आज 30 जनवरी है बापू की शहादत को याद करने का दिन। कल ओम थानवी ने कहा , सत्य अल्पसंख्यक हो गया है यानी असत्य बहुसंख्यक है। दूसरा आज राहुल गांधी अपनी ऐतिहासिक ‘भारत जोड़ो यात्रा ‘ का समापन कर रहे हैं। यात्रा में शुरु से चल रहे यात्री और राहुल गांधी की जितनी तारीफ की जाए कम है। यह तो हुई आज की बात।
   अब शीर्षक पर आते हैं। सच है कि आज के भूल भुलैया और न समझ आने वाले समाज, राजनीति और वातावरण में आप जो दिखाओ दर्शक दिमाग के आंख कान बंद करके आपको देखेगा और सुनेगा, क्योंकि उसके सामने यक्ष प्रश्न है कि 2024 में मोदी जी प्रधानमंत्री रहेंगे या नहीं। सोशल मीडिया का दर्शक और श्रोता नहीं चाहता कि मोदी जी प्रधानमंत्री रहें । वह विकल्प की उधेड़बुन में है । आप जो दिखाएंगे वह देखेगा। देख ही रहा है। वह चाहे फूहड़ किस्म के लोगों के साथ आपकी फूहड़ चर्चाएं हों या आपकी समाज को लेकर प्रतिबद्धताओं वाली सारगर्भित चर्चाएं, इंटरव्यू और एकल टिप्पणियां हों । दर्शक और श्रोता सब देखता और सुनता है। अझेल चीजों को भी झेलता है। उदाहरण देता हूं।
  एक चैनल पर तय हुआ कि अगले हफ्ते अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के श्याम मानव को बुलाया जाएगा। चैनलों पर बहुत उत्पात मचा रहे एक तथाकथित बाबा को चुनौती देने वाले श्याम मानव को। उस चैनल पर जिन पत्रकार सज्जन के नाम से उस शो का नाम है कि उनके साथ । हम सब श्याम मानव को सुनना चाहते थे। कार्यक्रम हुआ लेकिन उसमें वे नहीं थे जिनके नाम से शो था । दूसरे दो पत्रकार और श्याम मानव थे । पहले तो समझ नहीं आया कि ये ‘महान’ और ‘धुरंधर’ पत्रकार क्यों थे । खैर श्याम मानव ने बोलना शुरु किया। कुछ देर बाद उनमें से एक चालाक और अति महत्वाकांक्षी पत्रकार ने श्याम मानव की भूमिका और प्रसंग के नाम पर जो हस्तक्षेप किया तो देर तक अपनी भड़ास निकालते चले गये। वे भूल गये कि उनको केवल श्याम मानव का प्रसंग और संदर्भ देना था । पर वे भूले नहीं बेहद चालाक व्यक्ति हैं । जानते थे कि श्याम मानव ने बोलना शुरु किया तो उनका नंबर नहीं आने वाला । फिर उसके बाद दूसरे भड़ भड़ करने वाले ‘नानस्टाप’ पत्रकार । यानी आधे से ज्यादा समय इन दो – ‘मेरे तईं चालाक और धूर्त’ – पत्रकारों ने जो बोला वो गैरजरूरी ही नहीं अप्रासंगिक भी था । संचालक महोदय ने तो दूसरे पत्रकार को आज के समय का अर्जुन तक बता दिया । किसी का दिमाग बैठे बैठाए कैसे चढ़ा कर खराब किया जाता है इसकी मिसाल है। पूरे समय श्याम मानव का चेहरा देखने वाला था । वे बोले लेकिन जितना समय शेष रहा उसी में । आप जो दिखाएं दर्शक देखेंगे क्योंकि वे दिमाग को ज्यादातर तालाबंद करके देखने के आदी हो गए हैं। मुझे कई लोगों ने लिखने को कहा इसलिए मैंने लिखा । श्याम मानव के साथ मुकेश कुमार ने भी एक घंटे बात की वह सुनने लायक है। अगर हम मुकेश कुमार का यह कार्यक्रम नहीं देखते तो समझ ही नहीं पाते कि माजरा क्या है। ऐसे कार्यक्रम तालाबंद दिमाग को खोलते ही हैं । और एक वह कार्यक्रम था जिसने गुस्सा ही गुस्सा दिया । दर्शक और श्रोता तो बंधा हुआ है। समझदार दर्शक अच्छे बुरे कार्यक्रमों को छांट लेता है। ‘लाउड इंडिया टीवी’ पर अभय दुबे शो नियमित रूप से प्रबुद्ध लोगों द्वारा देखा जाना इसकी मिसाल है ।
    अच्छे कार्यक्रमों में हम सबसे ऊपर मुकेश कुमार के कार्यक्रमों को रखते हैं । वहां विषय गम्भीर हैं और संचालन गम्भीर है । कभी कभी कुछेक को छोड़कर अक्सर पैनल पर लोग प्रभावित करने वाले होते हैं। पटरी से उतर रहे पैनलिस्ट को बीच में टोक कर दोबारा पटरी पर लाना आप और कहीं नहीं देखेंगे । आजकल अंत में दर्शकों की टिप्पणियां भी ली जाने लगी हैं । मुकेश कुमार चाय वाय की शोषेबाजी नहीं करते । वे तो वही लोग हैं जो मजे के लिए (फूहड़) प्रोग्राम करते हैं । ऐसा एक प्रोग्राम रोज शाम चार बजे आता है । ऐसे ही घिसे पिटे पैनलिस्टों की भीड़ शाम सात बजे के प्रोग्राम में दिखाई देती है। इसलिए लोग चार और सात वाला कार्यक्रम नहीं देखते । वैसे भी अंबरीष कुमार रोबोट जैसे लगते हैं। जो व्यक्ति कार्यक्रम की विस्तृत भूमिका न दे सके वह कैसा संचालक । आठ , नौ और दस बजे के कार्यक्रम देखने लायक बनते हैं । लोगों ने कहा आशुतोष पर टिप्पणी कीजिए । हमने मना कर दिया । कई बार की । लेकिन उनके बारे में उन्हीं के एक साथी ने ‘जिद्दी और ‘रिजिड’ शब्द का इस्तेमाल करते हुए कहा कि आपके कहने लिखने से कुछ नहीं होगा । इसलिए मैंने लिखना बंद कर दिया। बस इतना कह सकता हूं विद्वान हैं, पीआर बहुत अच्छा है , असंख्य दोस्त हैं लेकिन संचालन घटिया ही नहीं बेहद घटिया है । किसी पैनलिस्ट को बोलते हुए ‘टीक (ठीक) है’ जैसे ही बोलते हैं उसकी फूंक सरकने लगती है । दूसरी ओर हैं आलोक जोशी। उनका तो जवाब नहीं । बेहद गंभीर और सौम्य। पर उनकी खिलती और बंद होती ‘कली’ जैसी मुस्कुराहट पर तो हम कई बार लिख चुके हैं। किसी से कहो देखो उनकी मुस्कुराहट, जब तक वह देखेगा वे गम्भीर हो जाएंगे । यह तो हुई हल्की फुल्की बात । लेकिन उनके कार्यक्रम गजब और गम्भीर होते हैं । अडानी पर लगातार उन्होंने एक जिम्मेदार पत्रकार के नाते लगातार तीन चार दिन कुछ न कुछ अलग तरीके से कार्यक्रम किये । आलोक जोशी यह भी अच्छी तरह खयाल रखते हैं कि गम्भीर कार्यक्रम लायक विषय हो तभी कार्यक्रम किया जाए । इसलिए बीच बीच में उनके प्रोग्राम नहीं भी होते । लेकिन आप उस दिन मूर्ख बन ही जाते हैं जिस दिन अपने प्रिय व्यक्ति का ‘भाड़’ जैसा कार्यक्रम देखें । शनिवार को रात दस बजे फिल्म पठान पर कार्यक्रम में पहले तो छः छः लोगों की भीड़ जुटा ली फिर सबकी हवा सरकाते रहे । अब यह भी अच्छा हो गया है कि जिसे फिल्म से संबंधित कोई कार्यक्रम करना होता है वह अमिताभ श्रीवास्तव की टीम पकड़ लेता है। सब कुछ गिना चुना है । पर कार्यक्रम तो करना ही है न । दर्शक तो देखेगा ही । मूढ़ जो ठहरा । वह मुख्य धारा का मीडिया नहीं देखना चाहता । शीतल पी सिंह को लोग बहुत पसंद करते हैं ।
   कार्यक्रम वे अच्छे लगते हैं जिनमें कुछ या कोई ‘एक्सपोज़’ हो, दो लोगों की बातचीत या इंटरव्यू हो, लल्लन टॉप जैसे रोचक और अलग अलग विषयों पर बात हो । जिनसे आप कुछ पायें , ज्ञानवर्धन करें, राजनीति की चाल और उसके जाल को समझने में मदद मिले । ‘न्यूज क्लिक’ पर नीलांजन मुखोपाध्याय के सिवा ऐसा कुछ नहीं होता जिससे आपकी समझ में इजाफा हो । उर्मिलेश हों, भाषा सिंह हों या अभिसार शर्मा ये सब पिटी पिटाई बातों पर अपना ज्ञान बखारते हैं । इससे बेहतर तो ‘न्यूज लाण्ड्री’ के कार्यक्रम होते हैं जिनमें काफी रोचकता होती है । ‘वायर’ में अपूर्वानंद और सिद्धार्थ वरदराजन की बातचीत के अलावा, जानकारीपरक कार्यक्रम और आरफा खानम शेरवानी के मेहनत के साथ किये कार्यक्रम भाते हैं लोगों को । इसीलिए आरफा ने पत्रकारों के बीच अपनी विशेष जगह बनायी है । बीबीसी रिपोर्ट पर उनका कार्यक्रम हो या आकार पटेल से बातचीत दोनों देखने लायक रहे । मुकेश कुमार ने भी आकार पटेल से बढ़िया और बेबाक बातचीत की । मुकेश कुमार की गम्भीरता का एक और प्रमाण है उनका साहित्य पर बना कार्यक्रम ‘ताना बाना’ । उसमें उनकी डिबेट बहुत गम्भीर विषयों पर होती है अक्सर । कल की डिबेट ‘साहित्य में बौद्धिक नेतृत्व’ पर थी । ओम थानवी, राजेश जोशी और नासिरा शर्मा के साथ । तीनों की बातचीत से जो निकल कर आया वह यह कि आज यदि बौद्धिक नेतृत्व गायब है तो उसके लिए बाजारवाद, नयी जेनेरेशन में भटकाव की स्थिति और मौजूदा राजनीतिक सामाजिक माहौल जिम्मेदार है। ओम थानवी ने कहा कि सर्वत्र सन्नाटा है और सन्नाटे में डर का भय है । उनका मानना था कि प्रतिरोध की आवाज बुलंद करना जरूरी है। तमाम संगठन हैं जिन्हें आगे आना चाहिए ।
   पत्रकारों और बौद्धिकों की दुनिया में ढेर सारे नाम हैं जिन्हें सोशल मीडिया पर अपने विचार साझा करने चाहिए। रोज रोज के कार्यक्रमों में एक से लोगों को देख कर ऊब पैदा होती है । कोई कितना ही विद्वान हो अगर हर रोज उसका चेहरा सामने आने लगे तो वह ‘बूचढ़’ व्यक्ति लगने लगेगा। एक ही व्यक्ति का रोज एक ही परिचय, रिकार्ड ही करके क्यों न रख लेते भाई । हमको तो शीबा असलम फहमी पर तरस आता है । उन्हें तो बस हिंदू मुस्लिम विषयों तक ही सीमित कर दिया गया है ‌। यह महिला इतना धारदार बोलती और वास्तविकता को उजागर करती हैं । लेकिन दूसरे तमाम विषयों पर तो इन्हें बुलाया ही नहीं जाता । बहरहाल !!
     अब सौ टके का सवाल है कि 2024 में मोदी फिर प्रधानमंत्री बनेंगे क्या ? ‘लाउड इंडिया टीवी’ पर अभय दुबे को सुनिए । उन्होंने बताया है कि मोदी और भाजपा के क्या समीकरण हैं । उन समीकरणों को जब तक नहीं तोड़ा जाता तब तक मोदी आगे ही रहेंगे। राहुल गांधी या कांग्रेस के लिए उस लिहाज से दिल्ली अभी बहुत दूर है । कार्यक्रम में बाद के आधे हिस्से में अभय दुबे को जरूर सुनिए । सब कुछ स्पष्ट हो जाएगा । कांग्रेस ने तो अभी शुरुआत की ही है ।
  अमिताभ श्रीवास्तव का इस हफ्ते का कार्यक्रम ‘सिनेमा संवाद’ जैसे तयशुदा ही था । लगता था पठान फिल्म पर ही होना है, वही हुआ भी । अमिताभ को अपनी टीम में बदलाव करते रहना होगा । वरना देर नहीं लगेगी जब जवरीमल्ल पारेख , धनंजय कुमार और अजय ब्रह्मात्मज के चेहरों से लोग बोर हो जाएंगे । कल सामान्य ही था कुछ खास तो नहीं । लेकिन धनंजय की यह बात सही लगी कि पब्लिक ‘बायकाट गैंग’ को सबक सिखाने के लिहाज से फिल्म देखने आयी इस भ्रम को निकाल ही दिया जाए तो बेहतर है । यह बात उन्होंने परसों रात के प्रोग्राम में कहीं थी।
   रवीश कुमार इन दिनों दिखाई नहीं दे रहे । पछाड़ खाये अडानी से खींच ही लिया जाय एनडीटीवी तो अच्छा हो । पूरे देश में इन दिनों चौतरफा मोदी के खिलाफ माहौल है और अब तो अडानी भी । फिर भी साहेब ! ‘आएगा तो मोदी ही’ । क्यों और कैसे इसका गणित साफ है अभय दुबे से समझ लीजिए ।

 

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