युवा मित्र संजय रेंदाळकर ने अपने किताबों के संकल्प के लिए राष्ट्र सेवा दल के पुराने रेकॉर्ड खंगालने की शुरुआत की है और उसी कडी मे यह 1970 की राष्ट्र सेवा दल के टिमकी लिस्ट व्हाटसअप पर भेजने के बाद मेरी स्मृतियों में कुछ चीजें स्पष्ट होने लगी है ! हालाँकि वर्तमान अध्यक्ष जिने आत्मकथा लिखने का आग्रह किया था लेकिन नाही मेरे पास पुराने रेकॉर्ड है और नाही स्मृतियों में कुछ चीजें स्पष्ट नहीं है ! इसलिए कुछ समा नहीं बंध रहा था ! संजय ने यदुनाथ जी के कोई पत्र फोटो इत्यादि है क्या पुछा तो याद आया कि 2006 कि बारिश में हमारे घर में पानी घुसने के कारण मेरे पास पुराने रेकॉर्ड और पत्र कुछ पत्र, पत्रिकाओं और समाचार पत्रों की कतरनें सभी उस पानी में लुगदी बनकर नष्ट हो गये हैं!और उसमे एस एम जोशी जी से लेकर यदुनाथ जी तक सभी विभूतियों के लंबे लंबे पत्र क्योंकि जनता पार्टी के गठन के खिलाफ वाले लोगोंमेसे एक मै भी था मुख्य रूप से जनसंघ जैसे घोर सांप्रदायिक और जातिवाद, पूंजीवाद के समर्थक दलके साथ एक पार्टी यह बात मेरे गले नही उतर रही थी ! एस एम का बडप्पन कहिये या मेरे बारे में कोई गलत फहमी अण्णा ने मुझे काॅन्फिडंस में लेकर बहुत कुछ चीजें स्पष्ट लीखि थी और उनका सबसे मुख्य तर्क आदमी बदलने का था ! उसी तरह अच्युतराव पटवर्धनजी के साथ की जे कृष्णमूर्ती जी के स्वतंत्रता के मूल्य को लेकर हमारी बहुत ही सुंदर बहस पत्रोत्तर के बहाने जो उस पानी में लुगदी बन गये हैं ! उसीतरह वसंत पळशिकरजी के साथ स्री-पुरूष और फैमिली के संदर्भ में !इसलिए लिखना नहीं हो पा रहा है ! पर संजय ने एक छोटे-से टुकड़े को भेजकर मेरे पचास साल पहले से ज्यादा समय की स्मृतियों को थोड़ा झकझोरा है सो कुछ कोशिश कर रहा हूँ !

दशहरे के दिन मैने एक स्मृति जिसमे संघ से सेवा दल के सिमोल्लघंन के बारे में लिखा था ! और सेवा दल मे आने के बहुत ही कम समय में मै शाखा नायक बनाया गया था ! शायद 14-15 साल की उम्र में ! तुरंत राष्ट्र सेवा दल के दस्तानायक-शाखानायक शिबिर पुणे साने गुरूजी स्मारक पर ही हुआ था और वह शायद साल 67-68 का रहा होगा और उस शिबिर के समाप्ति के बाद सीधा पुणे से कल्याण और वहासे भोपाल की और जाने वाले ट्रेन में लटक कर बगैर रिजर्वेशन और जनरल डब्बा में लगभग खडे होकर! मई के गर्मी के कारण चड्डी बनियनमे पूरा 10-15 घंटे से ज्यादा समय के सफर शायद मेरे जीवन का पहला इतना लंबा वह भी महाराष्ट्र के बाहर पहलीबार! मध्यप्रदेश में हरदा, पिपरिया, भोपाल और चचाई प्रपात रीवा ! शायद मै एक महीना मध्यप्रदेश में रहा होगा ! और उम्र पंद्रह साल ! और फिर भोपाल सविता वाजपेयी जी के घर का एक सदस्य ही बनने के कारण मेरे कालेज कि सभी छुट्टीया सेवा दल के कार्यक्रम के लिए विशेष रूप से भोपाल में गुजरी है ! और दुसरे रिवा के विधायक जमुना प्रसाद शाश्त्री जी जिन्हें मैं मध्यप्रदेश के एस एम जोशी जी कहता था ! बहुत लाड-प्यार मिला है ! हरदाके सिलालपूरियाजी,टीकमगढ़ के लक्ष्मी नारायण नायक जी ,चंद्रप्रताप तिवारी और सबसे प्रमुख सविता वाजपेयी जी के पती बालमुकुन्द भारती जी और उनकी दोनों बेटियां श्रद्धां और निष्ठा मै इस परिवार का सदस्य ही हूँ ! भोपाल के रवींद्र भवन के प्रांगण में हमारी राष्ट्र सेवा दल की शाखा लगती थी !
मेरा जन्म एक हजार पांच सौ के आसपास के आबादी वाले एक मालपुर नामके धुलिया जिलेके देहात का है ! जन्मदिन की तारीख अस्पष्ट है । स्कूल में एक जून 1952 लिखा हुआ है ! हमारे क्लास के आधे बच्चे उसी दिन के स्कूल रजिस्टर में दर्ज थे जिसमें एक मै भी था ! शायद मै कम उम्र का था और उस समय जन्म सर्टीफिकेट इत्यादि का झंझट नही था ! मास्टरजी लिख लिजिये की तर्ज पर दाखिला हो जाता था !

और मेरी मातृभाषा अहिराणी हैं ! मराठी में राष्ट्रसेवा दल के शिबिर मे बोलते हुए काफी मित्र मेरा मजाक उड़ाया करते थे ! लेकिन पता नहीं क्यों ? आंतर भारती की कल्पना साने गुरूजी ने भारतीय भाषाओं में आपसी भाईचारे और एक दूसरे के साहित्य के प्रति आदर सम्मान बढे इसलिए की थी और यदुनाथ जी के अथक प्रयासों से उसका काम कुछ रंग ला रहा था! और हमारे महाराष्ट्र की विभिन्न बोलीं भाषाओं के बारे में वह भी राष्ट्र सेवा दल के सैनिक और हम साने गुरूजी के तथा वसंत बापट ,कुसुमाग्रज के गीतों को जोर जोर से गायें जा रहे हैं ! और खानदेश या मराठवाड़ा, विदर्भ, कोंकण विभाग के लोगों के बोलने पर पुणे-मुंबई के लोग हंस रहे हैं ! किसने कहा कि उनकी ही भाषा शुद्ध है और दुसरे विभागो के लोगों द्वारा बोली जाने वाली अशुद्ध है ?

और दलितों ने जब लिखनेकी शुरुआत की मुख्य रूप से मेरे मित्र नामदेव ढसाळ ने तो मराठी भाषा में भूकंप के झटके देना शुरू किया तो अच्छे-खासे विद्वानोंने नाकभौ सिकोडे थे पर जब फ्रेंच, जर्मन अंग्रेजी में उसके अनुवाद होने लगे!तब हमारे पुणे-मुंबई के विद्वानों को लगा कि नहीं यह भी अभिव्यक्ति है ! और फिर तो बी ए,एम एके कोर्स में शामिल होने के कारण और भी कई लोग है जिनकी मातृभाषा महाराष्ट्र के कई लोग नहीं जानते हैं वह कहावत है ना की हर दस मिल के बाद भाषा बदलती है !

अपने आप को श्रेष्ठ समझने के लिए सिर्फ जात या धर्म नहीं है भाषा, खाने-पीनेकी आदतें, कपड़े, नाक-नक्ष,रंग इत्यादि कई-कई मुद्दे भी हैं जिनके कारण लोग अपने आप को श्रेष्ठ समझते है ! हालाँकि यह बिल्कुल नादानी है और कुछ भी नहीं है ! लेकिन आदमी को अपने आप को श्रेष्ठ समझने के लिए कुछ भी चाहिए होता है और यह बीमारी है ! और उसी बिमारी ने अब कैंसर का रूप ले लिया है और संघ परिवार उसी को भुनाने की कोशिश कर रहा है और कुछ हदतक कामयाब भी हो रहा है और 80 साल पहले राष्ट्र सेवा दल के संस्थापकोंने सिर्फ और सिर्फ संघ परिवार की जातियवादी सांप्रदायिक सोच के खिलाफ 4 जून 1941 को विशेष रूप से स्थापित किया है और उसी सेवा दल के सैनिक बोलचाल, पहनावे तथा खानपान जैसे बातो पर हंसी मजाक करते हैं ? फिर संघ परिवार के लोगों मे और हमारे बीच फर्क क्या है ?
यह राष्ट्र सेवा दल के लिए एक दुर्गुण भी है कि अलग सांस्कृतिक परिवेश से आने वाले लोगों को मजाक का पात्र बना कर उनके पीछे पडना! जिसमें कई लोगों को काम्प्लैक्स हो गया है !और वह भी उसी बिमारी के शिकार हो गये हैं ! वह अपनी भडास नये लोगों पर उतारकर समाधान मानते हैं ! जैसे स्कूल-कालेजमें रैगिंग करने की बात है ! यह भी एक तरह की रैगिंग ही है ! जो कमसे कम राष्ट्र सेवा दल के अंदर नहीं होनी चाहिये लेकिन इस बारे में शायद ही कोई सोचता है ? उम्मीद कर सकते कि वर्तमान अध्यक्ष पद पर एक आंतरराष्ट्रीय स्तर के भाषाविद है शायद वही कुछ करेंगे ऐसी उम्मीद कर सकते !

लेकिन पता नहीं मुझे कभी भी काॅमप्लेक्स नहीं हुआ ! क्यों की कोई भी भाषा शुद्ध अशुद्धि का पचडा भी ब्राह्मणी मानसिकता का परिचायक है यह बात मुझे होश आया तबसे ही मै बोल लीख रहा हूँ ! प्रोफेसर द भी कुलकर्णी नाम के मराठी भाषा के समिक्षक मित्र जो मेरे पडोसी थे उन्हें भी यही बात समझाई है ! दुख जरूर होता था ! मेरे अन्य मित्र को मैं नादान समझता था और वह सही साबित हुआ ! देखिये ना ठिकसे मराठी भी नहीं बोलने वाले को उन सब मस्करो के रहते हुए मुझे मेरे जीवन के सबसे लंबे और महाराष्ट्र के बाहर पहलीबार भेजकर राष्ट्र सेवा दल के उस समय के पदाधिकारियों ने मेरे आत्मविश्वास को बढाने में मदद की है ! और मै भी बगैर ना नुकुर किये बिना चला गया अब इसे क्या कहेंगे ?
शायद आज जो भी कुछ हिंदी मे लिख बोलरहा हूँ इसका राज इसी तरह के काम फिर वह फिलिस्तीन मुक्ति का काम हो या भागलपुर दंगेके बाद का काम हो , कश्मीर, उत्तर पूर्व प्रदेश के लोगों से लेकर मैंने विश्व के युद्ध भूमियो पर भी जाने का मौका मिला है विशेष रूप से सीरिया, इराक, इराण टर्की, लेबनान, पाकिस्तान, बंगला देश, अझरबेजान इजिप्त, फिलिस्तीन के दो-दो बार यात्राएं की हैं ! मुझे तुलनात्मक रूप से भय नहीं लगता और इसी कारण कश्मीरी पंडितों से लेकर हुरियत के सभी धडे, उत्तर पूर्व प्रदेश के लोगोंसे लेकर नक्सल प्रभावित जिलों में शामिल लोगों तक मैंने हमेशा संवाद करने के लिए विशेष रूप से कोशिश की है ! उसी तरह फिलिस्तीन मुक्ति का काम हो या भागलपुर, गुजरात दंगों के बाद हर क्षेत्र में जाने तक मै संवाद करता हूँ ! और यह राष्ट्र सेवा दल के जाति धर्मनिरपेक्ष विचार की बैठक के कारण ही संभव है ! और जयप्रकाश नारायण जी ने अपने जीवन का महत्वपूर्ण समय हमारे देश के इन्हीं उपेक्षित समुदाय के लोगों को हमारे देश के मध्य धारा में लाने के लिए सतत प्रयास किया है ! फिर नागा समस्याओं से लेकर नक्सल तक मै जेपी के स्टेचर का नहीं हूँ लेकिन मेरे जीवन पर प्रभाव रहा उनमें गाँधी जी के बाद जेपी, लोहिया, एस एम जोशी जी ही प्रभावशाली थे और मै भी अपने तईं उनके कदमों पर चलने की कोशिश कर रहा हूँ !

माँ कहती थी कि तू छोटा था लेकिन बहुत जादा उधम मचाता था तो स्कूल में डाल दिया ! डाल दिया यह सही मायनों में ! तेरे को एक ढेड साल कम करके ! तू नाताळ के समय येसू के जन्मदिन पर रात में पैदा हुआ है ! तो मैंने अंदाजा लगाया की 25 दिसंबर 1953 ! क्योंकि हमारे साक्री तहसिलका सिर्फ 1953 का रिकार्ड नहीं है 52,54 के मिले ! तो मैंने अंदाजा लगाया की हो ना हो 25 दिसंबर 1953 !
भारत-पाक 65 के युद्ध के समय मै सातवीं कक्षासे आठवी हमारी बुआ के गाँव शिंदखेडा की न्यू इंग्लिश स्कूल में डाल दिया गया था ! और आने के चंद दिनों के भीतर संघ शाखा एक भूगोल के शिक्षक के कारण और अब मुझे लगता है कि वह स्कूल संघ परिवार के लोगों द्वारा चलाए जा रहा था !

खैर चंद दिनों के भीतर मेरे निष्कासित होने की बात मैंने विस्तार से पहले ही लीखि है इसलिए सीधे सेवा दल के शाखा में शामिल होने और शाखा नायक बना शायद पंद्रह साल पहले ही ! 1968-69 के सेशन में मैट्रिक की उस समय 11 वी मैट्रिक होती थी ! परीक्षा करने के बाद अमरावती होमिओपॅथी के कोर्स करने चला गया ! उम्र के सोलहवींमें ! बारह साल से सत्रह तक शाखा नायक फिर उसीके बींच प्रशिक्षक और सत्रहवे के पहले ही संघटन को विस्तार देने के लिए ! 1976 तक राष्ट्र सेवा दल के पूर्ण समय कार्यकर्ता के रूप में काम करने की कोशिश की है ! 1966 से 1976 एक दशक ! आपातकाल में जेल में जाने के कारण मैंने इस्तीफा दे दिया क्योंकि सेवा दल के उपर आंच नहीं आये मुझे बडौदा डायनामाईटकेस मे डी आई आर के तहत पकडा था ! पहले 10-15 दिन पुलिस कस्टडी और बाद में अमरावती के जेल में !

वहा पर पहुंचने के एक महीना भी नहीं हुआ होगा यदुनाथ थत्तेजी का पोस्ट कार्ड आया और उसमे अमरावती में अपने विचारों के कौन कौन लोग है उनके नाम और पते ! यह यदुनाथ जी के मृत्यु होने तक सिलसिला जारी रहा है मै कलकत्ता 1982 मे मेडम खैरनार के नौकरी के कारण गया तो थोडे ही दिनों के भीतर यदुनाथ जी ने कलकत्ता में अपने विचारों के कौन कौन लोग है की एक फेरहिस्त ही भेज दि जिसमें आजतक के निर्माण करने वाले और आनंद बाजार प्रकाशन समूह की हिंदी पत्रिका रविवार के संपादक सुरेन्द्र प्रताप सिंह,भारतीय भाषा परिषद के अध्यक्ष प्रभाकर माचवे, आनंद बाजार पत्रिका के वरिष्ठ संपादक और बंगला साहित्यकार गौरकिशोर घोष इत्यादि लोगों के पते फोन नंबर भेजकर और उन्हे भी इसी तरह के पत्र लिख कर कहा था कि हमारे युवा मित्र सुरेश खैरनार कलकत्ता में रहते हैं और वह आपको मिलेगा !
वही बात अमरावती के मित्र वसंत आबाजी डाहाके और उनकी कवयित्री पत्नी प्रभा गणोरकर, विदर्भ महाविद्यालय के और कुछ शिक्षक, राज महाविद्यालय के ब्रजमोहन हेडा, वजिर पटेल और सबसे बड़ी बात शिवाजीराव पटवर्धन, राव साहब, अच्युतराव पटवर्धन की मौसी दुर्गाताई जोग और सर्वोदयी एकनाथ हिरूडकर, समाजवादी पार्टी के बापूसाहब कारंजकर,तरूण भारत अखबार के जिला प्रतिनिधि और मराठी के मूर्धन्य कवि सुरेश भट ! फीर क्या जैसा मैंने अमरावती फतह कर लिया ! क्योंकि मैंने बहुत ही जल्दी से इन सब महानुभावों से मिलकर अभ्यास मंडल शुरू किया ! और अमरावती में तात्कालिक विषयों से लेकर लैटिन अमेरिका के देश पनामा क्यूबा , चिली, वियतनाम युद्ध, गरीबी रेखा, दलित,महंगाई बेरोजगारी जैसे ज्वलंत मुद्दों पर बहस और कुछ कृति कार्यक्रमों की झडी लगा दी !
मैंने अमरावती में रहते हुए जार्ज फर्नांडीज, मधु दंडवते, हमिद दलवाई, प्रो ग प्र प्रधान, यदुनाथ थत्ते, नरहर कुरूंदकर, डाक्टर बापू काळदाते, मृणाल गोरे, एस एम जोशी जी, नाना साहब गोरे, नाना पुरोहित, सुधीर बेडेकर, प्रफुल्ल बिडवाई, नामदेव ढसाळ, दुर्गा भागवत, विजय तेंदुलकर, निळू फुले, बाबा आम्टे, शिवाजीराव पटवर्धन, बैरिस्टर वि एम तारकुंडे, इत्यादि लोगों को हमारे अभ्यास मंडल मे संबोधित करने के लिए विशेष रूप से बुलाया था !

आजकल हमें लगता है कि संप्रदायीकता कुछ ज्यादा बढ गई है! लेकिन मुझे सत्तरके दशक में मेरे कालेज के दिनों की जब याद आती है और मेरे दोस्त शेख रहीम और शेख मुजिब, खान और इसतरह पांच छह मुस्लिम विद्यार्थी थे और मेरी उनसे तब भी अच्छी दोस्ती थी और अभिभि है तो रहीम की माली हालत अच्छी नहीं थी तो मै थोडी बहुत मदद कर देता था तो अन्य मित्र टोका-टोकी करते थे कि तुम एक साँप को दुध पिला रहे हो और वह कोई भी संघ के शाखा में जाने वाले नहीं थे ! उसमें कोई मराठा थे तो कोई मारवाडी, माली, तेली, कुणबी! मतलब हिंदू-मुस्लिम के भीतर इस तरह के गलतफहमी या आपसी द्वेष की तीव्रता आजकल खुले रूप से दिखाई दे रही है और पहले भी कुछ कम नहीं थी ! खुसफुसाहट के रूप में दिखाई देती थी !हालाँकि मेरा फ्रेंड सर्कल बिल्कुल ही सेक्युलर था गेमनानी नाम का सिंधी जिसके घर मै रविवार के दिन जाता था और टिपीकल सिंधी खाने का लुत्फ उठाता था! मुख्य रूप से मिठाईयाँ !वैसे ही जुगल राठी नाम का मारवाडी दोस्त भातकूली नाम के अमरावती से दस किलोमीटर की दूरी पर गाँव से था उसके भी घर कभी-कभी साईकिल पर जाने का मौका मिला है और खाने मे एक कटोरी शुद्ध घी आज भी याद है ! बडनेरा के एक गुजराती दोस्त जिसके परिवार का तंबाकू की दुकान थी किसी वीकएंड में उसके भी घर कभी-कभी साईकिल पर जाने का मौका मिला है और खाने मे सब्जी से लेकर कढी, दाल में सब मे चीनी या गुड डला हुआ खाना खाने का अलग ही आनंद था ! और मुस्लिम मित्र की बिर्यानी, मटण इत्यादि नानवेज! सेवा दल के कारण मुझे लगता था कि मै बहुत बडा भारत की एकता का काम कर रहा हूँ ! लेकिन अभि कुछ-कुछसमझ मे आता है कि वह एक रोमांटिक बात थी वास्तव में हमारे देश के भीतर सांप्रदायिकता का जहर सौ साल पहले से ही घोला जा रहा है और गत 25-30 साल से वह मुखर हो कर बोल-लिख रहा है ! और संघ परिवार की सबसे बड़ी जीत यही है ! उस तुलना में राष्ट्र सेवा दल दर्या मे राई के जैसा है ! और असली बात राष्ट्र सेवा दल के भी कुछ लोगों को थोड़ा खरोंच कर देखो तो कुछ गफलत उनके साथ भी है ! और यह बात भारत के किसी भी संघटन और दलो में मिलती है ! और यही संघ परिवार की कामयाबीका रहस्य भी है! इसलिए राष्ट्र सेवा दल के लिए विशेष रूप से कितना बडा चैलेंज है !

सत्तर के दशक में वियतनाम युद्ध, क्यूबा की क्रांति और फ्रांस में और यूरोपीय देशों में विद्यार्थीयो के द्वारा आंदोलनों की कोशिश जारी थी और मै साप्ताहिक माणूस, साधना,मागोवा,धर्मयुग, दिनमान, इपी डब्ल्यू, सेमिनार, मैनस्ट्रिम, इलेस्ट्रेटेड विकली के पन्नों को चाट जाते थे ! और मार्क्स वाद, दलित विमर्श, और भारत की गरीबी के उपर उसी समय वी एम दांडेकर और निळकंठ रथ की संयुक्त किताब पाॅव्हर्टी इन इंडिया तथा गुन्नार मिर्डाल की एशियन ड्रामा और जितेंद्र शहा, प्रफुल्ल बिडवाई जैसे आई आई टी मुम्बई के दोस्त जो मुलताह अमरावती के होने के कारण वह समय समय पर आते रहते थे और उनके कारण दीनानाथ मनोहर, सुधीर बेडेकर, सुभाष काणे जैसे लोग किताबें भी अपने साथ लाते थे और उन्होंने हमारे जैसे मराठी मीडियम में पढे हुए लोगों को मराठी में समझाने की कोशिश की है और यही कारण है कि मुझे मेरे उम्र के कम समय में काफी कुछ देखने-समझने के लिए विशेष रूप से मदद हुई है !
हालाँकि मेरी इस तरह के मागोवा, दलित पैंथर, तरूण शांति सेना, बामसेफ और अन्य प्रगतिशील लोगोंके साथ के संबंध मेरे राष्ट्र सेवा दल के कुछ मित्र पसंद नहीं करते थे ! उनके तर्क थे कि शुद्ध सेवा दल के ही लोगों से संबंध रखना चाहिए ! मै जिस तरह से सांप्रदायिकता, जातीयताके खिलाफ हूँ उसी तरह वैचारिक कठमुल्लापन के भी खिलाफ हूँ और इसिलिए मेरे राष्ट्र सेवा दल के साथ मागोवा, युक्रांद, दलित पैंथर, तरूण शांति सेना और अन्य उदारमना लोगों के साथ उतनी ही गहरी दोस्ती है जितनी कि राष्ट्र सेवा दल के साथ और मेरी इस आदत ने मेरा जीवन संपन्न हुआ है ना की कोई नुकसान ! प्रफुल्ल बिडवाई की तो इच्छा थी कि मेरे होमियोपैथी की शिक्षा के बाद कलकत्ता के नैशनल लायब्ररी मे पढने को जाओ और उसके बाद बाबा साहब अंबेडकर और कार्ल मार्क्स ने जिस लंदन के म्यूजियम में पढाई की है वहा तुह्मे जाना चाहिए और खर्च मै करूँगा ! हालाँकि मुझे सिर्फ पढाई करने के अलावा काम करतेहुए पढने की इच्छा थी और मैंने वैसाही किया !

मेरी इन सब गतिविधियों के कारण मेरे कालेज के प्रिंसिपल साहब नाराज रहते थे क्योंकि प्रायवेट कालेज होने के कारण वह फीस से लेकर और कईयोंबातो मे धांधली करते थे और थोडे गर्म मिजाज के कारण वह मुझे धमकाते रहते थे! यहा तक की मेरे आने वाले पत्राचार पर भी नजर रखतेथे और सेवा दल के संघटन कमिटी मे होने के कारण मुझे बैठक या किसी कार्यक्रम के लिए अमरावती के बाहर जाना पडता था तो वह टोका-टोकी करते रहते थे और उसी दरम्यान मुंबई के मानखुर्द मे सेवा दल के 40 साल के उपलक्ष्य में 71-72 की रैली के तैयारीहेतु मुझे मध्यवर्ती से तार आया था कि तुह्मे आना चाहिए और वह तार प्रिंसिपलसाहब ने पहले ही खोल कर पढ लिया था और मुझे ऑफिस में बुलाकर कहा कि तुम मुंबई के लिए नहीं जाओगे!मेरे समझमे नहीं आ रहा था कि मै मुम्बई क्यों जाऊँ ? तब उन्होंने तार दिखाया तो मै तपाकसे बोला कि इसतरह दूसरों की डाक खोलकर पढना असभ्यता है ! आप हमेशा मेरे डाक को सेंसरशिप की तरह देखते रहते हैं यह ठीक नहीं है तो वह बोले की तुझे तेरे घरवालों ने पढने के लिए भेजा है राजनीति करने केलिए जिंदगी पडी है और मै तुम्हारे भले के लिए कह रहा हूँ कि तुम मुंबई के लिए नहीं जाओगे !

मैंने कुछ भी नहीं बोलते हुए रात कि दादर एक्सप्रेस से निकल गया तो मेरे मानखुर्द पहुचने के साथ मेरे होस्टल के पाटील नामके दोस्त का टेलीग्राम आया कि तुह्मे कालेज से निकाल बाहर कर दिया है ! लेकिन मैंने सिर्फ विकास देशपांडे को यह बात बताई थी और मानखुर्द रैली करने के बाद ही अमरावती वापस लौटा तो सचमुच नोटिस बोर्ड पर मेरे निष्कासित होने की बात मैंने मी देखी और अमरावती के अन्य लोगों को भी बताई तो कोई बोले कि अमरावती बंद करते हैं तो कोई धरना प्रदर्शन करने की बात करने लगे डाॅ पूनशी नाम के एक मेडिकल जूरिसप्रूडन्स पढाने वाले टीचर ने खुद प्रिंसिपलसाहब को समझाने की कोशिश की और कहा कि अपने कालेज को अभिमान होना चाहिए इतना अच्छा विद्यार्थी को आप निकालने की गलती मत कीजिए! लेकिन हमारे प्रिंसिपल साहब अडियल किस्म के थे वह नहीं माने तो डॉक्टर पूनशी ने इस्तीफा दे दिया ! हमारे कालेज से लेकर और भी कालेजों में मेरे समर्थनमे बंद हुआ और अखबारों में काफी कुछ छपने लगा क्योंकि सुरेश भट, और अमरावती के सभी पत्रकार मित्र जो थे और प्रिंसिपलसाहब की इमेज पहले से ही खराब थी ! लेकिन वह टससेमच नहीं हो रहे थे ! उतनेमे हमारे कालेज का परीक्षा सेंटर कैन्सल होने की खबर आई तो प्रिंसिपलसाहब को मेरीयाद आई क्योंकि मै कालेज के विद्यार्थी संसद का अध्यक्ष पद पर आसीन होने के कारण वह बोले की तुझे मुख्यमंत्रीसे बात करने के लिए मेरे साथ मुंबई चलना है ! मैंने कहा कि आप ने मुझे कालेज से निकाल बाहर कर दिया है ! तो वह बोले ज्यादा नखरा मत करो जब मै तुह्मे अपने साथ ले चल रहा हूँ तो क्या इससे तुम्हे पता नहीं चला कि मैंने तुम्हें वापस लिया है और इसतरह मेरा वापसिका रास्ता बना ! उस समय वसंतराव नाईक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे और प्रिंसिपल साहब खुद मुझे उनके पास ले कर गये थे और वह अकाल का समय था तो मैंने मुख्यमंत्री महोदय को अनुरोध किया कि पूरा महाराष्ट्र अकाल के चपेट में है और हम 99% विद्यार्थी किसान-मजदूर के घरोंसे हैं क्या इसतरह सेंटर दूसरे शहर में करने से हमारे पैसे और समय बर्बाद होगा तो मुख्यमंत्रीजीने तुरंत सेंटर वापसी का और हमारे परीक्षा फिस माफी का आदेश दिया था तो प्रिंसिपल साहब इतने खुश हो गये थे कि वापसी के सफर में मुझे कहने लगे कि तुम जिंदगी में जरूर कुछ बडी भूमिका निभाओगे क्योंकि तुमने मुख्यमंत्रीजिसे इतना अच्छा पक्ष रखा मुख्य रूप से अकाल की बात तो मेरे भी दिमाग में नहीं थी जो तुमने कहा और उसके परिणाम स्वरूप ही सेंटर और परीक्षा फिस माफी का आदेश मुख्यमंत्रीजीने तुरंत दिया है ! मैंने कहा कि सर आपकी मेरे बारे में कोई गलत फहमी है मै एक किसान परिवार से हूँ और उपर से साने गुरूजी के राष्ट्रसेवा दल का काम कर रहा हूँ मुझे मेरे अलावा देश दुनिया कि वर्तमान स्थिति की भी चिंता है और मेरी डाक मे कुछ भी गलत सलत नहीं आता है सब कुछ यही आता है जो आपने मुख्यमंत्रीजीके साथ मुझे बोलते हुए सुना है वह सब मेरे सेवा दल के संस्कार के कारण है और मुख्यमंत्री और आप या इंदिरा गाँधी जी सबसे बोलने में मुझे कोई भी डर लगता नहीं है ! उसके बाद वह मुझे दिल्ली राष्ट्रपति वी वी गिरी जी के साथ होमिओपॅथी के कोर्स को एम बी बी एस का दर्जा देने की बात करने के लिए विशेष रूप से लेकर गये थे और मैंने राष्ट्रपतिजी सेभी सब बात बहुत ही सुंदर ढंग से रखने के लिए विशेष रूप से प्रिंसिपलसाहब ने मेरी पीठ थपथपाई थी !और यह सब कुछ उम्र के 20 साल पहले 1971-72 !

राष्ट्र सेवा दल के मानदेय की रकम थी 200 रूपये ! मुझे दो वक्त के खाने के सिवा और कोई भी शौक नही था लेकिन सबसे बडा शौक पढने का और वह सेवा दल के मानदेय की रकममें कभिभि संभव नहीं था तो मेरे मित्र जितेंद्र शहा, प्रफुल्ल बिडवाई जैसे मेरे उस शौक को पूरा करते थे ! जब मैंने 1976 के बाद मानदेय लेना बंद कर दिया था तो मेरे शादी होने तक शुद्ध रूप से मित्रों ने मेरे सभी खर्च पूरे किये है यहा तक की शादी के बाद भी कुछ समय पैसे भेजकर हमारे नये-नयेसंसार के शुरू होने के लिए गैस, पंखे और मेरी पसंदीदा किताबों के लिए विशेष रूप से मदद की है ! इसलिए मेरे लिए विशेष रूप से मित्रों के रिश्ते से बडा रिश्ता कोई और नहीं है ! मैंने अपने पुश्तैनी संपत्ति का अधिकार जिस दिन होमियोपैथिक पढाई खत्म करने के बाद 1973 मे राष्ट्र सेवा दल के पूर्ण समय कार्यकर्ताके रूप में काम करने की शुरुआत की है उसके पहले घर जाकर साइकिल, गद्दा, एक टिन का बक्सा सब वापस करने के बाद कहा कि आप ने मेरे पढाई के लिए जो भी कुछ खर्च किया उसके एवज में मुझसे कुछ भी नहीं अपेक्षा करना अब मै अपने तरह की जिदंगी जिना चाहता हूँ और मुझे अपनी पुश्तैनी संपत्ति मेसे कुछ भी नहीं चाहिए और यह बात मै स्टैंप पेपर पर भी लिखकर देनेके लिये तैयार हूँ ! पिताजीने कहा कि इसकी कोई जरूरत नहीं है तुम स्वतंत्र हो ! मेरे और पिताजीके संबंध बाप बेटे से ज्यादा मित्रवत जादा थे ! आजसे पचाससे ज्यादा समय पहले ! और अब तक मै अपनी बात पर कायम हूँ मैं कभी-कभी गाँव गया हूँ लेकिन माँ-पिता के मृत्यु के समय विदेशों में रहने के कारण नहीं जा सका इस बात का गम है ! सबसे महत्वपूर्ण मैं मेरे किसी भी रिश्तेदारोंकी शादी ब्याह में शामिल नहीं हुआ हूँ क्योंकि मै हर तरह के कर्मकांड के खिलाफ होने के कारण और दहेज मान -पान ब्राह्मण को बुला कर किया जाने वाला कोई भी कार्यक्रमको मैंने आजतक हाजीरी नहीं लगाई! मेरी और मैडम जी की शादी तो कोर्ट के रजिस्टर के दफ्तर में दो मित्र लेकर अंग पर जो भी कुछ हमेशा पहने हुए कपड़ों के साथ जाकर हस्ताक्षर कर के बाद मुंबई के पास उरण के एक अभ्यास शिबिर के लिए मै और मेरे दोस्त निकल गये थे 16 जनवरी 1979 के दिन ! नाही कोई पत्रिका और नहीं पार्टी और आंतरजातिय शादी थी तो यदुनाथ जी के और नाना साहब गोरे के आग्रह के बावजूद मैंने अखबारनविसी पर सक्त आपत्ति की थी और कहीं भी लेख या न्यूज नहीं होने दी क्योंकि मेरी मान्यता है कि दोनों के सहजीवन का मामला शुद्ध उनका अपना निजी क्षेत्र में कोई और हस्तक्षेप या बाजा गाजा शुद्ध फुहडपन है ! हम सार्वजनिकरूप से उस रिश्ते को मनाने की बात मैंने कभीभी पसंद नहीं की है और यही कारण है कि मुझे इस तरह के कार्यक्रम में शामिल होने मे संकोच होता है मै तो पत्रिका देने वाले को भी मना करता हूँ कि आप एक पत्रिका क्यों बरबाद कर रहे हो ? मै तो आने वाला नहीं हूँ ! इसमें कुछ लोग नाराज हो गये हैं !
और उसके कारण मराठी की कहावत के बछडो मे लंगडी गाय जैसा मै सेवा दल के कुछ पदों पर लीया गया था जैसा कि यह विदर्भ संघटक का पदभार ! 1970 मेरे उम्र के 17 वे साल में पदार्पण करते हुए !

मैंने अमरावती में 1969 से 1979 गिनकर दस साल का समय गुजारा जिसमे से आधा समय मेरे शिक्षा का काम करने में शामिल है एक बात बताना जरूरी है बचपन से ही राष्ट्र सेवा दल के संस्कार होने के कारण मेरी कालेज की सभी लडकियों से दोस्ती थीं तो लडकियों ने मिलकर मुझे विद्यार्थी संसद का अध्यक्ष पद पर चढने के लिए आग्रह किया था और मेरा चुनाव प्रचार तक लडकियों ने मिलकर किया था और मैंने अपने जेब से एक रूपये का भी खर्च नहीं किया था और मै 71-72 के लिए विद्यार्थी संसद का अध्यक्ष पद पर निर्वाचित होने के बाद मैंने कालेज में हर हप्ते में एक भाषण किसी महत्वपूर्ण विषयों पर शुरुआत की और पहली बार कालेज के इतिहास में स्टडी टूर का आयोजन किया जिसमें मध्यप्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध स्थानों पर अमरावती से एक स्पेशल बस और साथ में खाना बनाने के लिए बर्तनों से लेकर रसोई बनाने के लिए रसोये को भी लिया और यह कल्पना शत-प्रतिशत मेरे दिमाग से थी और लगभग तिन हप्ते से ज्यादा समय की यह यात्रा ठहराने की व्यवस्था से लेकर खाने-पीने और विभिन्न स्थानों पर देखने के लिए जाने कि योजना मैंने ही बना कर सही सलामत निभाई है और सभी विद्यार्थियों को दीपावली दिन अपने-्र अपने घरों में पहुंच ने कि व्यवस्था मुझे आज भी सोचकर हैरानीकी बात लगती है कि 18-19 साल की उम्र में मैंने यह सब कुछ कैसे किया होगा ? राष्ट्र सेवा दल के संस्कार !

अन्य पाँच साल पहले 1973 से 76 तक राष्ट्र सेवाएं दल के पूर्ण समयके समय मैंने अमरावती, अकोला, नागपुर में दलित पैंथर की शुरुआत करने के लिए विशेष रूप से मदद की है ! क्योंकि हमारे साक्री धुलिया जिलेके दोस्त लतिफ खाटिक और नामदेव ढसाळ पूर्व सेवा दल के सैनिक इन दोनों मित्र की सोहबत के कारण विशेष रूप से मदद की है ! और 76 मे जेपी आंदोलन केवल कारण अमरावती जेल में जाने तक मै पूर्ण समय और बाद में 1977 से जेपी के छात्र युवा संघर्ष वाहिनी के काम में 1980 मे शादी के बाद हाऊस हज्बंड की भूमिका में !

डाॅ सुरेश खैरनार

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