों से जुड़े किसान 3 जुलाई को जंतर-मंतर पर इकठ्ठा हुए और वहां से नीति आयोग का घेराव करने के लिए कूच किया. हालांकि उन्हें रास्ते में ही गिरफ्तार कर लिया गया. राष्ट्रीय किसान महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक शिवकुमार शर्मा उर्फ कक्का जी के नेतृत्व में ये किसान दिल्ली में जुटे थे. इस संबंध में राष्ट्रीय किसान मंच के अध्यक्ष विनोद सिंह ने चौथी दुनिया को बताया कि हजारों की संख्या में इकठ्ठा हुए किसान, अपनी मांगों को लेकर केंद्र सरकार के नीति आयोग जाने वाले थे, मगर दिल्ली पुलिस ने हमें हिरासत में ले लिया. हालांकि इससे हम न तो डरेंगे और न ही अपनी मांगें मनवाना बंद करेंगे.