राम रहीम के खिलाफ सबसे पहले छपी रिपोर्ट

(03 दिसंबर-09 दिसंबर 2012 )

‘राम रहीम और डेरा सच्चा सौदा के बारे में सबसे पहले चौथी दुनिया ने 03 दिसंबर-09 दिसंबर 2012 के अंक में खबर प्रकाशित की थी. इस खबर के जरिए हमने डेरा सच्चा सौदा की सच्चाई दुनिया के सामने रखी थी.’

हरियाणा का सिरसा वैसे तो पर्यटन का केंद्र नहीं है, लेकिन अगर आप पत्रकार हैं और मूल्यपरक पत्रकारिता से आपका जुड़ाव है, तो सिरसा आपके लिए एक तीर्थ स्थान हो सकता है. पत्रकारिता की एक लीक सिरसा से शुरू होती है. अगर हम सबने मिलकर इस लीक को बचाने की कोशिश नहीं की, तो यह जल्द ही खत्म भी हो सकती है. सिरसा को पत्रकारिता का तीर्थ आप इस तौर पर भी मान सकते हैं कि इसी सिरसा में पत्रकार रामचंद्र छत्रपति ने सच लिखने के कारण अपनी शहादत दी. 21 नवंबर, 2003 को स्वर्गीय प्रभाष जोशी ने छत्रपति की पहली बरसी पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए चेताया था कि आज पत्रकारिता के क्षेत्र में कई छोटे-बड़े हिटलर खड़े हैं.

अगर आप उन हिटलरों से नहीं लड़ेंगे, तो आपकी पत्रकारिता को घुन लग जाएगा. प्रभाष जोशी की चुनौती को अगर आप स्वीकार करते हैं, तो एक बार सिरसा की तरफ रुख जरूर कीजिए. छत्रपति की शहादत के बारे में जानने के लिए हमें उन वजहों की तलाश करनी होगी, जिसके नतीजे में उन्हें अपनी शहादत देनी पड़ी थी. छत्रपति के करीबी मित्र एवं हरियाणा के वरिष्ठ अधिवक्ता लेखराज ढ़ोट कहते हैं कि छत्रपति को याद करने का मतलब है, डेरा सच्चा सौदा के खिलाफ आवाज बुलंद करना. उसकी धमकियों के बावजूद दिल्ली के पत्रकारिता जगत ने उसके विरुद्ध उतरने का निर्णय लिया है. डेरा सच्चा सौदा का भूत अगर इतना डरा रहा है और उसका खौफ पत्रकारिता के लिए इतना भयानक है, तो हमें उस खौफ का करीब से दर्शन कर लेना चाहिए.

यहां एक डेरा है और डेरे में सच की सौदेबाजी हो रही है, यहां सब कुछ खुला-खुला है. रामचंद्र छत्रपति की हत्या के बाद हरियाणा के पत्रकारों की महापंचायत ने डेरा का हुक्का-पानी बंद कर दिया. साथ ही कुछ डेरा समर्थक पत्रकारों को भी पत्रकार बिरादरी से बाहर कर दिया गया. महापंचायत द्वारा बहिष्कृत पत्रकार अब डेरा की कमेटी, प्रबंधकारिणी कमेटी और डेरा सच्चा सौदा के मुखपत्र सच कहूं की पत्रकारिता करने में जुट गए हैं. प्रेस कमेटी से जुड़े लोग आपको डेरा का दर्शन करा सकते हैं, बशर्ते उन्हें यह तसल्ली हो जाए कि आप डेरा के पक्ष में ही लिखने वाले हैं.

सिरसा में छत्रपति की शहादत को सलाम कर लौटने के साथ ही डेरा सच्चा सौदा के सच को निहार लेना जरूरी है, जिसके सौंदर्य का सारा छद्म छत्रपति को मालूम हो चुका था. तीसरे दिन जगदीश सिंह, पवन बंसल एवं रामाश्रय गर्ग नामक तीन चेहरे गेस्ट हाउस पधारे. वे लोग डेरा सच्चा सौदा प्रेस कमेटी के सदस्य हैं और उन्हें नए आगंतुकों की विश्वसनीयता परखने का पूरा हक है. आखिरकार हमने तय किया है कि अगर सच की सौदेबाजी का दर्शन करना है, तो हमें हर तरह का झूठ बोलने के लिए तैयार रहना होगा.

वे लोग मेरी बातों से मुग्ध हो चुके थे. क्या किसी ने फोन से कहीं कोई इंडिकेशन दिया है, क्या भगवान गुरमीत राम रहीम सिंह को हमारे बारे में बता दिया गया है? जगदीश सिंह ने मार्केट कमेटी का गेस्ट हाउस छोड़कर डेरा के एसी गेस्ट हाउस में टिकने का अनुरोध किया. यहां डेरा का अपना व्याकरण है और अपना शब्दकोश भी. डेरा परिसर क्षेत्र में सिरसा को सरसा लिखा जाता है. सच कहूं डेरा का दैनिक समाचारपत्र है. हमें बताया गया कि सच कहूं कि डेढ़ लाख प्रतियां रोजाना पंजाबी और हिंदी भाषा में छपती हैं. मेरे हाथ में सच कहूं का एक विशेषांक है. तस्वीरें आलीशान किलानुमा इमारतों की हैं और इन तस्वीरों के बीच में खबर का शीर्षक है, गर्ल्स स्कूल या परी लोक. शुरू में हैरत हुई, लेकिन जल्दी ही सतर्क हो गया. यह सच का डेरा है, यहां झूठ कुछ भी नहीं है. यहां डेरा बेटियों को परी कहकर संबोधित करता है. डेरा के व्याकरण में बेटी को परी कहते हैं, तो हमें क्या ऐतराज?

डेरा आने वाले अमीर साधु संगतों के लिए यहां की रंगीन, हसीन दुनिया का आनंद लेना जरूरी है. यहां स्वीमिंग पुल, अत्याधुनिक झूले एवं रेस्तरांओं के हसीन संसार भी मौजूद हैं. 140 कमरों का वातानुकूलित गेस्ट हाउस है. अंदर की दुनिया आपको एक पल के लिए फूलों के गुलदस्तों की तरह दिख सकती है. दो वर्ष पहले डेरा के पांच साधु संगतों ने मिलकर महाराज जी के आशीर्वाद से यह सब कुछ बनाया है. कशिश रेस्टोरेंट में हम खाने के लिए पहुंचे, तो वहां का नजारा हैरान करने वाला था. दाएं बाजू सीस का घेरा है और घेरे से बाहर पानी भरा है. सीस पर पानी का रंग हरा-हरा दिखता है. बाहर से हम मछलियों की तरह दिखते हैं. बाहर वाटर स्लेटिंग-स्केचिंग करती लड़कियां दिख रही हैं. डेरा के भीतर मौजूद सजावट किसी परी लोक से कम नहीं थी.

डेरा के एक छोर में 200 से ज्यादा गाय-भैसें बंधी थीं. उनके लिए बाकायदा सेवादार दिन-रात काम कर रहे थे. दूसरी तरफ अंगूर, सेव, चीकू, लीची, लौंग, अमरूद, बादाम, शहतूत एवं नारियल के दर्जनों पेड़ लगे थे. कई युवतियों को साध्वी कहने को कहा गया. यहां डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह की तस्वीरें सजी थीं. 23 वर्ष की उम्र में डेरा प्रमुख बनने वाले बाबा गुरमीत अभी भी युवा दिखते हैं. मुस्कराते बाबा, ट्रैक्टर चलाते बाबा, फावड़ा चलाते बाबा. अलग-अलग पोज के लिए अलग-अलग रंग-बिरंगी पोशाकों में हंसते-खिलखिलाते महाराज तस्वीरों की दुनिया में आज भी खूब जमते हैं. पानी, पहाड़, जंगल, उगते सूरज और डूबते सूरज को निहारते महाराज.

यहां प्रेस कमेटी का दफ्तर काफी सुव्यवस्थित है. पत्रकारों की महापंचायत से बाहर हुए पत्रकार आज डेरा में पत्रकारिता कर रहे हैं. डेरा सच्चा सौदा के लाखों भक्त गुरमीत राम रहीम सिंह को भगवान मानते हैं, उनके ऊपर एक साध्वी का यौन शोषण करने का आरोप है. सवाल यह है कि एक गुमनाम साध्वी के पत्र का रामचंद्र छत्रपति की शहादत से क्या रिश्ता है, आखिर वह गुमनाम साध्वी कब तक गुमनाम रहेगी? जब उस अज्ञात साध्वी के पत्र से गुरमीत राम रहीम के किस्से बाहर आए, तो हरियाणा में बवाल मच गया. डेरा और समाज आमने-सामने खड़े हो गए. चंडीगढ़ हाईकोर्ट ने गुमनाम साध्वी के पत्र को बेहद गंभीर मानते हुए 24 सितंबर, 2002 को डेरा प्रमुख के ऊपर लगे आरोपों की जांच के लिए सीबीआई को छह माह का समय दिया.

डेरा सच्चा सौदा की ओर से उच्च न्यायालय में जिन आठ साध्वियों ने याचिका दायर कर सीबीआई जांच का पुरजोर विरोध किया था, उनमें से एक शीला पूनिया से मिलना हमारे लिए काफी अहम था. शीला पूनिया ने सीबीआई की विश्वसनीयता पर संदेह जाहिर करते हुए हरियाणा पुलिस की सीआईडी से जांच कराने का आग्रह किया था. यह अलग बात है कि अदालत ने उस बेवकूफी भरी याचिका को खारिज कर दिया था. शीला पूनिया उस गर्ल्स स्कूल की प्राचार्य हैं, जिसे डेरा के मुख्य पत्र सच कहूं ने परी लोक की संज्ञा दी है. पूनिया बताती हैं कि वह अंबाला में एमए, बीएड एवं कंप्यूटर कोर्स करके अपने डेरा भक्त पूर्व न्यायाधीश पिता के संपर्क से इस विद्यालय की टीचर बनीं और अब यहां प्राचार्य हैं. शीला पूनिया से बातचीत करने के बाद डेरा के विषय में और अधिक जानने की उत्सुकता मेरे मन में होने लगी. सबसे ज्यादा इच्छा हमें उस गुफा को देखने की थी, जहां डेरा प्रमुख निवास करते हैं.

प्रेस कमेटी के लोेगों ने मुझसे कहा कि आपको गुफा के अंदर जाने की जिद नहीं करनी चाहिए. चलिए, आपको बाहर से ही दिखा दते हैं. गुफा के अंदर है ही क्या, जिसे आप देखना चाहते हैं. वहां सिर्फ दो कमरे की कुटिया है. महाराज जी का सीधा-सादा जीवन है. धीरे-धीरे हम गुफा की तरफ बढ़ रहे थे. दो उजले-चमकते हाथियों के आपस में जुड़ते हुए सूंढ प्रवेश से पहले का तोरण द्वार है. जमीन की सतह से 40 फीट ऊंचाई पर चमकता हुए एक किला था. यहां हर दस गज की दूरी पर एक सुरक्षा प्रहरी तैनात था. असल में जिसे लोग गुफा कह रहे थे, वह देखने से पूरी तरह किला लग रहा था. लौह द्वार पर धातु से निर्मित केले के पेड़ों में बड़े-बड़े केले लटक रहे थे. उसके किनारे कोने में 25 फीट ऊंचे दो उजले हंस खड़े थे. उसके ठीक सामने 15 फीट ऊंचा प्याला था. सिरसा के कुछ पत्रकारों ने हमें पहले ही बताया था कि डेरा के बाहर हर माह एक-दो अज्ञात लाशें मिल जाती हैं और डेरा के अंदर भी अंत्येष्टि की बेहतर व्यवस्था है. हमने डेरा के भीतर छत्रपति का नाम कभी नहीं लिया. डेरा की यह तथाकथित गुफा बड़े-बड़े महलों को मात दे सकती है.

गुफा के द्वार पर हमने देखा कि कोई शख्स सुरक्षाकर्मियों को निर्देश दे रहा था. बाईं तरफ कुछ खूबसूरत साध्वी बहनें अपनी बारी का इंतजार कर रही थीं. डेरा प्रवक्ता का कहना था कि गुफा के अंदर कोई नहीं जा सकता, तो फिर साध्वी बहनें वहां क्या कर रही थीं? रात ढलती जा रही थी, गुफा का सौंदर्य बढ़ता जा रहा था. यहां काफी देर घूमने के बाद हम वापस उसी कशिश रेस्टोरेंट में आए. सारा नजारा देखकर हमें डेरा सच्चा सौदा की असलियत का पता चला. भगवान, साध्वी और डेरा यानि हम जो देख रहे थे, वही आपको दिखा रहे हैं. जो धार्मिक जानकार हैं, वे यह कह सकते हैं कि कलयुग में भगवान का यह उदारवादी संस्करण है. छत्रपति की हत्या अगर भगवान के आदेश से हुई है, तो क्या इस लोकतंत्र में इस हत्यारे के लिए कोई सजा नहीं है? छत्रपति की शहादत को अगर आप सलाम कहने की हिम्मत रखते हैं, तो साफ-साफ कहिए कि यह धर्म का डेरा नहीं, धर्म का धोखा है. यहां चारों तरफ फरेब है और उसी की आड़ में चल रहा है व्याभिचार का खेल.

शीला पूनिया से चंद सवाल-जवाब

आप डेरा की वेतनभोगी प्राचार्या हैं?

नहीं, मैं साध्वी हूं.

एकाकी जीवन में कोई युवती कैसे ज्वाय फील कर सकती है?

मेरे गुरु जी पूरण संत हैं, इसलिए मैं संतुष्ट हूं.

क्या आप स्कूली लड़कियों को भी साध्वी बनने के लिए प्रेरित करती हैं?

सबको उनकी मंजिल बता दी जाती है. अपनी राह चुनना सबकी मनमर्जी पर है. यहां 2000 लड़कियां हैं, किसी पर कोई दबाव नहीं है. कनाडा में रहने वाले माता-पिता भी अपनी बेटियों को यहां भेजकर सुरक्षित महसूस करते हैं.

वैवाहिक जीवन के बिना आपकी संतुष्टि का रहस्य क्या है?

अब मजलिस का समय हो रहा है, बाबा जी वहां सारे सवालों का जवाब दे देंगे.

मेधावी लड़कियों का चयन अच्छा है, सब खूबसूरत हैं..

जो खूबसूरत होती हैं, वही मेधावी होती हैं, आप भी मजलिस में चलिए, आपको पता चला जाएगा कि बाबा जी सचमुच पूरण संत हैं.

मजलिस की महिमा और गुफा…

मजलिस लगी है. दस हजार से ज्यादा लोगों की भीड़. महिलाएं एक तरफ, पुरुष दूसरी तरफ. टीन की चादरों की स्थायी छत. महाराज सिंहासन पर विराजे तो सबने हाथ जोड़कर, आंख मूंदकर माथे को धरती पर नवाया. पसीने से तर-ब-तर सेवादार पंखा झलते थकता है, तो दूसरा खड़ा हो जाता है. अभी जो सेवादार भगवान को पंखा झल रहा है, एक अवकाशप्राप्त न्यायाधीश है, ऐसा बताया गया. भगवान गुफा से निकले थे, फिर गुफा में समा गए. यह पूछने पर कि क्या अब हम भगवान से मुलाकात कर सकते हैं? प्रेस प्रवक्ता आदित्य अरोड़ा कहते हैं, हुजूर भगवान की ओर से हम हर सवाल का जवाब देंगे.

लेकिन हमें तो अपने सवालों के जवाब भगवान से चाहिए, क्योंकि आरोपी वह हैं…

हमारे डेरे का अपना प्रोटोकाल है. संतों-फकीरों का अपना जीवन होता है. संतों के पास राम नाम का धन होता है, उन्हें मापने का एक ही पैमाना है. संतों ने जो राह दिखाई है, उस पर चला जाए.

देश में भूमिगत लड़ाई लड़ने वाले नक्सली भी अपना जीवन गोपनीय नहीं रखते, फिर किसी संत-फकीर के निर्मल जीवन को छुपाने की जिद क्यों?

बाबा जी जहां रहते हैं, वहां तक जाने की मुझे भी अनुमति नहीं है, फिर आप कैसे जा सकते हैं? किसी घर के कायदों में हस्तक्षेप ठीक नहीं. आप परेशान मत करिए. आप ई-मेल से सवाल करिए, सही-सही जवाब दिया जाएगा.

गुफा के भीतर जाकर हुजूर से मिलने पर पाबंदी क्यों?

बाबा जी कंस्ट्रक्शन के कामों को खुद देखते हैं, फिर मजलिस की व्यस्तता अलग. वह बहुत थक जाते हैं. संत-फकीर को उसके गुरु वचन से जानिए-परखिए.

गुफा के अंदर जाने की इजाजत न देने से डेरे के प्रति गलतफहमी बढ़ती है..

आप कुछ भी लिखने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाने से बचना चाहिए. बाबा जी की गुफा के अंदर देश के किसी प्रेस, किसी पत्रकार को प्रवेश की इजाजत नहीं है, यह देश भर में प्रचार कर दीजिए.

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