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  • रिलायंस जियो की मनमानी को सरकारी सहमति ने डुबोई बाकी कम्पनियों की नैया
  • वित्तीय संकट से जूझ रही कम्पनियों के लिए सरकार उठाएगी ‘सकारात्मक’ कदम
  • टाटा टेलीकॉम ने 29,000 करोड़ चुकाने के लिए मांगी 20 साल की मोहलत
  • रिलायंस कम्युनिकेशन को 44,000 करोड़ चुकाने के लिए मिला दिसंबर तक का समय

पिछले महीने की 23 तारीख को केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू द्वारा किसानों की कर्जमाफी को फैशन बताने वाले बयान से ठीक एक दिन पहले 22 जून को संचार राज्यमंत्री मनोज सिन्हा कर्ज में डूबी दूरसंचार कंपनियों की समस्याएं सुन रहे थे. दूरसंचार क्षेत्र की दिग्गज कंपनियों के प्रतिनिधियों के साथ मनोज सिन्हा की ये मुलाकात कंपनियों को घाटे और कर्ज की मार से बचाने को लेकर हुई थी.

इस बैठक में भारती एअरटेल के चेयरमैन सुनील मित्तल, रिलायंस कम्युनिकेशंस के चेयरमैन अनिल अंबानी, आइडिया सेल्युलर के प्रबंध निदेशक हिमांशु कपानिया, टाटा संस के निदेशक इशात हुसैन और रिलायंस जियो के बोर्ड मेंबर महेंद्र नाहटा मौजूद थे. करीब दो घंटे तक चली इस बैठक के बाद मनोज सिन्हा ने कहा कि इस सम्बंध में जल्द ही अंतर मंत्रालय समूह की रिपोर्ट आने वाली है. सरकार कर्ज में फंसे इस उधोग के लिए सकारात्मक कदम उठाएगी.

गौर करने वाली बात ये है कि कॉर्पोरेट की समस्याओं के प्रति सकारात्मक रुख दिखाने वाली सरकार किसानों से जुड़ी समस्याओं पर हमेशा ही उदासिन बनी रहती है. किसानों की कर्जमाफी या दूसरे मुद्दों पर तब तक उनकी बात नहीं सुनी जाती, जब तक वे आंदोलन का रास्ता नहीं अपना लेते या सरकार को उनसे कोई चुनावी हित नहीं दिखता. हाल ही में तमिलनाडु के किसानों का दिल्ली के जंतर-मंतर पर हुआ आंदोलन सबने देखा.

किस तरह से वे सरकार तक अपनी बात पहुंचाने के लिए प्रयास करते रहे और किस तरह सरकार उन्हें नजरअंदाज करती रही. उनकी समस्याओं के प्रति सकारात्मक रुख दिखाने का आश्वासन तो दूर, प्रधानमंत्री जी उनसे मिले तक नहीं. वित्त मंत्री मिले भी, तो उन्होंने गेंद कृषि मंत्री के पाले में डाल दी और जब ये किसान कृषि मंत्री से मिले तो उन्होंने किसानों की समस्या को वित्त मंत्रालय से जुड़ा बताकर अपना पल्ला झाड़ लिया.

उत्तर प्रदेश चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री जी घूम-घूम कर कहते रहे कि भाजपा की सरकार आई, तो किसानों की कर्जमाफी की जाएगी. उस समय वेंकैया नायडू ने एक बार भी नहीं कहा कि ये कर्जमाफी अब फैशन बनती जा रही है. उस समय भरतीय स्टेट बैंक की चेयरमैन अरुंधति भट्‌टाचार्य को भी ये नहीं दिखा कि किसानों की कर्जमाफी से वित्तीय अनुशासन बिगड़ेगा. जब सियासी हित सध गया, तब सभी को किसानों की कर्जमाफी से अर्थव्यवस्था को खतरा नजर आने लगा.

कॉर्पोरेट को राहत, किसानों पर आफत

कर्ज चुकाने के लिए बैंकों के दबाव के आगे दम तोड़ते किसानों की खबरें हर दिन सामने आ रही हैं. इसी बीच खबर ये भी है कि अनिल अंबानी की कम्पनी रिलायंस कम्युनिकेशंस को 44,000 करोड़ का कर्ज चुकाने के लिए बैंकों ने दिसंबर तक का समय दे दिया है. वहीं, टाटा टेलिकॉम ने भी अपने 29,000 करोड़ के लोन भुगतान के लिए 20 साल का समय मांगा है. टाटा ने तो अपना नुकसान दिखाते हुए बैंकों से 5000 करोड़ का अतिरिक्त लोन भी मांगा है.

भारत की एक प्रमुख जमा आकलन एजेंसी, रेटिंग इंडिया की एक हालिया रिपोर्ट कहती है कि 2011 से 2016 के बीच कम्पनियों पर करीब 7.4 लाख करोड़ का ऋण होगा, जिसमें से चार लाख करोड़ के करीब का कर्ज मा़फ कर दिया जाएगा. ये सोचने वाली बात है कि किसानों की कर्जमाफी पर हायतौबा मचाने वाली सरकार और व्यवस्था कॉर्पोरेट की कर्जमाफी पर क्यों चुप्पी साध जाती है. और तो और इसे अर्थव्यवस्था के लिए जरूरत बता दिया जाता है. जब किसानों की कर्ज माफी की बात की जाती है, तो ऊपर बैठे जिम्मेदार लोगों को इसमें अर्थव्यवस्था का नुकसान दिखने लगता है.

उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद जब कर्जमाफी लागू करने की योजना पर विचार हो रहा था, तब भारतीय स्टेट बैंक की चेयरमैन अरुंधति भट्‌टाचार्य का एक बयान आया था कि ऐसी कर्जमाफी से वित्तीय अनुशासन बिगड़ जाता है और एक बार कर्ज माफ कर देने के बाद किसान फिर आगे भी ऐसी मांग करता है. ध्यान देने वाली बात ये है कि किसानों की कर्जमाफी से वित्तीय अनुशासन बिगड़ने को लेकर चिंतित एसबीआई चेयरमैन की ये चिंता उस समय कम्पनियों के साथ हो जाती है, जब उन्हें कर्ज में रियायत देने की बारी आती है.

कर्ज में डूबे टेलीकॉम सेक्टर को सरकारी मदद के लिए हाल ही में अरुंधति भट्‌टाचार्य ने अपील की थी. उन्होंने कहा था, टेलीकॉम मिनिस्ट्री को देखना चाहिए कि क्या कम्पनियां मुश्किल स्थिति का सामना कर रही हैं. अगर उन्हें किसी तरह की मदद की जरूरत है, तो मिनिस्ट्री को पहल करनी चाहिए. उनके लिए प्रो-एक्टिव कदम उठाने की जरूरत है. मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविन्द सुब्रमण्यम ने तो कॉर्पोरेट कर्जमाफी को पूंजीवाद के काम करने का तरीका बता दिया.

भाई ने डुबोया, बैंक उबार रहे

अनिल अंबानी की कम्पनी रिलायंस कम्युनिकेशंस पर 10 विभिन्न बैंकों का 44,000 करोड़ का कर्ज है. पहले से कर्ज के बोझ और अब घाटे की मार को कारण बताते हुए आरकॉम ने अभी कर्ज चुकाने में असमर्थता जताई, जिसके बाद बैंको ने उसे दिसम्बर तक का समय दे दिया. उसमें भी दिसम्बर तक कम्पनी पूरा कर्ज नहीं चुकाएगी. उसे बस कर्ज का 60 फीसदी ही भुगतान करना होगा.

कम्पनी को दी गई इस राहत को स्ट्रैटेजिक डेट रीस्ट्रक्चरिंग (एस.डी.आर.) का नाम दिया गया है. रिलायंस ने ये राहत पाने के लिए कई कारण बताए थे, जिनमें आरकॉम का रेटिंग गिरना भी प्रमुख था. मूडीज, फिच सहित कई एजैंसियों ने आरकॉम की रेटिंग घटा दी है. फिच रेटिंग्स ने आरकॉम के शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म डेट को डाऊनग्रेड करते हुए डिफॉल्ट की आशंका जाहिर की थी. वहीं केयर रेटिंग्स और इक्रा ने कम्पनी को डाऊनग्रेड किया था. खराब रेटिंग के बाद आरकॉम के शेयर 20 प्रतिशत तक गिर गए हैं.

इस भारी कर्ज को नहीं चुका पाने के कारण कई बैंकों ने तो आरकॉम को अपनी एसेट बुक में स्पेशल मेंशन अकाउंट (एसएमए) के तौर पर दर्ज कर लिया है. एसएमए लोन वो होते हैं जिसमें कर्ज लेने वाले ने ब्याज नहीं चुकाया होता है. अगर तय तारीख से 30 दिनों तक इन लोन का भुगतान नहीं किया जाता तो उसे एसएमए 1 और अगर 60 दिनों बाद उसे एसएमए 2 श्रेणी में डाल दिया जाता है. लेकिन अगर 90 दिनों के बाद भी बैंक को बकाया वापस नहीं मिलता है, तो बैंक उसे नॉन परफॉर्मिंग असेट (एनपीए) में डाल देते हैं. रिलायंस कम्युनिकेशंस के इस केस से कॉर्पोरेट कर्जमाफी का पूरा खेल समझा जा सकता है.

रिलायंस जियो ने दूरसंचार उद्योग को गर्त में ढकेल दिया

जिस जियो को दूरसंचार क्षेत्र में क्रांति का अग्रदूत बताया गया, वो अब इस सेक्टर को डुबाने का कारण बनता दिख रहा है. रिलायंस जियो के फ्री प्लान्स अन्य दूरसंचार कम्पनियों के लिए भारी घाटे का सबब बन गए. 2016-17 में दूरसंचार उद्योग के कारोबार में पहली बार गिरावट आई है और कुल आय घटकर लगभग 2.10 लाख करोड़ रह गया है. आइडिया को 2016-17 में 404 करोड़ का घाटा झेलना पड़ा और उसका रेवन्यू 0.8 प्रतिशत गिरकर 35,883 करोड़ रुपए तक पहुंच गया.

इससे पहले वित्त वर्ष 2015-16 में तो कम्पनी को 2,278 करोड़ का घाटा हुआ था. कम्पनी को हुए नुकसान का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि आइडिया ने पहली बार अपने प्रमोटर और चेयरमैन कुमार मंगलम बिड़ला के वेतन में भारी कटौती की है. वित्त वर्ष 2016-17 में बिड़ला की सैलरी 13.15 करोड़ से गिरकर 3.30 लाख रुपए हो गई. इतना ही नहीं कम्पनी ने कई डायरेक्टर्स के वेतन में भी भारी कटौती की है. आइडिया के नॉन-एग्जिक्युटिव डायरेक्टर संजीव आगा की सैलरी 16.7 लाख से कम होकर 5.90 लाख रुपए तक आ गई है.

इस नुकसान को देखते हुए ही आइडिया ने वोडाफोन के साथ मर्जर का फैसला किया. इधर मुकेश अंबानी के भाई की कम्पनी रिलायंस कम्युनिकेशंस का भी बुरा हाल है. कंपनी को जनवरी-मार्च तिमाही में 966 करोड़ का नुकसान झेलना पड़ा था, जो उसका लगातार दूसरा तिमाही नुकसान था. इस नुकसान को देखते हुए ही रिलायंस ने एयरसेल और ब्रूकफील्ड के साथ डील करने का फैसला किया. टाटा टेलीकॉम को भी भारी नुकसान झेलना पड़ा है. वित्त वर्ष 2016-17 में उसके नेट वर्थ में 11,650 करोड़ की कमी आई है.

इधर रिलायंस जियों ने अपनी प्रतिस्पर्धी कम्पनियों के इन आरोपों को बे-बुनियाद बताया है और उल्टा इन कम्पनियों पर ही सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया है. रिलायंस जियो ने दूरसंचार मंत्रालय के समक्ष शिकायत दर्ज कर आरोप लगाया है कि भारती एयरटेल, वोडाफोन और आइडिया ने मार्च में उचित लाइसेंस शुल्क नहीं दिया, जिससे सरकार को 400 करोड़ रुपए का संभावित नुकसान हुआ है.


कर्जमाफी अब फैशन बन चुका है, कर्जमाफी केवल बहुत मुश्किल स्थितियों में ही होनी चाहिए. ये समाधान नहीं है. लेकिन किसानों का ख्याल रखना होगा.

-वेंकैया नायडू, केंद्रीय शहरी विकास मंत्री


इस सम्बंध में जल्द ही अंतर मंत्रालय समूह की रिपोर्ट आने वाली है. सरकार कर्ज में फंसे दूरसंचार उद्योग के लिए सकारात्मक कदम उठाएगी.

-मनोज सिन्हा, संचार राज्यमंत्री


सरकार को बड़े कॉर्पोरेट कर्जदारों को राहत देने की जरूरत है. आपको उन कर्जों को माफ करने में सक्षम होना चाहिए, क्योंकि पूंजीवाद इसी तरह से काम करता है. लोग गलतियां करते हैं, उन्हें कुछ हद तक माफ किया जाना चाहिए.

-अरविंद सुब्रमण्यम, मुख्य आर्थिक सलाहकार


टेलीकॉम मिनिस्ट्री को देखना चाहिए कि क्या कंपनियां मुश्किल स्थिति का सामना कर रही हैं. अगर उन्हें किसी तरह की मदद की जरूरत है, तो मिनिस्ट्री को पहल करनी चाहिए. उनके लिए प्रो-एक्टिव कदम उठाने की जरूरत है.

-अरुंधति भट्‌टाचार्य, चेयरमैन, भारतीय स्टेट बैंक

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