dhobaराज्य की महत्वाकांक्षी डोभा निर्माण योजना भी घोटालों की भेंट चढ़ गया. गांव एवं खेतों में बने गड्ढे का फोटो अपलोड कर इसे डोभा दिखा दिया गया और अधिकारियों एवं बिचौलियों का गठजोड़ फिर एक बार सरकारी राशि हड़पने में कामयाब रहा. मुख्यमंत्री रघुवर दास द्वारा इस योजना की शुरुआत ही गलत समय पर हुई. मई, 2016 में वर्षा जल संचयन के लिए सरकार ने डेढ़ लाख डोभा बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया. मुख्यमंत्री ने तल्ख लहजे में हर हाल में डोभा निर्माण का लक्ष्य प्राप्त करने का निर्देश दिया. एक डोभा के लिए 25 हजार रुपये की राशि स्वीकृत की गयी. अधिकारियों एवं ठेकेदार मुख्यमंत्री द्वारा निर्धारित लक्ष्य से भी आगे निकल गये. कागजों में पौने दो लाख से भी अधिक डोभा का निर्माण हो गया. बरसात में बने छोटे-छोटे गड्ढों का फोटो, वेबसाईट पर अधिकारियों ने वाहवाही भी लूट ली, पर झारखण्ड में अभी तक योजनाओं का जो हाल होता रहा है, वही इस योजना का भी हुआ. अधिकारी एवं ठेकेदार तो मालामाल हो गये, पर जमीन सूखी ही रह गयी.

आनन-फानन में शुरु की गयी योजना में यह जाहिर है कि काम कैसा हुआ होगा. पहले मनरेगा से इस योजना को जोड़ा गया और यह निर्णय लिया गया कि मजदूरों से काम कराये जायेंगे. बाद में इस योजना से ग्रामीण विकास विभाग, कृषि एवं पेयजल स्वच्छता विभाग को जोड़ा गया। मजदूरों से काम नहीं कराकर जेसीबी मशीनों से डोभा की खुदाई होने लगी, परिणाम यह हुआ कि अधिकांश डोभा बेतरतीब ढंग से बने, चैड़ाई-लंबाई तो कम रहे पर मशीनों से खुदाई के कारण गहराई ज्यादा हो गयी. डोभा के चारों ओर घेराबंदी भी नहीं की गई और न ही खुदाई से निकले मिट्टी से चारों ओर ऊंची मेड़ें बनायी गयी. बरसात के दिनों में इन गड्ढों में लबालब पानी भर गये तो आसपास की आबादी नहाने एवं अन्य कामों के लिए इन तालाबों में आने लगे, सुरक्षा के कोई मानक इन डोभा में नहीं होने के कारण दुर्घटनाएं घटित होने लगी. अभी तीन माह में राज्य के विभिन्न भागों में हुई घटना में तीन दर्जन से अधिक बच्चों की डूबने से दुःखद मौत हो गयी. डूबने से लगातार हो रही मौत ने सरकार को भी झकझोर कर रख दिया. विभिन्न सामाजिक संगठन एवं राजनीतिक दलों ने भी सरकार पर निशाना साधना शुरु किया और आरोप लगाये कि घोटालों के लिए जगह-जगह गड्ढा बना दिया गया, जिसके कारण आये दिन नौनिहालों की मौत हो रही है. सरकार की लगातार हो रही फजीहत के बाद सरकार ने समाचार-पत्रों में बड़े-बड़े विज्ञापन प्रकाशित कराकर लोगों से डोभा के पास नहीं जाने की अपील की, साथ ही डोभा के चारों तरफ लाल झंडा लगाने का निर्देश दिया. राज्य सरकार डोभा में डूबने से हुई मौत के लिए मुआवजा देने की भी घोषणा की और एक जान की कीमत पचास हजार आंकी गयी.

अब सवाल यह उठता है कि आखिर इस तरह का डोभा का निर्माण कराया ही क्यों गया, जहां कोई जा ही नहीं सकता. राज्य सरकार ने राज्य में लगातार गिर रहे जलस्तर में सुधार लाने के लिए वर्षा जल के संचयन का निर्णय लिया, इसके तहत 30 फीट लंबाई-चैड़ाई एवं दस फीट गहराई वाले डेढ़ लाख डोभा बनाने का लक्ष्य इस वित्तीय वर्ष 2016-17 में निर्धारित किया गया. यह कहा गया कि इस डोभा के पानी से किसान खेती भी कर सकेंगे, पर अधिकांश डोभा में जमे पानी का उपयोग किसान नहीं कर पा रहे हैं, वे डर से डोभा के नजदीक नहीं जा रहे हैं, उन्हें यह डर सताता है कि कहीं फिसलन के कारण गहराई में न चले जायें.

सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद् एवं वैज्ञानिक डॉ. नीतीश प्रियदर्शी का कहना है कि डोभा स्थल का चयन ही गलत हुआ, इसे घनी आबादी बच्चों के स्कूल से दूर बनाना चाहिए. 30 फीट चैड़ी, लंबी एवं दस फीट गहराई वाले डोभा सीढ़ीनुमा बनाये जाते हैं, साथ ही डोभा से निकली मिट्टी से चारों तरफ ऊंचे मेड़ के साथ ही झाड़ियों से इसकी घेराबंदी जरुरी है. फिसलन रोकने के लिए डोभा के किनारे घास लगानी चाहिए, बड़े पेड़ों को लगाना चाहिए, इससे हमें पर्यावरण को संतुलित करने में भी लाभ मिलता, पर डोभा निर्माण के समय कोई मानक नहीं अपनाया गया, इस पर अधिकारियों ने भी ध्यान नहीं दिया, जिसके कारण घटनाएं घट रही है.

राज्य के ग्रामीण विकास मंत्री नीलकंठ सिंह मुण्डा का मानना है कि राज्य में भूगर्भ जलस्तर तेजी से गिर रहा है, जो चिंता का विषय था, इसी सोच के तहत राज्य सरकार ने यह महत्वाकांक्षी योजना बनायी, इससे दो लाभ था, एक तो वर्षा का जल जो बर्बाद होता था, उसे रोका गया, साथ ही किसानों को इससे खेती करने में मदद मिलेगी. उन्होंने कहा कि कहीं-कहीं हो सकता है डोभा निर्माण में गड़बड़ी हुई हो, इसकी जांच करायी जायेगी.

इससे पूर्व भी तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुण्डा ने भी एक लाख तालाब बनवाने का फैसला लिया था. यह काम भी युद्ध स्तर पर शुरु हुआ, पर इस काम में जमकर घपले-घोटाले हुए. तालाब बनाने में केवल औपचारिकता ही निभाया गया. ठेकेदार एवं अधिकारियों ने बरसात में काम कराकर सरकारी राशि का गबन कर लिया था, पर पूरे मामले पर पर्दा डाल दिया गया।

कुछ यही हाल इस योजना का भी हुआ है, अगर इसकी जांच करायी जाय, तो करोड़ों का घोटाला उजागर होगा और कई अधिकारियों एवं ठेकेदारों पर गाज गिर सकती है. अब देखना है कि भ्रष्टाचार समाप्त करने की बात कहने वाले मुख्यमंत्री रघुवर दास कौन-सा कदम उठाते हैं.

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