मैं अक्सर एक कल्पना करता हूं ।
जब कभी भी इस दुनिया को धर्मांधता ,जातिवाद ,वर्ण व्यवस्था ,छुआछूत ,नस्लवाद ,रंग भेद ,क्षेत्रीय संकीर्णता ,अंध विश्वासों से मुक्ति मिलेगी तो दुनिया कितनी खुशहाल होगी ।
इन झंझटों के नाम पर तनाव ,हिंसा और कट्टर पंथी आतंक नहीं होगा ।सारी दुनिया में अमन ही अमन होगा ।
नफरत की राजनीति नहीं होगी ।

राजनीति में धर्म का दुरुपयोग नहीं होगा ।जनता के हित से जुड़े आर्थिक मुद्दे ही विचार विमर्श के केंद्र में होंगे ।
यह कभी होगा , तो कितना अच्छा होगा ।
अंततः ईमान की जीत पर भरोसा है , और दुनिया की बेहतरी के लिए सारी दुनिया के कोने कोने में लड़ रहे लोगों के जन संघर्ष इस कल्पना के कभी साकार हो सकने की उम्मीद को भी कायम रखते हैं ।
हम रहे न रहे ,लेकिन यह एक दिन होगा जरूर ।

इस उम्मीद के लिए सारी दुनिया के कोने कोने में लड़ रहे लोग एक दिन जरूर कामयाब होंगे ।
तब फासीवादी ताकतें ध्वस्त होंगी ।
पूंजीवादी ताकतों की शिकस्त होगी ।
सारी दुनिया में मेहनतकशों की सत्ता स्थापित होगी ।
हमारे जैसे लड़ रहे लोग लड़ते रहे तो एक दिन निश्चित ही जीतेंगे ।
मैं अक्सर जब भी यह कल्पना किया करता हूं ,तब साहिर लुधियानवी की यह पंक्तियां याद आ ही जाती हैं ।

वो सुबह कभी तो आएगी ।

और फिर ,
उस सुबह को हम ही लायेंगे ,
वो सुबह हमीं से आयेगी ।

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