बिहार के ब्यूरोक्रेट्‌स की यह ‘हिस्टोरिकल’ गोलबंदी थी. नये-पुराने बैच के 60 से अधिक आईएएस अफसरान अपने चमचमाते और एयरकंडिशंड दफ्तरों से निकल कर राजभवन के सामने, खुले आकाश में मानव श्रृंखला बना कर सीना ताने खड़े हो गये थे. उनकी यह गोलबंदी उस नीतीश सरकार के खिलाफ थी, जिसके इशारों पर ये नौकरशाह उठक- बैठक करते नजर आते हैं.

इससे पहले ऐसा शायद ही कभी देखा गया हो. एक पूर्व आईएएस अधिकारी एमए इब्राहिमी इसलिए इस गोलबंदी को ‘हिस्टोरिकल’ कहने से खुद को नहीं रोक पाते. इब्राहिमी बिहार सरकार के महत्वपूर्ण पदों पर साढ़े तीन दशक से ज्यादा समय बिता चुके हैं. कम से कम उन्होंने अपने कार्यकाल में ऐसा तो कभी नहीं देखा.

नीतीश कुमार बतौर मुख्यमंत्री कमोबेश 12 साल पूरा करने वाले हैं. उनके कार्यकाल में ऐसी चुनौती का सामने आना चकित करने वाला है क्योंकि वे देश के शायद एकमात्र सीएम हैं जो अपने नेताओं, मंत्रियों, कार्यकर्ताओं से ज्यादा ब्यूरोक्रेट्‌स पर भरोसा करने के लिए जाने जाते हैं. बल्कि यूं कहें कि उनकी पार्टी का एक बड़ा खेमा उनका सिर्फ इसलिए आलोचक रहा है क्योंकि वे राजनीतिक मामलों में भी ब्यूरोक्रेट्‌स को तरजीह देते हैं, अपने संगियों की तो सुनते ही नहीं.

इससे पहले कि बिहार के ब्यूरोक्रेट्‌स के बागी तेवर पर और चर्चा हो, इस हिस्टोरिकल गोलबंदी की पृष्ठभूमि को समझना जरूरी है. जनवरी के आखिरी और फरवरी के प्रथम रविवार को बिहार कर्मचारी चयन आयोग (बीएसएससी) ने क्लर्कों की नियुक्तिके लिए दो चरण की प्रतियोगिता परीक्षा का आयोजन किया था. ये परीक्षा चार चरणों में होनी थी. चंद हजार नौकरियों के लिए 18 लाख से ज्यादा प्रतियोगियों ने फॉर्म भरे थे. लेकिन प्रथन चरण की परीक्षा के पहले ही प्रश्नपत्र लीक हो गये. काफी हो-हल्ला मचा.

आयोग इसे अफवाह करार देते हुए अगले चरण की परीक्षा की तैयारियों में जुट गया. तुर्रा यह कि पटना के एसएसपी मनु महाराज ने दो सदस्यीय टीम की जांच के हवाले से यह घोषणा कर दी कि लीक हुए प्रश्नों का ओरिजनल प्रश्नों से मिलान किया गया, लेकिन प्रश्न पत्र एक नहीं पाये गये. पर हकीकत यह थी कि दूसरे दिन दोनों प्रश्नपत्र समाचार पत्रों में छप गये थे. हो-हल्ला शांत होता कि इसी क्रम में दूसरे चरण की परीक्षा संपन्न हुई. फिर प्रश्नपत्र व्हाट्‌सएप पर वाइरल हो गया.

आयोग के अध्यक्ष सुधीर कुमार ( आईएएस सुधीर गृहसचिव भी रह चुके हैं) व सचिव परमेश्वर राम ने एक स्वर में प्रश्नपत्र लीक को फिर अफवाह बता डाला. पर इस बार मामला शांत नहीं होना था, सो नहीं हुआ. मीडिया लगातार प्रश्नपत्र लीक की कहानियां बताता-सुनाता रहा. छात्र संगठन सड़कों पर आ गये. हो-हल्ला आंदोलन में बदल गया और आंदोलन ने हिंसक रूप ले लिया. छात्रों की टोली आयोग पहुंच गयी. तोड़-फोड़ की गयी और आयोग के सचिव परमेश्वर राम की जमकर पिटाई हुई. नीतीश कुमार ने इस पूरे मामले की जांच के लिए एसआईटी के गठन का आदेश डीजीपी को दे डाला.

डीजीपी ने पटना के एसएसपी मनुमहाराज के नेतृत्व में एसआईटी के गठन के अलावा आर्थिक अपराध इकाई ( ईओयू) को भी जांच की जिम्मेदारी सौंप दी. इसके बाद चीजें बड़ी तेजी से बदलने लगीं. धड़ा-धड़ छापेमारी हुई. गिरफ्तारियां शुरू हुईं और जांच दल इस नतीजे पर पहुंचा कि प्रश्पत्रों के लीक मामले में करोड़ों रुपयों का कारोबार हुआ है. दो हफ्ते के भीतर आयोग के सचिव परमेश्वर राम गिरफ्तार कर लिये गये. कई स्कूलों के मालिकान, कोचिंग संचालक और परीक्षा माफिया तो पहले ही सलाखों के भीतर जा चुके थे.

लेकिन इधर कुछ हलकों से यह आवाज उठती रही कि इतने बड़े घोटाले के बावजूद आयोग के अध्यक्ष अब तक कैसे बचे हुए हैं? फिर एक दिन खबर आयी कि रात के अंधेरे में आयोग के अध्यक्ष सुधीर कुमार को एसआईटी की टीम ने झारखंड के हजारीबाग से उठा लिया है. उन्हें आनन-फानन में जज के घर पहुंचाया गया, जहां से उन्हें फुलवारी जेल भेज दिया गया. यहां एक बात याद रहे कि जिस रात सुधीर को गिरफ्तार किया गया उसके अगले दिन महाशिवरात्रि की सरकारी छुट्टी थी. दूसरे दिन शनिवार और तीसरे दिन रविवार था. (छुट्‌टी से जुड़े मामले का जिक्र आगे आएगा).

रात को सुधीर की गिरफ्तारी हुई और सुबह होते-होते ब्यूरोक्रेट्‌स के गलियारे में कोहराम मच गया. आईएएस एसोसिएशन जो आम तौर पर गेट टुगेदर व चाय पार्टी के अलावा कुछ खास नहीं करता, सक्रिय हो गया. बल्कि यूं कहिए कि सक्रिय किया गया. एसोसिएशन के पदाधिकारी मुख्यसचिव के घर पर जा धमके और सुधीर की गिरफ्तारी का प्रतिवाद किया. एक प्रतिनिधिमंडल सीएम नीतीश से भी मिला.

शाम होते-होते एसोसिएशन के सचिव विवेक कुमार सिंह के हस्ताक्षर से एक विज्ञप्ति जारी की गयी और साफ लफ्जों में सुधीर की गिरफ्तारी के तौर-तरीकों का विरोध किया गया. सुधीर को एक ईमानदार अफसर बताया गया और इशारा दिया गया कि इस मामले में मुख्यमंत्री सचिवालय में बैठे कुछ चुनिंदा अधिकारियों के इशारे पर यह सब हुआ है. इशारा उस एक्सट्रा कॉन्सटीट्यूशनल अथॉरिटी की तरफ भी किया गया, जो सीएमओ में आधिकारिक रूप से कोई पद नहीं रखता, पर कथित तौर पर सीएमओ में खासा प्रभाव रखता है.

एसोसिएशन ने गिरफ्तारी के तरीकों पर सवाल उठाते हुए कहा कि आयोग के अध्यक्ष अपने बीमार पिता से मिलने हजारीबाग गये थे. उन्हें जानबूझ कर तीन दिनों की सार्वजनिक छुट्टी शुरू होने से पहले रात को गिरफ्तार किया गया, ताकि सुधीर कम से कम तीन दिन जेल में बिता सकें. एसोसिएशन के इस कड़े तेवर की बात के बाद हम फिर उस पड़ाव पर लौटते हैं, जहां से इस स्टोरी की शुरुआत की गयी थी.

राजभवन के सामने पांच दर्जन आईएएस अधिकारियों का सीना तान कर खड़ा होने और सुधीर की गिरफ्तारी का प्रतिवाद करने जैसी आईएएस अफसरों की गोलबंदी की मिसाल पहले नहीं मिलती. यहां तमाम सवालों के बीच महत्वपूर्ण यह था कि आखिर आईएएस एसोसिएशन ने इतना साहस कैसे जुटाया कि वे सब सीएमओ के खिलाफ खड़े हो गये? ऐसा तब हुआ जब एसआईटी इस नतीजे पर पहुंच चुकी थी कि बीएसएसी परीक्षा में बड़े पैमाने पर घोटाला हुआ है.

आयोग के अध्यक्ष सुधीर कुमार इस घोटाले में शामिल थे कि नहीं, यह अलग बात थी लेकिन आम जनता में यह परसेप्शन बन चुका था कि आयोग के अध्यक्ष की नाक के नीचे घोटाला हुआ तो कहीं न कहीं या तो उनकी निष्क्रियता इसके लिए जिम्मेदार थी या फिर वह प्रत्यक्ष रूप से इसके पीछे थे.

हालांकि अभी तक आईएएस एसोसिएशन के अधिकारी सुधीर को महज इसलिए क्लीन चिट दे रहे थे कि उनकी छवि शुरू से ईमानदार अफसर की रही है. लेकिन एसोसिएशन की सक्रियता के बाद यह मामला राजनीतिक रंग भी ले चुका था. पहले पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी सामने आकर सुधीर के पक्ष में खड़े हुए (ध्यान रहे कि मांझी ने अपने कार्यकाल में सुधीर को गृहसचिव बनाया था).

फिर राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने एक पंक्ति का बयान देते हुए कहा कि सुधीर कुमार ईमानदार अफसर हैं और कानून इस मामले पर अपना काम करेगा. इतना ही नहीं, इस मामले में विपक्ष भी कूद पड़ा. विपक्ष के नेता सुशील मोदी ने कहा कि उन्हें सुधीर के साथ काम करने का जितना अनुभव है, उससे वे कह सकते हैं कि सुधीर ईमानदार अफसर रहे हैं. हालांकि मोदी ने यह भी जोड़ा कि परीक्षा घोटाला मामले में सीबीआई जांच होनी चाहिए, ताकि सच्चाई सामने आ सके.

यह मामला अभी चल ही रहा था कि नीतीश सरकार के सामने नौकरशाही से जुड़ी दूसरी चुनौती सामने आ गयी. 14 जनवरी यानी मकरसंक्रांति के दिन पटना में हुए नाव हादसे की जांच रिपोर्ट के अधार पर सरकार ने सारण के एसडीओ और एसडीपीओ को सस्पेंड कर दिया. इस मामले में पटना के किसी अधिकारी को सस्पेंड नहीं किये जाने से नाराज बिहार प्रशासनिक सेवा और बिहार पुलिस सेवा के संगठनों ने भी अपनी नाराजगी जाहिर की. नीतीश सरकार के सामने यह अनोखी चुनौती थी जब किसी समर्थक दल ने उन्हें आखें दिखाने के बजाय खुद उस सिस्टम के अफसरों ने बागी तेवर अपना लिये.

अब सवाल यह है कि नीतीश के सामने ऐसी चुनौती क्या सिस्टम के अधिकारी केवल अपने बूते उन्हें पेश कर सकते हैं? इस सवाल के जवाब में एक आईएएस अधिकारी, जो एसोसिएशन की बैठक में शामिल थे, ने कहा कि नये बैच के अधिकारी उस मीटिंग में अड़ गये थे और कहा था कि आईएएस अधिकारियों के साथ सीएमओ में बैठे कुछ अफसरान ज्यादती करते हैं इसलिए इसका प्रतिवाद होना ही चाहिए. लेकिन इस मामले में दूसरी सच्चाई यह भी है कि राजनीतिक स्तर पर अफसरों के इस तेवर का समर्थन खुद लालू प्रसाद से मिल चुका था. सुधीर की गिरफ्तारी के दूसरे दिन लालू ने यह कह कर अधिकारियों का मनोबल बढ़ा दिया कि सुधीर ईमानदार अफसर हैं और उनके खिलाफ कोई कार्रवाई कानून के दायरे में ही होगी. लालू का यह बयान नौकरशाहों के लिए बहुत बड़ा सपोर्ट था. और एक तरह से लालू प्रसाद के इस बयान से ही नौकरशाहों ने इतना साहस दिखाया कि वह गवर्नर हाउस के सामने इंसानी जंजीर बन कर खड़े हो गये.

नीतीश कुमार अपनी तरह की पहली इस चुनौती से कैसे निपटेंगे इस पर सब की नजर रहेगी, लेकिन कुछ विश्लेेषकों की राय है कि गठबंधन सरकार के बीच आंतरिक खींचतान और सत्ता संतुलन की कवायद का यह एक हिस्सा हो सकती है. पिछले एक साल से जब से यह सरकार चल रही है, लालू-नीतीश के बीच खट्टे-मीठे रिश्तों की खबरें मीडिया में आती रही हैं. लिहाजा इस प्रकरण से भले ही गठबंधन सरकार के स्वास्थ्य पर कोई खास असर न पड़े पर दोनों दलों के बीच इस मुद्दे को सत्ता संतुलन के लिए चले जाने वाले शह-मात का हिस्सा तो माना ही जा सकता है.

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