मां-बाप ने क्या सोचकर नाम रखा ‘नितीश कुमार’ ? लेकिन इनके संपूर्ण राजनीतिक सफर को देखते हुए लगता है कि अनितिसे और पाखंड से लबालब भरा हुआ है ! बिल्कुल अपने वरिष्ठ नेता जॉर्ज फर्नाडिस के ही रास्तें जीवन की अंतिम यात्रा पर चले जा रहे हैं !


1994 में लालू प्रसाद यादव से अलग होकर, समता पार्टी बनाई 1996 में भाजपा के साथ गठजोड़ करते हुए चुनाव लडा 2000 मे , 7 दिन के लिए मुख्यमंत्री बने ! फिर केंद्र में रेल मंत्री बने ! 2005 – 13 तक भाजपा के सोहबत में मुख्यमंत्री बने ! और 2013 को भाजपा ने मोदी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित किया तो भाजपा से नाता तोड़ दिया !

2014 को मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देने के बाद, जितराम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया ! फिर से जितराम मांझी को 2015 हटाकर खुद राजद की मदद से मुख्यमंत्री बने ! और एक साथ मिलकर चुनाव लड़ने के बाद, फिर से मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद फिर राजद से 2017 में नाता तोड़कर भाजपा के साथ सरकार बनाया ! और 2022 में भाजपा से नाता तोड़कर फिर राजद के 79 विधायक और खुद की पार्टी के 45 विधायक होते हुए ! मुख्यमंत्री बने और अभी फिर उन्हि 45 विधायकों को लेकर भाजपा के 78 विधायक रहते हुए ! फिर से मुख्यमंत्री बनाए जा रहे हैं ! यह बिहार के मुख्यमंत्री पद के इतिहास में! नौवीं बार मुख्यमंत्री बनने का देश का! पहला एकमात्र ऐसा राजनेता होने जा रहा है ! जिसने राजनीतिक नितिमत्ता के चिथड़े – चिथड़े करते हुए ! सिर्फ अपने खुद के और कुछ अपने चंद सत्तालोलुप साथियों के साथ भारतीय राजनीति में पलटुराम होने का रेकॉर्ड तोड़ दिया है ! और नाम है, नितिश कुमार ! और अपने इस तरह के नितिभ्रष्ट होने के समय वह जयप्रकाश नारायण तथा डॉ. राममनोहर लोहिया तथा कर्पुरी ठाकुर के नाम लेते रहते हैं !


हालांकि जॉर्ज फर्नाडिस ने और नितिश कुमार ने आपने – अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत डॉ. राममनोहर लोहिया से प्रभावित होकर करने की बात सुनते आए हैं ! जब किशन पटनायक पहली बार लोकसभा में चुनकर गए थे ! तो सुना है कि आप उनके दिल्ली स्थित आवास पर ही पडे रहते थे !
मां-बाप ने आपका नाम नितिश रखा था ! लेकिन कुछ निति किशन जी से भी सिखने का मौका मिला होगा ! लेकिन आप के राजनीतिक सफर को देखते हुए लगता नही की ! आपने नही अपने मां-बाप ने रखें हुए नाम की परवाह की ! और न ही किशनजी जैसे, साध्य और साधनों की सुचिता का मरते दम तक पालन करने वाले, राजनेता से कुछ भी नहीं सिखा ? भारतीय राजनीति में पलटुराम नाम को सार्थक करने वाले लोगों में शायद आपका नाम सबसे ऊपर माना जायेगा !
बीस साल से बिहार में मुख्यमंत्री बनकर राज कर रहे हो ! भारत के कुल प्रवासी मजदूरों मे आधे से भी अधिक मजदूर बिहार के है ! आपने सत्ता में प्रथम बार आतेही, (2005) मे बिहार के मेहनत करने वाले लोगों को बिहार में ही काम देने की घोषणा की थी ! क्या हुआ आप की घोषणा का ? शायद बाहर से एक भी मजदूर बिहार वापस आया नही ! और नही बिहार में रह रहे हर खाली हाथ वाले को काम दे पाए !


फिर आपने नरेंद्र मोदी जी की नकल करते हुए अपने आप को बिहार का विकास पुरुष बताकर, संर्वागिण विकास की घोषणा की थी ! उसमे मुख्य बात भय,भ्रष्टाचार,भुक मुक्त बिहार की घोषणा कर के सडक,बिजली,दलित महिलाओ के सुरक्षा और सम्मान पूर्वक जीने की बात भी की है ! इन घोषणाओं में से एक को भी पूरा नहीं कर पाए ? यह बिहार की वास्तविक स्थिति को देखते हुए लगता है !
क्या छाती पर हाथ रखकर कह सकते कि बिहार में आपके 20 साल के राज में इस सबंध में क्या- क्या प्रोग्रेस हुई हैं ? कितने किलो मीटर के रोड आपने अपने 20 साल के कार्यकाल के दौरान बनवाये ? कितने गावोमे बिजली पहुचाई ? कोई एखादा नया अस्पताल आपके समय बना ? उल्टा जयप्रभा के नामके अस्पताल जो जेपी और एसएम जोशी जी के सपने का काम कर रहा था ! उसे भी आपने वेदांता ग्रुप को सौप दिया !


अब आते हैं, शिक्षा क्षेत्र पर, इसमे आपने केजी से लेकर पीजी तक क्या किया है ? मशरुम के जैसे तथाकथित प्रायवेट पब्लिक स्कूल की भरमार देख रहा हूँ ! और गरिब गुरबा के बच्चे इस स्पर्धा में बाहर हो गये हैं ? महाराष्ट्र के प्रायवेट इंन्जीनियरिंग और मेडिकल कॉलेज में ज्यादा बच्चे-बच्चीया बिहार से ही भरे पड़े है ! जे एन यू तथा बी एच यू और अन्य विश्वविद्यालयो मे भी जो बिहार के बच्चे-बच्चियों को मजबूर होकर पढ़ने के लिए जाना पड रहा है ! याने इतिहास में कभी विश्व के शिक्षा का सब से बड़ा केंद्र रहा बिहार ! ( जिसमें कभी विश्व प्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय,राजगीर का नाम था ! ) आज अपने ही बच्चो-बच्चियों को दर दर की ठोकरे खाने के लिए मजबुर कर रहा है ? और आप अपने आप को बिहार का विकास पुरूष बता रहे हैं ! याने कि बिल्कुल नरेंद मोदी जी की ही तरह जुमलेबाजी ?
बिहार बिमार राज्य है ! यह रट आप ही केंद्र सरकार के सामने, लगाकर निधि बढाने की मांग क्यो करते रहते हो ? अगर आपने बिहार का चौतरफा विकास कर दिया है ! तो यह मांग करने का मतलब ?
शायद मोदी जी की सोहबत के कारण आपको भी फेकने की बिमारी हो गई है ! क्योंकि आपको बिहार में राज करते हुए 20 साल पूरे हो रहे हैं ! लेकिन बिहार, जहा पर था उससे भी पीछे आप ले गये हो ! क्योंकी मजदूरों को आज भी बिहार के बाहर जाना पड़ रहा है ! मैंने 2019 सितंबर के महीने में,आसाम की यात्रा मे डिब्रुगढ,तेजपुर,शिवसागर इत्यादि जगहोपर चाय बागानों मे देखा हूँ 50 % से भी ज्यादा मजदूर बिहार के थे ! वही हाल 2018 को कश्मीर,पंजाब और हरियाणा मे, और दिल्ली तो लगता की बिहार यहाँ पर आकर बस गया हो ! एम्स के पेशंट से लेकर रस्तेपर सामान बेचने वाले से लेकर रिक्सा टॅक्सी और देहाडी मजदुर सबके सब बिहार से ! और भी कमाल की बात दक्षिणी भारत के सभी प्रदेशोमे केरल में कितने लोग मिले ? शायद ही भारत का कोई हिस्सा हो जहाँ पर बिहारी मजदूर नही हो ! क्या यही बिहार के विकास का पैमाना है ?
2022 के सितम्बर माह में समस्तीपुर से नागपुर आनेवाली श्रमजीवी एक्सप्रेस जो बरौनी से शुरू होती है ! लगभग बरौनी से ही खचाखच भरकर आई थी ! और समस्तीपुर स्टेशन पर प्लॅटफॉर्म के उपर पैर रखने के लिए जगह नहीं थी ! और फिर गाड़ी आने के बाद गाडीमे घुसने के लिए युद्ध जैसी स्थिति पैदा हो गई ! और मेरे अपने ही सामने वाली बर्थ पर की एक महिला जख्मी होकर बड़ी मुश्किल से अपनी बर्थ तक पहुंचने में सफल हुई ! जिसे मैंने नागपुर तक अपने पास की दवा देते रहा ! और उतरने के पहले मेरे पास बची – खुची दवा उसे देकर ही उतरा ! और लगभग संपूर्ण गाड़ी नामके अनुसार मजदूरों से ही खचाखच भरी हुई थी ! और सभी मजदूर दक्षिणी भारत के विभिन्न स्थानों पर जाने वाले थे !


यह बात लॉकडाऊन के समय और भी ज्यादा स्पष्ट होकर सामने आई है ! हजारो मजदूरोको, मई की चिलचिलाती धुपमे, 45 से भी अधिक डिग्री सेल्सियस के तपमान मे ! सरपर अपना बोझा ढोकर नंगे पांव चलनेके फोटो और लहु – लुहान पाव ! आज भी नजर के सामने याद आये तो हमारी भुक – निंद गायब हो जाती है !
अगर मोटा मोटी पूरे देश में चार करोड प्रवासी मजदूरों की संख्या है ! तो दो करोड़ अकेले बिहार के है ! जो कश्मीर की जनसंख्या से दुगुना हो जाता है ! 76 सालों की आजादी के बाद भी, अगर यही आलम जारी है ! और आपको नैतिक रूप से सुशासन,विकास,आत्मनिर्भर बिहार की बात करते हुये शर्म नहीं आती ?
बिहार में भारत की किसी भी प्रदेश से ज्यादा उपजाऊ भूमि तथा सबसे ज्यादा प्रमुख नदियाँ बहती हुई, जमिन वाले प्रदेशके मुख्यमंत्री जो आजादी के बाद एक चौथाई से भी अधिक समय मुख्यमंत्री के पद पर विराजमान बना हुआ है ! अपने प्रदेश में उपलब्ध संसाधनो का उचित प्रबंधन किया होता ! और सबसे अहम बात जमिन के बटवारे की बात ! जिस सोशलिस्ट पार्टी से आपकी रजनितिकी शुरुआत हुई ! उस पार्टी की जो जोतेगा उसकी जमिन ! और जबरन ज्योत के आन्दोलनों को आप भूल गए ? जेपी,लोहिया,कर्पूरी ठाकुर बोल – बोलकर थक गये ! और एक आप हैं, कि चुनाव में उनके नाम लेकर ही सत्ता सम्हलने का कर्म-काण्ड पूरा किया है ! लेकिन उन्होने जो बिहार के बारेमे सोचा उसे आपने कहा तक लाकर छोड दिया है ?
तो मुझे विश्वास है, कि जिस तरह की जमीन और पानी की उपलब्धता बिहार के पास है ! उन संसाधनों का उचित प्रबंधन करने के बाद, संपुर्ण भारत के अन्न की समस्या, अकेला बिहार पूरी करने के लिए तैयार है ! इतने संसाधन बिहार के पास है ! लेकिन आपके जैसे अदूरदर्शी,सांप्रदाईक शक्तियो के हाथ के खिलौने ! हा खिलौना ! और इसकी शुरुआत आपके तथाकथित पहले समता पार्टी के प्रयोग से ही इस खेल की शुरुआत हुई हैं ! और बादमे जे डी यू के संस्थापक ! जॉर्ज फर्नांडीज और आप इस पापके भागीदार है !


और यही बात मैने जॉर्ज फर्नांडीज ने जब समता पार्टी के गठन के बाद मुझे महामंत्री पद की पेशकश की थी ! उस समय ढाई तिन घंटे से भी अधिक समय !उनके दिल्ली स्थित, तिन मुर्ती लेन के आवास पर, जिस दिन नितीश कुमार और जया जेटली को मुंम्बई के महालक्ष्मी रेस कोर्स में हो रहे बिजेपी के महासंम्मेलन में भेजा था ! उसी दिन की यह बात है !
और ईसी मुलाकात मे मैने जॉर्ज साहब को साफ – साफ कहा था कि “आप भारतीय राजनीति में सब से अधिक, संघ परिवार के आलोचकों मे से एक रहे हो ! दोहरी सदस्यता के मुद्दे पर आप और मधु लिमये जी ने (1979-80) जनता पार्टी के विभाजन करने मे एतिहासिक भुमिका निभाई थी ! लेकिन आज लालूप्रसाद यादव के साथ इर्ष्या के कारण आप अंधे हो गये हैं ! और संपुर्ण ऊत्तर भारत मे संघ परिवार को राजनीतिक बढावा दिलाने के लिए मदद करने के लिए, समता पार्टी का गठन कर रहे हैं ! और मैं इस पार्टी का महामंत्री तो दूर, अगर आप अध्यक्ष पद भी देंगे तो भी मै नहीं बनने वाला ! ”


क्योंकि भागलपुर दंगेके बाद इस देश की राजनीति का केंद्र बिंदु आनेवाले कम-से-कम पचास वर्षों तक ! सिर्फ और सिर्फ सांप्रदाईक ध्रुवीकरण के इर्द-गिर्द घूमेगा ! यह मेरा राजनैतिक भविष्य है ! और आप जिन मजदूरोके संघटन से आपके सार्वजनीक जीवन की शुरुआत की है ! वह भी आज बोनस तथा अन्य आर्थिक मांगों के लिए आपके साथ भले ही आज दिखाई दे रहा होगा ! लेकिन आस्था के मुद्दे पर वह सिधा भगवा झंडे के साथ चला जा रहा है !”
और सबसे महत्वपूर्ण बात रोजमर्रे के सवाल पर महंगाई,सामाजिक सुरक्षा तथा किसानों की किसानी की समस्याओं से ,बेरोजगारी,भुक,भ्रष्टाचार,विस्थापन,दलित हो या आदिवासी महिलाओ के ऊपर होनेवाले अत्याचार सब सवाल सेकंडरी हो जायेंगे ! और आज वस्तुस्तिथि सामने मौजूद है !”
जॉर्ज फर्नांडीज हो या नीतिश कुमार सभी के सभी लालूप्रसाद यादव के इर्ष्या में पागल हो गये हैं ! और सांप्रदायिक शक्तियोको पुष्ट करने के लिए, हनुमानजी वाली भुमिका किये जा रहे हैं ! यह लोग शुरू से ही नरेंद्र मोदी के जैसे संघ की शाखा से निकल कर आए स्वयंसेवक होते तो कोई बात नहीं थी ! लेकिन इनका स्कूल सोशलिस्ट स्कूल रहने की वजह से मुझे ज्यादा हैरानी हो रही है ! और इसिलिये मुझे लगता है कि इतिहास इन्हे कभी भी माफ नहीं करेगा ! और सबसे महत्वपूर्ण बात यह इनकी राजनीतिक आत्महत्या करने की कृति है !
आप को डी एन ए की बात समझ में आनेके बाद, आपने कहा था कि “मै रजनितिके क्षेत्र से सन्यास ले लूंगा ! अगर मैने सांप्रदायीक लोगों के साथ जाने की जगह ! शायद 22 जनवरी के बाद आपको कुछ नया साक्षात्कार हुआ है ! जिस वजह से आप अपने संकल्प को भूल गए हैं ?


और जिस कैलाशपति मिश्रा से नरेंद्र मोदी ने कर्पुरी ठाकुर के बारे में सुना है ! ऐसा भारत रत्न देने के बाद, नरेंद्र मोदीजी ने देश के विभिन्न अखबारों में प्रकाशित लेख में लिखा है ! कि “मुझे कर्पुरी ठाकुर के बारे में कैलाशपति मिश्रा ने बताया था ! ” यह वही कैलाशपति मिश्रा है जिसने 1977 में कर्पुरी ठाकुर ने पिछडी जातीयो के लिए 26% आरक्षण की घोषणा करने के बाद, उनके मंत्रिमंडल से इस्तीफा देते हुए ! उन्हें गालीबकना शुरू कर दिया था ! और संपूर्ण बिहार में आरक्षण के खिलाफ, संघ के कैडर के द्वारा, विरोध करने का इतिहास का मै खुद साक्षी हूँ ! जयप्रकाश नारायण के उम्र के पचहत्तर साल के उपलक्ष्य में पटना के गांधी मैदान पर उन्हें सम्मानित करने के 1977 के 11 अक्तूबर के कार्यक्रम पर, संघ के गुंडों ने पथराव करते हुए, मंचपर बैठे हुए जगजीवन राम तथा कर्पुरी ठाकुर को कितनी अश्लील गालियां दी है ! और उनके तरफ पत्थरों को फेंकने के प्रसंग का मै भी एक श्रोताओं में से एक होने की वजह से ! मुझे उस समय सबसे अधिक डायलिसिस पर चल रहे जयप्रकाश नारायण की तबीयत की चिंता सता रही थी ! क्योंकि इन भगवा गुंडों के द्वारा किया जा रहा पथराव में से, अगर एक भी पत्थर जयप्रकाश नारायण को लग गया होता ! तो 75 वा जन्मदिन उनकी मृत्यु का भी दिवस बन सकता था !


आज उन्हीं कर्पुरी ठाकुर को भारत रत्न देने का ऐलान के साथ, नरेंद्र मोदीजी के लेख में यह क्यों नहीं लिखा है ? “कि हमने कभी इस पिछड़े जाती के नेता को गालियां देते हुए पत्थरों से कुचल कर मारने की कोशिश की है !” और आज भी दलितों तथा पिछडी जातियां और अल्प संख्यक समुदाय के लोगों के बारे में हमारे मन में रत्तीभर की सहानुभूति नही है ! लेकिन चुनाव की राजनीति की वजह से हमें यह निर्णय लेना पडा है ! क्योंकि बिहार में जातिगत जनगणना में 61% पिछडी जाती के लोगों के रहते हुए हमे सिर्फ भगवान राम के मंदिर निर्माण करने से उनके वोट नहीं मिल सकते ! इसलिए हमें मजबूर होकर कर्पुरी ठाकुर को भारत रत्न देने का फैसला लेना पडा है !
और अभितक हमनें सत्ता में आने के बाद, जितने भी भारत रत्न देने के निर्णय लिये है ! उनमें से किसी भी एक के उपर हमें लेख लिखने की जरूरत महसूस नहीं हुई ! लेकिन जिस कर्पुरी ठाकुर को गाली देने का, और उनके पिछडी जाती तथा भूमि सुधार कार्यक्रम के विरोध में हमारे लोगो ने सतत विरोध किया ! और उस वजह से प्रयस्चित करने के लिए, हमने उन्हें अपनी की हुई गलतियों के लिए, आज उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित करने का निर्णय लिया है ! ऐसे जातियवादी सांप्रदायिक पाखंडीओ के साथ नितिश कुमार को, फिर से चले जाने का निर्णय लेते हुए शर्म आनी चाहिए !


27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस के एस- 6 कोच में, गोधरा स्टेशन पर आग लगने के समय ! आप ही रेल मंत्रालय का काम कर रहे थे ! और षड्यंत्र में क्या हुआ था ? यह सब किसी भी भारतीय राजनीति के खिलाडियों से आपको सबसे अधिक जानकारी है !
लेकिन उसके बावजूद, उस घटना का राजनैतिक लाभ लेकर, अपनी राजनैतिक जमीन पक्की करने वाले आदमी के साथ, चौबारा उसका साथ देने वाले आप के नाम मे भले निति शब्द है ! लेकिन मुझे अफसोस के साथ लिखना पड़ रहा है, कि आप अनैतिकताकी हदे पार करने वाले, सत्ता के मद में इतने पागल हो गये हैं ! कि घोर सांप्रदायिक घोर गरीबो के विरोधी, और सिर्फ धन्ना शेठो के लिए, भारत को बेचने वालो का साथ देने के लिए ! आपको थोडी-सी भी याद किशन पटनायक जिन्हे आपने अपने राजनीती के गुरू माना था! सत्तर के दशक की शुरूआत मे संसद सदस्य बननेके बाद आप भी एक थे ! जो उनके दिल्ली के एम पी के मकान में पडे रहते थे ! तो क्या किशनजी से यही सिखा आपने ? जिस आदमीने डॉ. राम मनोहर लोहिया जी केभी पहले संसद में प्रथम बार प्रवेश किया ! लेकिन अपने सिद्दांतो के साथ समझौता नहीं किया ! तो दोबारा संसद में जानेके मौके आये थे ! लेकिन उन्होनें समझौता नहीं किया ! क्या यही आपने अपने गुरू से सिखा ?


शायद यह बात पूरी करने के लिए विशेष रूप से बिहार के मजदुर,किसान,दलित हो या आदिवासी और सबसे बड़ी बात ! अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के वोट कटवा ओवेसी को, पिछली बार भी बिहार के मुसलमानों ने दो प्रतिशत भी वोट नही दिये थे ! और अबकी बार संघ परिवार की हरकतों से वे भलीभांति परिचित हो चुके हैं ! मुख्य रूप से दिल्ली के (2020) फरवरी माह के दंगे को कोई भी मुसलमान भूलनेकी गलती नहीं करेगा !
फिर तथाकथित सर्वोच्च न्यायालय के राम मंदिर निर्माण कार्य शुरू करनेका निर्णय ! और अभिका लखनऊ सीबीआई विषेश अदालत का बाबरी मस्जिद विध्वंस की केस का फैसला ! लगता है कि बाबरी मस्जिद को दीमक ने धराशायी किया है !
सभी अपराधियोको बाईज्जत बरी करनेके निर्णय ! भारत की न्याय व्यवस्था के इतिहास में अजीबोगरीब फैसला माना जायेगा ! और अब कृष्ण जन्मभुमि के केस को दर्ज करने की औपचारिकता पूरी कर दी है ! तो यह अघोषित हिंदू राष्ट्र घोषणा कीये बगैर, लगभग सभी निर्णय मेजोरिटीयन पुष्टिकरण के निर्णय होते देखकर, लगता नहीं कि एक भी मुसलमान वोटर अपना वोट बेकार जाने देगा !


ओऐसि मुस्लमान नरेंद्र मोदी है ! और यही कारण है कि,नरेंद्र मोदी के लिए इस तरह के अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को बार-बार बाटने वाले नेता ! फिर वह जिन्ना हो या बनातवाला,सुलेमान सैत,सैयद शाहबुद्दिन या बद्रुद्दीन अजमल और अब ओऐसि, मौलाना इलियास, वास्तनजी, नवाब मलिक, हसन मुश्रीफ, यह सब बहुत काम आते है ! ये एक सिक्के के दो पहलू होते हैं ! और बराबर एक दूसरे को देखकर फलते फुलते है ! और अब मेरे हिसाब से भारत की सबसे रजनितिक समझ रखने वाले लोगों में कोई प्रथम क्रमांक पर है, तो सिर्फ मुसलमान ! क्योंकि सच्चर कमेटी के रिपोर्ट के अनुसार भारत के सरकारी नौकरी-पेशे में मुसलमानों का दो प्रतिशत भी समावेश नही है ! तो उन्हें अपने जीवन यापन करने के लिए मजबूर होकर मजदूर बनने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है !


और अब प्रवासी मजदूरों की भी, गिनती मै इन्हिमे कर रहा हूँ ! क्योंकि उनके पावोके छाले अभिभी सुखे नही है ! जो उनके दिल और दिमाग में बैठ गये हैं ! चुन – चुन कर बदला लेंगे ! और लेना भी चाहिए ! क्योकी जिस बेरहमी से लॉकडाऊन की घोषणा कर दी ! और संपुर्ण देश के कोने-कोने से आसाम से यूपी ,बिहार,ओडिसा,बंगाल,झारखंड छत्तीस गढ़ के लोगों को, रस्तो पर हजारों किलोमीटर की दूरी, पैदल अपना सामान सरपर लेकर चलने की शिक्षा का काम करने वाली पार्टी बी जे पी ! और उनके तथाकथित सहयात्री दल अत्यंत क्रुर इंसानियत के दुश्मन बन गये हैं ! और उन्हें सबक सिखाने के लिए चुनाव से अच्छा मौका कोई दूसरा नहीं है !
और बिहार इस बात की प्रथम प्रयोग शाला है ! और यही कारण है, कि आज बिजेपि,जेडेयू अपना आत्म विश्वास खोकर, विरोधी दलों के लोगों के व्यक्तिगत जीवन पर आरोप लगाना शुरू कर दिया है ! नितिश कुमार को बिहार के मुख्यमंत्री सिर्फ 45 विधायक होने के बावजूद, उसी लालू परिवार के 79 विधायक होते हुए ! मुख्यमंत्री बनाने के समय नितिश को परिवारवाद नही दिखाई दिया ! अभी 22 जनवरी के बाद उत्तर भारत में जीस तरह का उन्मादी माहौल, संघ और उसकी राजनीतिक इकाई भाजपा ने बनाया ! उसे देखकर नितिशबाबू को अब राजनीति में परिवारवाद दिखाई देने लगा है ! और आपको संघ भाजपा का फासिस्ट परिवार उस तुलना में ज्यादा जनतांत्रिक लगने लगा है ? यह जनतंत्र की व्याख्या आपने अपने जीवन में कितनी बार बदल – बदल कर पद पाये है ? और अभिके समय भी उनके प्रयासों को देखते हुए यह आदमी ने कौन सा सोशलिस्ट और सेक्युलरिज्म का दर्शन पढा है ? जैसे कि इनके वरिष्ठ नेता जॉर्ज फर्नाडिस ने अपने जीवन कि आखिरी पारी एन डी ए की गोद में जाकर खेलकर समाप्त की थी ! और अपनी राजनीतिक आत्महत्या कर ली थी ! बिल्कुल हूबहू नितिश कुमार भी उसी को दोहरा रहे हैं ! कर्पुरी ठाकुर को भारतरत्न देने की घोषणा भी इसी राजनीतिक षडयंत्र का पार्ट है ! अन्यथा दस सालों से नरेंद्र मोदी को अचानक कर्पुरी ठाकुर पिछड़े वर्ग के मसिहा दिखाई देते हैं ! नरेंद्र मोदी ने अपने जीवन में कोई भी निर्णय बगैर चुनावी गणित के अलावा लेने का एक भी उदाहरण नहीं हैं ! फिर वह पुलवामा के हमारे देश के सुरक्षा बलों की शहादत से लेकर, गुजरात के दंगों के दौरान की बात हो, या मंदिर निर्माण का काम ! सभी को अपने चुनाव के प्रचार-प्रसार के लिए ही ! इस्तेमाल किया गया है ! यह सभी उदाहरण आंखों के सामने मौजूद रहते हुए ! नितिश कुमार सिर्फ अपने खुद के पदलिप्सा के कारण ही बार – बार पालिया बदल रहे हैं !

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