बाबुओं की टवीटिंग
हाल में विकीलीक्स, साइबर अटैक्स और फोन टैपिंग जैसे कई ख़ुलासों की उलझन में सरकारी कामकाज ठप पड़ा है. इस साल की शुरुआत में बाबुओं द्वारा निजी ईमेल अकाउंट्‌स और सोशल मीडिया नेटवर्क्स का इस्तेमाल सरकारी कामकाजों में करने को लेकर भारत सरकार ने कड़ी फटकार लगाई थी. हालांकि विदेश मंत्रालय (एमईए) विदेशी सार्वजनिक नीति पर सीधे तौर पर डिबेट करना चाहता है. विदेश सचिव निरुपमा राव ने हाल में राजधानी में अपने मंत्रालय के पब्लिक डिप्लोमेसी डिवीजन द्वारा आयोजित एक सेमिनार को संबोधित किया. राव चाहती हैं कि विदेश मंत्रालय के बाबू जो अमूमन एहतियात बरतते हैं, उन्हें सार्वजनिक सूचना के क्षेत्र में आए खालीपन को सही सूचना देकर भरने के लिए जनता और मीडिया से संबंधित सोशल नेटवर्किंग टूल्स जैसे फेसबुक, यूट्यूब, टि्‌वटर साइटों पर सकारात्मक पहल करनी चाहिए. संयुक्त सचिव नवदीप सूरी की निगरानी में पब्लिक डिप्लोमेसी डिवीजन पहले से इंटरनेट का प्रयोग करने में भारत के रणनीतिक प्रयासों के बारे में गलत और रूढ़िवादी सूचना का विरोध कर रहा है. उम्मीद है, विदेश मंत्रालय की इस शुरुआती पहल से दूसरे मंत्रालयों को भी उनके कामकाज के तरीकों में सुधार के लिए एक नई सीख मिलेगी.
आ गई शामत

भ्रष्‍टाचार के चंगुल में फंसे बाबुओं की नियति अब उनका पीछा कर रही है. ज़मीन आवंटन घोटाला मामले पर उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्य सचिव नीरा यादव जो अब ज़मानत पर बाहर हैं, को अंतत: जेल जाना पड़ गया. वहीं दूसरी ओर 2-जी घोटाला मसले पर ए राजा से संबंधित दूरसंचार विभाग के कई वरिष्ठ अधिकारियों पर सीबीआई का डंडा चलना शुरू हो गया है. इनमें पूर्व दूरसंचार सचिव सिद्धार्थ बहुरिया, के श्रीधर, ए के श्रीवास्तव और आर के चंदोलिया भी शामिल हैं. इस मामले पर बाबुओं की परेशानी काफी बढ़ गई है, लेकिन यह कहना जल्दबाज़ी होगी कि सरकारी तंत्र में जवाबदेही की वापसी हो रही है. सरकारी नौकरियों और राजनीतिक क्षेत्र की मर्यादा धूमिल होती जा रही है. याद रखिए, नीरा यादव को सज़ा मिलने में सात साल लग गए. 2-जी मामले में भी दोषियों को न्यायोचित सज़ा दिलवाने में इससे अधिक नहीं तो कम वक्त भी लगने की उम्मीद नहीं है.

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