56लोक जनशक्ति पार्टी के नेता और बालू के कारोबारी बाहुबली बृजनाथी सिंह को पटना के कच्ची दरगाह इलाके में गोलियों से भून दिया गया. उन्हें एके 47 की दस गोलियां मारी गईं. गोली लगने से उसी क्षण उनकी मौत हो गई. उनका पुत्र, पत्नी व भाई की पत्नी गंभीर रूप से घायल हैं. इस मामले में राघोपुर (लालू प्रसाद, राबड़ी देवी और अब तेजस्वी प्रसाद यादव के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र) के एक अपराधी सरगना मुन्ना सिंह सहित अन्य लोगों पर प्राथमिकी दर्ज कराई गई है. इस प्रकरण में अब तक पुलिस ने कई गिरफ्तारियां की हैं, लेकिन घटना का मुख्य सरगना मुन्ना सिंह को अभी तक पकड़ा नहीं जा सका है.

बिहार में आपराधिक सरगनाओं ने नए सिरे से एक बार फिर धड़ल्ले से एके-47 का इस्तेमाल शुरू किया है. इसके पहले दरभंगा जिले में एक सड़क निर्माण कंपनी के दो अभियंताओं की हत्या भी दिन-दहाड़े एके 47 से ही की गई थी. निर्माण कंपनी से रंगदारी को लेकर उक्त दोनों अभियंताओं की हत्या अपराधी सरगना संतोष झा के गिरोह के शूटर मुकेश पाठक और उसके साथियों ने की थी.

संतोष झा तो जेल में बंद है, पर मुकेश पाठक अब भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर ही है. इसी गिरोह ने इससे पहले दिसम्बर 2015 में नई सरकार के बनने के तीन हफ्ते के भीतर शिवहर में एक निर्माण कंपनी के सुपरवाइजर की सरे बाजार दिन-दहाड़े हत्या की थी. इसमें भी एके 47 का ही प्रयोग किया गया था. इससे भी पहले, सरकार के शपथ लेने के एक हफ्ते के भीतर मुज़फ़्फ़रपुर के माड़ीपुर इलाके में एक निर्माण कंपनी के अधिकारी के आवासीय कार्यालय पर एके 47 से ताबड़तोड़ गोलियां बरसाई गई थीं.

बिहार में पिछले वर्षों में इस अत्याधुनिक घातक हथियार का इस्तेमाल कम हो गया था-कहीं-कहीं इसका इस्तेमाल होता था, लेकिन पिछले हफ्तों में इसका इस्तेमाल फिर तेजी से किया जाने लगा है. बिहार में अपराधी सरगनाओं के पास एके 47 होने की पुलिस को क्या जानकारी है, यह कभी खुलासा नहीं किया गया, लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि सूबे में इस घातक हथियार की कमी नहीं है. ऐसा माना जा रहा है कि सूबे में एके 47 ही नहीं, एके 56 भी काफी है. ऐसे हथियारों की संख्या दो सौ से अधिक है. सिवान, मुजफ्फरपुर, पटना, वैशाली, पूर्वी चंपारण, बेगूसराय, गया आदि जिलों में सक्रिय अपराधी सरगना ऐसे घातक हथियारों से लैस हैं.

जिन लोगों के पास यह गैर कानूनी हथियार होने की अनौपचारिक जानकारी है, उनमें कोई डेढ़ दर्जन जनप्रतिनिधि भी हैं. सूबे के अपराधी सरगनाओं के जिम्मे एके 47 या ऐसे हथियार का होना पुलिस के लिए सरदर्द है. हालांकि यह गैरकानूनी है, पर सरगनाओं (बाहुबली जनप्रतिनिधि भी कहिए) के लिए यह स्टेटस सिम्बल बन गया है. वे इसे रखते हैं, इसका धड़ल्ले से उपयोग करते हैं. यहां तक कि सरगना इसे भाड़े पर भी देते हैं, लेकिन पुलिस के हाथ ये शायद ही आते हैं.

सूबे में अपराधी सरगनाओं से सत्ता को नई चुनौतियां मिल रही हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनके उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव तो हर मौके पर सूबे में कानून व्यवस्था के नियंत्रित होने का दावा करते हैं. मुख्यमंत्री या उप-मुख्यमंत्री के साथ-साथ राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद भी उपलब्ध सभी सार्वजनिक मौकों पर बिहार की स्थिति को बेहतर बताते हुए भाजपा और उसके सहयोगी दलों पर सूबे में माहौल बिगाड़ने का आरोप लगाते रहे हैं.

सत्तारूढ़ महागठबंधन के तीसरे घटक दल कांग्रेस के नेता भी ऐसा ही दावा करने में पीछे नहीं रहते. पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने तो संगठित अपराध की घटनाओं में वृद्धि को जातिगत रंग देने तक की कोशिश की है. राज्य के पुलिस महानिदेशक पीके ठाकुर ने गत दिनों ब्योरा देकर दावा किया कि सूबे में नई सरकार बनने के बाद से अपराध का र्ग्रों नीचे आया है, लेकिन संगठित अपराधी गिरोहों से सरकारी तंत्र को अपने तरीके से जवाब मिल रहा है.

पिछले एक महीने की घटनाएं इसे साबित भी कर रही हैं और अब हालात ये बने हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनके सहयोगियों ने इस सवाल को लेकर मीडिया को भी निशाने पर लेना आरंभ कर दिया है. सूबे में ऐसे माहौल बनने के कई कारण हैं. पुलिस तंत्र जड़ हो चुका है, पुलिस का र्खुिेंया तंत्र लगभग ध्वस्त हो गया है. साधनों की कमी है सो अलग. आपराधिक गिरोहों की गतिविधि का पुलिस को पता ही नहीं चलता. ऐसे भी उदाहरण हैं कि पुलिस कई सूचनाओं को गंभीरता से नहीं लेती.

शिवहर में निर्माण कंपनी के सुपरवाइजडर की हत्या, दरभंगा में अभियंताओं की हत्या, पटना के मैनपुरा इलाके में जनवरी में स्वर्ण व्यवसायी की हत्या, कच्ची दरगाह में बृजनाथी सिंह की हत्या आदि घटनाएं इसके ज्वलंत प्रमाण हैं. शिवहर में सुपरवाइजर को और दरभंगा में निर्माण कंपनी को रंगदारी के लिए धमकी मिल रही थी. पुलिस को जानकारी दी गई थी. पटना के स्वर्ण व्यवसायी को धमकी मिल रही थी, वह रंगदारी भी दे रहा था. पुलिस को जानकारी हो या न हो, इलाके के लोग जानते थे. बृजनाथी सिंह की हत्या की आशंका भी जताई जा रही थी. बृजनाथी की हत्या का घटनाक्रम बताता है कि बड़ी तैयारी के साथ इसे अंजाम दिया गया.

ऐसी घटनाओं में या तो पुलिस ने तत्परता से काम नहीं किया या उसका र्खुिेंया तंत्र नकारा साबित हुआ. घटना के बाद के हालात भी सत्ता के इकबाल के खतरे में होने का ही संकेत देते हैं. मुजर्फ्ेंरपुर, शिवहर, दरभंगा, पटना की इन घटनाओं के साथ-साथ सीतामढ़ी, छपरा, पूर्वी चंपारण, गोपालगंज की अनेक घटनाओं के सरगनाओं के गिरेबां तक पुलिस के हाथ नहीं पहुंचे हैं. इतना ही नहीं, इन घटनाओं में प्रयुक्त वाहन व आला-ए-वारदात जैसे आवश्यक साक्ष्य भी पुलिस के हाथ नहीं आए हैं.

बिहार में महागठबंधन की सरकार लगभग ढाई महीने से है. इस सरकार को लेकर न केवल नकारात्मक भाव बन रहा है, बल्कि यह भाव गहरा भी होता जा रहा है. राज्य सरकार के कई वरिष्ठ मंत्री और कानून के राज्य के हिमायती सत्तारूढ़ गठबंधन के अनेक बड़े नेता भी निजी बातचीत में हालात को गंभीर मानने लगे हैं. उन्हें भी लगने लगा है कि सूबे में कानून व्यव्स्था के हालात पकड़ से बाहर होते जा रहे हैं. हालांकि वे मानते हैं कि अब भी स्थिति वैसी नहीं है, जैसा कुछ विपक्षी नेता या सूबे के कुछ हल्कों में उसे प्रचारित किया जा रहा है. राज्य का सत्तारूढ़ महागठबंधन इस बात से आश्वस्त है कि उसे र्िेंलहाल किसी राजनीतिक चुनौती का खतरा नहीं है.

बीमा भारती के पति अवधेश मंडल का प्रकरण हो या अतरी की विधायक कुंती देवी के र्ेंरार पुत्र रंजीत द्वारा चिकित्सकों की पिटाई का मामला हो या कांग्रेसी विधायक सिद्धार्थ शर्मा से जुड़ा प्रकरण, बिहारी समाज के मन में कई शक हैं. इन घटनाओं से जुड़े अनेक सवालों का खुलासा न तो राजनीतिक स्तर पर ही हो रहा है और न ही प्रशासनिक स्तर पर. ऐसे प्रकरण और इनसे उठ रहे सवाल सूबे के आम हालात को प्रभावित तो करते ही हैं, सत्ता के इकबाल के कायम रहने के दावों की गंभीरता को भी नष्ट करते हैं.

इसका सीधा असर जन-धारणा (पब्लिक परसेप्शन) के निर्माण पर पड़ने लगा है. यह सही है कि लोग अब भी देर रात तक सड़कों पर होते हैं, बच्चों को स्कूल भेज रहे हैं, लेकिन यह भी सही है कि बिहार में रंगदारी और रंगदारी के लिए अपहरण या हत्या जैसे जघन्य वारदात का सिलसिला इन दिनों तेज होता दिख रहा है. जो अपराधी सरगना बाहर हैं, उनकी तो बहार ही बहार है, पर जो जेलों में बंद हैं, वे भी बेअसर हैं. अपराधी सरगनाओं को जेलों में सारी सुविधाएं उपलब्ध हो रही हैं और उनका कारोबार र्ेंल-फूल रहा है. ऐसे हालात में बदलाव बिहारी समाज में भरोसा जगाने और जन-धारणा को सकारात्मक बनाने के लिए जरूरी है. 

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