जब आरफा खानम शेरवानी rstv से ‘द वायर’ में जा रही थीं तब उन्होंने सूचित किया कि मैं ज्वाइन कर रही हूं लेकिन अभी अपने तक रखिएगा। तब मुझे लगा था कि आरफा अब अपने व्यक्तित्व को और मुखरता के साथ धार देने जा रही हैं। क्योंकि तब तक ‘वायर’ ने अपनी वह उर्वर जमीन तैयार कर ली थी जो आने वाले वक्त की बेबाकियों को बयान करने वाली थी। जिस तरह वक्त अपने साथ अपना इतिहास भी लिखता चलता है उसी तरह राजनीति भी अपना इतिहास लिख रही थी। मनमोहन सिंह के पराभव तक जो पत्रकारिता थी वह ‘वाचडाग’ की भांति अपनेपन के साथ मुस्तैद थी। लेकिन मोदी की सनसनी ने 2013 से ही हर किसी को अलर्ट पर रख दिया था। इसलिए वायर जैसी वेबसाइट और कैरेवान (कारवां) जैसी पत्रिका ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी दस्तक दी। आज हिंदुस्तान में वेबसाइट्स की भीड़ में अकेली वायर ऐसी वेबसाइट है जो उतनी ही सनसनी से मुस्तैद है। ‘पैगेसस’ के खुलासे के बाद तो वायर ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी एक अच्छा खासा मुकाम हासिल कर लिया है। पहले से ही वह ख्यात थी अब उसकी पहचान का दायरा और बढ़ा है। इस समय भारत में समानांतर मीडिया जिस भूमिका में आया है उसका इतिहास और फलसफा गजब तरीके से लिखा जाएगा। यह दरअसल अपने फर्ज का ऋण है जो हर किसी को चुकाना है। तभी देखिए वे सारे पत्रकार जो जासूसी के दायरे में आये हैं वे जान पर खेल कर रिपोर्टिंग करते हैं या मूल्यों की पत्रकारिता करते हैं।

वायर के अलावा ‘सत्य हिंदी’ और ‘न्यूज क्लिक’ की ओर बरबस ध्यान जाता है। इनके अतिरिक्त जो व्यक्तिगत रूप से अपनी अलग, पर इसी तेवर की भूमिका निभा रहे हैं। ये सब समानांतर पत्रकारिता को धार दे रहे हैं। उधर हमने देखा कि संतोष भारतीय की वेबसाइट ‘चौथी दुनिया’ के ‘लाउड इंडिया शो’ को दो बार यूट्यूब ने ब्लॉक किया। आखिर उन्हीं को क्यों। पता चला कि संतोष जी भी काफी समय से सत्ता के निशाने पर थे। हैरानी की बात है कि जिन संतोष भारतीय का व्यक्तिगत शो बेहद शालीन, बिना भड़काए अपनी बात कहने वाला हुआ करता है उससे भी सत्ता को क्यों डर है भला। लेकिन इस डर के पीछे संतोष जी की कहीं अतीत की भूमिकाएं और सक्रियता तो नहीं। पता नहीं। कहा नहीं जा सकता। पर हैरानी जरूर है।

‘सत्य हिंदी’ आजकल बहुत मुखर है। उसका पहला श्रेय तो आशुतोष को जाना ही चाहिए। सत्य हिंदी की सबसे बड़ी पहचान यह है कि वह बड़ी तेजी से वह सारी जगह कवर कर रहा है जो एक बड़ा चैनल कवर करके चलता है। अच्छी बात है। समाचार, इंटरव्यू, विश्लेषण, डिबेट सब कुछ है। डिबेट में कभी कभी उबाऊपन आता है। सत्य हिंदी के भीतर के आलोक जोशी, विजय त्रिवेदी और शीतल पी सिंह आकर्षित करते हैं। मुकेश कुमार का ‘सुनिए सच’ में उनका विश्लेषण जितना थकाऊ होता है उतने ही रोचक उनके ‘डेली शो’ हैं। नीलू व्यास के विषय आजकल बड़े धारदार होने लगे हैं। प्रस्तुति में भी वह तेवर आना चाहिए। प्रस्तुति में भाषा सिंह भी पिछड़ती हैं पर उनके भीतर का रिपोर्टर चुनिंदा विषयों पर बेहतरीन काम करवाता है। उर्मिलेश जी के संस्मरणों की पुस्तक आयी है जिस पर सत्य हिंदी ने चर्चा की। अच्छा लगा। पुण्य प्रसून वाजपेयी दस्तक और मास्टर स्ट्रोक का मिश्रण लेकर जो प्रस्तुत करते हैं वह ध्यान खींचता है।
NDTV समानांतर में बादशाह है और वह चलता है रवीश कुमार के साथ। रात नौ बजे के रवीश कुमार के शो का हर किसी को इंतजार रहता है। सबका उद्देश्य एक ही है। और वह है पत्रकारिता के उत्कृष्ट मूल्यों के साथ सत्ता के समक्ष बेखौफ खड़े होकर उसका सत्य उद्घाटित करना। वे सब ऐसा ईमानदारी के साथ कर रहे हैं। यह झूठी और निर्मम सत्ता जितनी जल्दी विदा हो उतनी जल्दी देश सामाजिक विद्वेष की आग से मुक्त हो जिसे इस सत्ता ने सुलगाया है। मोदी या मोदी जैसा चेहरा दोबारा सत्ता पर काबिज न हो सके। फिल वक्त तो इसी की कश्मकश है।

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