2014_12$img16_Dec_2014_AP12पेशावर में बच्चों की निर्मम हत्या के एक दिन बाद 26/11 हमले के मास्टर माइंड ज़की-उर-रहमान-लखवी को जमानत मिलने से पाकिस्तान की किरकिरी हुई है. पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ के बयान ने पाकिस्तान की हकीकत को उजागर कर दिया. साथ ही जब घोषित आतंकवादी हाफिज सईद ने सरेआम टीवी पर पेशावर हमले में भारत का हाथ होने वाला बयान दिया तो यह बात तय हो गई कि इतने बच्चों की हत्या के बाद पाकिस्तान की आतंक के खिलाफ लड़ाई बेमानी है. जिस देश में आतंकियों के सरगना को वीआईपी का दर्जा मिला हो, वो आतंकवाद से कैसे लड़ सकता है? जिस देश में आतंकी संगठनों को सरकार के पैसे से पाला-पोसा जाता हो, वो आतंकवाद से कैसे लड़ सकता है? जो देश दुनिया भर के आतंकवादियों को पनाह देता हो, वह देश आतंकवाद से कैसे लड़ सकता है? जिस देश की सेना आतंकवादियों को ट्रेनिंग देती हो, वह देश आतंकवाद से कैसे लड़ सकता है? दरअसल, पाकिस्तान अपने ही विरोधाभास का शिकार बन गया है. पाकिस्तान आतंकवाद से क्यों नहीं लड़ सकता है, इसे समझना जरूरी है…

सबसे पहले मुंबई हमलों के मास्टर माइंड जकी-उर-रहमान लखवी की करते हैं. वह रावलपिंडी की जेल में बंद है. वैसे तो वह कहने को जेल में बंद था लेकिन वहां उसके पास हर तरह की सुविधाएं मौजूद थीं. जेल में रहते हुए उसके पास कई फोन थे, टीवी पर खबरें देखने को मिलती थीं. अपने दोस्तों और आतंकियों से मुलाकात करने की छूट थी. और तो और जेल में रहते हुए वह एक पुत्र का पिता भी बना. लखवी की कहानी पाकिस्तान के सरकारी तंत्र के आतंकियों से प्रेम का उदाहरण है. लखवी आतंकियों का सरगना है. उसने जेल में रहते हुए सरकारी वकील की हत्या करवा दी थी, जो उसके खिलाफ कोर्ट में केस लड़ रहा था. आईएसआई ने भविष्य में उठने वाले सवालों को आंकते हुए उसे जेल से बाहर भेजने की योजना बनाई थी. आईएसआई ने यह भांप लिया कि आतंकवाद को खत्म करने के नाम पर भारत और पाकिस्तान के बीच जो बातचीत होगी, उसमें मुंबई धमाकों के गुनाहगारों और दाउद इब्राहिम को भारत के सुपुर्द करने की मांग उठेगी. यही वजह है कि लखवी को जमानत दी गई. आईएसआई ने सरकारी वकील को भी पेश नहीं होने दिया. भारत ने इस पर अपना कड़ा विरोध दर्ज किया. पाकिस्तान की जनता और अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण पाकिस्तान की सरकार को लखवी के खिलाफ कार्रवाई करनी पड़ी थी. सवाल यह है कि सेना और आईएसआई के विरोध के बावजूद क्या पाकिस्तान सरकार आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई कर पायेगी?
पेशावर हमला पाकिस्तान के लिए अभिशाप और वरदान दोनों है. पाकिस्तान के पास यह मौका है कि जनता के साथ मिलकर आतंकवाद का पूरी तरह खात्मा कर दे तो यह घटना पाकिस्तान के लिए वरदान साबित हो सकती है नहीं तो यह एक ऐसा अभिशाप होगी जिसमें सैक़डों लोगों ने अपने कलेजे के टुक़डों को खो दिया लेकिन आने वाली पी़ढी के लिए एक सुरक्षित पाकिस्तान नहीं बना सके. सच्चाई यह है कि पाकिस्तान की जनता आतंकवाद से ऊब गई है. वह चाहती है कि पाकिस्तान की धरती से आतंक का नामो-निशान मिट जायेगा. लेकिन हकीकत में जिन्हें आतंकवाद से लड़ना है वे दुविधा में हैं. यह दुविधा इसलिए है क्योंकि पेशावर हमले से पाकिस्तान का चाल चरित्र और चेहरा खुलकर सबके सामने आ गया है. एक तरफ पाकिस्तान की सरकार है जिसके ऊपर जनता और अंतरराष्ट्रीय दबाव है कि वह आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करे, लेकिन वह लाचार है. दूसरी तरफ पाकिस्तान की सेना है जो कि दुविधा में है, क्योंकि वह पाकिस्तानी तालिबान के खिलाफ तो कार्रवाई कर सकती है लेकिन कश्मीर और अफगानिस्तान में आतंक फैलाने वाले आतंकियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर सकती. पाकिस्तानी सेना अच्छे तालिबान और बुरे तालिबान का फर्क ढूंढने में लगी है. तीसरा पहलू पाकिस्तान की आईएसआई है जो स्पष्ट रूप से आंतकी संगठनों को बचाने में लगी है. 140 बच्चों की मौत के बाद भी जिस देश में आतंक और हिंसा के खिलाफ लड़ने पर कन्फ्यूजन हो, तो यह मान लेना चाहिए कि वह देश आतंकवादियों से नहीं लड़ सकता है. पाकिस्तान की सरकार की क्या मजबूरी है? सेना क्यों दुविधा में है और आईएसआई का क्या गेम प्लान है? इसे समझना जरूरी है.

पेशावर हमला पाकिस्तान के लिए एक अभिशाप और वरदान दोनों है. पाकिस्तान के पास यह मौका है कि जनता के साथ मिल कर आंतकवाद को पूर्ण रूप से खत्म कर दे तो यह घटना पाकिस्तान के लिए वरदान साबित हो सकती है नहीं तो यह एक ऐसा अभिशाप होगी जिसमें सैक़डों लोगों ने अपने कलेजे के टुक़डों को खो दिया लेकिन आने वाली पी़ढी के लिए एक सुरक्षित पाकिस्तान नहीं बना सके. सच्चाई ये है कि पाकिस्तान की जनता आंतकवाद से ऊब गई है.

पाकिस्तान में सत्ता के तीन ध्रुव हैं. इसमें सबसे ताकतवर पाकिस्तानी सेना है. आतंकवाद, विदेश नीति, आर्थिक नीति और कोई भी महत्वपूर्ण फैसला पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना की रजामंदी के बगैर नहीं लिया जा सकता है. पाकिस्तान की सेना के बाद दूसरे नंबर पर पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई है. यह षडयंत्र रचने और आंतक फैलाने में दुनिया की सबसे खतरनाक एजेंसी है. आईएसआई ही पाकिस्तान की नीतियों को सफल या विफल करती है. यह खुफिया एजेंसी आतंकवादी संगठनों की देखरेख करती है. भारत में जितने भी धमाके होते हैं या फिर जितने भी आंतकवादी सक्रिय हैं उनके तार आईएसआई से जुड़े हैं. आईएसआई इतनी शक्तिशाली है कि यह पाकिस्तान की सरकार के अस्तित्व को तय करने की ताकत रखती है. पाकिस्तान की मीडिया आईएसआई की कठपुतली है. जो मीडिया हाउस उसके खिलाफ जाने का हिम्मत जुटाता है, उसे आईएसआई तबाह कर देती है और पाकिस्तान में कोई आवाज भी नहीं उठती है. आईएसआई, पाकिस्तान की सेना, पाकिस्तान की मीडिया और पाकिस्तान के आंतकी संगठनों के बीच एक सूत्र का काम करती है. यही वजह है कि पेशावर में हुए हमले के ठीक एक दिन बाद पाकिस्तान में भारत विरोधी प्रोपेगेंडा शुरू हो गया. तीसरे नंबर पर पाकिस्तान की सरकार है जिसकी कोई नहीं सुनता. यह आर्मी और आईएसआई पर निर्भर सरकार है. पाकिस्तान में आतंक के खिलाफ निर्णायक लड़ाई तभी लड़ी जा सकती है जब पाकिस्तान की सरकार, पाकिस्तान की सेना और आईएसआई एक साथ यह फैसला करें कि आतंकवाद को खत्म करना है अन्यथा प्रधानमंत्री नवाज शरीफ कितनी भी कोशिश कर लें पाकिस्तान में आतंकवादी सुरक्षित ही रहेंगे.
आईएसआई पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी है. यह सर्वशक्तिमान है. इसके आगे प्रजातांत्रिक सरकार की भी नहीं चलती. 1948 में इसे पाकिस्तान की आर्मी ने बनाया था. यह उस वक्त सेना की खुफिया एजेंसी थी. इसकी ताकत में तब इजाफा हुआ जब पाकिस्तान की हुकूमत पर जनरल जिया उल हक़ का कब्जा हो गया. तब से यह दुनिया की सबसे खतरनाक खुफिया एजेंसी बन गई, जिसका काम आंतकवादी तैयार करना और दुनिया के देशों में आतंक का निर्यात करना हो गया है. पिछले कई दशकों से पाकिस्तान में जितने भी आतंकियों के ट्रेनिंग कैंप बने वो आईएसआई कीदेखरेख में बनाये गए. यह पाकिस्तानी सेना के साथ मिलकर काम करती है. यह शायद दुनिया की अकेली एजेंसी है जिसके सर्वोच्च अधिकारी सीधे आर्मी से नियुक्तहोते हैं. सेना का लेफ्टिनेंट जनरल ही आईएसआई का मुखिया होता है. आईएसआई को सरकार के बजट से पैसा मिलता है. साथ ही इसे सेना से अन-एकाउंटेड पैसा भी मिलता है. दरअसल, सच्चाई यह है कि आईएसआई साल भर में कितना पैसा खर्च करती है, कहां करती है, कैसे करती है, इसका पता पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को भी नहीं होता है. इससे भी गंभीर बात यह है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की यह हिम्मत भी नहीं है कि वो इस खुफिया एजेंसी पर लगाम लगा सकें. कश्मीर हो या अफगानिस्तान, यहां जितने भी आतंकी संगठन हैं या फिर आतंकी संगठनों के समर्थक हैं वे सभी आईएसआई से जु़डे हैं. भारत में पिछले दो दशकों में जितने भी बम धमाके हुए, उनमें आईएसआई का हाथ रहा है.
जनरल जिया-उल-हक़ के जमाने से पाकिस्तान के समाज, राज्य और यहां तक की सेना का तालिबानीकरण होने लगा. जनरल जिया ने आईएसआई के जरिए पाकिस्तान में विरोधियों का मुंह बंद कराया और इसी के जरिये पाकिस्तान में धार्मिक कट्टरता को फैलाया, जिसने आगे चलकर आतंकवाद का रूप ले लिया. अफगानिस्तान में जनरल जिया ने अमेरिकी विदेश नीति के साथ धार्मिक कट्टरता का एक ऐसा कॉकटेल तैयार किया, जिससे पाकिस्तान आज तक बेसुध पड़ा है. आईएसआई को इतना ताकतवर बनाया गया कि यह एजेंसी अफगानिस्तान और भारत को तबाह करने की तैयारी करने लगी. अफगानिस्तान में जहां आईएसआई ने मुजाहिद्दीनों की फौज बना कर रूस से ल़डाई लड़ी. वहीं भारत को तबाह करने के लिए पंजाब और कश्मीर में आंतकवादी संगठनों को तैयार किया और हजारों भारतीयों का खून बहाया. यह आईएसआई की देन है कि पाकिस्तान दुनिया भर में आतंकवाद की राजधानी बन गया. विकीलीक्स ने कई बार यह साबित किया है कि कैसे दुनिया भर के आंतकी संगठनों के तार आईएसआई से जुड़े हैं. यह आतंक का ट्रेनिंग कैंप चलाती है. अफगानिस्तान, पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में आतंकियों को ट्रेनिंग देती है और उन्हें दुनिया भर में निर्यात करती है. आईएसआई आतंकवादी पैदा करने की मशीन है. पाकिस्तान की जनता और सरकार को इस बात पर आत्मविश्‍लेषण करने की जरूरत है. पाकिस्तान को अगर आतंकवाद से लड़ना है तो आईएसआई को या तो खत्म करना होगा या आईएसआई की शक्तिओं को कम करना होगा. लेकिन सच्चाई यह है कि पाकिस्तान सरकार यह काम करने में असमर्थ है. जब तक पाकिस्तान में आईएसआई शक्तिशाली रहेगा, तब तक पाकिस्तान से आंतकवाद के खिलाफ किसी तरह की निर्णायक लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती है, क्योंकि हमला कैसा भी हो, बच्चे मरें या औरतों को जिंदा जलाया जाये, आईएसआई आंतकवादी संगठनों का बाल भी बांका नहीं होने देगी.
पाकिस्तान में प्रजातांत्रिक सरकार एक कमज़ोर सरकार है. सेना और आईएसआई इसकी पकड़ से बाहर हैं. उसे इस बात का डर है कि अगर आतंकियों और इस्लाम के नाम पर ज़हर घोलने वालों के ख़िलाफ़ वह कोई क़दम उठाती है तो पाकिस्तान के अंदर गृह युद्ध जैसे हालात बन जाएंगे. नवाज शरीफ पंजाब से हैं और उनकी पार्टी पंजाबियों की पार्टी मानी जाती है. पाकिस्तान की राजनीति पंजाबियत और इस्लाम की दो धुरियों के इर्द-गिर्द घूमती है. पाकिस्तान में सेना हो, व्यापार हो या फिर ब्यूरोक्रेसी, इन सभी पर पंजाबियों का क़ब्ज़ा है. पाकिस्तान में चल रहे अलग-अलग आन्दोलन, दरअसल पंजाबियों के ख़िलाफ़ लोगों का गुस्सा है. जैसे कि बलूचिस्तान के लोग अलग राज्य की मांग इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि पाकिस्तान की सरकार स़िर्फ पंजाबियों के हित में सोचती है. पाकिस्तान के सरकारी तंत्र और संगठित क्षेत्रों पर पंजाबियों का एकाधिकार है, तो पाकिस्तान के समाज पर मौलाना और मौलवियों की मज़बूत पकड़ है.
पाकिस्तान में धर्म की राजनीति करने वाले नेताओं की अपनी अलग ताक़त है. इन नेताओं को जनरल ज़िया के शासनकाल के दौरान हर तरह की मदद दी गई. वे ताक़तवर बन गए. इनमें हाफ़िज सईद का नाम सबसे ऊपर है. हाफ़िज मोहम्मद सईद जमात-उद-दवा का आमिर यानी अध्यक्ष है. हाफ़िज सईद का आतंक से पुराना रिश्ता है. 1990 में सईद ने लश्कर-ए-तैय्यबा का गठन किया. लश्कर सऊदी के पैसे और आईएसआई के संरक्षण में चलने वाला संगठन है. जब उस पर प्रतिबंध लगा तो उसने जमात-उद-दावा के नाम से अपना संगठन चलाना शुरू कर दिया. हैरानी की बात यह है कि इस संगठन का आतंकियों के साथ रिश्ता है, इसके बावजूद जमात-उद-दावा को एक एनजीओ मान कर पाकिस्तान की सरकार ने भूकंप पीड़ितों की सहायता के नाम पर उसे करोड़ों रुपये दिये. पाकिस्तान में मीडिया रिपोर्ट छापती रही, संयुक्त राष्ट्र के अधिकारी चेतावनी देते रहे, लेकिन पाकिस्तान की सरकार ने जमात-उद-दावा के ख़िलाफ़ कोई भी कार्रवाई नहीं की. हाफिज सईद की न स़िर्फ पाकिस्तान के सरकारी तंत्र पर पकड़ है, बल्कि वह उन्हें इस्तेमाल करना भी जानता है. हाफ़िज़ सईद का एक साथ पंजाबी और जिहादी होना ही पाकिस्तान की सरकार के लिए दुविधा पैदा करता है. यही वजह है कि हाफ़िज़ सईद के ख़िलाफ़ कोई ठोस कार्रवाई नहीं होगी. हाफ़िज़ सईद को आईएसआई का समर्थन प्राप्त है. पाकिस्तानी सेना से उसकी सांठगांठ है. दरअसल, आईएसआई और सेना के साथ मिलकर हाफ़िज़ सईद और लखवी ने मुंबई हमले को अंजाम दिया था.
अगर कोई अपने घर में जहरीले सांपों को पाले और यह सोचे कि सांप सिर्फ पड़ोसियों को काटेगा यह उस व्यक्ति की मूर्खता है. पिछले कई दशकों से पाकिस्तान, हिंदुस्तान, अफगानिस्तान, सेंट्रल एशिया, ईराक, चीन, नेपाल, बांग्लादेश, रूस और अफ्रीका के कई देशों में आतंकवादियों की सप्लाई करता रहा है. पाकिस्तान आतंकवाद की राजधानी है, क्योंकि पाकिस्तान की सेना और उसकी खुफिया एजेंसी आंतकी संगठनों को ट्रेनिंग देती रही हैं. पाकिस्तान और दुनिया भर के कई जानकारों ने इस पर कई किताबें भी लिखीं, कई रिपोर्टें भी आईं और कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सवाल भी उठे, लेकिन पाकिस्तान पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ा. दरअसल, पाकिस्तान दुनिया का अकेला देश है जिसने आंतकवाद को अपनी विदेश नीति का हिस्सा बनाया है. अगर पाकिस्तान के अंदर आंतकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई होती है तो पाकिस्तान के अंदर मौजूद कट्टरवादी संगठन इसका विरोध करेंगे. कोई भी राजनीतिक दल उन्हें नाराज करने का जोखिम नहीं उठायेगा. रही बात सेना की तो वह पाकिस्तानी तालिबान के खिलाफ तो कार्रवाई कर सकती है लेकिन दूसरे आंतकी और कट्टरवादी संगठनों के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लेगी. ये सब आर्मी द्वारा ही तैयार किए गए दस्ते हैं जिनका इस्तेमाल पाकिस्तान की सेना कश्मीर और अफगानिस्तान में करती है. पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ही इन आंतकी संगठनों की जननी है. ऐसे में वह हर कदम का विरोध करेगी जो आतंकी संगठनों के लिए नुक़सानदेह होगा. पाकिस्तान में एक लाचार सरकार है. आतंकियों की सहयोगी खुफिया एजेंसी और सेना है. ऐसे में आंतकवाद के खिलाफ किसी निर्णायक लड़ाई की उम्मीद करना बेमानी है. रही बात पेशावर हादसे की तो जिस तरह पिछले 1000 हमलों को पाकिस्तान ने भुला दिया, उसी तरह इसे भी लोग कुछ दिन बाद भूल ही जायेंगे.

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