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ऑक्सीजन की कमी के कारण बच्चों की मौत ने पूरे देश को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आजादी के इतने साल बाद भी हम बेहतर स्वास्थ्य सुविधा के मामले में कितने पीछे हैं. सूबे के सबसे बड़े अस्पताल पीएमसीएच में ऑक्सीजन को लेकर जब पड़ताल की गई, तो पता चला कि अभी यहां बहुत कुछ किया जाना बाकी है. हालांकि प्राचार्य ने गोरखपुर हादसे के बाद यह व्यवस्था की है कि हर रोज ऑक्सीजन के स्टॉक को चेक किया जाए और यह सुनिश्‍चत किया जाए कि ऑक्सीजन की कमी न होने पाए. पीएमसीएच में गंभीर नवजात का इलाज हो, इसके लिए शिशु वार्ड में 24 बेडों का अलग से एनआईसीयू बन कर तैयार है, लेकिन ऑक्सीजन पाइपलाइन की व्यवस्था नहीं होने से एनआईसीयू शुरू नहीं हो पा रहा है. एनआईसीयू उद्घाटन के इंतजार में है. नतीजतन पुराने आईसीयू में नवजातों की संख्या बढ़ गई है और एक बेड पर तीन बच्चों का उपचार किया जा रहा है. ऐसे में जब ऑक्सीजन की कमी होती है, तो छोटा सिलिंडर लाना पड़ता है. यह स्थिति स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग, टाटा और हथुआ वार्ड में भी है.

अस्पताल अधीक्षक डॉ. लखींद्र प्रसाद कहते हैं कि हमारे यहां ऑक्सीजन से लेकर सभी तरह की व्यवस्था दुरुस्त है. रही बात शिशु वार्ड में एनआईसीयू शुरू नहीं होने की, तो वहां ऑक्सीजन पाइपलाइन का काम होना बाकी है. बिजली आपूर्ति के लिए संबंधित कंपनी से बात चल रही है. जल्द ही 24 बेडों के एनआईसीयू की सुविधा मिलेगी.

आईजीआईएमएस के जनरल वार्ड में अभी तक ऑक्सीजन पाइप लाइन की व्यवस्था नहीं की गई है. यहां कागजों पर ही सभी वार्ड में ऑक्सीजन पाइप लाइन बिछाने की बात चल रही है, जबकि आईजीआईएमएस के जनरल वार्ड में 500 से अधिक बेड हैं, जहां मरीज भरती रहते हैं. जनरल वार्ड में खासकर बच्चा वार्ड, हड्डी, सामान्य औषधि विभाग, सांस रोग विभाग, यूरोलॉजी विभाग और कैंसर आदि कुछ ऐसे वार्ड हैं, जहां ऑक्सीजन की काफी जरूरत पड़ती है. यहां मरीजों को छोटे सिलिंडर से ऑक्सीजन की सप्लाई की जा रही है. बड़ी बात यह है कि मरीज के परिजन सिलिंडर के लिए इधर-उधर भटकते रहते हैं. अगर समय पर टेक्निशियन नहीं मिला, तो मरीजों को ऑक्सीजन भी नहीं मिल पाती है.

पटना से बाहर निकलें तो सीवान सदर अस्पताल के स्पेशल न्यू बर्न केयर यूनिट में नवजात बच्चों के इलाज के लिए 11 रेडिएंट वार्मर मशीनें लगाई गई हैं, लेकिन इनमें से आठ मशीनों में ऑक्सीजन की व्यवस्था नहीं है. कहने के लिए पंाच ऑक्सीजन कांसट्रेटर मशीनें लगी हैं, लेकिन तीन ऑक्सीजन कांसट्रेटर मशीनें काम नहीं करती हैं. एक तरह से देखा जाए, तो 11 में तीन मशीनें ही पूर्ण रूप से काम कर रही हैं. इन्हें चलाने के लिए चार डॉक्टरों व करीब एक दर्जन एएनएम की ड्यूटी लगी है. जरूरत पड़ने पर कभी न तो एएनएम मिलती हैं और न ही डॉक्टर.

 

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