6कांग्रेस पार्टी के खाते में अब केवल तिकड़म और परस्पर खींचतान ही शेष है. सियासी संभावनाओं और भविष्य की स्थापना के प्रयास पर कांग्रेस के नेताओं ने काम करना छोड़ दिया है. पिछले दिनों प्रदेश कांग्रेस की लखनऊ में हुई चिंतन बैठक ने चिंता का संदेश चारों तरफ़ प्रसारित करने का काम किया. सारे वरिष्ठ नेता इस बैठक से नदारद थे. ऐसा लगा कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी के भविष्य की चिंता करने का ज़िम्मा कनिष्ठ नेताओं एवं कार्यकर्ताओं पर छोड़ दिया है. भविष्य की रणनीति तय करने के लिए हुई इस बैठक में स़िर्फ 30 नेताओं को बुलाया गया था. इसे लेकर भी पार्टी में काफी असंतोष था कि उन्हें क्यों बुलाया, मुझे क्यों नहीं बुलाया. जिन्हें बुलाया गया, उन्होंने भी न आना ही बेहतर समझा. बैठक के बाद अपनी झेंप मिटाने के लिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. निर्मल खत्री ने मीडिया से कहा कि यह बैठक कोई अंतिम नहीं थी. ऐसी बैठकों का सिलसिला आगे भी जारी रहेगा. पार्टी पूर्व सांसदों एवं विधायकों के साथ भी चर्चा करेगी. लेकिन, खत्री ने भविष्य में होने वाली बैठकों में वरिष्ठों की मौजूदगी के मसले पर कुछ नहीं कहा.
दिलचस्प यह है कि वरिष्ठ नेताओं की ग़ैरहाजिरी के बावजूद राष्ट्रीय महासचिव मधुसूदन मिस्त्री यह कहते रहे कि चिंतन बैठक में संगठन, मुद्दों एवं प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया समेत विभिन्न विषयों पर बहुत उपयोगी सुझाव प्राप्त हुए हैं. मिस्त्री ने भी यह कहते हुए अपनी झेंप मिटाई कि कांग्रेस ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि महाराष्ट्र में सपा के साथ उसका कोई गठबंधन नहीं हुआ. जबकि सच यही है कि समझौता हुआ था, लेकिन वह महज तीन सीटों पर सोनिया गांधी द्वारा असहमति जताए जाने के बाद अगले ही दिन टूट गया. मिस्त्री का यह कहना भी हास्यास्पद लगा कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव होने में अभी ढाई साल का समय शेष है और कांग्रेस राज्य एवं केंद्र, दोनों सरकारों को एक्सपोज करेगी. इस एक्सपोज करने को लेकर पूछे गए सवालों पर मिस्त्री ने कहा कि दस सालों तक सत्ता में रहने के बाद कांग्रेस चुनाव हार गई, तो कोई भूचाल नहीं आ गया. कांग्रेस फिर से सत्ता में वापसी करेगी. राहुल गांधी लीडर हैं, हम उनके बारे में क्या चर्चा करेंगे. हम चर्चा यह कर रहे हैं कि भविष्य में हमें क्या करना है. मिस्त्री की बातें सुन रहे कांग्रेस के एक कनिष्ठ नेता ने कहा, भविष्य में हमें करना क्या है, चिंतन बैठकों से लापता रहना है.
उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनाव में जबरदस्त हार का मुंह देखने के बाद उत्तर प्रदेश में बुलाई गई पहली चिंतन बैठक में पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद, बेनी प्रसाद वर्मा, कैप्टन सतीश शर्मा, आरपीएन सिंह, कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य राज बब्बर, पूर्व सांसद बेगम नूर बानो, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में हिंदी एवं कंप्यूटर विभाग के अध्यक्ष अनिल शास्त्री, विश्‍वजीत पृथ्वीजीत सिंह और कांग्रेस के प्रभारी राष्ट्रीय सचिव राना गोस्वामी जैसे नेताओं ने हाजिर रहना मुनासिब नहीं समझा. अस्तित्व बचाने जैसी चुनौतियों से दो-चार कांग्रेस की चिंतन बैठकों से वरिष्ठ नेताओं की ग़ैरहाजिरी ने आलाकमान के सामने चिंता की ऊंची दीवार खड़ी कर दी है. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी बार-बार कह रही हैं कि यह आत्मचिंतन का वक्त है, लेकिन चिंतन बैठकों से वरिष्ठ नेताओं की ग़ैरहाजिरी आत्मचिंतन की दिशा को अलग ही मोड़ देने वाली है.
कांग्रेस में चिंतन बैठकों को काफी गंभीरता से लिया जाता रहा है. चिंतन बैठकों या चिंतन शिविरों का दौर कांग्रेस में 1974 से ही चल रहा है. 1974 में 22 से 24 नवंबर तक कांग्रेस पार्टी का चिंतन शिविर उत्तर प्रदेश के नरौरा (बुलंदशहर) में हुआ था. इंदिरा गांधी ने पार्टी के वरिष्ठ नेता हेमवती नंदन बहुगुणा को बैठक की ज़िम्मेदारी दी थी. तब बड़े-बड़े नेता उस बैठक में शरीक हुए थे. 1998 में कांग्रेस ने पंचमढ़ी में चिंतन-मंथन किया था, तब कांग्रेस की सबसे बड़ी चुनौती अपनी अध्यक्ष सोनिया गांधी की काबिलियत को साबित करना था. 2003 में शिमला में चिंतन बैठक हुई. तब कांग्रेस लगातार छह साल तक सत्ता से बाहर रहने की वजह से छटपटाहट में थी. 2012 के अंत में सोनिया गांधी के नेतृत्व में फरीदाबाद में चिंतन शिविर लगा. लोकसभा चुनाव के पहले जयपुर में आयोजित चिंतन शिविर और राहुल गांधी का भाषण भी लोगों को याद है.
लेकिन, लोकसभा चुनाव के बाद दृश्य बदल चुका है. राहुल की जी-हुजूरी में लगे रहने वाले नेता अब उनकी नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठा रहे हैं, चिंतन बैठकों के औचित्य पर सवाल उठा रहे हैं और उनमें जान बूझकर नहीं जा रहे हैं. पार्टी के एक पुराने नेता ने कहा कि कांग्रेस नरसिम्हाराव के कार्यकाल में संक्रमण के दौर से गुजरी और उससे उबर कर एक बार फिर संक्रमण काल में है. कांग्रेस नेतृत्व ऐसे संवेदनशील समय को बुद्धिमानी और कूटनीति से गुजार देना चाहता है. नेतृत्व पर उठ रहे सवालों के बीच ही पार्टी के आमूलचूल संगठनात्मक परिवर्तन की तैयारियां भी चल रही हैं. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस नए तेवर और नए संगठनात्मक ढांचे के साथ मैदान में उतरेगी. क्या मधुसूदन मिस्त्री और बेनी प्रसाद वर्मा जैसे थके चेहरे भी नए तेवर वाली कांग्रेस में शामिल रहेंगे? इस सवाल पर उक्त पुराने कांग्रेसी ने कहा कि घिसे-पिटे अनुत्पादक चेहरे पीछे चले जाएंगे और कुछ ऐसे चेहरे सामने आएंगे, जो जनता के लिए अप्रत्याशित तो होंगे, लेकिन अप्रिय कतई नहीं. यह इशारा कहीं प्रियंका गांधी के राजनीति की मुख्य धारा में शामिल होने की तरफ़ तो नहीं? इस सवाल पर उक्त नेता ने यह आग्रह करते हुए बात बंद कर दी कि ख़बर में उनका नाम न छापा जाए.

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