नरेंद्र मोदी का भाषण हमें खुश कर सकता है. उनकी अपील में जो उन्होंने नक्सलवादियों से की, उसमें हम सार्थकता देख सकते हैं. लेकिन, अगर नरेंद्र मोदी इसके साथ यह घोषणा करते कि विकास कार्यों में होने वाला भ्रष्टाचार किसी क़ीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, तो शायद ज़्यादा सार्थक नतीजा निकलता. नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हैं, उन्हें इस बात का एहसास होगा कि देश के 272 से ज़्यादा ज़िले नक्सलवाद से प्रभावित हैं. 
hindi-pa-1आख़िर क्या फ़़र्क पड़ता है, अगर आज़ादी की 68वीं वर्षगांठ पर हम खुश नहीं हैं. क्या फ़़र्क पड़ता है कि देश के लिए शिद्दत और गहराई से सोचने वाले लोग खुश नहीं हैं. और, इससे भी क्या फ़़र्क पड़ता है कि हमने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जो आशाएं लगा रखी थीं, वे पूरी तरह से पूरी होती नहीं दिखाई दे रहीं. खुश इस बात से होना चाहिए कि देश का एक बड़ा तबका लाल किले से दिए गए नरेंद्र मोदी के भाषण से स्वयं को काफी उत्साहित महसूस कर रहा है, स्वयं को उत्तेजना में महसूस कर रहा है और उसे लगता है कि देश के लिए एक नए रास्ते की दिशा नरेंद्र मोदी ने दिखाई है. हमें भी लोगों की इस खुशी में शामिल होना चाहिए और हम स्वयं को इस खुशी में शामिल करना ज़रूरी मानते हैं.
दरअसल, यह खुश होने वाले लोग बहुत आशावान लोग हैं, जो अपनी ज़िंदगी में बदलाव लाने, खुशियां लाने के लिए किसी भी तरह की आशा को एक बड़े बदलाव के संकेत के रूप में देखते हैं. जब श्रीमती इंदिरा गांधी ने ग़रीबी हटाओ का नारा दिया, तो आज खुश होने वाले लोगों के पूर्वजों में बहुत सारे ऐसे थे, जो खुश हुए थे. जब इंदिरा गांधी ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया था, तब लगा था कि अब बैंक इस देश के सामान्य लोगों के साथ खड़े हो जाएंगे और देश के चौदह बड़े घरानों की कैद से अर्थव्यवस्था को आज़ाद कराएंगे. ये खुश होने वाले लोग राजीव गांधी के उस बयान से भी बहुत खुश हुए थे, जिसमें उन्होंने कहा था कि इस देश की जनता तक स़िर्फ 15 पैसे पहुंच पाते हैं, बाकी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाते हैं. तब लोगों को लगा था कि अब उल्टा हो जाएगा, 85 प्रतिशत जनता के पास पहुंचेगा और 15 प्रतिशत भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ेगा.
खुश होने वाले लोग विश्‍वनाथ प्रताप सिंह के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में शामिल होकर भी खुश हुए थे और उन्हें लगा था कि यह देश अब भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ अभियान में किसी भी तरह की कोताही बर्दाश्त नहीं करेगा और न भ्रष्टाचार का आचरण पसंद करेगा. अटल बिहारी वाजपेयी के सत्ता में आते ही यह देश इस आशा में खुश हो गया था कि अब पाकिस्तान से रिश्ते भी बनेंगे और इस देश में टकराव की राजनीति भी ख़त्म हो जाएगी. इसके पहले हमारा देश जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के फलस्वरूप बनी जनता पार्टी की सरकार के समय भी बहुत खुश हो गया था. लोगों को लगा था कि यह देश संपूर्ण रूप से बदल जाएगा, पर देश नहीं बदला.
लाल किले से नरेंद्र मोदी जी के भाषण ने यह आशा जगाई कि अब शायद देश कम से कम सामाजिक मुद्दों पर कुछ और अधिक जागरूक हो जाएगा. नरेंद्र मोदी के भाषण ने यह भी आशा जगाई कि जिन सवालों पर हम नहीं सोचते हैं, जैसे सफाई, भू्रण हत्या, शताब्दियों से चली मैला ढोने की अमानवीय प्रथा, शौच के लिए ज़्यादातर ग्रामीण महिलाओं का खेतों में जाना आदि का समाधान संभव है. नरेंद्र मोदी के भाषण ने भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ तकनीक के इस्तेमाल की संभावनाएं जताईं. नरेंद्र मोदी के भाषण ने लोगों को आगाह किया कि वे लड़कियों की तरह लड़कों से भी सवाल पूछें और बलात्कार जैसे अपराधों को दूर करने में उनकी क्या भूमिका है, इसे वे अपेक्षित ढंग से पूरा करें. एक अच्छा भाषण, अविरल भाषण, सोच-समझ कर दिया गया हृदय से भाषण, लेकिन एक समाज सुधारक का भाषण.
नरेंद्र मोदी के इस भाषण ने कम से कम यह तो बताया कि उनमें पिछले दस सालों से प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह से ज़्यादा समझ है, उनमें लोगों की समस्याओं को देखने की क्षमता मनमोहन सिंह से ज़्यादा है और वह इस देश को मनमोहन सिंह से ज़्यादा समझते हैं. ये सारी बातें ज़रूरी थीं, लेकिन हम नरेंद्र मोदी को इस देश के असाधारण नेता के रूप में देखना चाहते थे. असाधारण नेतृत्व वह होता है, जो सारे देश को नए विकास का रास्ता दिखाए. विकास का रास्ता शायद वह नहीं है, जिसे नरेंद्र मोदी बताना चाहते हैं. दुनिया के लोग आएं, भारत की चीजें सारी दुनिया में बिकें और भारत दुनिया के बाज़ारों में मेड इन इंडिया की मुहर लगी वस्तुएं भर दे, यह कहना और सौ प्रतिशत विदेशी पूंजी निवेश को भारत में आमंत्रित करना परस्पर विरोधी दृष्टिकोण हैं. हम इस बात से आशांवित थे कि नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वदेशी के सिद्धांत को आर्थिक नीतियों में लागू करेंगे. वह बजट में संभव नहीं हो पाया, लेकिन रोडमैप के रूप में हम आशा करते थे कि 15 अगस्त को इसकी घोषणा होगी, लेकिन शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अभी स्वयं इसके लिए तैयार नहीं हैं. चूंकि नरेंद्र मोदी तैयार नहीं हैं, इसलिए देश भी इसके लिए तैयार नहीं है.
हमारी अपेक्षा थी कि नरेंद्र मोदी इस स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले के प्राचीर से दिए अपने पहले संबोधन में यह घोषणा करेंगे कि वह इस देश के गांवों को उद्योगों की बुनियादी इकाई के रूप में स्थापित करेंगे. जब तक उद्योग गांव में नहीं पहुंचते और गांवों को कृषि आधारित उपज के फिनिश प्रोडक्ट की फैक्ट्री के रूप में विकसित नहीं किया जाता, तब तक यह देश दुनिया के सामने आर्थिक शक्ति नहीं बन सकता. जिस दिन यह निर्णय होगा कि इस देश के गांवों को औद्योगिक इकाई के रूप में विकसित किया जाएगा, उसी दिन से चाहे सड़कें हों, संचार हो, बिजली हो, इन सारी चीजों में बदलाव आना शुरू हो जाएगा. लेकिन, जब तक इसका फैसला नहीं होता, तब तक सड़कें, बिजली, संचार यानी सब कुछ स़िर्फ वहीं दिखेंगे, जहां एसईजेड बनेंगे. वहीं पानी जाएगा, सड़क जाएगी, बिजली जाएगी, जहां विदेशी कंपनियां सौ प्रतिशत उत्पादन इकाइयां लगाएंगी. माल यहां बनेगा, लेकिन यहां के लोगों को रोज़गार स़िर्फ उतना ही मिलेगा, जितना जीने के लिए ज़रूरी है. सारा मुनाफा, सारा फ़ायदा विदेशों में जाएगा.
हमारी यह अपेक्षा थी कि साल या दो साल में पूरे होने वाले लक्ष्य की घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे. इनमें पहला लक्ष्य है, देश में सौ प्रतिशत बिजली या ऊर्जा का उत्पादन. यह सब बड़ी आसानी से हो सकता है, अगर हम बड़ी विद्युत उत्पादन कंपनियों का मोह छोड़ दें. कोयला अगले बीस सालों में लगभग समाप्त होने की दिशा में पहुंच जाएगा, इसलिए हमें अपने कोयले के भंडार को बचाना चाहिए. पानी की कोई योजना हमारे देश में नहीं है. नदियां सूख रही हैं, इसलिए जल आधारित विद्युत उत्पादन इकाइयां लगाना लाभदायक नहीं है. हमारे देश में जिस एक चीज की प्रचुर मात्रा में उपलब्धता है, वह है सौर ऊर्जा. सारे देश को सौर ऊर्जा की शक्ति से दो सालों में पूर्णतय: भरा जा सकता है. इसमें सरकार को एक पैसा खर्च नहीं करना है. उसे चाहिए कि वह देश और विदेश के सौर ऊर्जा उत्पादन करने वालों से कहे कि वे अपनी लागत से सौर ऊर्जा उत्पादन इकाई लगाएं और जब वे बिजली बना लें, तब उसे सरकार एक निश्‍चित दर पर खरीद ले. इसका उदाहरण स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गुजरात है, जहां उन्होंने 15 रुपये प्रति यूनिट बिजली जो सौर ऊर्जा निर्मित है, खरीदी है. 15 रुपये से एक-दो रुपये कम या ज़्यादा सारे देश में प्रति यूनिट भाव घोषित करके सारी कंपनियों को, जो सौर ऊर्जा के क्षेत्र में काम करती हैं, हिंदुस्तान आमंत्रित करना चाहिए. और, दो साल तब बीतेंगे, जब हमारे देश में विद्युत उत्पादन सौ प्रतिशत हो जाएगा, सर्वसुलभ हो जाएगा और न केवल घर के लिए, उद्योगों के लिए, सिंचाई के लिए, बल्कि हर चीज के लिए हमें बिजली मिल जाएगी.
दूसरी घोषणा गांव को दो सालों में औद्योगिक इकाइयों के रूप में परिवर्तित करने की हो सकती थी. इस देश में पढ़े-लिखे बेरोज़गारों से ज़्यादा ग़ैर पढ़े-लिखे बेरा़ेजगार हैं, जिन्हें पढ़ाई का अवसर इसलिए नहीं मिला, क्योंकि उनके पास कोई सुविधा नहीं थी, साधन नहीं थे. उन्हें पढ़ने के बाद नौकरी मिलने की उम्मीद भी नहीं थी. इसलिए गांव को औद्योगिक इकाइयों में परिवर्तित करने की योजना बने, तो यह देश बेरोज़गारी से मुक्ति पा सकता है. दो घोषणाएं और की जा सकती थीं कि यह देश सर्वसुलभ शिक्षा और सर्वसुलभ स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में आत्मनिर्भर हो जाएगा. इन घोषणाओं की जगह नरेंद्र मोदी ने एक समाज सुधारक की तरह भाषण दिया.
नरेंद्र मोदी का भाषण हमें खुश कर सकता है. उनकी अपील में जो उन्होंने नक्सलवादियों से की, उसमें हम सार्थकता देख सकते हैं. लेकिन, अगर नरेंद्र मोदी इसके साथ यह घोषणा करते कि विकास कार्यों में होने वाला भ्रष्टाचार किसी क़ीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, तो शायद ज़्यादा सार्थक नतीजा निकलता. नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हैं, उन्हें इस बात का एहसास होगा कि देश के 272 से ज़्यादा ज़िले नक्सलवाद से प्रभावित हैं. नरेंद्र मोदी को इस बात का भी एहसास होगा कि यह नक्सलवाद शौकिया नहीं उपजा है. इन 272 ज़िलों में सैकड़ों किलोमीटर के बीच न सड़कें हैं, न अस्पताल हैं, न शिक्षा है, न उद्योग का दूर-दूर तक कोई निशान है. यहां के लोग जीते किस तरह हैं, यह जानना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए बहुत ज़रूरी है. और, यही वह ज़मीन है, जो लोगों को उस व्यवस्था से निराश करती है, जो आज़ादी के बाद से प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के समय बनी और आज जब प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी हैं, तक चली आ रही है. यह व्यवस्था लोगों को निराश करती है और उन्हें हथियार उठाने के लिए प्रेरित करती है, क्योंकि तब उन्हें लगता है कि हम क्यों नहीं लूट कर, छीन कर, कम से कम ज़िंदा तो रहें.
नरेंद्र मोदी ने बहुत महत्वपूर्ण बात देश की बड़ी संख्या के लिए कही, जो लगभग 40 प्रतिशत के आसपास है, जिसका बैंक खाता नहीं है, उसे बैंक से जोड़ने की बात की और कहा कि जिनका खाता बैंक में खुलेगा, उन्हें बीमा से एक लाख रुपये की सुविधा मिलेगी. यह खासकर किसानों के लिए है, जिसे उन्होंने किसानों की आत्महत्या से जोड़ा है. हम इस घोषणा का हृदय से स्वागत करते हैं, लेकिन अगर हम इसमें रास्ता तलाशें, तो हमें किसान को उसकी उपज का सही मूल्य मिले या उसकी कृषि लागत सस्ती हो, इसका रास्ता नज़र नहीं आता. हमें स़िर्फ यह समझ में आता है कि अगर कोई किसान आत्महत्या करता है, तो बीमा कंपनी एक लाख रुपये उसके परिवार को देगी. अगर किसान की किसी दुर्घटना में मौत होती है, तो भी उसके घर वालों, आश्रितों को एक लाख रुपये की मदद मिलेगी. हम इसका स्वागत करते हैं, लेकिन इसकी जगह अच्छा होता, अगर नरेंद्र मोदी किसानों के लिए कृषि लाभकारी कैसे हो, इसका खाका पेश करते.
हम अगर नरेंद्र मोदी को मनमोहन सिंह जैसे प्रधानमंत्री के रूप में देखें, तो हमें उनके भाषण में कोई कमी या लोचा दिखाई नहीं देता. लेकिन अगर 67 साल के बाद 68वें जन्मदिन पर भी हिंदुस्तान के लोगों को स़िर्फ और स़िर्फ अच्छे शब्द, अच्छे वाक्य, अच्छे सपने ही मिलने हैं, तो फिर हमारे लिए नरेंद्र मोदी असाधारण प्रधानमंत्री नहीं हैं, महानायक नहीं हैं, इतिहास पुरुष नहीं हैं. लेकिन, फिर भी हमें आशा है कि नरेंद्र मोदी साल बीतते-बीतते इस देश की जनता को बाज़ार के उस दुष्प्रभाव, बाज़ार के उस शोषण से मुक्त करा लेंगे, जो उसे विकास की परिधि से बाहर रखे हुए है. और, नरेंद्र मोदी पूरी विकास की योजना इस तरह बनाएंगे, जिससे विकास स़िर्फ 20 प्रतिशत लोगों के लिए न हो, बल्कि 70 से 80 प्रतिशत जनता के लिए हो. इस स्वतंत्रता दिवस पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इतनी आशा तो करनी ही चाहिए. इसीलिए तो हमने कहा कि क्या हुआ, अगर हम खुश नहीं हैं. लेकिन, हम खुश नहीं हैं, तो भी प्रधानमंत्री जी, हम शपथ के साथ आपसे कहते हैं कि इस देश के वे सारे लोग खुश नहीं हैं, जो रोजाना ज़िंदगी का दर्द झेलते हैं, जो रोजाना बाज़ार के दिए हुए घाव झेलते हैं, जो रोजाना अपने सपनों को मरते हुए देखते हैं, जो रोजाना हाथ में हथियार उठाने के बारे में सोचते हैंया फिर मर जाने का ़फैसला लेने का साहस जुटाते हैं. ऐसे लोग देश में 70 प्रतिशत हैं. उनकी आंखों में संभावनाओं का सूरज उगाइए, यह हमारा आपसे अनुरोध है.


दस अहम घोषणाएं  

  • योजना आयोग की जगह नई संस्था का गठन.
  • सांसद निधि से एक साल तक स्कूलों में शौचालयों का निर्माण. दो अक्टूबर से देश भर में सफ़ाई अभियान शुरू किया जाएगा.
  • संसद ग्राम योजना के तहत हर सांसद अपने क्षेत्र के एक गांव को आदर्श ग्राम बनाएगा.
  • प्रधानमंत्री जन-धन योजना के माध्यम से ग़रीबों को बैंक से जोड़ा जाएगा और हर खाताधारक को डेबिट कार्ड और एक लाख रुपये की बीमा सुरक्षा मुहैया कराई जाएगी.
  • देश को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाया जाएगा, भारत आयातक से निर्यातक बनेगा.
  • स्किल इंडिया के माध्यम से विकास को मिशन बनाने का संकल्प. प्रवासी भारतीयों को भी देश के निर्माण में भागीदारी का निमंत्रण.
  • देश के विकास के लिए पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल की ज़रूरत.
  • महिलाओं के खिलाफ़ अपराध और कन्या भ्रूण हत्या ख़त्म करने पर विशेष बल.
  • ई-गवर्नेंस, मोबाइल गवर्नेंस और टूरिज़्म से विकास को गति दी जाएगी.
  • सांप्रदायिकता और हिंसा ख़त्म करने की अपील. कहा, ख़ून से धरती लाल ही होगी और कुछ नहीं मिलेगा.

 
 

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