labourउत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का ड्रीम प्रोजेक्ट निर्माणाधीन नवीन सचिवालय भवन मजदूरों की मौत का सबब बनता जा रहा है. अखिलेश के एक और ड्रीम प्रोजेक्ट मेट्रो रेल के साथ भी ऐसा ही हादसा पेश आया जो अभी कुछ ही दिनों पहले पश्चिम बंगाल में घटित हुआ था. गनीमत यह रही कि लखनऊ में मेट्रो की शटरिंग गिरने से एक मजदूर की मौत हुई और कुछ लोग जख्मी हुए, जबकि कोलकाता हादसे में दर्जनों लोग मारे गए.

लखनऊ में विधानसभा के ठीक सामने उत्तर प्रदेश निर्माण निगम द्वारा मजदूरों की जिदंगी को खतरे में डालकर नवीन सचिवालय भवन का निर्माण कराया जा रहा है. यूपी वर्कर्स फ्रंट के प्रतिनिधियों ने मौके पर जाकर जो दृश्य देखा, वह भयावह है. फ्रंट ने इस बारे में मुख्यमंत्री को भी पत्र लिख कर तत्काल हस्तक्षेप करने की मांग की है.

फ्रंट की जांच टीम ने मौके पर पाया कि नवीन सचिवालय भवन के निर्माण में श्रम कानूनों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं. निर्माण मजदूरों की जिंदगी दांव पर लगी है. जांच टीम को बाराबंकी के एक मजदूर ने ही बताया कि यदि कोई मजदूर मर जाए तो उसकी लाश का भी पता नहीं चलेगा. अगर लाश मिल भी गई तो ठेकेदार उसे अपना मजदूर मानने से ही इंकार कर देगा. जांच टीम में यूपी वर्कर्स फ्रंट के प्रदेश अध्यक्ष दिनकर कपूर, निर्माण मजदूर मोर्चा के जिलाध्यक्ष बाबूराम कुशवाहा, जिला उपाध्यक्ष राम सुदंर निषाद और केश चंद मिश्रा शामिल थे.

मौके की स्थिति और मजदूरों से बातचीत के बाद फ्रंट ने आधिकारिक तौर पर कहा कि नवीन सचिवालय के निर्माण में भवन व अन्य सन्निर्माण कर्मकार (नियोजन तथा सेवा शर्त विनियमन) अधिनियम-1996 और उत्तर प्रदेश भवन एवं सन्निर्माण (नियोजन तथा सेवा शर्त विनियमन) नियम-2009 के प्रावधानों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं.

निर्माणाधीन भवन में मिर्जापुर की अहरौरा घाटी से आए उन्हीं पत्थरों का इस्तेमाल किया जा रहा है जिन पत्थरों को पूर्ववर्ती मायावती की सरकार ने पार्कों और स्मारकों में लगवाया था. इन पत्थरों की कटिंग, उन पर नक्काशी करने और उन्हें लगाने का काम राजस्थान के मजदूर कर रहे थे. इन पत्थरों की कटिंग और नक्काशी के काम में भारी धूल उड़ रही थी, पर किसी भी मजदूर के पास मास्क नहीं था. पूछने पर राजस्थान के धौलपुर के रहने वाले मजदूरों ने जांच टीम को बताया कि धूल-गर्द से बचने के लिए उन्हें गुड़ और मास्क नहीं दिया जाता.

इस धूल के कारण कई मजदूरों के फेफड़े छलनी हो जाते हैं और उन्हें टीबी जैसी बीमारियां हो रही हैं. टाइल्स और पत्थर कटिंग का काम करने वाले मजदूरों के लिए तिरपाल का शेड तक नहीं लगवाने के कारण मजदूरों को इस भीषण गर्मी में धूप में काम करना पड़ रहा है. मजदूरों को सेफ्टी बेल्ट भी उपलब्ध नहीं कराया गया है. सेफ्टी बेल्ट और जाल का सही उपयोग कराने के लिए लगातार निरीक्षण करने का सरकारी नियम इस जगह बेमानी है.

जांच टीम ने देखा कि सबसे ऊपरी मंजिल पर काम कर रहे मजदूरों ने सेफ्टी बेल्ट नहीं लगाया हुआ था और बेहद अव्यवस्थित और फटे हुए जाल लगे हुए थे. जबकि दो माह पूर्व इसी बिल्डिंग से गिरकर दो मजदूरों की मौत हो चुकी है. एसी फिटिंग का काम कर रहे रायबरेली के मजदूरों ने जांच टीम को बताया कि उन्हें न्यूनतम मजदूरी भी नहीं मिलती है. न्यूनतम मजदूरी नहीं दिए जाने की शिकायत शटरिंग से लेकर हर जगह काम करने वाले मजदूरों ने की.

यह भी पाया गया कि निर्माणाधीन भवन में मजदूरों से 12 घंटे काम कराया जा रहा है, लेकिन आठ घंटे काम के 250 रुपये और शेष चार घंटे काम के सिंगल ओवरटाइम के हिसाब से 125 रुपये ही मिलते हैं. जबकि उत्तर प्रदेश में अकुशल मजदूर की न्यूनतम मजदूरी 273 रुपये, अर्ध-कुशल मजदूर की 300 रुपये और कुशल मजदूर की न्यूनतम मजदूरी 350 रुपये है. किसी भी मजदूर से आठ घंटे से अधिक काम कराने पर यूपी भवन एवं सन्निर्माण नियम-2009 की धारा-39 के तहत मजदूरी के दुगने की दर से भुगतान करना होगा. बोनस, ईपीएफ, वेतन किताब, रोजगार कार्ड तो किसी भी मजदूर को नहीं मिलता है. यहां तक कि टीम ने पाया कि कई मजदूरों का अभी भी कर्मकार कल्याण बोर्ड में रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ है.

मजदूरों के लिए कानून और नियम के तहत बने कोई भी कल्याणकारी प्रावधान यहां लागू नहीं हैं. जांच टीम ने पाया कि मजदूरों के लिए साफ पेयजल तक की व्यवस्था नहीं है. मजदूरों ने बताया कि पानी के कुछ पाइप लगे हैं, पर उनमें भी कभी-कभी तीन-तीन दिन तक पानी नहीं आता. वहां बने हुए शौचालय खराब पड़े हुए पाए गए. प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधा की कोई व्यवस्था नहीं थी. जबकि कानून के अनुसार ऐसे निर्माणस्थल पर बकायदा एम्बुलेंस और डाक्टरों की व्यवस्था रहनी चाहिए. मजदूरों के स्वास्थ्य के नियमित परीक्षण के बारे में पूछने पर मजदूरों ने बताया कि ऐसा कोई परीक्षण नहीं कराया जाता.

कुछ मजदूरों के लिए जो अस्थायी आवास की व्यवस्था की गई है उनकी हालत बेहद खराब है. श्रम विभाग ने घोषणा की थी कि यहां काम करने वाले मजदूरों को 10 रुपये में खाना उपलब्ध कराया जाएगा, लेकिन इसके बारे में मजदूरों ने बताया कि शुरुआत में तीन दिन सस्ता खाना आया पर उसके बाद बंद हो गया.

फ्रंट ने मजदूरों के साथ हो रहे ऐसे अमानुषिक बर्ताव की तीखी निंदा करते हुए कहा कि प्रदेश सरकार अखबारों में बड़े-बड़े विज्ञापन देकर यह बताने में लगी है कि वह मजदूरों के हित की बड़ी योजनाएं चला रही है, लेकिन सत्ता के ठीक नीचे मजदूरों की जिंदगी दांव पर चढ़ी हुई है. फ्रंट के नेताओं ने लखनऊ के उप-श्रमायुक्त से मिलकर उन्हें ज्ञापन दिया और भवन व अन्य सन्निर्माण कर्मकार (नियोजन तथा सेवा शर्त विनियमन) अधिनियम-1996 और यूपी भवन एवं सन्निर्माण (नियोजन तथा सेवा शर्त विनियमन) नियम-2009 के प्रावधानों को सख्ती से लागू कराने की मांग की. उप-श्रमायुक्त को मजदूरों की दुर्दशा की विस्तृत रिपोर्ट भी दी गई.

लोगों की मौत का सबब बन रहा लखनऊ मेट्रो

राजधानी लखनऊ में लखनऊ मेट्रो का काम तेजी से चल रहा है, लेकिन कभी पुल का पूरा मलबा गिर जा रहा है तो कभी पुल ही धराशाई हो जा रहा है. इससे मेट्रो के काम की गुणवत्ता पर सवाल उठ रहे हैं. निर्माणाधीन लखनऊ मेट्रोे का एक पुल आलमबाग के पास पिछली 17 अप्रैल को धराशाई हो गया, जिसमें एक मजदूर की मौत हो गई. हादसे में कम से कम दर्जनभर मजदूरों और आम लोगों को गंभीर चोटें आईं. दुर्घटना का दिन अगर रविवार नहीं होकर कोई अन्य काम-काज वाला दिन होता तो यह बड़े हादसे की शक्ल ले लेता. घटना के पीछे की वजह क्या है, इसके बारे में आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है, लेकिन सरकार का अपना अंदाज है, वह वजहों का पता लगाएगी और इस क्रम में असली वजह खा जाएगी.

घटना के बाद तमाम बड़े अधिकारी मौके पर पहुंचे और हादसे का जायजा लिया, उन्हें भी कारण समझ में आ गया, उनमें से कई अधिकारियों को तो कारण के बारे में पहले से पता है. लेकिन सरकारी औपचारिकता भी तो कोई चीज होती है. इससे पहले भी सरोजनीनगर के पास दो अप्रैल को मेट्रोे की छत गिर गई थी, जिसमें कार के ऊपर छत का कच्चा मसाला गिर गया था. उसमें कोई घायल तो नहीं हुआ था, लेकिन एक कार बर्बाद हो गई थी. कुछ अर्सा पहले भी कृष्णानगर क्षेत्र में मेट्रोे ट्रैक के पिलर से डम्पर टकरा गया था. बेकाबू डम्पर की जोरदार टक्कर से पिलर का ढांचा एक तरफ झुक गया था. हादसे में कोई मेट्रोे कर्मी घायल नहीं हुआ था, लेकिन पूरे पिलर को फिर से बनाना पड़ा.

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