इन्हें मैं पत्रकार कहूं, नेता कहूं या फिल्मकार या व्यापारी या समाज के सरोकारी… हर एंगल से वे परफेक्ट नजर आते हैं। उन्हें संगीत के साधक और आम लोगों के साथ मौजूद रहने वाला कहा जाए तो भी उनके लिए सत्य वचन ही होगा। उसूलों की सियासत को भी उन्होंने एक नए आयाम के साथ खड़ा किया है। एक शख्स में होने वाली ढ़ेर सारी खूबियां और इन सबसे तालमेल बैठाए रखने की कुवत को हरफनमौला कहा जाए तो भी गैर मुनासिब नहीं होगा।

मुनव्वर कौसर, नाम से ही नफासत और नजाकत का अंदाज हो जाता है। मिलकर, साथ रहकर, परख कर और आजमा कर भी लोग इस बात की तस्दीक कर चुके हैं कि जो बात तुम में है, वह हर किसी में नहीं होती…। जिस रेशमी कालीन पर मुनव्वर भाई ने पहला कदम रखा था, उसकी नर्मी कई लोगों के दिमागों पर असर करती नजर आई है। चांदी के पालने से हुई जिंदगी की शुरूआत को उन्होंने न मगरूरी का रास्ता बनाया और न ही काहिली और मक्कारी ओढ? की वजह।

अपने दम पर खुद को साबित करने की उनकी चाहत ने उन्हें कारोबार से लेकर सियासत तक की गलियों में दाखिल किया। हर तरफ अपनी एक पहचान का परचम लहराते हुए वे कामयाबियों के शिखर पर मौजूद हैं। कारोबार, सियासत और समाजसेवा के बीच मुनव्वर भाई को संगीत की लहरों ने भी जकड? में गुरेज नहीं किया। एक इंसान के दिल में साहित्य और संगीत के लिए जगह होना ही इस बात को साबित करता है कि उसके दिल में नरमियों और रहम के लिए बहुत जगह बाकी है। जब कभी वे अपने करीबियों के बीच होते हैं, संगीत से अपनी रूह को सराबोर करने से नहीं चूकते।

जब मौका सामने आता है, किसी जरूरतमंद की मदद करने से भी पीछे नहीं हटते। मौके के दस्तक देने की वे राह देखना पसंद नहीं करते, कई बार वे इसके लिए गुंजाइशें खुद ही बना लेते हैं। लॉक डाउन के दौरान उनकी खामोश मदद, इमदाद और जरूरतमंदों तक सामान पहुंचाने की पहल भी लोगों को काफी पसंद आई थी। मुनव्वर के लिए ये पहला मौका नहीं था, वे इस तरह की कोशिशों से बरसों से जुड़े रहे हैं और मन की तसल्ली के लिए वे लोगों की मदद करना अपनी जिम्मेदारी मानते आए हैं।

हर मोर्चे पर खुद को साबित करने की कुवत और हिम्मत रखने वाली कोशिशों के माहिर भाई मुनव्वर कौसर की आज सालगिरह है। उनके लिए अपनी दुआओं का खजाना कम ही महसूस होता है। इस बात का अहसास है कि उनके लिए दुआ करने वालों की कमी नहीं है। वे लोग भी उनके लिए खुशियों और कामयाबियों की दुआएं करते हैं, जो जाहिरी तौर पर उनसे जुड़े हैं। दुआओं के लिए उनके दिलों से भी पुकार निकलती होगी, जिन्हें न खुद मुनव्वर जानते हैं और न ही ये दुआ करने वाले कभी मुनव्वर भाई से मिले। इन दोनों के बीच एक मुहब्बत भरे जज्बात का रिश्ता है, जो दिखाई तो नहीं देता, लेकिन महसूस जरूर किया जा सकता है।

अपनी तरफ से, अपने साथियों की तरफ से, मुनव्वर भाई को जानने वाले और गुमनाम मुहब्बत करने वालों की तरफ से सालगिरह की दिली मुबारकबाद…

खान अशु

भोपाल

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