देशभर में सड़कों और राजमार्गों के फैलाव की ज़िम्मेदारी वाले जहाजरानी, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय में अभी सबकुछ बेहद तेज़ी से हो रहा है. इस पूरे काम की ज़िम्मेदारी है मंत्रालय के सचिव ब्रह्मदत्त पर, जिनकी काम की गति उनके मंत्रालय जैसी ही तेज़ है.
कर्नाटक काडर के 1973 बैच के आईएएस ब्रह्मदत्त एक विधि स्नातक हैं और उनके पास इकॉनोमिक्स और फीजिक्स में मास्टर्स डिग्री हैं. वे टैरिफ अथॉरिटी फॉर मेजर पोट्‌र्स के अध्यक्ष भी हैं. ट्रक हड़ताल ख़त्म कराने के दौरान अपनी अहम भूमिका के कारण चर्चित रहे ब्रह्मदत्त से अंज़ुम ए जैदी और एस रिज़वी की बातचीत के प्रमुख अंश-
आप जिस मंत्रालय में हैं, उसमें नए मंत्री आए हैं. आपकी वर्तमान प्राथमिकताएं और फोकस क्या हैं?
हमारा सबसे प्रमुख फोकस विश्वस्तरीय सड़कें बनाना है और वह भी तेज़ गति से. परिवहन के मामले में सुधार का एक विस्तृत एजेंडा है.
सड़क परिवहन के क्षेत्र में इन सुधारों की लंबे समय से ज़रूरत रही है. हमारा लक्ष्य है कि हम देश में लोगों और पर्यटकों के परिवहन को आसान और आरामदायक बना सकें. इसी तरह माल ढुलाई में भी सुधार की ज़रूरत है, ताकि माल देश के एक हिस्से से दूसरे में आसानी से आ-जा सके.
राष्ट्रीय परमिट और टूरिस्ट परमिट की वर्तमान व्यवस्था पर ध्यान देने की ज़रूरत है. तेज़ी और आसानी से परिवहन में इससे बड़ी परेशानी पैदा होती है. हालांकि यह राज्यों का विषय है, फिर भी हमें इस पर ध्यान देने की ज़रूरत है. हम मोटर वेहिकल्स एक्ट में संशोधन की बात भी सोच रहे हैं.
इस तरह के सुझाव आए हैं कि  केंद्र सरकार को अपनी अथॉरिटी बनानी चाहिए, जो नेशनल परमिट देने का काम करे. ऐसा एक प्रस्ताव है कि केंद्र एक जगह से ही नेशनल परमिट का टैक्स वसूले और उसे राज्यों में बांट दे.
इस मामले में कई बैठकें हुई हैं जिनमें ट्रकर्स कमिटी और राज्य परिवहन सचिवों, राज्य परिवहन कमिश्नरों, राज्य वित्त सचिवों ने भाग लिया और सर्वसम्मति से यह कहा कि केंद्र सरकार को नेशनल परमिट पर चल रहे ट्रक का टैक्स वसूलना चाहिए और देश में कहीं भी जाने की अनुमति होनी चाहिए. फिलहाल नेशनल परमिट का मतलब चार राज्य ही हैं. कुछ और मुद्दे भी हैं, जैसे राज्यों की कमाई में कमी, इन पर विचार चल रहा है.
टूरिस्ट परमिट पर क्या चल रहा है?
इस मामले में मुश्किलें ज़्यादा हैं क्योंकि हर राज्य के अपने नियम हैं. टूरिस्ट वाहनों की संख्या मालवाहकों से काफी कम है. इस मामले में पर्यटन विभाग के साथ अंतर-मंत्रालय बैठक हो चुकी है. उन्होंने भी टूरिस्टों के लिए बिना परेशानी के यात्रा का अनुरोध किया है. जयपुर, दिल्ली और आगरा में पायलट आधार पर एक प्रोजेक्ट चलाने का अनुरोध भी किया गया है.
अभी टूरिस्ट बसों को दो-दो बार सीमाओं पर रुकना पड़ता है. हम पायलट आधार पर जो प्रोजेक्ट चलाना चाहते हैं. उसमें एक ही बार में सभी जांचों की व्यवस्था होगी.
एक्सप्रेस- वे का एक राष्ट्रीय ग्रिड बनाने की बात हुई थी, उसमें कहां तक विकास हुआ है?
हां, काफी विकास हुआ है. एक्सप्रेस- वे का एक राष्ट्रीय ग्रिड तैयार हो रहा है. इस के लिए सलाहकार एक साल पहले ही नियुक्त हुए थे और उन्होंने अपनी पहली रिपोर्ट दे दी है.
आख़िरी रिपोर्ट की तैयारी हो रही है. जब एक्सप्रेस-वे का एक राष्ट्रीय ग्रिड तैयार हो जाएगा, तब हम राष्ट्रीय राजमार्गों पर ध्यान देंगे. इसमें ऐसे उपाय होंगे जिनसे से टूरिस्ट और माल परिवहन का रास्ता आसान हो जाएगा. उन्हें कई चेकपोस्ट्‌स से गुज़रने के बजाय बस एक बार आने और जाने के समय एक्सप्रेस-वे और राष्ट्रीय राजमार्गों के टोल प्लाज़ा पर टैक्स देने के लिए रुकना होगा. इससे उन्हें काफी लाभ भी होगा.
आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं को ऐसे एक्सप्रेस-वे की ज़रूरत है. 4 से 6 लेन में चौड़ा करना तो ज़रूरी है ही, पूरे देश में इसके नेटवर्क को फैलाना भी ज़रूरी है.
सुरक्षा उपायों पर आपकी क्या राय है?
परिवहन क्षेत्र में मोटर वेहिकल्स एक्ट में संशोधन के अलावा कमिटी ने कई और बदलावों की अनुशंसा की है. ये बदलाव राजमार्गों और एक्सप्रेस-वे पर सुरक्षा से जुड़े हैं. शराब पीकर वाहन चलाने और बीमा नीति में बदलाव की ज़रूरत है. ग़लत तरीक़े से वाहन चलाने वालों पर हमें कड़ी कार्रवाई करनी होगी. इस प्रस्ताव को तैयार कर लिया गया है और संसद में संबंधित विधेयक जल्द ही आएगा.
कहा जाता है कि राजमार्गों पर बहुत दुर्घटनाएं होती हैं, आपात सेवा के बारे में क्या विचार हैं?
यूं तो सुरक्षा हमारी पहली प्राथमिकता है, हम आपात सेवा की ज़रूरत के बारे में भी खुले दिमाग़ से सोच रहे हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय ने पिछले साल इस योजना के तहत ट्रॉमा सेंटर्स के लिए 600 करोड़ रुपये दिए थे. हम राजमार्गों के किनारे 100 ट्रॉमा सेंटर्स बनाने की सोच रहे हैं. भूतल परिवहन मंत्रालय की ओर से 20 करोड़ रुपये की मदद से 100 एंबुलेंस उतारने की भी योजना है. हम चाहते हैं कि हर पचास किलोमीटर में एक एंबुलेंस रहे, और भारत की राष्ट्रीय राजमार्ग अथॉरिटी उन पर नज़र रखे. हमने निजी अस्पतालों से बैठक कर उनके साथ तालमेल बैठाने की कोशिश की है. हमें बीमा नियम में भी बदलाव करने होंगे.
सड़कों के बारे में क्या कहेंगे?  क्या हम विश्व स्तरीय सड़कों के लिए तकनीक आयात कर रहे हैं?
हां,  बेहतर सड़कों के लिए तकनीक के आयात पर कोई बंधन नहीं है. अगर वे हमारे उद्देश्य को पूरा करते हैं और अपने देश में उन्हें मान्यता मिली हुई हो, तो आयात किए जा सकते हैं.
साथ ही वाहनों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है. 1947 में संख्या तीन लाख थी और आज 14 करोड़ है. सबसे बड़ी प्राथमिकता सड़क की स्थिति और अच्छी सड़कों की संख्या को बढ़ाना है. हमारे पास एक मानक है जिससे सड़क बनाने की तकनीक और सामग्री का स्तर तय होता है.
सड़क निर्माण का आपका लक्ष्य कितना बड़ा है?
हमारे पास राष्ट्रीय राजमार्ग के तहत 70000 किलोमीटर सड़कें हैं, इनमें से 30000 राष्ट्रीय राजमार्ग अथॉरिटी के पास हैं. इनमें से 6000 तो 4 से 6 लेन की बनाई जाएंगी.
राष्ट्रीय राजमार्ग अथॉरिटी की ज़िम्मेदारी यह भी है कि वह स्वर्णिम चतुर्भुज योजना के तहत सभी राज्यों की राजधानियों को जोड़ेे. यह 12000 किलोमीटर है और कई महत्वपूर्ण पर्यटन और धार्मिक जगहें इन पर स्थित हैं.

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