kulpatiमहात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय की एक्जीक्यूटिव कमिटी ने दो बर्खास्त सहायक प्राध्यापकों की बर्खास्तगी को रद्द करते हुए पुन: बहाल कर दिया. ज्ञात हो कि विगत 28 सितम्बर को महात्मा गांधी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. अरविन्द अग्रवाल ने सहायक प्राध्यापक डॉ. शशिकान्त रे और अमित आनन्द को बर्खास्त कर दिया था. बर्खास्तगी के बाद दोनों शिक्षक विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार पर धरना पर बैठ गये थे. इसकी जानकारी मिलते ही विभिन्न छात्र संगठन भी आन्दोलित हो गये. छात्रों के अनुसार दोनों ही शिक्षक योग्य, अनुशासित और शिक्षण के प्रति संवेदनशील हैं.

क्यों आन्दोलन की आंच में झुलस रहा विश्वविद्यालय- दिन-ब-दिन आन्दोलन तेज होता गया. शुरू में छात्रों की मुख्य मांग थी कि बर्खास्त शिक्षकों को वापस लाया जाये, लेकिन आन्दोलन जैसे-जैसे बढ़ता गया, नये-नये खुलासे होने लगे. शिक्षकों के साथ तानाशाही, छात्रों को भयाक्रान्त रखना, बिहारी होने को छोटा बतातेे हुये बिहारियों को विश्वविद्यालय से बाहर करने की साजिश, नियुक्ति घोटाला, वित्तीय घोटाला, पुस्तक खरीद में अनियमितता, अपने साथ हिमाचल और अन्य राज्यों से लाये लोगों को मनमानी की छूट जैसे तमाम आरोप लगने लगे. सबसे अहम था विश्वविद्यालय में कतिपय कर्मियों का चारित्रिक पतन. आरोपों की लिस्ट बढ़ती जा रही थी और आन्दोलन उग्र होता जा रहा था. आन्दोलन की आंच देश के विभिन्न केन्द्रीय विश्वविद्यालय से होते हुये विदेशों तक भी पहुंच गई. शिक्षकों के अकारण या जबरन दोष मढ़ कर बर्खास्त करने के विरोध में हॉर्वर्ड विश्वविद्यालय के भारतीय मूल के वैज्ञानिकों ने भी प्रदर्शन किया. चारों तरफ से केवल कुलपति और उनके कुछ चहेतों पर आरोप लग रहे थे.जन अधिकार पार्टी के प्रमुख और सांसद पप्पू यादव भी आन्दोलनकारी छात्रों के समर्थन में मोतिहारी पहुंचे और विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार पर छात्रों को सम्बोधित किया. हालांकि श्री यादव ने छात्र आन्दोलन को राजनीति से जोड़ते हुये स्थानीय सांसद सह केन्द्रीय कृषि मंत्री राधामोहन िंसह को ही जिम्मेवार ठहरा दिया. आन्दोलन के शुरू होते ही वो सभी जो कुलपति और उनके चहेतों से त्राहिमाम कर रहे थे, मुखर हो गये. अखिल भारतीय विद्याथी परिषद्, छात्र राजद, एनएसयूआई, जन अधिकार पार्टी की छात्र ईकाई द्वारा चलाये जा रहे आन्दोलन में खुलकर विश्वविद्यालय के छात्र और शिक्षक शामिल हो गये. केविवि के छात्रों ने बिहारी के नाम पर दुर्व्यवहार का आरोप लगाया.

न बर्खास्तगी का कारण बताया, न जवाब तलब किया- बर्खास्तगी को लेकर शिक्षकों का कहना था कि उनसे पूर्व में कोई कारण नहीं पूछा गया, न ही किसी प्रकार की चेतावनी या जवाब तलब किया गया. हम पर क्या आरोप लगा है, यह भी नहीं बताया गया. 28 सितम्बर को कुलपति के विशेष कार्य पदाधिकारी ने बुलाया और बर्खास्तगी का पत्र दे दिया, जिसमें अधिशासी परिषद् द्वारा बर्खास्त करने की बात कही गई थी. जबकि दोनों शिक्षकों के एक वर्ष के प्रोवेशन की अवधि अक्टूबर में ही पूरी होने वाली थी.  पत्रकारों ने जब कुलपति डॉ. अरविन्द अग्रवाल से शिक्षकों को हटाये जाने के बारे में पूछा तो उनका जवाब था कि यह गोपनीय है और अन्दर की बात है. नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया से गुजर कर कोई केन्द्रीय विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक के पद के लिये चयनित होता है और बिना कारण बताये, बिना जवाब-तलब किये हटा दिया जाना आश्चर्यजनक था. जब इसकी तह में जाकर जानकारी ली गई तो आश्चर्यजनक खुलासे हुये. कुलपति महोदय ने पूर्व में भी एक शिक्षक डॉ. संदीप कुमार को बाहर का रास्ता दिखाया था. उन्हें बर्खास्त नहीं किया गया था, बल्कि भयाक्रांत करके उनका इस्तीफा ले लिया गया था. डॉ. संदीप द्वारा दिये गये जवाब के अनुसार उनसे जबरन इस्तीफा लिया गया. कहा गया कि अगर इस्तीफा नहीं देते हो तो किसी महिलाकर्मी से दुर्व्यवहार का आरोप लगवाकर निकाल दिया जायेगा, तब चरित्र के आधार पर कहीं भी नौकरी के लायक नहीं रह जाओगे. विवि प्रशासन द्वारा मनमानी करने पर डॉ. संदीप द्वारा विरोध का यह प्रतिफल मिला. अधिशासी परिषद् के तेवर को देखते हुये और स्थिति को भांपकर कुलपति के सबसे नजदीकी माने जाने वाले और विवादों से घिरे प्रो. आशुतोष प्रधान ने अपना इस्तीफा दे दिया और पुन: हिमाचल प्रदेश विवि में लौटने की बात कही है. प्रो. प्रधान और उनकी पत्नी रश्मिता रे, जो सहायक शिक्षका हैं, पर भी कई गम्भीर आरोप हैं.

अधिशासी परिषद् पर प्रश्नचिन्ह- आखिर कैसे कुलपति द्वारा अधिशासी परिषद् की बैठक में दो शिक्षकों के बर्खास्तगी पर सदस्यों ने मुहर लगा दी. अधिशासी परिषद् ने इतने बड़े मुद्दे पर कोई बहस नहीं की.   जबकि अधिशासी परिषद् विवि के संचालन के लिये सबसे सशक्त माना जाता है. परन्तु विद्वान सदस्यों ने भी कुलपति पर पूरा विश्वास कर लिया और इस अनैतिक कार्य के सहभागी बन गये. 16 अक्टूबर को पटना में हुये अधिशासी परिषद् की बैठक में सदस्यों को यह समझ में आया कि कुलपति द्वारा दिग्भ्रमित करके दोनों शिक्षकों की बर्खास्तगी को अनुमोदित करा लिया गया.

अधिशासी समिति पर विवि को सुचारू रूप से चलाने की जिम्मेवारी होती है. खास कर विवि के स्थापना काल में गठित पहले अधिशासी परिषद् के विद्वान विशेषज्ञों का दायित्व महत्वपूर्ण होता है. परिषद् की बैठक केवल कागजी अनुमोदन तक सीमित नहीं होती, उसका दायित्व है कि छात्रों, शिक्षकों और विवि प्रशासन की कमियों को देखे और असुविधाओं का निराकरण करे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अधिशासी परिषद् के विद्वान सदस्यों से जिसमें तीन-तीन कुलपति भी हैं, से भारी चूक हो गयी. इस पूरे प्रकरण के बाद बर्खास्तगी को वापस करने के बाद अधिशासी परिषद् ने माना कि कुलपति द्वारा मनमानी की गई है.

शुल्क संरचना में भारी अन्तर- महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय की शुल्क संरचना भी अन्य केविवि से ज्यादा और असामान्य है, जो शिक्षा विभाग और अधिशासी परिषद् पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है. गरीब बच्चों की शिक्षा के निमित्त स्थापित केविवि की शुल्क संरचना सभी विवि से ज्यादा है जिसे चुकाने में गरीब बच्चे और अविभावक असमर्थ नजर आते हैं. साउथ बिहार केविवि में जहां पीजी का शुल्क 1800 से 3600 है, वहीं महात्मा गांधी केन्द्रीय विवि में 18 हजार से 20 हजार है.

अधिशासी परिषद् की अगली बैठक में होगा शुल्क संरचना पर फैसला- यहां भी कुलपति की मनमानी का उदाहरण मिलता है. अधिशासी समिति के विद्वान सदस्य डॉ. कर्मात्मा पाण्डेय ने बताया कि विचार हेतु शुल्क संरचना का प्रस्ताव अधिशासी समिति के समक्ष लाया ही नहीं गया. अलबत्ता सिलेबस के निर्धारण के लिये प्रस्ताव लाया गया था, जबकि यह विद्वत्‌ परिषद् का विषय था. डॉ. पाण्डेय ने कहा कि शुल्क संरचना अन्यायपूर्ण है और अधिशासी परिषद् की अगली बैठक में शुल्क संरचना पर संजीदगी से विचार विमर्श कर फैसला लिया जाएगा.

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