अलीबाबा के जनरल मैनेजर चेन यान ने हाल में एक चायनीज पत्रिका को बताया कि अलीबाबा पिछले एक साल से पेटीएम के साथ टेक्नोलॉजी और बिजनेस मॉडल साझा कर रहा है. मजेदार बात ये है कि अलीबाबा जिस तकनीक के तहत चीन में मोबाइल पेमेंट की सुविधा दे रहा है, वही तकनीक पेटीएम भारत में अलीबाबा की मदद से भारत में लागू कर रहा है. अलीबाबा चीन में क्विक रिस्पॉन्स यानी क्यूआर कोड पेमेंट टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करता है. इसमें दुकानदार मोबाइल फोन में बारकोड के जरिए भुगतान करता है.

विजय शेखर शर्मा ने कई बार चीन का दौरा किया है, जहां उन्होंने हैंगज्झू शहर स्थित अलीबाबा के हेडक्वार्टर जाकर इस तकनीक को देखा. शर्मा स्वयं एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं. अलीबाबा की तकनीक देखकर वे हैरान रह गए. उन्होंने बताया कि जब उन्होंने चीन जाकर इस तकनीक को समझा, तब उन्हें इस तकनीक के जरिए भुगतान करने की बात पर भरोसा हुआ. इसका मतलब यह है कि अलीबाबा की टेक्नोलॉजी के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं थी.

यहां ये शक पैदा होता है कि आखिर एक ऐसी तकनीक को पेटीएम भारत में क्यों लागू करना चाह रहा है, जिसके बारे में उसे ज्यादा जानकारी ही नहीं है. भविष्य में अगर कोई गड़बड़ी हुई या लोगों का पैसा डूबा या फिर देश की अर्थव्यवस्था पर इसका बुरा असर पड़ा, तो इसकी जिम्मेदारी किसकी होगी? तब क्या वो ये कहेंगे कि उन्हें इस तकनीक के बारे में कोई जानकारी नहीं थी.

एक सवाल, जो किसी के भी दिमाग में उठ सकता है कि आखिर अलीबाबा तो एक कंपनी ही है, उससे इतना खतरा क्यों है? पहली बात यह कि ये कंपनी चीन की है. चीन से हमारे रिश्ते अच्छे नहीं कहे जा सकते हैं. चीन और पाकिस्तान दोनों मिल कर भारत को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं चूकते हैं.

भविष्य में भारत-चीन बॉर्डर, आतंकवाद, तिब्बत और दूसरी वैश्विक घटनाओं को लेकर भारत-चीन में टकराव की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है. इसके अलावा पिछले एक दशक से भारत में मोबाइल नेटवर्क से जुड़ा सारा हार्डवेयर और तकनीक चीन से आ रहा है. इसे लेकर भी कई सुरक्षा विशेषज्ञों ने आगाह किया है.

भारत के मोबाइल नेटवर्क पर चीन का कब्जा है. अब पेटीएम के जरिए चीन की एक और कंपनी आर्थिक क्षेत्र में न सिर्फ घुस रही है, बल्कि एकछत्र कब्जा जमाना भी शुरू कर दिया है. समझने वाली बात ये है कि अलीबाबा जैसी विशालकाय कंपनी को अच्छी तरह से ये पता होगा कि भारत का इंटरनेट इंफ्रास्ट्रक्चर चीन की तरह नहीं है. दोनों में जमीन-आसमान का अंतर है.

भारत में स्मार्टफोन की पहुंच बहुत ही कम है. इसके अलावा यहां इंटरनेट की स्पीड भी बहुत कम है. लोगों का आर्थिक व शैक्षणिक स्तर भी वैसा नहीं है. इसे बहुत कम लोग आसानी से इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके अलावा यहां इंटरनेट और मोबाइल की मूलभूत सुविधाएं ऐसी हैं कि यह लोगों के ट्रांजेक्शन का भार नहीं सह सकती है. इससे पूरा सिस्टम कोलैप्स होने की आशंका हमेशा बनी रहती है. जहां तक बात मोबाइल नेटवर्क की है, तो देश में आलम ये है कि एक साधारण कॉल भी सही-सही, बिना बीच में कटे पूरी नहीं होती है.

इस हकीकत के बावजूद अगर दुश्मन देश की कोई कंपनी 500 मिलियन डॉलर से ज्यादा एक नई कंपनी में निवेश कर दे, तो इसका मतलब साफ है कि इस कंपनी का मकसद सिर्फ मुनाफा कमाना नहीं हो सकता है. वो भी वैसा दुश्मन देश, जहां की सारी कंपनियां सरकार के नियंत्रण से बाहर नहीं हैं. क्या सरकार ने अलीबाबा जैसी कंपनियों को भारत में बे रोक-टोक काम करने देने से पहले इन खतरों का आकलन किया है?

अलीबाबा और पेटीएम के समझौते का एक और खतरनाक पहलू ये है कि दोनों कंपनियां दोनों देशों के उपभोक्ताओं और विक्रेताओं को अपने नेटवर्क से जोड़ेंगी. अलीबाबा के वरिष्ठ टेक्निकल एक्सपर्ट याओ मिन के मुताबिक, पेटीएम ने अलीबाबा के जिस तकनीक को अपनाया है, उससे चीनी उपभोक्ता भविष्य में भारत में क्यूआर कोड के जरिए भुगतान करने में सक्षम हो जाएगा. इसका मतलब यह है कि अब कोई भी व्यक्ति या बिजनेसमैन, जो चीन से कोई सामान खरीदता या बेचता है, वो पेटीएम के जरिए सीधे भुगतान कर सकता है.

यह फेमा का उल्लंघन हो सकता है, क्योंकि विदेश जाने वाला हर व्यक्ति कितना पैसा बाहर ले जा सकता है, उसकी एक सीमा है. अगर अलीबाबा और पेटीएम के जरिए भुगतान करने की व्यवस्था कायम हो जाती है, तो इस सीमा का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा. लोग चीन जाकर पेटीएम के जरिए जितना मन चाहे उतना पैसा भुगतान कर सकते हैं.

चीन से कोई भी समझौता करने से पहले हमें यह ध्यान रखना होगा कि चीन की महत्वाकांक्षा एक विश्वशक्ति बनने की है. भारत के साथ उसके रिश्ते अच्छे नहीं हैं. हकीकत ये भी है कि बिना चीनी सरकार की सहमति के वहां की कोई भी कंपनी विदेश में काम नहीं कर सकती है. हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि कहीं इन कंपनियों के जरिए चीन दूसरे देशों की आर्थिक व्यवस्था में घुस कर उस पर कब्जा कर अपना वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश तो नहीं कर रहा है.

चीन कई देशों में अपने सस्ते सामान डंप कर वहां के उद्योगों को नष्ट तो कर ही चुका है और अब चीनी टेक्नोलॉजी व कंपनी के जरिए कैशलेस-भुगतान के बाजार पर कब्जा करने की फिराक में है. किसी भी विदेशी कंपनी का भारत की अर्थव्यवस्था में इस तरह से हस्तक्षेप संभव नहीं है. इसलिए चीनी कंपनी ने भारत के बाजार पर कब्जा करने के लिए पेटीएम को चुना. ऐसा लगता है कि पेटीएम चीनी कंपनी अलीबाबा का महज एक चेहरा है, जिसका काम सरकारी तंत्र को मैनेज करना और मीडिया में कंपनी को शुद्ध-देसी कंपनी साबित करने का प्रचार-प्रसार करना है.

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