bijliनीतीश कुमार के बिहार की सत्ता संभालने से पहले और उसके कुछ समय बाद तक दिल्ली से जब भी कोई विरोधी नेता आता था, तो यह बात जरूर करता था कि बिहार में बिजली कटना खबर नहीं बनती, बल्कि बिजली आने की घटना खबर बनती है. मतलब यह कि सूबे में बिजली की उपलब्धता बहुत ही खराब थी. पटना को अगर अपवाद माना जाय, तो जिला मुख्यालयों के लोग भी बिजली आने का इंतजार करते नजर आते थे. कभी-कभी तो पटना भी बिजली संकट झेलने को मजबूर हो जाता था. दूसरे राज्यों के लोग यह कहकर बिहार का मजाक उड़ाते थे कि वहां तो अभी लालटेन युग है. गांवों की हालत तो और भी खराब थी. लेकिन अब वो दिन गुजर गए, अब बिहार अंधेरे को मात दे चुका है.

2017 के अंतिम सप्ताह में खबर आई कि बिहार में अब कोई ऐसा गांव नहीं बचा है, जहां बिजली नहीं पहुंची हो. मतलब पूरा बिहार अब बिजली से रौशन हो गया है. इस पहले संकल्प को पूरा करने के तुंरत बाद नीतीश कुमार ने एक और संकल्प ले लिया है. उन्होंने घोषणा की है कि साल 2019 तक बिहार के हर एक घर में बिजली पहुंचा दी जाएगी. उर्जा मंत्री विजेंद्र यादव कहते हैं कि कोई यह मानने के लिए तैयार ही नहीं था कि बिहार के हर गांव तक बिजली पहुंच सकती है. केवल 200 मेगावाट क्षमता वाला बिहार आज अगर सरप्लस बिजली पा रहा है, तो इसमें नीतीश कुमार की संकल्प शक्ति का अहम योगदान है. विजेंद्र यादव कहते हैं कि इसके लिए हमने मिशन मोड में काम की शुरुआत की और आज नतीजा दुनिया के सामने है.

हमारे विभाग ने जबरदस्त काम किया और यह साबित किया कि इरादा मजबूत हो तो मुश्किल से मुश्किल लक्ष्य हासिल किया जा सकता है. 2005-17 के बीच विद्युतीकरण के क्षेत्र में जबरदस्त काम हुआ है. 500 मेगावाट से सफल शुरुआत की गई थी और आज सभी गांवों तक बिजली पहुंचा दी गई है. अब हर टोला-मोहल्ला में बिजली पहुंचाई जानी है. बिहार पावर होल्डिंग कंपनी के सीएमडी प्रत्यय अमृत कहते हैं कि देशभर में विभिन्न राज्यों के 19,000 गांवों में बिजली नहीं पहुंची थी. इसमें बिहार के 3320 गांव थे. लेकिन अब बिहार बिन बिजली वाले गांवों की सूची से बाहर आ गया है. हालांकि 21,890 टोलों में अभी बिजली नहीं पहुंच सकी है, लेकिन वहां भी अप्रैल महीने बिजली पहुंचा दी जाएगी और दिसंबर 2018 तक घर तक को बिजली कनेक्शन दे दिया जाएगा.

गौरतलब है कि नीतीश सरकार ने राज्य के सात जिलों के हर टोले में बिजली पहुंचा दी  है. राज्य सरकार ने दिसंबर 2017 तक सभी रेवेन्यू विलेज में बिजली पहुंचाने का लक्ष्य रखा था. मुंगेर, नालंदा, शेखपुरा, गोपालगंज, मधेपुरा, किशनगंज और पूर्णिया के सभी टोले व बसावट अब विद्युतीकृत हो चुके हैं. अप्रैल 2018 से पहले प्रदेश के 31 जिलों के बाकी 21,890 बसावटों व टोलों में बिजली पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया है. शिवहर के 54, खगड़िया के 56, भोजपुर के 112, सहरसा के 126, पटना के 190, भागलपुर के 2131, सारण के 1653, पूर्वी चंपारण के 1333, सीतामढ़ी के 1229, मुजफ्फरपुर के 1159, कैमूर के 1146 और औरंगाबाद के 1137 टोलों व बसावटों में बिजली पहुंचाई जानी है.

नीतीश कुमार ने सत्ता संभालते ही इसे भांप लिया था कि अगर सूबे का विकास करना है, तो फिर बिजली और सड़क को दुरुस्त करना ही होगा. यही सोच थी कि नीतीश कुमार ने अपने पहले कार्यकाल में पूरा फोकस बिजली और सड़क पर रखा. बिजली कंपनी को पेशेवर बनाने के लिए इसका विभाजन किया गया. इस काम में सरकार को भारी विरोध का सामना भी करना पड़ा. लेकिन नीतीश सरकार ने बिजली विभाग के सभी कर्मियों को भरोसे में लिया और कहा कि आपकी सेवा शर्तों में किसी भी तरह का फेरबदल नहीं होगा. बिजली विभाग का काम पेशेवर अंदाज में हो इसलिए विभाग का विभाजन किया जा रहा है.

नीतीश की बातों का असर हुआ और आज पूरा महकमा पेशेवर तरीके से काम कर रहा है. इसका नतीजा यह हुआ कि 2017 खत्म होते होते पूरे बिहार में बिजली पहुंच गई. केंद्र की सरकार ने भी बिजली के मामले में राज्य सरकार की पूरी मदद की. अभी तो केंद्र का बिजली विभाग भी बिहार के राजकुमार सिंह के पास है. इसलिए उम्मीद की जा रही है कि बिहार आने वाले दिनों में बिजली के मामले में पूरे देश में एक मिशाल कायम करेगा. भाजपा प्रवक्ता नवल किशोर यादव कहते हैं कि हमलोग केवल कहते नहीं हैं, बल्कि करके दिखाते हैं.

लालू राज में बिजली एक सपने की तरह थी और आज हालात यह है कि अब हम चौबीसों घंटे बिजली देने की बात कह रहे हैं. यहां तक कि किसानों को अलग फीडर देने की भी कवायद जारी है. किसानों को जब सस्ते दामों में लगातार बिजली मिलेगी, तो निश्चित तौर पर पैदावार बढ़ेगा. वहीं राजद नेता भाई विरेंद्र कहते हैं कि चौबीसों घंटे बिजली देने की बात कहना अलग बात है और देना अलग बात. आज भी पीक आवर में बिजली की क्या स्थिति रहती है, यह किसी से छिपी हुई बात नहीं है. हां यह जरूर है कि समय के साथ हालात कुछ बदले हैं लेकिन कोई कायाकल्प हो गया यह बात मैं मानने को तैयार नहीं हूं.

किसान आज भी पटवन के लिए डीजल पर निर्भर हैं. अगर सबको बिजली मिल ही रही है, तो डिजल सेट की क्या जरूरत है. इसलिए सरकार को बात बनाने के बजाय किसानों के दुख दर्द को देखना चाहिए और उनके लिए पटवन की समुचित व्यवस्था करनी चाहिए. राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप में जो कुछ कहा जाए, पर यह बात काबिलेतारीफ है कि बिहार के हर गांव में बिजली पहुंच गई है.

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