काम कर रहीं हैं
पहले से ज्यादा
किताबें
मौन रह कर भी
सिर्फ तुम्हारे लिए..

और
एक तुम हो कि,
घर की साफ-सफाई में
निकालते रहे उन किताबों को ही
जिन्हें पढ़कर सभ्य से हुए
इतने सभ्य?
कि थोड़े से लालच में रद्दी के भाव
बेच दिया!
उन्हें

 

2.

उपेक्षा की खिड़की से झांँकती किताबें
खुद के अस्तित्व को बचाने की जद्दोजहद में
किराना स्टोर पर
जीरा, धनिया की पुड़िया बन
पन्ने दर पन्ने
खुद को बांट रही ..

नाश्ते की दुकान पर
पोहा ,जलेबी की प्लेट बन
स्वाद को जिंदा रखती
ग्राहकों के बीच..

इतना ही नहीं
अलाव सेंकते लोगों के हाथ
खूब जली किताबें
हर जगह..

फिर भी किताबों ने
अपना काम करना नहीं छोड़ा
जुबान तक नहीं लड़ाती
कभी साहित्यकारों से
प्रकाशक के खिलाफ नहीं करती कोई षड्यंत्र
सोशल मीडिया के किताबी चेहरे पर
लार टपकाते पाठक से नहीं करती कभी कोई शिकायत….

आनंद सौरभ उपाध्याय

 

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