प्रदेश में ऐसे दागी अफसरों की लम्बी सूची है, जो मुख्यमंत्री रमन सिंह के कार्यकाल में सबसे ज्यादा आर्थिक अनियमितता एवं घोटाले करने के आरोपों से घिरे हुए हैं. राज्य में पुलिस के कई आलाधिकारियो पर भी गंभीर आरोप लगे जिसमे सबसे चर्चित चेहरों में आईपीएस राजकुमार देवागन त्तथा आईपीएस पवनदेव हैं. राजकुमार देवगन को तो जबरदस्ती रिटायरमेंट दे दिया गया है, अब पवनदेव पर भी गाज गिरने वाली है. गृहमंत्री रामसेवक पैकरा ने आईजी पवन देव के खिलाफ जल्द कार्रवाई किये जाने का संकेत देते हुए कहा है कि इस मामले में जांच पूरी हो चुकी है. जांच रिपोर्ट का परीक्षण किया जा रहा है इसके बाद कार्रवाई की जायेगी.

19 साल पहले बाराद्वार डकैती कांड में संलिप्त रहने के आरोप में भारतीय पुलिस सेवा 1992 बैच के अधिकारी राजकुमार देवांगन को 11 साल 6 महीने 13 दिन पहले ही सेवानिवृत्ति दे दी गई. किसी दागी आईपीएस पर देश की यह सबसे बड़ी कार्रवाई बताई जा रही है. गृह विभाग के प्रमुख सचिव बीवीआर सुब्रमण्यम ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के आदेश के बाद यह कार्रवाई की.

तत्कालीन पुलिस अधीक्षक राजकुमार देवागन के कार्यकाल के दौरान 1998 में अविभाजित मध्यप्रदेश के बाराद्वार (जांजगीर-चांपा) में 65 लाख रुपए की डकैती हुई थी. शिक्षकों के वेतन की रकम हेडमास्टर से रास्ते में कुछ लोगों ने लूट ली थी. इसमें से कुछ पैसा बाराद्वार के थानेदार नरेंद्र मिश्रा के घर से बरामद हुआ. मिश्रा कुछ महीने जेल में रहे, तो उन्होंने एसपी देवांगन पर भी डकैती में संलिप्त होने का इशारा किया. इसके बाद सरकार ने देवांगन को सस्पेंड कर दिया. महकमे ने 14 साल बाद 2012 में चार्जशीट इश्यू की.

देवांगन के जवाब से संतुष्ट न होने पर सरकार ने विभागीय जांच की अनुशंसा की. उन्हें पुलिस मुख्यालय से हटाकर आईजी होमगार्ड नियुक्त किया गया था. पीएचक्यू के आला अधिकारियों के मुताबिक देवांगन पर यूएन मिशन में पदस्थापना के दौरान देश की छवि खराब करने का मामला भी था. आरोप था कि शांति सेना में कोसोवो-बोस्निया में उन्होंने आर्थिक अनियमितता की.

वे तय समय-सीमा से ज्यादा रुके. लाखों रुपयों के आईएसडी कॉल किए और जब लौटे तो संस्थान का कुछ सामान भी साथ ले आए. शिकायत मिलने पर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने देवांगन के कार्यकाल की जांच करवाई. सुब्रमण्यम ने बताया कि देवांगन को ऑल इंडिया सर्विस डेट कम रिटायरमेंट बेनिफिट (डीसीआरबी) 1958 के नियम 16(3) के प्रावधानों के तहत जनहित में सेवानिवृत्ति दी गई है.

इस कार्रवाई के बाद अब बिलासपुर के तत्कालीन आईजी पवनदेव पर भी गाज गिरने की संभावना है. पवनदेव पर एक महिला आरक्षक से लैंगिक उतपीड़न का आरोप है. देव भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी हैं और उन पर सख्त कार्रवाई के लिए केन्द्रीय स्तर पर ़फैसला होगा. इसलिए जांच रिपोर्ट में दोषी पाये जाने पर राज्य सरकार द्वारा केन्द्र सरकार को कार्रवाई संबंधी सिफारिश भेजी जा सकती है. यदि देव के खिलाफ कठोर कार्रवाई न करते हुए स्थानीय स्तर पर अन्य कोई कार्रवाई की जानी होगी, तो ़फैसला राज्य सरकार ही कर सकती है. इस समय केन्द्र सरकार काफी सख्त है. केन्द्र की सख्ती की वजह से ही हाल ही में आईजी राजकुमार देवांगन को अयोग्य मानकर हटाया गया है. मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह पहले ही प्रशासनिक कसावट का उद्घोष कर चुके हैं. चुनाव में अब दो साल से कम का वक्त बचा है. ऐसी स्थिति में कोशिश यही होगी कि जितने भी दागी अफसर हैं, उनके मामलों में तेज गति से फैसले लिये जायें.

हाईकोर्ट ने भी दिया है दागी अफसरों पर कार्यवाही का आदेश

प्रदेश के 24 से ज्यादा आईएएस, आईपीएस व भारतीय वन सेवा के अफसरों के खिलाफ आर्थिक अनियमितता और घोटाले के आरोप लगने तथा लोक आयोग की जांच में शिकायत की पुष्टि के बाद भी दोषियों पर कार्रवाई नहीं हुई. इसे लेकर दाखिल की गई एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए बिलासपुर हाईकोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार को दागी अफसरों के खिलाफ तय समय सीमा के भीतर कार्रवाई करने के आदेश दिए हैं. हाईकोर्ट के आदेश के बाद प्रदेश के दागी अधिकारियों पर कार्रवाई तय मानी जा रही है. मुख्य सचिव ने कोर्ट में इनकी सूची और उन पर की जा रही कार्रवाई की जानकारी शपथ- पत्र के साथ सौंप दी है. राज्य सरकार द्वारा दागी अधिकारियों के खिलाफ सालों से जांच की जा रही है, ऐसे में कई अधिकारी सेवानिवृत्त भी हो चुके हैं. जिनमें पूर्व प्रमुख सचिव उद्योग एवं वाणिज्य विभाग पी. राघवन, पूर्व सचिव एमएस मूर्ति, टी. राधाकृष्णन, आईजी आरके देवांगन, पूर्व डीएफओ हेमंत कुमार पांडेय व एसपी रजक शामिल हैं.

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