भारतीय राजनीति के इतिहास में जब-जब कम्युनिस्ट आंदोलन की बात होगी, तब-तब एलमकुलम मनक्कल सनकरन (ईएमएस) नंबूदरीपाद याद किए जाएंगे. ईएमएस ने अपना जीवन कम्युनिस्ट आंदोलन को मजबूत करने में गुजार दिया. उन्होंने लगभग 70 साल देश और समाज की सेवा में बिताए.
वे न सिर्फ कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे, बल्कि उनके कारण ही कम्युनिस्ट पार्टी सियासत से सरकार तक पहुंच सकी. 1957 में ईएमएस नंबूदरीपाद के नेतृत्व में बनी केरल की कम्युनिस्ट सरकार आजाद भारत में किसी राज्य की पहली गैर कांग्रेसी सरकार थी और पहली बार लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार के वे पहले मुख्यमंत्री थे. भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भी उनका अहम योगदान रहा है.
ईएमएस नंबूदरीपाद का जन्म 13 जून 1909 को केरल के मलप्पुरम जिले के एलमकुलम पैरिनथलमन्नातुलक में उच्च जाति के नंबूदरी ब्राह्मण परिवार में हुआ था. ये जब छोटे थे तभी इनके पिता परमेश्वरन नंबूदरीपाद का निधन हो गया. इनका पालन-पोषण इनकी माता ने किया. नंबूदरीपाद की प्रारंभिक शिक्षा पलघाट और त्रिचुर में हुई. इन्होंने कई वर्षों तक संस्कृत का अध्ययन किया. इनकी मां ने इन्हें ऋग्वेद पढ़ाने का निश्चय किया था.
लेकिन नंबूदरीपाद छोटी सी उम्र में ही जातिवाद और रूढ़िवाद के खिलाफ लड़ने वाले वीटी भट्टाथिरिपाद, एम आर भट्टाथिरपाद और ऐसे ही अन्य लोगों से प्रभावित थे. वर्ष 1931 में बीए की पढ़ाई के दौरान ही वे कॉलेज छोड़कर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए और स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया. नंबूदरीपाद 1932 में सविनय अवज्ञा आन्दोलन से जुड़े. आंदोलन के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर तीन वर्ष की सजा सुनाई गई. लेकिन 1933 में ही उन्हें रिहा कर दिया गया.
वर्ष 1934 में नंबूदरीपाद को कांग्रेस समाजवादी पार्टी में ऑल इंडिया ज्वाइंट सेक्रेटरी नियुक्त किया गया. वे प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव भी बनाए गए. 1939 में वे कांग्रेस के टिकट पर मद्रास प्रांतीय विधानसभा के सदस्य चुने गए. इसी दौरान नंबूदरीपाद पहली बार मार्क्स के सिद्धांतों से अवगत हुए और फिर केरल में सामंतवाद विरोधी और साम्राज्यवाद विरोधी शक्तिशाली आंदोलन की नींव रखी. वर्ष 1941 में उन्हें भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के केंद्रीय समिति में शामिल किया गया.
1950 में वे सीपीआई के पोलित ब्यूरो के सदस्य बने और इसके सचिवालय के लिए चुने गए. उन्होंने केरल को एक भाषाई राज्य के तौर पर एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई. केरल राज्य बनने के बाद राज्य के पहले विधानसभा चुनाव में कम्युनिस्ट पार्टी प्रमुख दल के तौर पर उभरी और ईएमएस नंबूदरीपाद के नेतृत्व में पहली बार कम्युनिस्ट पार्टी को यहां सत्ता में आने का अवसर मिला.
5 अप्रैल, 1957 को नंबूदरीपाद राज्य के मुख्यमंत्री बने. अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान उन्होंने शिक्षा और भूमि समयावधि प्रणाली में बड़ा बदलाव किया तथा केरल में प्रबल हो चुके जातिवाद तंत्र के खिलाफ भी संघर्ष किया. हालांकि 1959 में उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया गया. फिर 1960 के मध्यावधि चुनाव के बाद वे विधानसभा में विरोधी दल के नेता बने. इसके बाद 1962 में उन्हें यूनाइटेड सीपीआई का जनरल सेक्रेटरी बनाया गया.
1964 में जब कम्युनिस्ट पार्टी का विघटन हो गया, तो नंबूदरीपाद सीपीआईएम (कम्युनिस्ट पार्टी मार्कसिस्ट) में शामिल हो गए. नंबूदरीपाद ने 1967 में उन्होंने संयुक्त मोर्चा के नेता के रूप में पुन: मुख्यमंत्री का पद सम्भाला और 6 मार्च, 1967 से 1 नवम्बर, 1969 तक इस पद पर कार्य किया. वर्ष 1977 में वे सीपीआईएम के महासचिव निर्वाचित हुए. 19 मार्च 1998 को 89 वर्ष की उम्र में ईएमएस नंबूदरीपाद की मृत्यु हो गई.
ईएमएस नंबूदरीपाद एक विख्यात मार्क्सवादी तथा लेनिनवादी थे और इन सिद्धांतों का उपयोग उन्होंने हमेशा देश और समाज सेवा के लिए किया. वे एक समाजवादी-मार्क्सवादी विचारक, क्रांतिकारी, लेखक, इतिहासकार और सामाजिक टीकाकार के रूप में भी जाने जाते हैं. भूमि संबंधों, समाज, राजनीति, इतिहास और मार्क्सवाद दर्शन के संबंध में उनका साहित्यिक कार्य भारतीय साहित्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. ईएमएस नंबूदरीपाद को एक विख्यात पत्रकार के रूप में भी जाना जाता है.
उन्होंने अपने अनुभवों और विचारों पर कई किताबें भी लिखीं. ईएमएस संचिका के नाम से चिंथा प्रकाशन द्वारा प्रकाशित उनकी किताबें मख्य रूप से मलयालम और अंग्रेजी भाषा में हैं. द नेशनल क्योश्चन इन केरला, द विसेन्ट क्योश्चन इन केरला जैसी उनकी किताबें केरल के लोगों के लिए हमेशा उपयोगी बनी रहेंगी. उनकी किताब गांधी एण्ड हिन्दुज्म भी पाठकों के बीच लोकप्रिय है.