maut-ki-godबिहार के मगध प्रमंडल में जापानी इंसेफ्लाइटिस और एक्यूट सिंड्रोम इंसेफ्लाइटिस नामक बीमारी यहां के नौनिहालों के लिए बारिश का मौसम आते ही काल बन जाती है. प्रत्येक वर्ष इस बीमारी की वजह से कई बच्चों की मौत हो जाती है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार पिछले एक दशक में मगध के पांच जिलों में सौ से अधिक बच्चों की मौत जापानी इंसेफ्लाइटिस और एक्यूट सिंड्रोम इंसेफ्लाइटिस की वजह से हो चुकी है. यह आंकड़े अस्पताल में इलाज के दौरान मौत होने वाले बच्चों की है. यह आंकडे बीमार की वजह से सरकारी अस्पताल में हुई बच्चों की मौत के हैं और जिन बच्चों की मौत अस्पताल पहुंचने से पहले ही हो गई वो आंकडे इसमें शामिल नहीं हैं.

पिछले दो महीने से मगध के ग्रामीण क्षेत्रों से अज्ञात बीमारी से ग्रस्त बच्चे गया स्थित अनुग्रह नारायण मगध मेडिकल अस्पताल पहुंच रहे थे, लेकिन चिकित्सकों को समझ में नहीं आ रहा था कि बच्चों में कौन सी बीमारी है? चिकित्सकों ने पहले जापानी इंसेफ्लाइटिस समझ कर बच्चों का इलाज शुरू किया, लेकिन जांच यह नहीं पता चल पा रहा था कि क्या बीमारी है? जब तक पता चल पाता कि बीमारी क्या है, तब तक आठ बच्चों की मौत हो गई. अज्ञात बीमारी से ग्रस्त बच्चों की संख्या भी अस्पताल में बढ़ने लगी. स्थिति की गंभीरता को देखते हुए गया जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग ने इस बात की जानकारी राज्य सरकार और स्वास्थ्य विभाग के उच्च पदाधिकारियों को दी. उसके बाद केंद्र और राज्य सरकार की पुणे, दिल्ली और पटना से एक विशेषज्ञों की टीम आई जिसने मगध मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती बच्चों को देखा. विशेषज्ञों की टीम ने जब अज्ञात बीमारी से ग्रस्त बच्चों की जांच की तो एक नई बीमारी हरपिस सिंप्लेक्स का पता चला. विशेषज्ञों के अनुसार हरपिस सिंप्लेक्स दूसरे वायरस की तरह ही दिमाग पर तेजी से असर करता है और साथ ही शरीर के कुछ हिस्सों को अपंग भी बना देता है. जिन बच्चों के शरीर में प्रतिरोधक क्षमता कम है, उनके लिए यह बीमारी खतरनाक है. हालांकि एक सप्ताह के भीतर जिन आठ बच्चों की मौत हो चुकी है, उन बच्चों की मौत की वजह क्या है? यह नहीं पता चल पाया है. इस नई बीमारी के बारे में जानकारी मिलते ही मगध के पांच जिलों गया, औरंगाबाद, नवादा, जहानाबाद और अरवल के पिछड़े ग्रामीण क्षेत्रों में दहशत है, क्योंकि इन्हीं पांच जिलों से इस बीमारी से ग्रस्त बच्चे अस्पताल पहुंच रहे हैं. दहशत की वजह यह है कि अज्ञात बीमारी का वायरस तो सक्रिय है ही और अब बारिश शुरू होने की वजह से जापानी इंसेफ्लाइटिस का भी खतरा मंडराने लगा है. पिछले वर्ष मगध मेडिकल कॉलेज अस्पताल में जापानी इंसेफ्लाइटिस और एक्यूट सिंड्रोम इंसेफ्लाइटिस के कुल 124 मामले आए थे, जिनमें 25 बच्चों की मौत हो गई थी. प्रत्येक वर्ष मानसून की शुरुआत के साथ ही गया जिले के फतेहपुर, टनकुप्पा, अतरी, मोहड़ा, वजीरगंज, डुमरिया, इमामगंज, मोहनपुर, बाराचट्‌टी, नवादा जिले के कौवाकोल, पकरीबरावां, अकबरपुर, गोविंदपुर, रोह, सिरदला, रजौली, अरवल के कुर्था, औरंगाबाद के मदनपुर, रफीगंज, देव, कुटुम्बा आदि प्रखंड के ग्रामीण क्षेत्रों के गरीब परिवारों में जापानी इंसेफ्लाइटिस बीमारी की संभावना से दहशत रहती है. मगध प्रमंडल में पिछले नौ वर्षों में ही लगभग पांच सौ से अधिक बच्चों की मौत इस बीमारी से हो चुकी है, जिनमें सिर्फ गया जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में जापानी इंसेफ्लाइटिस तथा एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम से 310 बच्चों की मौत हो चुकी है. इस बीमारी की वजह से गया जिले में सबसे अधिक बच्चों की मौत 2012 में हुई, उस समय मगध मेडिकल कॉलेज में इस बीमारी से ग्रस्त 50 बच्चों की मौत हो गई थी. स्वास्थ्य विभाग से मिले आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2007 से 2015 तक पूरे राज्य में जापानी इंसेफ्लाइटिस तथा एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम के 4811 मामले सामने आए थे जिनमें 1002 बच्चों की मौत हो गई. इस बीमारी का सबसे अधिक प्रभाव ग्रामीण इलाकों पर पड़ता है. विशेषज्ञों के अनुसार इन दोनों बीमारी के  वायरस अधिकतर मच्छर, जानवर, पक्षी व धान के खेतों में पाए जाते हैं. जानकारी के अभाव और झोलाछाप डॉक्टरों से इलाज की वजह से इस बीमारी से ग्रस्त बच्चों की अधिक मौते  होती हैं.

गया के सिविल सर्जन डॉ. कृष्णमोहन पूर्वे और मगध मेडिकल कॉलेज अस्पताल के अधीक्षक डॉ. सुधीर कुमार सिन्हा ने कहा कि यदि इन दोनों बीमारियों के लक्ष्ण बच्चों में दिखाई दें, तो बीमार बच्चों को तुरंत मेडिकल कॉलेज में भर्ती करें जिससे समय रहते बच्चों की जान बचाई जा सके. फिलहाल खबर लिखने तक कॉलेज में दो दर्जन से अधिक बच्चों का इलाज चल रहा था. केंद्र और राज्य की टीम में शामिल डॉ. निगम प्रकाश, डॉ. एसके जयसवाल, डॉ. अल्का, डब्लूएचओ के बिहार चीफ डॉ. विशेष, बिहार के राज्य प्रतिरंक्षण पदाधिकारी डॉ. एनके सिन्हा के अलावा राजेंद्र मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्‌यूट के कई डॉक्टरों ने मेडिकल कॉलेज में ऐसे बीमार बच्चों का इलाज कर रहे चिकित्सकों को आवश्यक निर्देश दिया है, जिससे अधिकतर बच्चों की जान इलाज से बचाई जा सके.

पिछले एक दशक से जापानी इंसेफ्लाइटिस तथा एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम श्रेणी की बीमारियों ने राज्य के सैकड़ों बच्चों की जान ले ली है. विशेषज्ञों का कहना है कि इस नई बीमारी के वायरस का इलाज जल्द नहीं खोजा गया, तो यह बीमारी पूरे राज्य के लिए खतरनाक साबित होगी. विशेषज्ञों ने कहा कि नई बीमारी हरपिस सिंप्लेक्स से ग्रस्त बच्चों का बेहतर से बेहतर इलाज का प्रयास किया जा रहा है. उनका कहना है कि लोगों को भी अपने घरों में पूरी तरह से साफ-सफाई के साथ मच्छर से बचाव के भी उपाय करने चाहिए. विशेषज्ञों का कहना है कि अस्पताल आने वाले इस बीमारी से ग्रसित बच्चों की सबसे अधिक संख्या पिछड़े ग्रामीण इलाकों से है. इसलिए ग्रामीण इलाकों में इस जानलेवा बीमारी से बचाव के लिए जागरूकता अभियान चलाना जरूरी है जिससे मानसून आने के पूर्व ही ग्रामीण सतर्क हो जाएं. 4 जुलाई 2016 को हरपिस सिंप्लेक्स और जापानी इंसेफ्लाइटिस एवं एक्यूट इंसेफ्लाइटिस बीमारी की जांच के लिए केंद्र की टीम मगध मेडिकल कॉलेज अस्पताल पहुंची. शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. बाबा साहेब टांगले, डॉ. अभिजीत शाह ने पिछले एक सप्ताह में जिन आठ बच्चों की मौत हो चुकी है उसकी पूरी रिपोर्ट देखी. इस टीम के विशेषज्ञों ने जिन ग्रामीण क्षेत्रों से बीमार बच्चे आए थे, उन गांवों का भी निरीक्षण किया. फिलहाल मेडिकल कॉलेज के अलावा मगध के अन्य जिलों के सरकारीअस्पतालों में भी दो दर्जन से अधिक संदिग्ध बीमारी से ग्रस्त बच्चों का इलाज चल रहा है जिनमें कई बच्चों की स्थिति गंभीर बताई जा रही है.

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