IMG_0872कहा जाता है कि शिक्षक राष्ट्र निर्माता होता है, वह देश का भविष्य बनाता है, उसे नई दिशा देता है, लेकिन बिहार में कुछ लोग फर्जी मार्कशीटों के बल पर पंचायत शिक्षक की नौकरी पाने में कामयाब हो गए हैं. ऐसा ही एक मामला चौथी दुनिया के सामने आया है, जिसमें हुए फर्जीवाड़े ने साबित कर दिया कि इंसान यदि बेईमानी पर उतर आए, तो व्यवस्था उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती. मामला बिहार के पश्‍चिमी चंपारण के बेतिया के धोकराहा का है, जहां राम लखन तिवारी नामक शख्स ने नौकरी पाने की आयु सीमा निकल जाने के बाद न केवल अपना नाम बदल कर राम जी तिवारी कर लिया, बल्कि अपनी जन्मतिथि भी बदल ली. इसके बाद हासिल किए गए दस्तावेजों की बदौलत वह पंचायत शिक्षक के पद पर आसीन हो गया. राम जी तिवारी ने फर्जी दस्तावेजों की ही बदौलत अपने बेटे, बेटी और बहू को भी पंचायत शिक्षक बनवा दिया. सभी दस्तावेज इतनी सफाई से बनाए गए हैं कि उन्हें देखकर किसी को शक नहीं होता कि वे वाकई नकली हैं.
इस मामले में पहली शिकायत आरोपी राम लखन तिवारी के सगे भाई निरंजन तिवारी ने 2007 में की थी. सात साल से वह विभिन्न सरकारी महकमों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई. पुलिस, मुख्यमंत्री, लोकायुक्त से लेकर अदालत तक वह इंसाफ पाने की पुरजोर कोशिश कर चुके हैं, लेकिन अब तक उन्हें सफलता नहीं मिली. पहले इस बिंदु पर छानबीन हुई कि राम लखन और राम जी एक ही व्यक्ति के दो नाम हैं या दो अलग-अलग व्यक्ति हैं. पुलिस ने जांच के बाद पुष्टि की कि राम लखन तिवारी उर्फ राम जी तिवारी एक ही व्यक्ति है. इन पंचायत शिक्षकों की नियुक्ति वर्ष 2006 में की गई थी. 20 दिसंबर, 2007 को डीजीपी बिहार के आदेश पर राम जी तिवारी के घर पर पुलिस ने छापा मारा था. छापे के दौरान विभिन्न दस्तावेज जब्त करने के बाद राम जी तिवारी एवं उनके पुत्र रमेश तिवारी को गिरफ्तार कर लिया गया. दोनों को 26 दिनों तक पुलिस रिमांड पर रहना पड़ा था. इसके बाद पुलिस ने जो केस डायरी पेश की, उसमें केवल टीचर्स ट्रेनिंग के दस्तावेजों की जांच की बात कही गई, लेकिन मध्यमा के दस्तावेजों की उसने चर्चा तक नहीं की. पुलिस ने कहा कि दस्तावेज सही हैं. बाद में सूचना का अधिकार क़ानून के जरिये हासिल जानकारी से खुलासा हुआ कि पुलिस ने गलत केस डायरी पेश की थी. जो दस्तावेज पुलिस ने सही बताए थे, वे फर्जी निकले. बावजूद इसके प्रशासन मामले की जांच कर दूध का दूध और पानी का पानी करने में अक्षम सिद्ध हुआ.
राम जी पर अन्य लोगों को भी फर्जी मार्कशीट उपलब्ध कराने का आरोप है. राम लखन तिवारी उर्फ राम जी तिवारी पुत्र वीर तिवारी उर्फ कृष्णा तिवारी फर्जी प्रमाण-पत्रों के सहारे प्रखंड चनपटिया के ग्राम खसुआड़ में पंचायत शिक्षक के पद पर कार्यरत हैं. राम लखन तिवारी ने वर्ष 1969-70 में मोतीलाल उच्च विद्यालय मझौली से मैट्रिक की परीक्षा पास की. इसके बाद वर्ष 1978 से 1985 के दौरान उन्होंने मझौली प्रखंड से राम लखन तिवारी के नाम से बेरोज़गारी भत्ता भी हासिल किया. वर्ष 1984 में राम लखन तिवारी ने अपना नाम राम जी तिवारी कर लिया और राज संस्कृत उच्च विद्यालय, बेतिया से मध्यमा की परीक्षा उत्तीर्ण की, जिसमें उम्र काफी कम करके लिखाई गई. राम लखन तिवारी के मैट्रिक प्रमाण-पत्र में जन्मतिथि 6-10-1951 अंकित है, जबकि राम जी तिवारी की जन्मतिथि 07-09-1962 अंकित है. एक ही व्यक्ति की दो जन्मतिथि कैसे हो सकती है? इसके बाद राम जी ने वाल्मीकि नगर (पश्‍चिमी चंपारण) से 1984-86 में टीचर्स ट्रेनिंग ली. इस दौरान उन्होंने बेरोज़गारी भत्ता और टीचर्स ट्रेनिंग का स्टाइपेंड दोनों अलग-अलग नाम से प्राप्त किया. राम लखन तिवारी के पुुत्र रमेश तिवारी प्रखंड नौतन, पुत्री रीमा देवी चनपटिया प्रखंड के मरमचा में और बहू कृपा तिवारी बेतिया प्रखंड के विद्यानगर में पंचायत शिक्षक के पद पर कार्यरत हैं और सभी के प्रमाण-पत्र फर्जी हैं. इस बात का खुलासा सूचना अधिकार क़ानून के जरिये प्राप्त दस्तावेज करते हैं. इनके अलावा सतेंद्र नारायण सिंह पुत्र रामाधार सिंह एवं प्रदीप कुमार पांडेय पुत्र जगत नारायण पांडेय नौतन, धर्मेंद्र दुबे पुत्र राजेंद्र दुबे चनपटिया में फर्जी दस्तावेजों के सहारे पंचायत शिक्षक के पद पर कार्यरत हैं.
जब उक्त लोगों के संबंध में बिहार विद्यालय परीक्षा समिति से आरटी आई के जरिये जानकारी मांगी गई, तो मालूम हुआ कि रमेश कुमार तिवारी ने 1988-90 में मिल्लत रांची से प्राथमिक शिक्षक प्रशिक्षण परीक्षा उत्तीर्ण नहीं की. उनके प्रमाण-पत्र में रोल कोड 1153, क्रमांक 07 दर्ज है, जो वर्ष 1994 के दस्तावेजों में है और मो. मुर्तजा पिता इसहाक मिर्जा के नाम पर आवंटित है, जो उस वर्ष परीक्षा में अनुुपस्थित रहा था. इसी तरह कृपा कुमारी ने भी छोटा नागपुर रांची से 1994 में प्राथमिक शिक्षक प्रशिक्षण परीक्षा पास नहीं की. उनके प्रमाण-पत्र में रोल कोड 1101, क्रमांक 326 दर्ज है, जो फर्जी है, क्योंकि विद्यालय परीक्षा समिति के पास उपलब्ध दस्तावेजों में केवल 324 क्रमांक तक ही रिकॉर्ड उपलब्ध है. प्रदीप कुमार पांडेय पुत्र जगदीश नारायण पांडेय ने भी वर्ष 1994 में मिल्लत रांची से प्राथमिक शिक्षक प्रशिक्षण परीक्षा उत्तीर्ण नहीं की. उनके प्रमाण-पत्र में रोल कोड 1153, क्रमांक 21 दर्ज है, जबकि उस वर्ष के उपलब्ध रिकॉर्ड में इस कोड पर केवल क्रमांक 7 तक ही दर्ज है, क्रमांक 21 नहीं है. इसी तरह धर्मेंद्र कुमार दुबे के सत्र 1989-91 शिक्षक प्रशिक्षण परीक्षा प्रमाण- पत्र में रोल कोड 1105, क्रमांक 273 दर्ज है, जबकि समिति के पास उपलब्ध दस्तावेजों में क्रमांक 01 से 266 तक ही दर्ज है. ऐसे में 273 आया कहां से? आरोपी की पुत्री रीमा ने संपूर्णानंद संस्कृत विश्‍वविद्यालय, वाराणसी से वर्ष 2002 में उत्तर मध्यमा परीक्षा उत्तीर्ण करने का प्रमाण-पत्र दिया है, जिसमें अनुक्रमांक 4403 अंकित है, लेकिन आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार, उत्तर मध्यमा परीक्षा-2002 में अनुक्रमांक 4403 आवंटित ही नहीं किया गया था.
आश्‍चर्य का विषय यह है कि सरकार ने इसे दो सगे भाइयों का आपसी विवाद माना. यहां तक कि पटना हाईकोर्ट ने भी इसे दो भाइयों के बीच का विवाद मानते हुए इस मामले की जांच के संबंध में निरंजन तिवारी द्वारा दायर जनहित याचिका खारिज कर दी थी. बिहार सरकार की ओर से हाईकोर्ट में सीडब्ल्यूजेसी क्रमांक 6382/2010 में हलफनामा दाखिल किया गया कि निरंजन तिवारी राम जी तिवारी को परेशान करने के उद्देश्य से काम कर रहे हैं और राम लखन तिवारी एवं राम जी तिवारी एक ही व्यक्ति है, इसकी पुष्टि नहीं हुई है. आम तौर पर किसी भी सरकारी पद पर किसी शख्स की नियुक्ति होने पर उसके शैक्षिक दस्तावेजों की जांच संबंधित बोर्ड और विश्‍वविद्यालयों से कराई जाती है, लेकिन इन सभी मामलों में इस तरह की कोई जांच नहीं हुई. आवेदकों द्वारा दाखिल शपथ-पत्र अधिकारियों के लिए सुरक्षा कवच का काम करते हैं. इसी वजह से अधिकारी भी जांच कराने का नियम नज़रअंदाज कर देते हैं. इन सभी मामलों से सीधे तौर पर जाहिर होता है कि सरकारी पदों पर बैठे लोग भी फर्जी मार्कशीटों के इस गोरखधंधे में शामिल हैं. हर कोई एक-दूसरे को बचाने की कोशिश में है. जब आरटीआई के जरिये मिली जानकारी से प्रमाणित हो गया कि दस्तावेज फर्जी हैं, तो संबंधित अधिकारियों को इस मामले में त्वरित कार्रवाई करते हुए आरोपियों को निलंबित कर देना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. एक ओर कुछ लोग फर्जी मार्कशीट के जरिये सरकारी नौकरी पा रहे हैं, वहीं जो लोग वाकई नौकरी पाने के हक़दार हैं, वे बेरोज़गार बैठे हैं.

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