magadhराजनीतिक सरगर्मी को लेकर जाना जाने वाला बिहार अबकी बार छात्राओं के नए ड्रेस कोड को लेकर चर्चा में है. सूबे के प्रतिष्ठित मगध महिला कॉलेज ने लड़कियों के लिए ड्रेस कोड तय कर दिया है. फरमान यह है कि अब छात्राओं को कॉलेज में जींस, लेगिंग्स और शॉर्ट ड्रेस पहनकर नहीं आना है. लड़कियों को यह भी बता दिया गया है कि ज्यादा सजने-संवरने की जरूरत नहीं है. कॉलेज प्रशासन के इस फैसले को लेेकर ज्यादातर लड़कियों में गुस्सा है, लेकिन अनुशासन का डंडा न चले इसलिए कोई भी खुलकर इस फैसले के खिलाफ नहीं बोल रहा. इस मुद्दे पर ‘चौथी दुनिया’ ने मगध महिला कॉलेज की कुछ छात्राओं के साथ-साथ कुछ अन्य लड़कियों की भी राय जानने की कोशिश की है.

मगध महिला कॉलेज से बीकॉम कर चुकी हर्षिता सुमन का कहना है कि कॉलेज प्रशासन का जींस, लेगिंग्स, लिपस्टिक और आई लाइनर पर बैन लगाना ठीक नहीं है. मेकअप करना लड़कियों का मूल अधिकार होता है, इसपर रोक लगना बिल्कुल जायज नहीं है. यदि लड़कियों पर कॉलेज प्रशासन ही ऐसा व्यवहार करेगा, तो हम दूसरों से क्या उम्मीद रखेगें. हर्षिता ने इस बात का सर्मथन किया कि परिधान अनुशासन और प्रतिष्ठा को दिखाता है, इसलिए कॉलेज का ड्रेस कोड तो ठीक है, लेकिन मेकअप करने पर रोक नहीं लगनी चाहिए.

मगध महिला कॉलेज की छात्रा नेहा कहती हैं कि बड़ी उम्र की लड़कियों पर इस तरीके का रोक लगाना उचित नहीं है. लड़कियां अपनी उम्र के साथ इतनी समझदार हो जाती हैं. उन्हें सही-गलत का अंदाजा होता है. इस तरीके से रोक लगाने का मतलब है, इनसे इनकी आजादी छीनना. नेहा ने कहा कि हमें सबसे पहले अपनी सोच बदलने की जरूरत है न कि पहनावे को. हालांकि नेहा ने इस बात समर्थन किया कि छात्राओं को भी इसका ध्यान रखना चाहिए कि ऐसे कपड़े न पहनें, जिससे कॉलेज की प्रतिष्ठा पर आंच आए.

मगध महिला कॉलेज की छात्रा शिखा रंजन कहती हैं कि कॉलेज प्रशासन के इस फैसले को किसी भी तरह से जायज नहीं कहा जा सकता. जीन्स पर प्रतिबंध नया नहीं है, लेकिन पटियाला, लेगिंग्स, और लिपस्टिक पर प्रतिबंध लगाना बिल्कुल ठीक नहीं है. मेरा मानना है कि ग्रेजुएशन में आते-आते लड़कियां इतनी मैच्योर हो जाती हैं कि उन्हें खुद-ब-खुद समझ आ जाता है कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं. अगर फिर भी कोई लड़की ठीक ढंग से कॉलेज नहीं आती, तो उनके पेरेंट्‌स को बुलाकर शिकायत करनी चाहिए न कि ऐसे फरमान लागू कर देने चाहिए.

पटना वीमेेन्स कॉलेज की छात्रा रेणुका का कहना है कि क्लासरूम में मोबाइल फोन के इस्तेमाल पर बैन लगाना सही है, लेकिन पहनावे पर रोक नहीं लगना चाहिए. कॉलेजों में छात्राएं वयस्क हो जाती हैं. इन्हें स्कूली बच्चों की तरह अनुशासित किया जाना सही नहीं है. आज हम आधुनिक युग में जी रहे हैं, इसलिए हमें इन पुराने ख्यालों से ऊपर उठने की जरूरत है. मेरी राय में कॉलेज की छात्राओं को इतनी छूट तो देनी ही चाहिए कि वे एक सभ्य तरीके से कपड़े पहन कर आएं. हां अगर किसी लड़की का पोशाक असभ्य हो, तो उसे हिदायत देना जरूरी है. लेकिन कुछ छात्राओं की वजह से पूरे कॉलेज की छात्राओं पर प्रतिबंध लगाना किसी भी प्रकार से उचित नहीं है.

पटना विमेन्स कॉलेज से पढ़ाई कर चुकी प्रशंसा ने बताया कि यह तो कतई उचित नहीं है कि लड़कियों के पहनावे पर पाबंदी लगा दिया जाय. अनुशासन की यह सीमा ठीक नहीं है कि हम लेगिंग्स व पटियाला भी न पहनें और मेकअप भी न करें. इससे तो कई छात्राओं के डिप्रेशन में जाने का खतरा हो सकता है. जब अपने मन के अनुसार सब्जेक्ट वाईज पढ़ाई हो सकती है, तो फिर अपने मन के अनुसार पहनावा क्यों नहीं हो सकता?

मगध महिला कॉलेज की प्रज्ञा का कहना है कि कॉलेजों में एक सभ्य ड्रेस कोड तो होना ही चाहिए. कुछ कायदे कानून भी होने चाहिए, जिससे छात्राएं अनुशासन में रहें और इससे पठन-पाठन के लिए उचित वातावरण का निर्माण हो सके. सभ्य ड्रेस कोड कॉलेजों की गरिमा को बढ़ाते हैं और इससे छात्राओं के बीच समानता आती है. इसलिए  एकरूपता आवश्यक है. एक ड्रेस कोड एकता लाता है और भेदभाव खत्म करता है. लेकिन मेकअप पर पाबंदी ठीक नहीं, क्योंकि आजकल सभी सुंदर और स्मार्ट दिखना चाहते हैं.

मगध महिला कॉलेज में बीकॉम की छात्रा आरूषि कहती हैं कि विश्वविद्यालयों में  ड्रेस कोड होना चाहिए. ड्रेस कोड नहीं होने पर हमें यह तय करने के लिए हर दिन समय बर्बाद करना पड़ता है कि आज क्या पहनें. ड्रेस कोड का मतलब कॉलेज वर्दी ही नहीं हैं, बल्कि इससे एकता का भाव आता है. कॉलेज एक ऐसी जगह है जहां विभिन्न पृष्ठभूमि और संस्कृति के छात्र-छात्राएं एकसाथ सीखने आते हैं. ड्रेस कोड से कॉलेज और छात्र-छात्राओं की पहचान भी जुड़ी होती है.

पटना कॉलेज की मात्सी शरण कहती हैं कि आजकल हमारे देश का सबसे प्यारा शब्द बन गया है ‘बैन’. जो पसन्द नहीं आता है, उसको बैन कर देना सबसे आसान उपाय लगता है. जीन्स, लेगिंग्स, पटियाला और लिपस्टिक पर कहीं से भी प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता नहीं थी, पर यह निर्णय भी छात्राओं पर थोपा जा रहा है. हर बार कह दिया जाता है कि ये पश्चिमी संस्कृति है और इसे साबित करने के लिए कुछ उल्टे तर्क भी दिए जाते हैं. हमारे समाज में पहनावे के लिए कभी भी पुरूषों को कुछ नहीं कहा जाता, सभी पाबंदियां लड़कियों पर ही थोपी जाती है. मात्सी ने कहा कि कॉलेज प्रशासन को कानून बनाने से पहले छात्राओं की राय लेनी चाहिए.

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