मोदी जी फिर अपने रंग में उतर आये हैं। आज की राजनीति कहती है, खासकर मोदी जी की, कि जितना शर्म को भूलोगे उतने सफल होते जाओगे। पहले जब मोदी जी रंग में हुआ करते थे तब अक्सर बचपन के किस्से अपने भाषणों में सुनाया करते थे। वह रंगत बंगाल की हार को निर्लज्जता से त्याग कर फिर उभर आयी है। अलीगढ़ की सभा में मोदी ने अपने चिर परिचित अंदाज में समां बांधा। जितना बांध सकते थे। विरोधियों ने जमकर सुना। उन्होंने जो चाहा वह बोला। वे झूठ के बादशाह हैं। यह दुनिया जान गयी है। मजा यह कि उनके समर्थक और दुनिया भर में फैले भक्त गण भी यह जानते समझते हैं। पर झूठ और झूठे का भी एक अपना ही आनंद होता है। विरोधी भी इस बात से आनंदित होकर सुनते हैं कि देखा जाए आज कितना झूठ फेंका जाएगा। एक और मजा यह कि इस झूठ की स्वीकार्यता भी आज के समाज में तबियत से बढ़ती जा रही है। क्योंकि सर्वत्र झूठ और भ्रष्टाचार का बोलबाला है।

राजसत्ता के प्रताप से ही देश चला करता है। अलीगढ़ में राजा महेंद्र प्रताप सिंह को कहां से उठा कर ले आया गया, देश तो अवाक है ही। हमने कहा था यूपी बंगाल नहीं है। यूपी में मोदी का आत्मविश्वास उतना ही बढ़ चढ़ कर बोलता है जैसे गुजरात में। इसीलिए गुजरात में अभी जो किया वह चुनाव आते आते स्थापित कर दिया जाएगा। अलीगढ़ की सभा पर एक बहस में वरिष्ठ पत्रकार संतोष भारतीय ने कई सटीक बातें कहीं। वह सुनना चाहिए। उन्होंने कहा ‘मोदी बेधड़क होकर इतिहास और भूगोल की अपनी व्याख्या करते हैं और इस पर उन्हें कोई संकोच नहीं होता। विपक्ष में ऐसा कोई नहीं जो उनके झूठ को चुनौती दे।’ उन्होंने कहा कोई विपक्ष इनका मुकाबला नहीं कर सकता। केवल जनता ही है जो कर सकती है। उन्होंने एक और तरफ इशारा किया। मथुरा के मंदिर मस्जिद विवाद की ओर।

जिसका खतरा संतोष भारतीय इन चुनावों में देख रहे हैं। यानि आने वाले चुनाव जाति और धर्म पर लड़े जाने वाले हैं। लेकिन लोग एक और महत्वपूर्ण बात पर गौर नहीं कर रहे। जो तीसरा मुद्दा सुरक्षित है वह है रक्षा का क्षेत्र। राजा महेंद्र प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रक्षा क्षेत्र को समर्पित है। इसके अलावा कल भी मोदी ने रक्षा कार्यालयों का उद्घाटन किया। एक संदेश गरीबों में बहुत साफ जा चुका है कि मोदी के चलते देश सुरक्षित हाथों में है। आज समाज में समस्याओं के संदर्भ में स्थिति विस्फोटक है। और लगता यही है कि आज चुनाव हो जाएं तो भाजपा को दिन में तारे देखने पड़ जाएंगे। पर जैसे आलोक जोशी कहते हैं कि सब कुछ होने के बाद भी लोगों का कहना है कि वोट तो मोदी को ही देंगे। अलीगढ़ में ताले का जिक्र छेड़ कर मोदी ने अलीगढ़वासियों को मीठी गोली दी तो बचपन की बात छेड़ कर मुस्लिमों को भी सहलाया। अब मेरठ में कैंची है तो मुरादाबाद में पीतल के बरतन। बचपन वहां भी दोहराया जाएगा। भले कुटुंब के लोग कहते रहें झूठ है झूठ है।

आज बीजेपी के सामने बहुत सी चुनौतियां हैं। छवि तो मलिन हुई ही है। मगर दो बातों पर ध्यान दीजिए। यह वो देश है जहां बड़े शहरों को छोड़ दिया जाए तो समूचे देश में इस कदर सहजता और भोलापन है कि कोई भी धूर्त बाजीगर दिलों पर लंबा प्रभाव छोड़ सकता है। कहना न होगा इस प्रयोग में मोदी अव्वल रहे हैं और आज तक हैं। दूसरा इस सरकार को हर मुद्दे को धुंधला कर देने में दक्षता हासिल है। गांव में आज भी आपको ऐसे लोग मिल जाएंगे जो कहेंगे देश तो सुरक्षित हाथों में है न। घर में घुस कर मारने वाला है मोदी। लेकिन बीजेपी में, बावजूद गोदी मीडिया, बीजेपी आई सेल और व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के, भीतर ही भीतर बड़ा काम होता है। सबसे ज्यादा छवि साफ करने का निरंतर। अजीत अंजुम के वीडियो जितना विरोधियों को गुदगुदा रहे होंगे उतना ही इन सभी के निदान पर बीजेपी में भीतर ही भीतर काम चल रहा होगा। अमित शाह और आरएसएस इसमें माहिर हैं। विपक्ष में कौन है, कहां है। राहुल गांधी सौफीसदी फेल सिद्ध हुआ है।

नरेंद्र मोदी पहले दिन से ही अपना लक्ष्य साध कर चल रहे हैं। आज हम कह सकते हैं कि मोदी कारपोरेट के हाथों में हैं। देश भी जानता है और अब तो गांव गांव के लोग भी जानते हैं। पर क्या यह सच नहीं जिन दिन चुनाव का आएगा वे सब इसे भूल चुके होंगे। क्या अलीगढ़ की सभा के बाद किसान आंदोलन अपने उसी तेवर में रहेगा। रहना चाहिए। पर क्या रहेगा ? जब जाति और धर्म का उन्माद फैलेगा तब कौन से मुद्दे और कौन सी गरीबी रह जाएगी। आप जानते हैं किसी भी शांत और सफल सभा में भगदड़ कैसे मचाई जाती है। ठहरे हुए तालाब के पानी में एक पत्थर क्या हलचल पैदा कर देता है। मोदी और मोदी के लोग सब जानते हैं। यूपी चुनाव में झूठ का कितना बोलबाला है और इस झूठ के लिए कितनी अकूत सम्पति बरबाद की जा रही है। चुनाव के पहले की चर्चाएं और चुनाव के दिन का माहौल दोनों अलग हुआ करते हैं। और एक दिन पहले की रात तो सब कुछ बदल दिया करती है। मोदी सब जानते हैं। दाढ़ी बढ़ा लेने या स्वयं के दाढ़ी बढ़ जाने से साधुत्व नहीं आया करता। सारे विश्लेषण, सारी बहसें एक समय धरी की धरी रह जाती हैं।

सोशल मीडिया पर कुछ भी गलत नहीं है जिसे हम पसंद करते हैं। रवीश कुमार का प्राइम टाइम, सत्य हिंदी की बहसें, वायर पर आरफा की तकरीरें, वाजपेयी के सत्य, अभय दुबे के विश्लेषण और बाकी सब। कुछ भी गलत नहीं। पर निचोड़ क्या है। अगर आदमी यह मान ले कि अब तो सुप्रीम कोर्ट से ही उम्मीद बची है, वो भी जो कुछ समय पहले नहीं थी, तो आप समाज में तैर रही निराशा को किसी हद तक भांप सकते हैं। मेन स्ट्रीम मीडिया जहर की भांति काम कर रहा है और सफल हो रहा है। मोदी का लक्ष्य साफ है। वे हमेशा मान कर चलते हैं कि वामपंथ और बुद्धिजीवी समाज के दुश्मन हैं क्योंकि ये लोग कभी उनको स्वीकार नहीं कर सकते। और जो अपना है वह वो है जो मान लेता है कि बादलों से राडार को छिपाया जा सकता है। तो अलीगढ़ में मोदी का आत्मविश्वास हमने लौटते देखा। एक भाषण से कई चीजें साधने की कोशिश थी। हरियाणावासियों के लिए छोटू राम भी थे। पश्चिमी यूपी के लिए चौधरी चरण सिंह भी। अब आगे आगे देखिए होता है क्या …? पर पिछले लेख में हमसे बेवकूफी वश कहिए या भूलवश, एक भारी गलती हो गयी। लिखना था सच्चर कमेटी लिख गये सरकारिया आयोग। इस मूर्खता पर क्षमा ही मांगी जा सकती है। तो कृपया क्षमा करें।

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