आतंकवाद का जिन्न फिर से बोतल से बाहर ! अभी कल ही पुंछ – राजौरी जम्मू के क्षेत्र में, गुरुवार को दोपहर 3-45 के आसपास, सैन्य टुकड़ी के उपर घात लगाकर हमला किया गया ! जिसमें हमारे सुरक्षा बलों के उपर आतंकवादियों के द्वारा किया गया हमला जिसमें पांच जवान शहीद हुए ! और सबसे संगिन बात आतंकवादियों ने हमारे जवानों दो के शवों को विकृत भी किया है ! दो वाहनों में सवार जवान आतंकवादियों के खिलाफ चल रहे, एक अॉपरेशन में शामिल होने के लिए जा रहे थे ! इसी दौरान आतंकवादियों ने सुरनकोट इलाके में, डेरा की गली और बुफलियाज के बीच अंधे मोडपर, हमला कर दिया ! और हमले की जिम्मेदारी लष्कर – ए – तैयबा से जुड़े संघठन एंटी फासिस्ट फ्रंट ने ले भी ली है ! यह वही लष्करे – ए – तैयबा है ! जो 1999 के 24 दिसम्बर को इंडियन एयरलाइंस के फ्लाइट नंबर 814 विमान को अपहरण कर लिया गया था ! और उसके बदले में अजहर मसूद नाम के खुंखार आतंकवादी को जम्मू के कोट बहवाल जेल से छोडना पडा था ! और छुटने के बाद उसने लष्करे – ए – तैयबा जैसे आतंकवादी संगठन की स्थापना की है !


जैसे पिछले लोकसभा चुनाव के पहले, कश्मिर मे पुलवामा के आतंकी हमले में हमारे 40 सीआरपीएफ के जवान आतंकवादी घटना में मारे जाना अत्यंत दुखद है ! मै खुद हमारी सेनाकी कश्मिर मे एक जगह से दूसरी जगह, होने वाली आवाजाही, वह भी हजार से अधिक संख्यामे ! तो उस समय के सभी तरहके लिये जाने वाले सावधानीयोसे भी परिचित हूँ ! इसीलिए इतनी बड़ी क्षमता में जवानोकी आवाजाही होती है ! तो उस समय उस रास्तसे अन्य कोई आवाजाही को इजाजत नहीं होती है ! यहातक की कोई गंम्भीर बीमारी वाले पेशंट की एम्बुलेंस को भी नहीं जाने देते ! और दो से तिन घंटे से भी ज्यादा समय यही आलम होता है !
लेकिन इसके बाद बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक के तिन दिन पहले ही ! एक टीवी चैनल के पत्रकार अर्णव गोस्वामी को बताने का क्या मतलब है ?और यह कौन सी सुरक्षा के अंतर्गत आता है ? जिसके कारण पुलवामा के घटना पर सवाल उठाने वाले लोगों की बात को बल मिलता है ! क्योंकि अर्णव के व्हाटसअप की चॅटिंग के 500 पन्ने मुंबई पुलिस के हाथों लगे हुए हैं ! और उनके एक- एक तफसील से पता चलता है ! कि जैसे सब कुछ स्टेज मॅनेज शो है ? और इन सब बातों कि जांच होनी चाहिए ! क्योंकि पुलवामा के घटना पर सवाल तो काफी लोगों ने उठाये हैं !


यहां तक कि सतपाल मलिक जैसे तत्कालीन कश्मीर के राज्यपाल तक ! लेकिन इन सब जानकारीयोको अर्णव जैसे टीवी चैनल के एंकर को बताने का क्या मतलब होता है ? और अब तक इस बात की तहकीकात की कोई भी अधिकृत रिपोर्ट देश को नहीं मालूम है ! और वह भी चालीस से ज्यादा भारत के सेना के जवान मारे जाने की बात है ! और वह भी कश्मीर जैसे संवेदनशील प्रदेश में ! और हमारे तथाकथित मुख्य धारा के मिडिया की बहसों में सत्ताधारी पार्टी के प्रवक्ता तुरंत इसपर कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए, अन्यथा हमारे सेना का मनोबल निचे गिर जायेगा !


आपकी सरकार की पहली जिम्मेदारी सेना के जवानों की जान बचाने की है ! और जिसमें आपकी खुफिया एजेंसियों की ओर से कोताही बरती गई है ! कि स्थानीय लोगों ने आतंकवादीयो की मदद की है ! तो हमारे देश की आई बी, सीबीआई तथा स्थानीय खुफिया एजेंसी ने इस बारे में क्या किया ? यह सब पता लगाने की जिम्मेदारी किसकी है ?


दूसरी बात कश्मीर से 370 कलम हटानेका निर्णय भी, काफी पहले से ही अर्णव गोस्वामी को बताने का क्या मतलब होता है ? और वहां केंद्र शासित प्रदेशों में तब्दील कर दिया जायेगा यह भी ! यानी संविधान के अनुसार वहां की विधानसभा को विश्वासमें लेने कि जगह ! मुंबई में बैठे एक टीवी चैनल वाले को यह बात पहले से ही बताया जाता है ! किसलिए ? ताकि वह अपने टीवी चैनल के द्वारा तथाकथित कारवाही कैसे ठीक है ! यह चिल्ला-चिल्ला कर बोले इसलिए ? एक मामूली पत्रकार को इतनी अहमियत देने की बात देश के सुरक्षा से खिलवाड़ नहीं है ?
इस घटना के समय प्रियंका गांधी महासचिव होने के बाद, पहली बार प्रेस को सम्बोधित करने वाली थी ! लेकिन वह उसकी जगह शहिद जवानोको श्रंद्धांजलि देकर वार्ता बंद करके चली जाती है ! और प्रधान-मंत्री अपने चुनाव प्रचार के लिए विशेष रूप से नागपुर से होते हुए ! पहले विदर्भ-खान्देश के कई प्रचार सभा करना ! यह कौनसी देशभक्ति, और जवानोके प्रती सहानुभूति का परिचय हुआ ?


गोधरा कांड के समय भी वहाकी महिला जिलाधिकारि जयति रवी ने मना कारने के बावजूद, 57 अधजली हुई लाशोको विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष को सौंप कर अहमदाबाद की सडको पर जुलुस निकालना, और अभिके पुल्वामा की घटना को अपनी राजनैतिक पार्टी का चुनावी मुद्दा बनाना ! यह नरेंद्र मोदी की राजनीति का मरे हुए लोगों की लाशोको लेकर चुनाव प्रचार करने का अंदाज , बहुत ही चिरपरिचित तरिका है !
क्योंकि अब आने वाले चुनाव के लिए, ऊनके पास कुछ भी ठोस उपलब्धि ना होनेके कारण, इस मुद्दे को लेकर कुछ मदद मिलेगी ! क्योंकि उनकी सेफ्रोन डिजिटल आर्मि, रातदिन देशभक्ति की दुहाई देकर, लोगों को उत्तेजित करने की कोशिश कर रहे हैं ! और इसी कारण से देशके अलग-अलग हिस्सेमे कश्मीरी सुखामेवा तथा कश्मीर की शॉल को बेचने वाले लोगों पर हमले हो रहे हैं ! इस तरह की हरकतें करते रहे ! तो कश्मीर में जो भी भारत के प्रति बची-खुची सहानुभूती रखने वाले लोगों की संख्या है ! वह भी समाप्त हो सकती है ! और भारतीय मुसलमानों में असुरक्षित मानसिक तनाव वर्तमानस्थिति को देखते हुए बढनेकी सम्भावना है !अपनी चुनावी रोटी सेकनमे देशका समाजिक ताना बाना तार – तार होनेकी संभावना है !


अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार रहते हुए ! 13 दिसम्बर 2001को भारतीय संसदभवन पर भी हमला हुआ था ! और उस समय उनके उदारीकरण तथा कुछ अन्य नीतियों के खिलाफ देशभरमे माहोल काफी गर्म हो रहा था ! लेकिन 13 दिसम्बर के संसदीय हमलेके बाद, देशकी सुरक्षाके सवाल अहम होकर देश के अन्य मसले हशियेपर चले गये ! और उस समय हमारे आय बी के प्रमुख अजित दोभाल थे ! जो आज प्रधानमंत्री के रक्षा सलाहकार है !


वैसाही, 24 दिसंबर 1999 का काठमांडू दिल्ली इण्डियन एयरलाइंस की फ्लाईट नंबर 814 के अपहरण का मामला ! एक सप्ताहभर वार्ता के दौर चलते रहे ! जिसमे दोभाल चार सदस्योके दलके साथ, वार्ता किये ! उस समय भी वे आय बी के प्रमुख पदपर विराजमान थे ! और प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी थे ! वह समय 1999 के आखिरी दिन !


पुरानी शताब्दीके आखिरी दिन, याने 31 दिसम्बर 1999 को जम्मुके ‘कोट बहवाल’ जेल में बंद, आतंकवादी अजहर मसूद और उसके साथ अन्य दो आतंकीयोको लेकर, तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंतसिंह खुद अपने साथ अफगानिस्तान के कंधहार नामकी जगह ले जाकर, उसके बदले में फ्लाइट नंबर 814 वापस लाये !
ये वही अजहर मसूद है, जिसने बादमे जैश-ए-मुहम्मद नामके आतंकवादियोको तैयार करने वाले संगठन को बनाया ! और उसीकी अलग अलग शाखाओं में लष्करे- ए-तैयबा तथा आज पहली बार उसकि दूसरे शाखा जिसका नाम एंटी फासिस्ट मतलब इस तरह की आतंकवाद की गतिविधियां करना ही फासिस्टो का कारनामा और खुद एंटी फासिस्ट नाम धारण करते हुए ! मैं तो हैरान हो रहा हूँ ! कि दूनियाँ के सबसे खतरनाक आतंकवादी घोषित कर दिया गया हैं ! इसिने अक्षरधाम अहमदाबाद 24 सितंबर 2002 को हमला किया था ! 26 नवम्बर 2008 मुम्बई का हमला, 2015 मे पठानकोट हमला ! याने अबतक भारत के बहुसंख्यक आतंकी घटना करनमे अजहर मसूद के संगठन के कारनामे रहे हैं !


अजहर मसूद कहनके लिये इस्लामिक आतंकवादियों में शुमार होता हैं ! लेकिन 25 साल पहले से चल रहे आतंकवादी कारनामों का, राजनैतिक फायदा, संघ परिवार और उसकी राजनीतिक इकाई भाजपा के लिए विशेष रूप से हुआ है ! क्या 25 साल मे अजहर मसूद की जानकारी मे यह बात आई नही होगी ? कि मेरी सब कोशीशो का सब से अधिक फायदा, भारत के हिंन्दू सांम्प्रदायिक शक्तियों को दिन दूना- रात चौगुना सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने के लिए फायदेमंद साबित हो रही है ? यह बंदा कैसा इस्लामी आतंकवादी है ? जिसके कारनामे भारत के हिंदूत्ववादी राजनीतिक दलों को हो रहा है ?
पुल्वामा की घटना के बाद राज ठाकरे ने सीधे अजित डोभाल पर ऊँगली उठाई है ! और माँग की है, कि अजित दोवाल से पूछ ताछ करनी चाहिए ! तो शायद कुछ पता चलेगा ! मुझे भी राज ठाकरे की बात मे दम लग रहा है ! क्योंकि यह बंदा कंधहार से लेकर संसदका हमला, अक्षरधाम अहमदाबाद हमले के समय आईं बी का प्रमुख रहा है !


और अभिके पुल्वामा की घटना, 2015 की पठानकोट की घटना को देखकर अजित दोवाल जो अब देशके रक्षा सलाहकार है ! ए एस दुलत नामके इसी आईं बी, रॉ तथा सीबीआई के 36 सालों तक अधिकारी रहे ! उनके जीवन का आधा समय इन्हीं कामोमे गया है ! उन्होंने हार्पर कॉलिन्स प्रकाशन की तरफसे प्रकाशित अपनी किताब ‘कश्मिर द वाजपेयी इयर्स’ शिर्षक से लिखी हैं ! और दुसरी पुस्तक ‘स्पाई क्रॉनिकल्स’ तो पाकिस्तान की आईएसआई के पूर्व प्रमुख रहे असद दुर्रानी के साथ मिल कर लिखी हुई किताबों में काफी तथ्यों पर रौशनी डाली है ! मै जगह की कमिके कारण तफसिल से नहीं दे सकता ! पर आप एमोझान से इन किताबों को ऑर्डर कर के मँगवा सकते हैं ! अब तो मराठी हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवादित संस्करण भी उपलब्ध है !
सबसे अहं सवाल आतंकवाद की खेतिको कौन बढावा दे रहा है ? और उसका राजनैतिक फायदा सबसे अधिक किसे मिल रहा है ? यह आज हमारे देश में जो चल रहा है ! उससे साफ जाहिर हो रहा है ! नरेन्द्र मोदी और संघ परिवार इस पूरी घटना को बहाना बनाकर किस ढंगसे ? पुरे देश में एक युद्घ ज्वर फैलानेमे मुख्यतः मीडिया की मदद से ! और हिस्सा तथ्यों को तोड-मरोड़कर पेश करते हुए ! लोगों को भड़का-भड़का कर ! पूरे देश में एक भयावह उत्तेजना फैलनेका काम रातदिन किये जा रहे हैं ! सबसे ज्यादा टीआरपी वाले चैनल के माध्यम से ! कैसी बहसें चला – चला कर ? लोगों को भटकाने और भड़काने का काम कर रहे हैं ?
हालांकि विश्व के मापदंडों में भारतीय मीडिया की विश्वसनीयता बहुत नीचे चली गई है ! लेकिन ज्यादातर मीडिया कॉरपोरेट घरानों के होने के कारण, उन्हें तो सिर्फ अपने मुनाफ़े से मतलब है ! इसलिये यह काम भारत के सभ्य समाज के, हमारे अपने जैसे लोगों का है ! जो आजादी के आंदोलन के समय, और बादमे जयप्रकाश नारायण के आंन्दोलन के समय अपना जज्बा दिखाया है ! और अब पुनाह समय आ गया है ! कि भारतीय सभ्य समाज ने कमर कस कर, वर्तमान परिस्तिथि में हस्तक्षेप करने की जरुरत है ! अन्यथा हमारे देश में अराजकता फैलनेकी संभावना हो सकती है !


क्योंकि वर्तमान सरकार, हर स्तर पर फेल हो चुकी है ! और इसी लिए पुल्वामा की घटना को बहाना बनाकर, वे पूरे देश में अफरा- तफरी का माहौल बनाने के लिए संघपरिवार ने सभि स्तर पर प्रयास जारी किया है ! देश इनकी जागीर नहीं है ! इसलिये मैं, विनम्र अभिवादन करता हूँ ! की हमारे जवानो की शहादत पर राजनैतिक रोटियाँ सेंकने कि घिनौनी हरकतों को, अगर नाकाम करना है ! तो सभी समान विचार धारा वाले लोगों को इस विषयपर मिलजुलकर मोर्चा खोलने की जरूरत है !


हालांकि नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोडीकी यह राजनीतिक पध्दति देश 23 साल पहले से देखते आ रहा है ! राणा आयूब,सिद्दार्थ वरदराजन,आर बी श्रीकुमार,जमिरुद्दीन शाह,मनोज मित्ता,दिगंत ओझा,तिस्ता सेटलवाड,शबनम हाशमी,राम पुनियनि,सुरेश खैरनार,जावेद आनंद,ज्योती पुनवानी ,जस्टिस कृष्णा अय्यर,मुकुल सिह्ना,प्रतिक सिह्ना,महेश भट्ट,प्रसिद्द गाँधी वादी चुन्नीभाई वैद्य,प्रकाश शहा,कुमार केतकर,निखिल वागले,प्रकाश बाल और यू आर अन्तन्त्मूर्ती,गौरी लंकेश,प्रो कलबुर्गी,सुबैया, एन राम अशीष नंदी,अभय कुमार दुबे,अरूण त्रिपाठी,वी के त्रिपाठी,अचिन वनाईक,प्रो के एन पणिक्कर,घनश्याम शाह,आनंद पटवर्धन ,विजय तेंदुलकर,अरुंधती रॉय,नयनतारा सहगल,सुभाष गाताडे,अनिल चमडीया,किशन पटनायक,विवेक कोरडे,,कुमार प्रशांत,प्रशान्त भुषण,डॉ आनंद कुमार, एडवोकेट अनिल नौरिया, संदिप पांडे, फिरोज मिठिबोरवाला, अतिश तासीर, हर्ष मंदर, एस एम मुश्रीफ, संजीव भट्ट, शशी थरूर,चिदंबरम और लगभग देशके सभि प्रदेशके सभि संवेदनशील लोगोने इस विषय को लेकर काफी लिखा है,काफी कुछ बोला भी है ! यहा तक की नरेंद्र मोदी की मानसिकता को लेकर मनोवैज्ञानिक शस्रोक्त रूप से विश्लेषण किया गया है ! जो ‘आउट लुक’ जैसी प्रतिष्ठित अंन्ग्रेजी पत्रिका मे बहुत पहले छप चुका है ! जब वे गुजरातके मुख्यमंत्रि थे ! और 2002 के दंगों के बाद यह अकादमीक काम अशिष नंदी ने किया है !


संघ परिवार गत 100 साल पहले से ही ‘हिंन्दुओ का हिन्दूस्तान’ की रट लगाए जा रहा है ! और ऊसे हवा देनेमे जोभी बात उनको सुविधाजनक लगती है , उसे वे बहुत तन्मयता के साथ करते जा रहे हैं ! और आज पुल्वामा, या पुंछ – राजौरी उनके लिए हॉट केक लग रहा है ! इसलिये उसे भुनानेमे वे कोई कसर नहीं छोड़ नही रहे है ! पूरे देश में उन्होंने सुडोनैशनल माहौल बनाना जारी किया है ! इसलिये उनके ही सोशल मीडिया के सेफ्रोन डिजिटल आर्मी के ट्रोल्स 24-7घंटे लगे हुए है ! यह ट्रोल्स की जमात भारत में 2007 मे नरेन्द्र मोदी के मुख्यमंत्री के रहते हुए उनके दिमाग की उपज है ! स्वाती चतुर्वेदी ने अपनी ‘आइ एम ए ट्रोल’शिर्षक किताबमें बहुत विस्तार से, और पुरे एविडेंस के साथ दिया है ! सब से हैरानी की बात इन ट्रोल्स में से कुछ आपत्तिजनक टिप्पणी करने वाले लोगों को नरेंद्र मोदी खुद फॉलो करने के स्कॅन फोटो स्वाती चतुर्वेदी ने अपनी किताब में दिए है ! और उन आपत्तिजनक टिप्पणी करने वाले लोगों को प्रधानमंत्री आवास पर बुलाकर उन्हें सम्मानित करने के फोटो भी इसी किताब में मौजूद है ! तथा सेफ्रोन डिजिटल आर्मी को कोई अरविंद गुप्ता तथा राम माधव जैसे लोग किस तरह से फलने-फूलने के लिए मददगार साबित हो रहे हैं ? यह भी स्वाती चतुर्वेदी ने तफसिल से लिखा है !

30 जनवरी 1948 को माहात्म गाँधी जी की हत्या की तैयारी, कई दिनों से करने वाले आतंकवादियों की अनदेखी करने वाली खुपिया एजेंसीया , अब बहुत चुस्त दुरुस्त होकर एक विशेष समाजके लोगों को आतंकवाद के नाम पर लगातार करवाई करते जा रही है ! और अब चुनाव आ रहे हैं ! तो उसमे और तेजि दिखा रहे हैं !
नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्रि कालमे गुजरातमे यह फ़ार्मूला इस्तेमाल कर – कर के उन्होंने तीन बार मुख्यमंत्रि का पद हासील किया ! उसी हथकण्डे को अपना कर प्रधान-मंत्री तक का सफर दो बार तय किया है ! तो अब फिरसे कुर्सी चले जाने के खतरे को देखते हुए ! फिर बोतल से आतंकवाद के जिन्न को नीकाल कर बेकसूर युवकों को उठाया जा रहा है !


आतंकवाद एक विवादास्पद मामला होनेके कारण, अच्छी-खासी आबादी इस बात पर डर के कारण चुप रहना ही बेहतर समझती हैं ! क्योंकि इसमे देशकी सुरक्षा का सवाल है ! जाहिर है कि किसिभि साधारण आदमी को जांच एजेंसियां , और उसीकी छत्र छाया में शामिल मीडिया की ब्रीफिंग पर भरोसा करने के सिवा और कुछ चारा होता नही है !


मै इस विषयपर गत 30 साल पहले से लगातार काम करने की कोशिश कर रहा हूँ ! इस विषय पर पढने से लेकर, विचार-विमर्श करना मेरा प्राथमिकता के आधार परका काम हो चुका है ! इसी कडिमे मैने 6 अप्रैल 2006 का नांदेड़ बॉम्बब्लास्ट , 1 जून 2006 नागपुर संघ मुख्यालय पर का, तथाकथित फिदाईन हमला , तथा उसके बाद के मालेगाँव के दोनो बॉम्बब्लास्ट,हैदराबाद,दिल्ली के जामिया नगरके बटलाहाऊसएन्कौन्टर , आझमगढ -आतंकगढ वाली थोरी, सुरत,विडुल जि यवतमाल महाराष्ट्र, अब्दुल नासर मदनी केरल की केस,अजमेर शरीफ,मक्का मस्जिद, वाराणसी,कानपुर ,बर्धमानब्लास्ट और भीमा कोरेगाव की 1 जनवरी 2018 का दंगा, कुलमिलाकर 100 से भी ज्यादा घटना, जिसमे जातीय हिंसा,सांम्प्रदायिक दंगो का और आतंकवाद का भी समावेश है ! जिनकी जांच-पड़ताल करने की कोशिश की है !


यह सिलसिला भागलपुर 1989 के दंगेसे यह शुरूआत हुआ है ! जो कश्मिर जैसी 75 साल पहले से चल रही समस्या पर, गत 50 साल पहले से मै काम करने की कोशिश कर रहा हूँ ! इसके अलावा, नक्षलवाद तथा उत्तर पूर्व की सभि समस्याए, तथा दलित आदिवासियो के विभिन्न आंदोलन, महिलाओं के आंदोलनों से लेकर ,अस्सी वाले दशक के शुरुआत का बिहार आंन्दोलन, और उसिके परिणामस्वरूप लगाया गया आपातकाल के खिलाफ ! और वर्तमान में चल रहे देश में गत दस सालों से जारी अघोषित आपातकाल और दुनिया के अन्य आंदोलनों में शामिल होने के उदहारण के लिए फिलिस्तीन, सीरिया,कुर्दिस,बलूची ,तिब्बत की आजादी का आंदोलनों से लेकर, समस्त दूनियाँ के हरेक अन्याय अत्याचार के खिलाफ चल रहे, सभी आंन्दोलनों मै अपने आपको भी उनका हिस्सा समझता हूँ ! कि हर जोर जुल्म्के खिलाफ संघर्ष हमारा नारा है !


मुझे बचपनसे ‘राष्ट्र सेवा दलके’ संस्कार होने के कारण किसिभि जाती वर्ग का पक्ष-विपक्ष के सिवा निस्पक्ष होकर इस विषयपर सोचना यह मेरी फितरत हो गईं हैं ! दूसरी मुख्य बात मुझे संसदीय राजनीति में शामिल होने की इच्छा कभिभि नही होनेके कारण ! वह जो मजबुरी चुनावी राजनीति करने वालों की होती है ! मेरी वह स्थिति कभिभि नही रही ! की मै यह करने से कौनसा वर्ग नाराज होगा ? और कौनसा खुष होगा ? यह हिसाब-किताब से मै कोसो दूर हूँ ! और आगे भी रहने वाला हूँ !
नरेंद्र मोदी,राहुल गाँधी या चुनाव की राजनीति करने वाले लोगों को जो सावधानी बरतनी पडती है ! उससे मै मुक्त हूँ ! मैने 1977 का चुनाव छोडकर उसके पहले और उसके बाद अभितक मतदान तक नहीं किया है ! क्योंकि जे पी की भाषा में नागनाथ-सापनाथ वाली बात है !
लेकिन चुनाव के लिए हमारे देश की गंगा -जमनी सस्कृति के साथ खिलवाड़ करने का अधिकार हमारा संविधान किसीकोभी नहीं देता है ! यह देशद्रोहका मामला है ! हजारों-हजार साल पहले से यह मुल्क और यहां रहनेवाले लोग ज्यादा मायने रखते हैं ! यह चुनाववाले लोग चंद समय के लिये आयेंगे और जायेंगेभी ! लेकीन यह मुल्क किसीको भी यह इजाजत नहीं देता है ! की वह अपनी टुच्ची राजनैतिक स्वार्थ के लिए यहां के लोगों की भावनाओ के साथ खिलवाड़ करे ! और लोगों को बहला- फुसलाकर किसीको आतंकवादी, किसीको देशभक्त के सर्टिफ़िकेट बाटते फिरे ! अब यह सिलसिला बंद होना चाहिए यह मुल्क साभिका है ! यहा पैदा होने वाले हर एक का उतनाही हक है ! जितना किसी प्रधान-मंत्री या राष्ट्रपति का है !
मुल्कके असली समस्याएँ क्या है ? आजभी आधी आबादी दो समयका भोजन भरपेट नहीं कर पाती है ! हर साल एक लाख़ से भी ज्यादा संख्यामे 5 साल पूरे होने के पहले, कुपोषण के शिकार बच्चों को अगली जिंदगी नसीब नहीं हो पाती हैं ! 55 करोड़ युवक इस मुल्कमे आज है ! जो कई मुल्कोकी आबादी से ज्यादा है ! उन्हें रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए, उचित शिक्षा, जो सभिके लिए बगैर किसी भेदभाव से उप्लब्ध की जाय ! अबतक 5 लाख से भी अधिक किसानों को आत्महत्या करने के लिए, जो कारण है ! उन्हें दूर करने के लिए जरूरी योजनाएँ करना छोडकर !


उनकी बची-खुची जमीन कार्पोरेट घरानों के हवाले करने के कानून, बनाने की करतूत, भारतीय संसदीय इतिहास में सब नियमोका उल्लंघन करते हुए ! कोरोनाके आडमे तथाकथित कृषी बिलो को लाना ! यानी आखिरी सांस ले रहे पेशंट के गले को दबाने जैसी ही हरकत ! वह भी किसानों के भले के नाम पर जो कर रहे हो ! और तथाकथित वार्ता के झूठी-झूठी कहानी बनाकर लोगों को बेवकूफ बनाना बंद करोगे तो ज्यादा बेहतर होगा ! डेढ़ करोड़ से भी ज्यादा किसान लगभग एक साल से अधिक समय से ! और 125 किसानों की बलि चढानेकी नौबत आ गई ! तो भी सरकार कानून पर अडी हुई है !


क्यों इसतरह के जन विरोधी निर्णय आप लोग ले रहे हो ? और भारत के आंदोलन के इतिहास में प्रथम बार इतना लंबा समय, और इतनी बड़ी संख्या में लोगों को अपने रोजमर्रा के कामकाज छोड़ कर दिल्ली कि जनसंख्या के बराबर एक जनसंख्या साल भर से अधिक समय से ! और इतना खराब मौसम में ! औरतें ,बुढे और बच्चे प्रदर्शन करते हुए आपको नहीं दिखाई दीए थे ?
वह नाहीं प्रधानमंत्री की खुर्सी मांग रहे नाही राष्ट्रपति पद ! बस अपने फसल के दाम की गारंटी और जमीन की सुरक्षा ! और धन्नाशेठो से सुरक्षात्मक उपाय के लिए नया अध्यादेशों की वापसी के अलावा और कोई मांग नहीं है ! और वह भी दस वार्ताओ के दौर करने की क्या जरुरत पड गई ? आखिरकार सरकार कि मजबूरी क्या है ? किसके दबाव में सरकार एक कदम भी पिछे नहीं हट रही ? लोगों को खुलकर बताते क्यों नहीं ? पारदर्शी कारोबार का मंत्र प्रधानमंत्री महोदय ‘मनकी बात’ और कई-कई जगहों पर दोहराये जा रहे हैं ! और यह गोपनीयता किस बात के लिए ?
हमारे देश की आधी आबादी जिस उद्योग पर अवलंबित हो ! और जिसे अन्नदाता कहा जाता है ! और उसके ही साथ यह व्यवहार ? महात्मा गाँधी के भारत के हर हाँथ को काम की जरूरत रहते हुए ! आप कार्पोरेट्सको खेती सौपकर, देश की आधी आबादी को बेकार करने के, सामाजिक स्वास्थ्य को, बिगाड़ने का काम कर रहे हैं ! और यह बात मैंने बार-बार लिखा बोला है कि 140 करोड़ आबादी वाले देश की गिनकर 70-75 करोड़ की जनसंख्या अगर बेकारिके संकट में चली जाती है ! तो इस देश की कानून व्यवस्था का काम चरमरा कर रह जायेगा ! और देश आजादी के 75 साल के दौरान आराजकता में गृहयुद्ध में बदल जा सकता हैं ! इसलिए सवाल सिर्फ देश के जीडीपी या रोज डिक्लेयर होने वाले सेंसेक्स के आकडो का नहीं है चलते-फिरते 70-75 करोड़ लोगों के काम करने का है !


अभिभी हर 7 मिनट में एक महिला अत्याचार की शिकार हो रही है ! और उसमे सबसे बड़ी संख्या दलित,आदिवासियो की है !
आदिवासियो की जनसँख्या 9 %प्रतिशत से भी कम है ! लेकिन विकास के नाम पर चल रही परियोजनाओ के कारण 75 % प्रतिशत से भी ज्यादा आदिवासियो को विस्थापन का शिकार होना पड रहा है ! यह विस्थापित 10 करोड़ जो कई मुल्कोकी आबादी से ज्यादा है !
इस साल अकाल के कारण देश के कई हिस्सों में मुख्यतः महाराष्ट्र में 75% महाराष्ट्र सुखेकी चपेट में आ गया है ! जहा अभिसे पिनेका पानी और पशुओं के लिए चारा नहीं है ! लोग गांव छोडकर शहरों की तरफ रोजगार के अवसर तलाशने के लिए निकले चुके हैं ! इसलिये इन सब सवालों से ध्यान हटाने के लिए आतंकवाद,मन्दिर-मस्जिद,गाय,आरक्षण के मुद्दे को लेकर, सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए यह सब कर रहे हैं ! लेकिन लोग भी इतने दिनों में यह सब खेल इसके पहले देख चुके हैं ! इसलिये किसिकोभी एक बार बेवकूफ बनाया जा सकता है बार बार नहीं !
लोकसभा को सिर्फ अपने दल के सभागृहमे तब्दील कर दिया जा रहा है ! लगभग विरोधी दलों के तीन चौथाई सदस्यों को, संसद के शीतकालीन सत्र से बर्खास्त करने की कृति, भारत के संसदीय इतिहास में पहली बार देखा हूँ ! मतलब विरोधी दलों के लोगों ने संसद में सरकार की गलतीयो पर बोलना ही नहीं ! यह वर्तमान सत्ताधारी दल का कहना है !


और प्रधानमंत्री भरी लोकसभा से लेकर चुनाव में जिस तरह से बोलने के रेकॉर्ड मौजूद हैं उसका क्या ? विरोधीयोके प्रति इतनी नफरत ? तो हजारों करोड़ रुपये खर्च कर के संसद को क्या अपने दल के सभागृहमे तब्दील करने के लिए बनाया गया है ? इसे जनतंत्र नही कहते यह शतप्रतिशत तानाशाही है ! जिसके बारे में संघ के द्वितीय संघ प्रमुख और सबसे लंबे समय 33 साल उस पदपर रहे ! और जिन्होंने ‘एकचालकानुवर्त’ के अनुसार भारत का कारोबार चलना चाहिए ! ऐसा अपनी किताबों में लिखा है, श्री. माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर उर्फ गुरुजी के अनुसार भारत में चलाने की शुरुआत की जा रही है ! जिसे देखकर जयप्रकाश नारायण के शब्दों में ‘विनाशकाले विपरीत बुद्धी’ शुरू हो गई है !

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