महाराष्ट्र में नई सरकार के शपथ ग्रहण समारोह के लिए वानखेड़े स्टेडियम बुक कराया गया. विजय उत्सव मनाना सही है, लेकिन अगर इसे जनता के लिए ही किया जाना था, तो फिर इस स्टेडियम के बजाय चौपाटी या आज़ाद मैदान बेहतर विकल्प था. मुझे लगता है कि महाराष्ट्र भाजपा पहले से ही अपनी सफलता का उत्सव मनाने के क्रम में नियमों की अनदेखी करने लगी है. अन्य राज्यों की तुलना में महाराष्ट्र में प्रशासन अच्छा काम करता है, नौकरशाही जगह पर है. मानदंडों को अगर राजनेता न तोड़ें, तो उनका भी सही ढंग से पालन होता है. नए मुख्यमंत्री, जिनकी अच्छी प्रतिष्ठा है, अगर नियमों के हिसाब से काम करते हैं, तो महाराष्ट्र में प्रशासन बहुत अच्छा चल सकता है. 
राजनीतिक परिदृश्य तेजी से अराजनीतिक हो रहा है. महाराष्ट्र में भाजपा ने कुल 288 में से 123 सीटों पर जीत हासिल की. हालांकि, भाजपा अभी दावा कर रही है कि मोदी लहर थी. लहर क्या होती है? लहर का अर्थ है कि कम से कम एक स्पष्ट बहुमत मिले. इससे न कम न अधिक. हालांकि, भाजपा महाराष्ट्र विधानसभा में पहली बार सबसे बड़ी पार्टी बनकर खुश हो सकती है. इसमें कुछ ग़लत भी नहीं है. लहर लोकसभा चुनाव में थी, जहां उसे स्पष्ट बहुमत मिला. महाराष्ट्र के परिणाम को बहुत उत्साहजनक नहीं माना जा सकता है.

व्यापारी और व्यवसायी हमेशा अंकगणित में बात करते हैं और वे 123 सीटें पाकर ऐसा महसूस कर रहे हैं कि स्पष्ट बहुमत मिल गया. राजनीति ऐसे नहीं की जाती. यदि केवल अंकगणित की बात हो, तो कोई भी किसी से भी जुड़ सकता है. कोई भी किसी से भी समर्थन ले सकता है या दे सकता है. तब विचारधारा के लिए जगह ही नहीं होगी. महाराष्ट्र भाजपा ने भी कोई सैद्धांतिक स्टैंड नहीं लिया, यह निराशाजनक है. अफवाह यह भी है कि नितिन गडकरी और शरद पवार के रिश्ते चूंकि अच्छे हैं, इसलिए यह सब शुरू किया गया.

राकांपा ने वक्त की नजाकत को देखते हुए चतुराई से भाजपा को बिना शर्त समर्थन देने की घोषणा कर दी. आश्‍चर्य की बात यह है कि भाजपा जैसी बड़ी पार्टी ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त की. वास्तव में एक परिपक्व राजनीतिक पार्टी राकांपा से समर्थन लेने के सवाल पर ज़रूर प्रतिक्रिया देती और कहती कि राकांपा से समर्थन लेने का सवाल ही पैदा नहीं होता, क्योंकि उसका ट्रैक रिकॉर्ड और भ्रष्टाचार के आरोप को देखते हुए उससे कैसे समर्थन लिया जा सकता है. उलटे यह कहा जा सकता था कि राकांपा से समर्थन लेने की जगह हम विपक्ष में बैठना पसंद करेंगे. सवाल है कि जब राकांपा का समर्थन लिया जा सकता है, तो कांग्रेस का समर्थन क्यों नहीं लिया जा सकता? पृथ्वीराज चव्हाण की छवि महाराष्ट्र में राकांपा के किसी भी नेता से कहीं ज़्यादा स्वच्छ है.
व्यापारी और व्यवसायी हमेशा अंकगणित में बात करते हैं और वे 123 सीटें पाकर ऐसा महसूस कर रहे हैं कि स्पष्ट बहुमत मिल गया. राजनीति ऐसे नहीं की जाती. यदि केवल अंकगणित की बात हो, तो कोई भी किसी से भी जुड़ सकता है. कोई भी किसी से भी समर्थन ले सकता है या दे सकता है. तब विचारधारा के लिए जगह ही नहीं होगी. महाराष्ट्र भाजपा ने भी कोई सैद्धांतिक स्टैंड नहीं लिया, यह निराशाजनक है. अफवाह यह भी है कि नितिन गडकरी और शरद पवार के रिश्ते चूंकि अच्छे हैं, इसलिए यह सब शुरू किया गया.
इसी तरह दूसरी तरफ़ कांग्रेस है. आख़िरकार, मोदी पांच साल के लिए चुने गए हैं. केवल पांच साल बाद ही कांग्रेस को यह मौक़ा मिलेगा कि वह लोगों को समझाए, लेकिन इस सबसे पहले खुद ही अगर कांग्रेस पार्टी कुछ नहीं करती है, तो क्या होगा? राहुल गांधी के मन में शायद यह बात है ही नहीं कि पार्टी चलाने के लिए क्या किया जाए, कैसे पार्टी चलाई जाए, कैसे प्रधानमंत्री बन सकते हैं? अगर वह इस सबमें दिलचस्पी नहीं रखते हैं, तो उन्हें किसी और को इस काम के लिए नियुक्त करना चाहिए, जो प्रभावी रूप से पार्टी का नेतृत्व करे. 2019 में क्या होगा, कोई नहीं जानता, लेकिन एक मजबूत विपक्ष की ज़रूरत तो है ही. फिलहाल कांग्रेस फिर से ग़ैर राजनीतिक व्यवहार कर रही है. चिदंबरम ने अभी एक बयान दिया, जो अन्य कांग्रेसियों को पसंद नहीं आया. एक ग़ैर राजनीतिक माहौल फिर से देखने को मिला. कोई भी गंभीरता से अगले चुनाव के लिए पार्टी को तैयार करने में अपना दिमाग नहीं लगा रहा है.
महाराष्ट्र में नई सरकार के शपथ ग्रहण समारोह के लिए वानखेड़े स्टेडियम बुक कराया गया. विजय उत्सव मनाना सही है, लेकिन अगर इसे जनता के लिए ही किया जाना था, तो फिर इस स्टेडियम के बजाय चौपाटी या आज़ाद मैदान बेहतर विकल्प था. मुझे लगता है कि महाराष्ट्र भाजपा पहले से ही अपनी सफलता का उत्सव मनाने के क्रम में नियमों की अनदेखी करने लगी है. अन्य राज्यों की तुलना में महाराष्ट्र में प्रशासन अच्छा काम करता है, नौकरशाही जगह पर है. मानदंडों को अगर राजनेता न तोड़ें, तो उनका भी सही ढंग से पालन होता है. नए मुख्यमंत्री, जिनकी अच्छी प्रतिष्ठा है, अगर नियमों के हिसाब से काम करते हैं, तो महाराष्ट्र में प्रशासन बहुत अच्छा चल सकता है. महाराष्ट्र अच्छा करता रहेगा. हरियाणा में पहले कैप्टन अभिमन्यु का नाम सामने आ रहा था. बाद में मनोहर लाल खट्टर, एक वयोवृद्ध स्वयंसेवक, को मुख्यमंत्री चुना गया. भाजपा को इस राज्य में शासन करने का पहली बार मौक़ा मिला है.
अंतत: प्रधानमंत्री ने कम से कम सरकार (गवर्नमेंट) और अधिक से अधिक गवर्नेंस की बात कही है. लोगों को यह तभी महसूस होगा, जब परिणाम सामने आएगा. भाजपा भाग्यशाली है कि पेट्रोलियम पदार्थों की क़ीमतों में गिरावट आ रही है, भुगतान संतुलन में सुधार होगा, चालू खाता घाटे में भी सुधार होगा. यह सब केंद्र सरकार के लिए अच्छा है. सवाल यह है कि अब कितने मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स भारत में आ सकती हैं. यह इतना आसान भी नहीं है. भारत के साथ जो पहले से परिचित हैं, वही कंपनियां ज़्यादा आएंगी. नए उद्यमियों को लाना इतना आसान नहीं है. हालांकि, बुनियादी ढांचे और बिजली उत्पादन आदि पर केंद्र सरकार ध्यान दे रही है.
इस सब चीजों का कितना फ़ायदा होता है, यह देखने वाली बात होगी.

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