55राजीव वर्मा 1954 में चंडीगढ़ में पैदा हुए, वहीं से उन्होंने एमए पास किया तथा नवंबर 1975 से भारतीय पुलिस सेवा में शामिल हुए. प्रशिक्षण पूरा करने के बाद उन्हें देहरादून का अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक बनाया गया. बाद में वह आगरा में पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) के रूप में रहे. आगरा के बाद उनकी नियुक्ति पीएसी की 31वीं बटालियन के कमांडेंट के रूप में रुद्रपुर (नैनीताल) में हुई तथा गत अप्रैल से 31वीं बटालियन के कमांडेंट थे. सरदार प्रकाश सिंह का जन्म 1946 में अमृतसर में हुआ था. उनकी शिक्षा बीएससी तक हुई. उन्होंने 1976 में भारतीय पुलिस सेवा में प्रवेश किया. उनकी प्रथम नियुक्ति सीतापुर में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के रूप में हुई थी. गत जुलाई में वह पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) के पद पर लखनऊ आए. श्री सिंह को पुलिस लाइन में फ्लैट मिला, जहां राजीव वर्मा भी रहते थे.

सत्ताइस साल के राजीव वर्मा एक ज़िंदादिल इंसान थे, कुछ-कुछ दिलफेंक किस्म के भी. उन्होंने प्रेम विवाह किया था, लेकिन शादी के बाद भी उनका दूसरी औरतों के साथ हंसना-बोलना कम नहीं हुआ था. देहरादून में उनके साथ रहे एक अधिकारी के अनुसार, राजीव वहां लड़कियों में काफी लोकप्रिय थे. राजीव वर्मा की पत्नी मंजू वर्मा को यह सब अच्छा नहीं लगता था. उनके एक पारिवारिक मित्र के अनुसार, मंजू एवं राजीव वर्मा के बीच पिछले तीन साल से तनाव चल रहा था. इस तनाव की जड़ में जहां राजीव वर्मा का दिलफेंक स्वभाव हो सकता है, वहीं मंजू वर्मा की बीमारी भी, जिसका इलाज पिछले दो साल से चल रहा है. तनाव की वजह चाहे जो भी रही हो, लेकिन उसका असर उन दोनों के रोजमर्रा के जीवन पर पड़ता ही था. मसलन दो संतानों वाले वर्मा दंपत्ति को शायद ही किसी ने साथ घूमते या सिनेमा देखने जाते देखा होगा. राजीव कभी अपनी पत्नी को साथ लेकर दौरे पर नहीं जाते थे. प्रकाश सिंह के परिवार से, विशेषकर उनकी पत्नी से राजीव बहुत ज़्यादा घुले-मिले थे. शुरू में एक महीने तक तो मंजू व प्रकाश सिंह की पत्नी में बहिनापा-सा था, लेकिन यह संबंध बहुत दिनों तक नहीं चला.

इधर पिछले कुछ दिनों से मंजू वर्मा तो तनाव में थीं ही, पड़ोसियों का कहना है कि प्रकाश सिंह भी तनाव से ग्रस्त नज़र आ रहे थे. 28 सितंबर को राजीव प्रकाश सिंह के घर फोन करने गए, संभवत: प्रकाश सिंह उस समय बाथरूम में थे. अचानक बाहर आने पर उन्होंने क्या देखा, यह कहना मुश्किल है, लेकिन गोली उसके बाद ही चली. शुरू में इसे आत्महत्या का मामला बताया गया, लेकिन थोड़ी ही छानबीन से ज़ाहिर हो गया कि यह अनुमान ग़लत है. उस समय कमरे में राजीव वर्मा के अलावा स़िर्फ प्रकाश और उनकी पत्नी थीं. श्री वर्मा को इन दोनों में से ही किसी ने गोली मारी या किसी ने आसमान से हमला किया, यह अभी तक रहस्य बनाकर रखा गया है. वारदात के दिन से अब तक जांच-पड़ताल की स्थिति में फर्क़ स़िर्फ इतना आया है कि पहले आत्महत्या की संभावना के आधार पर खोजबीन की जा रही थी, अब दुर्घटना के सिद्धांत को भुनाया जा रहा है. उत्तर प्रदेश पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने राजीव वर्मा की मौत को एक दुर्योग बताते हुए कहा कि प्रकाश सिंह अपने को आग्नेयास्त्रों का एक्सपर्ट (विशेषज्ञ) मानते हैं, उन्होंने रिवाल्वर का चैंबर खाली करने के इरादे से गोलियां निकालीं, लेकिन उन्हें गिना नहीं. शायद एक गोली चैंबर में ही रह गई थी. दुर्घटना के दिन राजीव वर्मा उनकी रिवाल्वर उलट-पुलट रहे थे, तभी उसका ट्रिगर दब गया और चैंबर में रह गई गोली उनकी कनपटी को छेदती हुई निकल गई.

अगर यह माना जाए कि राजीव वर्मा ने प्रकाश सिंह के घर में पड़ी रिवाल्वर को खाली समझ कर उसका घोड़ा दबाया और अनजाने में रिवाल्वर के चैंबर में रह गई गोली के दगने से उनकी मौत हुई, तो सवाल उठता है कि उनकी कनपटी की चमड़ी क्यों नहीं झुलसी थी? नज़दीक से गोली चलने पर उसका प्रहार जिस अंग पर होता है, वहां की चमड़ी झुलस जाती है. ज़ाहिर है, गोली कुछ दूर से चलाई गई थी. संदेह पैदा करने वाली दूसरी बात यह है कि राजीव वर्मा के सिर में लगी गोली न तो अंत्य-परीक्षण के दौरान मिली और न उसे घटनास्थल पर पाया जा सका. गोली चूंकि कनपटी को छेदकर बाहर निकल गई थी, इसलिए उसे घटनास्थल पर ही मिलना चाहिए था. गोली को किसने गायब कराया? गोलीकांड के बाद प्रकाश सिंह ने टेलीफोन, बिस्तर आदि को ठीक कर घटनास्थल पर पहले जैसी स्थिति लाने की चेष्टा क्यों की? उन्होंने जांच से पहले ही रिवाल्वर की सफाई क्यों कराई? इन प्रश्नों का विश्वसनीय उत्तर ढूंढना आवश्यक है, जो विस्तृत जांच के बगैर संभव नहीं. अगर विस्तृत जांच नहीं हुई, तो पुलिस और सरकार से लोगों का विश्वास तो उठेगा ही, बड़े अधिकारियों के बीच झगड़ों का निपटारा करने के लिए रिवाल्वरबाजी की परंपरा शुरू हो जाएगी.

गुप्तचर विभाग के एक अधिकारी ने इस संवाददाता को बताया कि उन्हें शक है कि प्रकाश सिंह सिख उग्रपंथियों से संबंध रखते हैं और सिख उग्रपंथियों के निर्देश पर उन्होंने राजीव वर्मा को गोली मारी! उक्त अधिकारी के अनुसार, राजीव वर्मा ने आगरा में अपने कार्यकाल के दौरान कहीं फायरिंग कराई थी, जिसमें कई सिख मारे गए. उसका बदला लेने के लिए प्रकाश सिंह ने राजीव वर्मा पर गोली चलाई. गुप्तचर विभाग के सामने एक तथ्य यह आया है कि प्रकाश सिंह और राजीव वर्मा, दोनों का ही कैलाश हॉस्टल की एक लड़की से संबंध था तथा उस लड़की के सवाल पर राजीव वर्मा ने एक बार प्रकाश सिंह को धमकी भी दी थी.

राजीव वर्मा की पत्नी मंजू वर्मा का कहना है कि प्रकाश सिंह उन दोनों से जलते थे, क्योंकि वे खाते-पीते घर के थे तथा उन्हें हैंडसम पेयर माना जाता था. जांच-पड़ताल के दौरान पुलिस ने ये जानकारियां प्राप्त कर लीं, लेकिन आश्चर्य की बात है कि पुलिस श्रीमती प्रकाश सिंह को बिल्कुल भूल गई है, जबकि प्रकाश सिंह के अलावा एकमात्र वही हत्या या दुर्घटना की चश्मदीद गवाह हैं. दरअसल, पुलिस श्री वर्मा की मौत के संबंध में कई तथ्यों की उपेक्षा कर रही है, जैसे कि नक्शा-ए-वारदात में इसका ज़िक्र नहीं किया गया कि जिस रिवाल्वर से गोली चली, वह पलंग पर मृतक की बेल्ट के नीचे पड़ी थी तथा टेलीफोन का रिसीवर नीचे लटका हुआ था. संयोग से हमारे छायाकार ने इस दृश्य की तस्वीर खींच ली थी. जिस साक्ष्य को झुठलाया नहीं जा सकता. शायद पुलिस महानिरीक्षक नरेश कुमार वर्मा नहीं चाहते कि उनके कार्यकाल में आईपीएस अधिकारियों की बखिया उधेड़ी जाए और उन्हें आईपीएस अधिकारियों के असंतोष का केंद्र बनना पड़े. उनके रुख से संकेत पाकर ही अन्य अधिकारी जांच-पड़ताल को भ्रमजाल में फंसाना चाह रहे हैं.

इस घटना का सबसे विस्मयकारी पहलू प्रकाश सिंह का पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) के पद पर बने रहना है. इससे पहले पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध मामूली शिकायत पर भी कार्रवाई हो जाती थी. कुछ समय पहले ही दो पुलिस अधीक्षकों को बिना सफाई का मा़ैका दिए नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया, जबकि उनमें से किसी के ऊपर हत्या का आरोप नहीं था. इस तरह का दोहरा मानदंड अपना कर शायद यह प्रमाणित करने की कोशिश की जा रही है कि प्रकाश सिंह ने राजीव वर्मा की हत्या नहीं की. लेकिन, उत्तर प्रदेश शासन अगर यह साबित करना चाहता है, तो उसे टाल-मटोल करने के बजाय सबूतों के साथ यह बताना चाहिए कि राजीव वर्मा को गोली किसने मारी?

(2 नवंबर, 1981)

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