खान अशु

ये तो होना ही था, हो रहा, आगे भी होगा…!
मंत्री जी के साथ झूमाझटकी हुई, गाली-गलौच और कॉलर पकड़ाई भी हो गई…! हिफाजत करने के लिए मौजूद रहने वाले भी साथ थे, तमाशा देख रहे थे…! साथ चलने वाले और उनके दम पर अपनी कॉलर ऊंची रखने वालों ने भी बीच-बचाव की कोशिश नहीं की…! इससे पहले भी कुछेक के साथ हो चुका है, आगे भी कई के साथ यही हालात बनेंगे, इसकी भी उम्मीद की जा रही है…! चलती नाव में छेद करने के गुनाहगारों को अब तिहरी जंग लडऩे के हालात बनते नजर आ रहे हैं, जिन्हें छोड़ आए वो, जिनके अधिकारों पर कब्जा जमाने की कोशिश में लगे हैं वो और वो भी जिनके विश्वास का चीरहरण इन्होंने किया है… एक से बचेंगे, दूसरा सवाल करेगा, दूसरे को संतुष्ट करने से पहले तीसरा प्रश्र उठ खड़ा होगा…! लालच और अभिलाषाओं की पूर्ति के लिए सियासत को साधन बनाने वालों के साथ ये हालात बनेंगे, इसकी उम्मीद की ही जा रही थी, लेकिन उपचुनाव नाम के दंगल ने यह हाथापाई जल्दी ही सवार कर दी है…! अब चुनाव जीतने की मशक्कत सिर्फ अपनी कुर्सी बचाने की कवायद नहीं, बल्कि सारा दम इस बात पर लगाने की नौबत है कि हार-जीत ही आगे की राजनीतिक यात्रा को जिंदा रख पाएगी…! जिनके दम पर सब कुछ त्याग आए थे, वे सुरक्षित खाने में बैठ चुके हैं, लड़ाई महज कद को बरकरार रखने की है… ये जीते तो उनकी कॉलर ऊंची, हारे तो भी कद कम तो नहीं होगा, बढऩे से रह जाएग…! सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास किया जाए, तो जिस पैंतीस करोड़ में खुद को सौदा कर बैठे हैं, वह रकम छोटी तो नहीं, लेकिन इतनी बड़ी भी नहीं, जिसके लिए अपना नाम, कद, पद, सियासत सब स्वाहा कर दिया जाए…! मौका रहता तो इससे कई गुना कमा भी सकते थे और दोगले, दलबदलु, बेईमान, बिकाऊ, दगाबाज, सौदेबाद जैसे कई उपनामों से बचे रहने के हालात भी रहते…!

पुछल्ला
ये खनखनाहट ठीक नहीं…!
मफादों, मतलबों, लक्ष्य प्राप्ति के लिए सहारों की तलाश में जुटे फिल्मी लोग सियासत के दलदल में गहरे जाते दिखाई देने लगे हैं। एक मौत पर अपनी आकांक्षाओं की रोटियां सेंकने की एक बेसुरी खनखनाहट खुद को कीचड़ से सना बताने के लिए औरों के दामन को दागदार करने से नहीं चूक रही। एक रोल, छोटे से काम, किसी फिल्म में चांस के लिए बिना किसी के साथ हमबिस्तरी किए कुछ नहीं हो सकता, जैसी वाहियात शब्दावाली ने जहां उसके चरित्र को उजागर कर दिया है, वहीं उसकी मनोस्थिति को भी खोलकर रख दिया है कि वह महज एक रोल के लिए अपना सर्वत्र न्यौछावर करने को राजी रहती थी तो सियासी रसूख और पैसा कमाने के लिए वह किस हद तक नीचे जा सकती है।

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